जटामांसी (Spikenard)
परिचय : जटामांसी हिमालय में उगने वाली एक मशहूर औषधि है। जटामांसी का पौधा होता है, जिसका तना 10 से 60 सेमी तक लम्बा होता है। जटामांसी के पत्ते 15 से 20 सेमी तक लम्बे होते हैं ये गुच्छे में लगे होते हैं, इसके फूल सफेद व गुलाबी या नीले रंग के एक गुच्छे में लगते हैं। फल सफेद रोमों से भरे छोटे व गोल-गोल होते हैं। इसकी जड़ लंबी, गहरी भूरे रंग की सूत्रों युक्त होती है। जटामांसी कश्मीर, भूटान, सिक्किम और कुमाऊं जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में अपने आप उगती है। इसे 'बालछड़' के नाम से भी जाना जाता है। जटामांसी ठण्डी जलवायु में उत्पन्न होती है। इसलिए यह हर जगह आसानी से नहीं मिलती। इसे जटामांसी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी जड़ में बाल जैसे तन्तु लगे होते हैं। एलोपैथिक डांक्टर को इसके सारे गुण ‘वेलेरियन नामक दवा में मिलते हैं।
विभिन्न भाषाओं में जटामांसी के नाम :
संस्कृत | जटामांसी। |
हिन्दी | जटामांसी, बालछड़। |
मराठी | जटामांसी। |
गुजराती | बालछड़। |
बंगाली | जटामांसी। |
अग्रेजी | स्पाइक नाड। |
लैटिन | नार्डो स्टेकिस जटामांसी। |
हानिकारक : जटामांसी का ज्यादा उपयोग करने से गुर्दों को हानि पहुंच सकती है और पेट में कभी भी दर्द शुरू हो सकता है।
मात्रा : 2 से 4 ग्राम जड़ का चूर्ण और काढ़ा 10 मिलीलीटर।
औषधीय उपयोग
जटामांसी :सिर की ज्यादातर बीमारियों के लिए
मैं बहुत दिनों से जटामांसी के बारे में लिखना चाह रही थी लेकिन कुछ तो संयोग नहीं बन पा रहा था और कुछ मेरी जानकारियों से मैं खुद संतुष्ट नहीं थी, जबकि ये अकेली जड़ी है जिसका मैंने ७५%मरीजों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया है. फिर मरीजों की क्या बात करूँ ,मैं जो आज आपके सामने सही-सलामत मौजूद हूँ वह इसी जटामांसी का कमाल है. इसलिए आज इस जड़ी का आभार व्यक्त करते हुए आपको इससे परिचित कराती हूँ.
आइये पहले इसके नामो के बारे में जानते हैं-

हिंदी- जटामांसी, बालछड , गुजराती में भी ये ही दोनों नाम,तेल्गू में जटामांही ,पहाडी लोग भूतकेश कहते हैं और संस्कृत में तो कई सारे नाम मिलते हैं- जठी, पेशी, लोमशा, जातीला, मांसी, तपस्विनी, मिसी, मृगभक्षा, मिसिका, चक्रवर्तिनी, भूतजटा.यूनानी में इसे सुबुल हिन्दी कहते हैं.
ये पहाड़ों पर ही बर्फ में पैदा होती है. इसके रोयेंदार तने तथा जड़ ही दवा के रूप में उपयोग में आती है. जड़ों में बड़ी तीखी तेज महक होती है.ये दिखने में काले रंग की किसी साधू की जटाओं की तरह होती है.

इसमें पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों के बारे में भी जान लेना ज्यादा अच्छा रहेगा---- इसके जड़ और भौमिक काण्ड में जटामेंसान , जटामासिक एसिड ,एक्टीनीदीन, टरपेन, एल्कोहाल , ल्यूपियाल, जटामेनसोंन और कुछ उत्पत्त तेल पाए जाते हैं.
अब इस के उपयोग के बारे में जानते हैं :-
मस्तिष्क और नाड़ियों के रोगों के लिए ये राम बाण औषधि है, ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है.
पागलपन , हिस्टीरिया, मिर्गी, नाडी का धीमी गति से चलना,,मन बेचैन होना, याददाश्त कम होना.,इन सारे रोगों की यही अचूक दवा है.
ये त्रिदोष को भी शांत करती है और सन्निपात के लक्षण ख़त्म करती है.
इसके सेवन से बाल काले और लम्बे होते हैं.
इसके काढ़े को रोजाना पीने से आँखों की रोशनी बढ़ती है.
चर्म रोग , सोरायसिस में भी इसका लेप फायदा पहुंचाता है.
दांतों में दर्द हो तो जटामांसी के महीन पावडर से मंजन कीजिए.
नारियों के मोनोपाज के समय तो ये सच्ची साथी की तरह काम करती है.
इसका शरबत दिल को मजबूत बनाता है, और शरीर में कहीं भी जमे हुए कफ को बाहर निकालता है.
मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट को जटामांसी का काढा ख़त्म करता है.
इसे पानी में पीस कर जहां लेप कर देंगे वहाँ का दर्द ख़त्म हो जाएगा ,विशेषतः सर का और हृदय का.
इसको खाने या पीने से मूत्रनली के रोग, पाचननली के रोग, श्वासनली के रोग, गले के रोग, आँख के रोग,दिमाग के रोग, हैजा, शरीर में मौजूद विष नष्ट होते हैं.
अगर पेट फूला हो तो जटामांसी को सिरके में पीस कर नमक मिलाकर लेप करो तो पेट की सूजन कम होकर पेट सपाट हो जाता है.
दीदी आप महानता की पराकाष्ठा है।मैने तो दीदी जटामासी का प्रयोग हवन आदि मे ही किया है ।आज पता चला कि ये बहुत काम की वस्तु है
ReplyDeleteदिदि जटामांसी किस तर्हा लेनी चाहिए मात्रा बता दिजीए और अगर बाल मे लगाना है तो भी विधी बताइए
ReplyDeleteOr chai k sath piye to
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