- अंगूर एक बलवर्घक एवं सौन्दर्यवर्घक फल है।
- अंगूर फल मां के दूघ के समान पोषक है।
- फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है।
- यह निर्बल-सबल, स्वस्थ-अस्वस्थ आदि सभी के लिए समान उपयोगी होता है।
- बहुत से ऎसे रोग हैं, जिसमें रोगी को कोई पदार्थ नहीं दिया जाता है। उसमें भी अंगूर फल दिया जा सकता है।
- पका हुआ अंगूर तासीर में ठंडा, मीठा और दस्तावर होता है।
- यह स्पर को शुद्ध बनाता है तथा आँखों के लिए हितकर होता है।
- अंगूर वीर्यवर्घक, रक्त साफ करने वाला, रक्त बढाने वाला तथा तरावट देने वाला फल है। अंगूर में जल, शर्करा, सोडियम, पोटेशियम, साइट्रिक एसिड, फलोराइड, पोटेशियम सल्फेट, मैगनेशियम और लौह तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं।
- अंगूर ह्वदय की दुर्बलता को दूर करने के लिए बहुत गुणकारी है । ह्वदय रोगी को नियमित अंगूर खाने चाहिएं।
- अंगूर के सेवन से फेफडों मे जमा कफ निकल जाता है, इससे खाँसी में भी आराम आता है।
- अंगूर जी मिचलाना, घबराहट, चक्कर आने वाली बीमारियों में भी लाभदायक है।
- श्वास रोग व वायु रोगों में भी अंगूर का प्रयोग हितकर है।
- नकसीर एवं पेशाब में होने वाली रूकावट में भी हितकर है।
- अंगूर का शरबत लो ""अमृत तुल्य"" है। शरीर के किसी भी भाग से रक्त स्राव होने पर अंगूर के एक गिलास ज्यूस में दो चम्मच शहद घोलकर पिलाने पर रक्त की कमी को पूरा किया जा सकता है, जिसकी कि रक्तस्राव के समय क्षति हुई है।
- अंगूर का गूदा " ग्लूकोज व शर्करा युक्त " होता है। विटामिन "ए" पर्याप्त मात्रा में होने से अंगूर का सेवन " भूख " बढाता है, पाचन शक्ति ठीक रखता है, आँखों, बालों एवं त्वचा को चमकदार बनाता है।
- हार्ट-अटैक से बचने के लिए बैंगनी (काले) अंगूर का रस "एसप्रिन" की गोली के समान कारगर है। "एसप्रिन" खून के थक्के नहीं बनने देती है।
- बैंगनी (काले) अंगूर के रस में " फलोवोनाइडस " नामक तत्व होता है और यह भी यही कार्य करता है। पोटेशियम की कमी से बाल बहुत टूटते हैं। दाँत हिलने लगते हैं, त्वचा ढीली व निस्तेज हो जाती है, जोडों में दर्द व जकडन होने लगती है। इन सभी रोगों को अंगूर दूर रखता है।
- अंगूर फोडे-फुन्सियों एवं मुहासों को सुखाने में सहायता करता है।
- अंगूर के रस के गरारे करने से मुँह के घावों एवं छालों में राहत मिलती है।
- एनीमिया में अंगूर से बढकर कोई दवा नहीं है।
- उल्टी आने व जी मिचलाने पर अंगूर पर थोडा नमक व काली मिर्च डालकर सेवन करें।
- पेट की गर्मी शांत करने के लिए 20-25 अंगूर रात को पानी में भिगों दे तथा सुबह मसल कर निचोडें तथा इस रस में थोडी शक्कर मिलाकर पीना चाहिए।
- गठिया रोग में अंगूर का सेवन करना चाहिए। इसका सेवन बहुत लाभप्रद है, क्योंकि यह शरीर में से उन तत्वों को बाहर निकालता है, जिसके कारण गठिया होता है। अंगूर के सेवन से हडि्डयाँ मजबूत होती हैं।
- अंगूर के पत्तों का रस पानी में उबालकर काले नमक मिलाकर पीने से गुर्दो के दर्द में भी बहुत लाभ होता है।
- भोजन के आघा घंटे बाद अंगूर का रस पीने से खून बढता है और कुछ ही दिनों में पेट फूलना, बदहजमी आदि बीमारियों से छुटकारा मिलता है।
- अंगूर के रस की दो-तीन बूंद नाक में डालने से नकसीर बंद हो जाती है।
तत्काल ऊर्जा देता है अंगूर
