चिरायता
परिचय : चिरायता आमतौर पर आसानी से उपलब्ध होने वाला पौधा नहीं है। चिरायता का मूल उत्पादक देश होने के कारण नेपाल में यह अधिक मात्रा में पाया जाता है। भारत के हिमायल प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक काफी ऊंचाई पर इसका पौधा होता है। मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसे उगाया जाता है। इसका एक 2 वर्षीय पौधा 2 से 4 फुट तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते भालाकार, नोकदार, 2-3 इंच लंबे और 3-4 सेंटीमीटर चौड़े, चिकने पांच शिरायुक्त होते हैं। इसका तना मोटा, लंबा और शाखायुक्त होता है। इसका फल 6-7 मिलीमीटर व्यास का अण्डाकार तथा इसके बीज छोटे चिकने, बहुकोणीय और अधिक संख्या में होते हैं। इसके फूल बारिश के मौसम में और फल अगस्त से सितम्बर तक के महीनों में आते हैं। शरद ऋतु में जब फल पक जाते हैं तब इन्हें इकट्ठा किया जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी | चिरायता |
संस्कृत | किरात, किरातिक्त |
मराठी | किराईत |
गुजराती | करियातु |
बंगाली | चिरेता |
अंग्रेजी | चिरेट्टा |
लैटिन | स्वेर्टिया चिरायता |
रंग : चिरायता हरे रंग का होता है।
स्वाद : चिरायता का स्वाद कड़वा होता है।
स्वरूप : चिरायता एक प्रकार की घास होती है जो नेपाल में पायी जाती है।
स्वभाव : चिरायता गर्म प्रकृति की होती है।
हानिकारक : चिरायता का अधिक मात्रा में उपयोग कमर के लिए हानिकारक हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला : अनीसून चिरायता के दोषों को दूर करता है।
तुलना : केसर से चिरायता की तुलना की जा सकती है।
मात्रा : चिरायता की मात्रा 6 ग्राम के लगभग लेनी चाहिए तथा इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक उपयोग किया जाता है।
गुण :
आयुर्वेद के अनुसार : आयुर्वेद के मतानुसार चिरायता का रस तीखा, गुण में लघु, प्रकृति में गर्म तथा कड़ुवा होता है। यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है। चिरायता त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला, प्लीहा यकृत वृद्धि (तिल्ली और जिगर की वृद्धि) को रोकने वाला, आमपाचक, उत्तेजक, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, अग्निमान्द्य, संग्रहणी, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया, जीवनीशक्तिवर्द्धक, जीवाणुनाशक गुणों से युक्त होने के कारण इन बीमारियों में सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
चिरायता मन को प्रसन्न करता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को पचाता है। दिल को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिरायता जलोदर (पेट में पानी भरना), सीने का दर्द, और गर्भाशय के विभिन्न रोगों को नष्ट करता है। यह खून को साफ करता है तथा कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो चिरायता उस बुखार को नष्ट कर देता है। इसका कड़वापन ही इस औषधि का विशेष गुण होता है। इसका उपयोग मलेरिया, दमे की बीमारी, बुखार, टायफाइड, संक्रमणरोधक, कमजोरी, जीवाणु कृमिनाशक, कालाजार (जिसमें प्लीहा और यकृत दोनों बढ़ जाते हैं) आदि रोगों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
