मूली से स्वास्थ्य रक्षा
मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है।
मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है। सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मूली के पौधे में आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक है। मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं। मूली में ऐसे कई गुण मौजूद हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन यहां प्रस्तुत किया गया है। हाँ यदि इसे चिकित्सकीय परामर्श से मात्रा एवं पथ्य खाने योग्य-अपथ्य व चिकित्सा के समय त्याग देने योग्य को ध्यान में रखकर लिया जाए तो यह कमाल की औषधि है।
100 ग्राम मूली में अनुमानित निम्न तत्व हैं :
- प्रोटीन-0.7 ग्राम,
- विटामिन सी-15 मि.ग्रा.,
- वसा-0.1 ग्राम,
- कैल्शियम-35 मि.ग्रा.,
- कार्बोहाइड्रेट-3.4 ग्राम,
- लोह तत्व-0.4 मि.ग्रा.,
- फॉस्फोरस-22 मि.ग्रा,
- थायेसिन-0.06 मि.ग्रा.,
- केरोटीन-3 मि.ग्रा.,
- रिवोफ्लेविन-0.02 मि.ग्रा.,
- नियासिन-0.5 मि.ग्रा.।
मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है।
मूली स्वयं हजम नहीं होती, लेकिन अन्य भोज्य पदार्थों को पचा देती है। भोजन के बाद यदि गुड़ की 10 ग्राम मात्रा का सेवन किया जाए तो मूली हजम हो जाती है।
1. मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है।
2. मूली के पत्तों को सुखा कर इसे जला लें। अब बची राख को पानी में मिलाकर आग पर तब तक उबालें जब तक यह सूखकर क्षार का रूप न ले ले। अब इस क्षार की 500 मिलीग्राम की मात्रा में नियमित सेवन करने से श्वांस के रोगियों को लाभ मिलता है ।
3. मूली की पत्तियों के रस को तिल के तेल में उबाल कर तेल बनाएं। 2-3 बूँद कान में टपकाने से पीड़ा में आराम मिलता है।
4. मूली के पत्तों का रस दिन में दो से तीन बार 25 से 30 मिली की मात्रा में भोजन के बाद लें, यकृतदौर्बल्य में फाएदा पहुंचेगा ।
5. पीलिया (जौंडिस) के रोगी के लिए मूली की सब्जी लाभदायक होती है ।
6. यदि बवासीर के कारण खून आ रहा हो, तो फिटकरी पांच ग्राम मूली की पत्तियों के आधे लीटर रस में एक साथ उबाल लें। जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसकी छोटी-छोटी गोलियां (250-500 मिलीग्राम) बना लें। अब इसे उम्र के अनुसार एक से दो गोली मक्खन के साथ देने से निश्चित लाभ मिलता है।
7. मूली के बीज का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में देने से स्त्रियों में अनियमित मासिकस्राव की समस्या से निजात मिल जाती है।
8. मूली के ताजे पत्ते का रस डाययूरेटिक एवं मृदु विरेचक का काम करता है, अत: पथरी को बाहर निकालने में भी मददगार होता है।
9. मूली के पत्तों का रस यदि मिश्री के साथ सेवन करें तो यह एंटएसिड का काम करता है।
10. मूली के पत्तों को दस से बीस ग्राम की मात्रा में एक से दो ग्राम कलमी शोरा के साथ मिलाकर पिलाने से मूत्र साफ आता है।
11. मूली का रस रुचिकर एवं हृदय को प्रफुल्लित करने वाला होता है। यह हलका एवं कंठशोधक भी होता है।
12. एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
13. तिल के साथ आधी मात्रा में मूली के बीजों का सेवन किसी भी सूजन में प्रभावी है।
14. सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है।
15. मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है।
16. मूली का सूप हिचकी को रोकने में कारगर होता है।
17. मासिक धर्म की कमी के कारण लड़कियों के यदि मुहाँसे निकलते हों तो प्रातः पत्तों सहित एक मूली नित्य खाएं।
18. घृत में भुनी मूली वात-पित्त तथा कफनाशक है। सूखी मूली भी निर्दोष साबित है। गुड़, तेल या घृत में भुनी मूली के फूल कफ वायुनाशक हैं तथा फल पित्तनाशक।
19. मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है।
20. यकृत व प्लीहा के रोगियों को दैनिक भोजन में मूली को प्राथमिकता देनी चाहिए।
21. सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।
22. उदर विकारों में मूली का खार विशिष्ट गुणकारी है।
23. हल्दी के साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
24. मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
25. मूली के पतले कतरे सिरके में डालकर धूप में रखें, रंग बादामी हो जाने पर खाइए। इससे जठराग्नि तेज हो जाती है।
26. पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर करता है।
27. गर्मी के प्रभाव से खट्टी डकारें आती हो तो एक कप मूली के रस में मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।
28. मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
29. मूली के रस में नमक मिलाकर पीने से पेट का भारीपन, अफरा, मूत्ररोग दूर होता है।
30. यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है।
31. गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब का बनना बन्द हो जाए तो मूली का रस दो औंस प्रति मात्रा पीने से वह फिर बनने लगता है।
32. मूली खाने से मधुमेह में लाभ होता है।
33. एक कच्ची मूली नित्य प्रातः उठते ही खाते रहने से कुछ दिनों में पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
34. इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप से उपयोगी होता है।
35. मूली की राख को सरसों के तेल में फेंटकर मालिश करने से शोथ दूर होता है। पांडु व पीलिया में मूली के पत्तों का रस निकाल लें और आग पर चढ़ा दें। उबाल आने पर पानी को छान लें। दो तोला (20 ग्राम) लाल चीनी मिलाएँ। 9-10 दिनों तक सेवन करें। इससे नया खून बनना प्रारंभ हो जाता है।
36. मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं।
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