अंगूर पोषक तत्वों से युक्त फल है। इसे खाने पर शरीर में तत्काल ऊर्जा का संचार होता है। यह बीमारियों से बचाव करता है। इसमें ग्लूकोज और शक्कर अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, सी, बी6 और फोलेट मिलता है। इसके अलावा इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस और मैगनीशियम भी पाया जाता है।
फायदे
- यह अस्थमा के मरीजों के लिए काफी उपयोगी है।
- अंगूर हृदय रोगियों के लिए फायदेमंद है। यह खून में थक्का बनने से रोकता है। इससे हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है।
- माइग्रेन में पके अंगूर के रस का सेवन करने से आराम मिलता है।
- अंगूर कब्ज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है।
- अंगूर पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
- यह बढ़ती उम्र के साथ कम होती आंखों की रोशनी के खतरे से बचाता है।
- अंगूर से संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
- काले अंगूर में पाया जाने वाला फ्लेवोनायड्स याददाश्त बढ़ता है।
- अंगूर के नियमित सेवन से कैंसर का खतरा काफी कम हो जाता है।
- शरीर में रक्त की कमी होने पर अंगूर का जूस पीना लाभकारी होता है।
संस्कृत | द्राक्षा, गोस्तनी, कशिषा, हारहूरा। |
हिंदी | मुनक्का, अंगूर, दाख |
गुजराती | दशख, धराख। |
मराठी | द्राक्ष |
बंगाली | कटकी |
पंजाबी | दाख अंगूर |
अरबी | इनब, जबीब अंनब |
फारसी | अंगूर रजताफ, मवेका |
तेलगू | द्राक्षा |
अंग्रेजी | ग्रेप्स, ग्रेप्सवाइन, रेजिन्स |
अंगूर | |||
तत्त्व | मात्रा | तत्त्व | मात्रा |
प्रोटीन | 0.8 प्रतिशत | नियासिन | लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम |
वसा | 7.1 प्रतिशत | विटामिन-सी | लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम |
कार्बोहाइड्रेट | 10.2 प्रतिशत | लौह | लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम |
पानी | 85.5 प्रतिशत | फास्फोरस | 0.02 प्रतिशत |
विटामिन-ए | 15 आई.यू/ग्राम | कैल्शियम | 0.03 प्रतिशत |
विटामिन-बी | लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम |
- दाख (मुनक्का) और आंवले को समान मात्रा में लेकर, उबालकर पीसकर थोड़ा शुंठी का चूर्ण मिलाकर, शहद के साथ चटाने से बुखारयुक्त मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
- 25 ग्राम मुनक्का, मिश्री, अनार की छाल और खस 12-12 ग्राम, जौकूट कर 500 ग्राम पानी में रात भर भिगो दें, सुबह मसल-छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर और शाम) सेवन करें।
- 100-200 ग्राम मुनक्का को घी में भूनकर थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर रोजाना 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
- अंगूर और दाख के रस को नाक में डालने से नाक की नकसीर (नाक से खून आना) रुक जाती है।
- मीठे अंगूर के रस को नाक से ऊपर की ओर खींचकर सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
- दाख (मुनक्का) के 10 मिलीलीटर रस में हरड़ का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गलग्रंथि मिटती है।
- गले के रोगों में इसके रस से गंडूष (गरारे) कराना बहुत अच्छा है।
- 10-20 पीस मुनक्कों को साफकर बीज निकालकर, 200 ग्राम दूध में अच्छी तरह उबालकर (जब मुनक्के फूल जायें) दूध और मुनक्के दोनों का सेवन करने से सुबह दस्त साफ आता है।