वैज्ञानिक मतानुसार : चिरायता का रासायनिक विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें पीले रंग का एक ओफेलिक एसिड, दो प्रकार के तिक्त, चिरायनिन और एमेरोजेण्टिन नामक ग्लाइकोसाइड्स, दो क्रिटलीय फिनॉल जेन्टीयोपीक्रीन, पीले रंग के क्रिस्टल यौगिक, सुअर्चिरिन, नामक जैन्थोन होते हैं। उल्लेखनीय है कि एमेरोजेण्टिन नामक ग्लाइकोसाइड संसार के सबसे अधिक कड़ुवे पदार्थों में से एक होता है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार : यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार चिरायता दूसरे दर्जे का गर्म और रूखा होता है। बुखार की औषधि के रूप में यह सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। चिरायता दिल और जिगर को बलवान बनाता है। यह आमाशय और जिगर की सूजन को दूर करता है। चिरायता पेशाब की रुकावट, गर्भाशय का दर्द, गुर्दे का दर्द, खुजली, त्वचा के रोग, खांसी, कब्ज, आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला, पाचन शक्ति तथा भूख को बढ़ाने वाली, तथा बिगड़े हुए बुखार को दूर करने वाली होती है।
चिरायता
चिरायता (Swertia chirata Ham) यह जेंशियानेसिई (Gentianaceae) कुल का पौधा है, जिसका प्रेग देशी चिकित्सा पद्धति में प्राचीन काल से होता आया है। यह तिक्त, बल्य (bitter tonic), ज्वरहर, मृदु विरेचक एवं कृमिघ्न है, तथा त्वचा के विकारों में भी प्रयुक्त होता है। इस पौधे के सभी भाग (पंचांग), क्वाथ, फांट या चूर्ण के रूप में, अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग में जाए जाते हैं। इसके मूल को जंशियन के प्रतिनिधि रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
चिरायते का पौधा हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों में 11 हजार फुट का ऊँचाई तक प्राप्त होता है। तना प्राय: 75 से 125 सेंमी. ऊँचा, ऊपरी भाग चौपहल तथा सपक्ष, आधार की ओर गोल तथा वर्ण में पीताभ नीलारुण होता है। पत्तियाँ 3.5 8.0 1.5 3.5 सेंमी., अवृंत, विपरीत, चतुष्क (decussate), भालाकार, लंबाग्र (acuminate) एवं पाँच शिराओं से युक्त होती हैं। पौधे के सभी भाग स्वाद में अत्यंत तिक्त होते हैं।
पंसारियों के यहाँ यह भेषज 'पहाड़ी चिरायता' के नाम से उपलब्ध होता है। अधिकांशत: यह नेपाल में पाया जाता है, इसलिये इसे 'नेपाली चिरायता' भी कहते हैं। आयुर्वेद का ''किरात तिक्त'' नाम भी इसकी पहाड़ी, अर्थात् किरातीय प्रदेश में, उत्पत्ति तथा तिक्त रस का द्योतक है। देशी चिरायता के नाम से प्राय: कालमेघ (Andrographis paniculata) या अन्य तिक्त द्रव्य, जैसे नाय या नई (Enicostema littorale), बड़ा चिरायता या उदि चिरायता (Exacum bicol) और असली चिरायते की अन्य जातियाँ (Species) भारत के विभिन्न भागों में काम में लाई जाती हैं। (सत्य प्रकाश.)-चिरायताSubmitted by Hindi on Thu, 08/11/2011 - 14:38, स्त्रोत : हिंदी इंडिया वाटर पोर्टल
गुणकारी है कड़वा चिरायता
अगस्त-सितंबर के माह में रोगाणु अधिक मात्रा में फैलते हैं। इस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए महँगी दवाओं के स्थान पर घरेलू नुस्खे आजमाएँ। बरसों से हमारी दादी-नानी कड़वे चिरायते से बीमारियों को दूर भगाती रही है। दरअसल, यह कड़वा चिरायता एक प्रकार की जड़ीबूटी है जो कुनैन की गोली से अधिक प्रभावी होती है। पहले इस चिरायते को घर में सूखा कर बनाया जाता था लेकिन आजकल यह बाजार में कुटकी चिरायते के रूप में उपलब्ध है।
घर में चिरायता चूर्ण बनाने की विधि : 100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें। मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा। बुखार ना होने की स्थिति में इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें।
यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु झर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।-स्त्रोत : हिंदी वेब दुनिया
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