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लसोड़ा (NEROLIBD SEPISTAR)
परिचय :Nerolibd Sepistar(Lasoda)
लसोड़े के पेड़ बहुत बड़े होते हैं इसके पत्ते चिकने होते हैं। दक्षिण, गुजरात और राजपूताना में लोग पान की जगह लसोड़े का उपयोग कर लेते हैं। लसोड़ा में पान की तरह ही स्वाद होता है। इसके पेड़ की तीन से चार जातियां होती है पर मुख्य दो हैं जिन्हें लमेड़ा और लसोड़ा कहते हैं। छोटे और बड़े लसोडे़ के नाम से भी यह काफी प्रसिद्ध है। लसोड़ा की लकड़ी बड़ी चिकनी और मजबूत होती है। इमारती काम के लिए इसके तख्ते बनाये जाते हैं और बन्दूक के कुन्दे में भी इसका प्रयोग होता है। इसके साथ ही अन्य कई उपयोगी वस्तुएं बनायी जाती हैं।
इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चा लसोड़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं तथा इसके अन्दर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है, जो शरीर को मोटा बनाता है।
विभिन्न भाषाओं में लसोड़ा का नाम :
संस्कृत श्लेश्मातक, लघुश्लेश्मातक।
हिन्दी गोंदी, निसोरा, बहुवार लसोड़ा।
अंग्रेजी नेरोलिब्ड सेपिस्टर।
मराठी गोंधड़ी, भोंकर, शेलवट।
गुजराती गुदी या मोटी गुन्दी।
कनाड़ी दोड्डचल्लू, बीकेगेड, माणाडीकेएल्ले मारा, स्रणचलु।
तैलिगी पोद्दनाकेंरू।
तमिल कोरियानारूविलि।
फारसी सिफिस्तान, दबक।
लैटिन कार्डियाऐग्सिटफोलिया, कर्डिया मिस्का |
रंग : लसोड़ा के कच्चे फल हरे रंग के और पके फल गुलाबी रंग के होते हैं।
स्वाद : कच्चे लसोडे़ फीके और पके मीठे लगते हैं।
स्वरूप : लसोडे़ के पेड़ जंगलों और वनों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके पत्ते गोल-गोल थोडे़ लंबे होते हैं और इसके फूल अलूचे की तरह गोल रसीले गुच्छों में लगते हैं।
स्वभाव : इसका स्वभाव शीतल होता है।
हानिकारक : लसोड़ा का अधिक मात्रा में उपयोग मेदा (आमाशय) और जिगर के लिए हानिकारक हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला : इसके दोषों को दूर करने के लिए दाना उन्नाव और गुलाब के फूल मिलाकर लसोड़े का उपयोग करना चाहिए।
तुलना : इसकी तुलना खतमी से कर सकते हैं।
मात्रा : लसोड़ा को 20 दाना की मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
गुण : लसोड़ा पेट और सीने को नर्म करता है और गले की खरखराहट व सूजन में लाभदायक है। यह पित्त के दोषों को दस्तों के रास्ते बाहर निकाल देता है और बलगम व खून के दोषों को भी दूर करता है। यह पित्त और खून की तेजी को मिटाता है और प्यास को रोकता है। लसोहड़ा पेशाब की जलन, बुखार, दमा और सूखी खांसी तथा छाती के दर्द को दूर करता है। इसकी कोपलों को खाने से पेशाब की जलन और सूजाक रोग मिट जाता है।
यह कडुवा, शीतल, कषैला, पाचक और मधुर होता है। इसके उपयोग से पेट के कीड़े, दर्द, कफ, चेचक, फोड़ा, विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) और सभी प्रकार के विष नष्ट हो जाते हैं। इसके फल शीतल, मधुर, कड़वे और हल्के होते हैं।
इसके पके फल मधुर, शीतल और पुष्टिकारक हैं, यह रूखे, भारी और वात को खत्म करने वाले होते हैं।
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