- मुनक्का 10-20 पीस, अंजीर 5 पीस, सौंफ, सनाय, अमलतास का गूदा 3-3 ग्राम तथा गुलाब के फूल 3 ग्राम, इन सबके काढ़े में गुलकन्द मिलाकर पीने से दस्त साफ होता है।
- रात्रि में सोने से पहले 10-20 नग मुनक्कों को थोड़े घी में भूनकर सेंधानमक चुटकी भर मिलाकर खाएं।
- सोने से पहले आवश्यकतानुसार 10 से 30 ग्राम तक किसमिस खाकर गर्म दूध पीयें।
- मुनक्का 7 पीस, कालीमिर्च 5 पीस, भुना जीरा 10 ग्राम, सेंधानमक 6 ग्राम तथा टाटरी 500 मिलीग्राम की चटनी बनाकर चाटने से कब्ज तथा अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) दूर हो जाता है।
- दाख (मुनक्का), हरड़ बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसमें दोनों के बराबर शक्कर मिलायें, सबको एक साथ पीसकर, एक-एक ग्राम की गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम शीतल जल के साथ सेवन करने से अम्लपित्त, हृदय-कंठ की जलन, प्यास तथा अपच का नाश होता है।
- मुनक्का 10 ग्राम और सौंफ आधी मात्रा में दोनों को 100 मिली पानी में भिगों दें। सुबह मसलकर और छानकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
- बीजरहित मुनक्का का चूर्ण (पत्थर पर पिसा हुआ) 500 ग्राम, पुराना घी 2 किलो और पानी 8 किलो सबको एक साथ मिलाकर पकाएं। जब केवल घी मात्र शेष रह जाये तो छानकर रख लें, 3 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से पांडु (पीलिया) आदि में विशेष लाभ होता है।
- अंगूर पीलिया रोग को दूर करने में सहायता करता है।
- काले अंगूर की लकड़ी की राख 10 ग्राम को पानी में घोलकर दिन में दो बार पीने से मूत्राशय में पथरी का पैदा होना बंद हो जाता है।
- अंगूर की 6 ग्राम भस्म को गोखरू का काढ़ा 40-50 ग्राम या 10-20 ग्राम रस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है।
- 8-10 नग मुनक्कों को कालीमिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी में लाभ होता है।
- अंगूर के जूस में थोड़े-से केसर मिलाकर पीयें। इससे पथरी ठीक होती है।
- मूत्रकृच्छ में 8-10 मुनक्कों एवं 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- मुनक्का 12 ग्राम, पाषाण भेद, पुनर्नवा मूल तथा अमलतास का गूदा 6-6 ग्राम जौकूटकर, आधा किलो जल में अष्टमांश काढ़ा बनाकर पिलाने से मूत्रकृच्छ एवं उसके कारण उत्पन्न पेट के रोग भी दूर होते हैं।
- 8-10 नग मुनक्कों को बासी पानी में पीसकर चटनी की तरह पानी के साथ लेने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
- अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपड़कर तथा आग पर खूब गर्मकर बांधने से फोतों की सूजन बिखर जाती है।
- अंगूर के पत्तों पर लेप लगाकर, हल्का-सा सेंककर अंडकोषों पर बांधने से अंडवृद्धि मिट जाती है।
- मुनक्का 12 पीस, छुहारा 5 पीस तथा मखाना 7 पीस, इन सभी को 250 ग्राम दूध में डालकर खीर बनाकर सेवन करने से खून और मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है।
- मुनक्का 9 पीस, किशमिश 5 पीस, ब्राह्मी 3 ग्राम, छोटी इलायची 8 पीस, खरबूजे की गिरी 3 ग्राम, बादाम 10 पीस तथा बबूल की पत्ती 3 ग्राम, घोटकर पीने से गर्मी शांत होकर शरीर पुष्ट तथा बलवान बनता है।
- सुबह-सुबह मुनक्का 20 ग्राम खाकर ऊपर से 250 ग्राम दूध पीने से बुखार के बाद की कमजोरी और बुखार दूर होकर शरीर पुष्ट होता है।
- 20 से 60 ग्राम किशमिश रात को एक कप पानी में भिगो दें, सुबह मसल-छानकर उस पानी को पीने से कमजोरी और अम्लपित्त (ऐसीडिटी) दूर होती है।
- रात को सोने से पहले मुनक्का खायें फिर ऊपर से पानी पी लें, इससे कुछ दिनों में ही दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट होता है (ज्यादा लेने पर दस्त हो जाते हैं, अपनी शारीरिक क्षमतानुसार मात्रा का निर्धारण कर लें)।
- 10-20 नग मुनक्का शाम को पानी में भिगोकर सुबह मसलकर छान लें और उसमें थोड़ा सफेद जीरे का चूर्ण और मिश्री या चीनी मिलाकर पिलाने से पित्त के कारण उत्पन्न जलन शांत होती है।
- 10 ग्राम किशमिश आधा किलो गाय के दूध में पकाकर ठंडा हो जाने पर रात्रि के समय नित्य सेवन करने से जलन शांत होती है।
- मुनक्का और मिश्री 10-10 ग्राम रोज चबाकर और पीसकर सेवन करें।
- किशमिश 80 ग्राम, गिलोय सत्व (बारीक पिसा हुआ चूर्ण) और जीरा 10-10 ग्राम तथा चीनी 10 ग्राम इन सभी के मिश्रण को चिकने गर्म बर्तन में भरकर उसमें इतना गाय का घी मिलायें, कि मिश्रण अच्छी तरह भीग जाये। इसे नियमित 6 से 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से एक दो सप्ताह में चेचक आदि विस्फोटक रोग होने के बाद जो जलन शरीर में हो जाती है, वह शांत हो जाती है।
- जीभ सूख जाये और फट जाये तो उस पर 2-3 अंगूर को 1 चम्मच शहद के साथ पीसकर उसमें थोड़ा घी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
- पित्त ज्वर
- काला अंगूर और अमलतास के गूदे का 40-60 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से पित्त ज्वर ठीक हो जाता है।
- अंगूर के शरबत के नित्य सेवन से भी दाह ज्वर आदि शांत होता है।
- यदि प्यास अधिक हो तो अंगूर और मुलेठी का लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग काढ़ा दिन में 2-3 बार पिलावें।
- मुनक्का, कालीमिर्च और सेंधानमक तीनों को पीसकर गोलियां बनाकर मुंह में रखें।
- एक समान मात्रा में आंवला तथा मुनक्के को लेकर अच्छी तरह महीन पीसकर थोड़ा घी मिलाकर मुंह में रखें।
- किशमिश 10 ग्राम, दूध 160 ग्राम, पानी 640 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर पकावें। 160 मिलीलीटर शेष रहने पर थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाएं।
- मुनक्का, मुलेठी, गिलोय 10-10 ग्राम लेकर जौकूट कर 500 ग्राम जल में अष्टमांश काढ़ा बनाकर सेवन करें।
- मुनक्का 10 ग्राम, गूलर की जड़ 10 ग्राम, धमासा 10 ग्राम लेकर, जौकूट कर अष्टमांश काढ़ा बनाकर सेवन करें। इस प्रयोग से रक्तपित्त, जलन, मुंह की सूजन, प्यास तथा कफ के साथ खांसने पर रक्त निकलना आदि विकार शीघ्र दूर हो जाते हैं।
- अंगूर के 50-100 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम घी और 20 ग्राम चीनी मिलाकर पीने से रक्तपित्त दूर होता है।
- मुनक्का और पके गूलर का फल बराबर-बराबर लेकर पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम चटायें।
- मुनक्का 10 ग्राम, हरड़ 10 ग्राम पानी के साथ पीसकर 6 ग्राम तक बकरी के दूध के साथ पिलायें।
- सिगरेट, चाय, काफी, जर्दा, शराब आदि की आदत केवल अंगूर खाते रहने से छूट जाती है।
- दुग्धवृद्धि (स्तनों में दूध की वृद्धि) : अंगूर खाने से दुग्धवृद्धि होती है। इसलिए स्तनपान कराने वाली माताओं को यदि उनके स्तनों में दूध की कमी हो तो अंगूरों का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
- अंगूर दुग्धवर्द्धक होता है। प्रसवकाल में यदि उचित मात्रा से अधिक रक्तस्राव हो तो अंगूर के रस का सेवन बहुत अधिक प्रभावशाली होता है। खून की कमी के शिकायत में अंगूर के ताजे रस का सेवन बहुत उपयोगी होता है क्योंकि यह शरीर के रक्त में रक्तकणों की वृद्धि करता है।
- दांत निकलते समय अंगूरों का 2 चम्मच रस नित्य पिलाते रहने से बच्चों के दांत सरलता और शीघ्रता से निकल आते हैं। बच्चा रोता नहीं है, वह हंसमुख रहता है। बच्चा सुडौल रहता है तथा बच्चे को `सूखारोग´ नहीं होता। इसके अतिरिक्त बच्चों को दौरे नहीं पड़ते और चक्कर भी नहीं आते लेकिन अंगूर मीठे हो, चाहे तो स्वाद के लिए अंगूर में शहद भी मिला सकते हैं।
- बच्चों के दांत निकलते समय के दर्द कम करने के लिए अंगूर का रस पिलायें। इससे दर्द कम होता है तथा दांत स्वस्थ व मजबूत निकलते हैं।
- बच्चों के दांत निकलते समय अंगूर के रस में शहद डालकर देने से दांत जल्द निकल आते हैं। इससे दांत निकलते समय दर्द नहीं होता।
- रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदयरोग शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। जब हृदय में दर्द हो और धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बंद हो जाता है और धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी ही देर में रोगी को आराम आ जाता है तथा रोग की आपात स्थिति दूर हो जाती है।
- यदि हृदय में दर्द हो तो मुनक्का का कल्क (पेस्ट) 30 ग्राम, शहद 10 ग्राम तथा लौंग 5 ग्राम, मिलाकर कुछ दिन सेवन करें।
- प्रतिदिन 100 ग्राम अंगूर खाने से हृदय की निर्बलता जल्दी ही खत्म हो जाती है।
- यदि हृदय में दर्द महसूस हो तो आधा कप अंगूर का रस सेवन करें।
- अंगूर का प्रयोग करने से खून की सफाई होती है क्योंकि अंगूर में मौजूद विभिन्न प्रकार के एसिड रक्तशोधन का कार्य करते रहते हैं।
- कुछ दिन नियमित रूप से अंगूर का रस पीने से शरीर के अंदर की गरमी दूर हो जाती है और रक्त शुद्ध होता है।
- अंगूर का रस 30-40 ग्राम गर्म करके दमा के रोगी को पिलाने से श्वास का वेग घट जाता है।
- अंगूर का रस फेफड़ों के कोषों को शक्ति देता है। इसलिए दमा, खांसी और टी.बी के रोगियों को अंगूर बहुत लाभकारी रहता है। यदि थूकने में खून आता हो तब भी हमें अंगूर खाने चाहिए।
- दमे में अंगूर खाना लाभकारी है। यदि थूक में रक्त आता हो तब भी अंगूर खाने से लाभ होता है।
- अंगूर खाने से फेफड़ों को शक्ति मिलती है। जुकाम, खांसी दूर होती है। कफ (बलगम) बाहर आ जाता है। अंगूर खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए।
- पित्ताशय की पथरी
- रोज 200 ग्राम अंगूर का रस पीने या अंगूर खाने से पित्ताशय की पथरी में बहुत ही फायदा होता है।
- नित्य 25 ग्राम अंगूर का रस पिएं।
- रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदय-रोग शीघ्र ठीक हो जाते है। जब हृदय में दर्द हो, धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बंद हो जाता है तथा धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी देर में ही रोगी को आराम आ जाता है।
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