शुष्क प्रकृति वाले राज्यों में गर्मी व लू का प्रभाव अधिक होता है। राजस्थान में लू व गर्मी की प्रचण्डता बहुत अधिक रहती है। जिन स्थानों में जमीन का जल स्तर नीचा होता है वहां वनस्पति जल्दी नहीं पनपती। यही कारण है कि प्रदेश में हरियाली के अभाव में सूर्य की किरणों का प्रभाव अधिक तेज व प्रचण्ड पाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार 35 डिग्री तक तापमान सहने योग्य होता है तथा इससे अधिक होने पर शरीर के जल
का वाष्पीकरण होने लगता है जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। गर्मी के मौसम में व्यक्ति की आन्तरिक व बाह्य शक्ति वैसे भी कम होती है। सर्दी के सीजन को हैल्थी, बरसात को संक्रमित तथा गर्मी को डीहाइडे्रशन सीजन कहा जाता है। यानि शरीर की पाचन शक्ति कमजोर होने से गरिष्ठ भोजन पच नहीं पाता इसलिये गर्मी के मौसम में सेहत का पूरा ख्याल रखना आवश्यक है।

डॉ. नाथावत का कहना है कि धूप में घूमने व काम करने वालों के लिये तो यह मौसम कठिनाईभरा होता ही है लेकिन उन लोगों को सतर्क रहना चाहिए जो अधिक समय तक कूलर्स व एसी में रहते हैं। इस मौसम में सावधानी रखते हुए ही गर्मी व लू से बचा जा सकता है। भोजन में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें क्योंकि गर्मी में खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं। बासी भोजन बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। तेज धूप से कूलर या वातानुकूललित वातावरण में आने से सर्दी-जुकाम व एलर्जी हो सकती है। जहां तक हो सके, एसी का तापमान 22 से 25 डिग्री तक ही बनाए रखना चाहिए।
गर्मी में शरीर का जल पसीने में बह जाता है। धूप में जाने के लिये शरीर को अतिरिक्त जल की आवश्यकता होती है इसलिये धूप में जाने से पहले पेट भरकर पानी जरूर पीयें। शरीर में पानी की कमी से उल्टी, दस्त, हिचकियां आने लगती हैं, हाथ-पैर ठण्डे पड़ना, पेशाब में रुकावट, चक्कर आना आदि पर॓शानी हो सकती है। गर्मी पेट व आंतों तक पहुंचने पर बड़ी समस्या पैदा कर सकती है। आंतों का सिकुड़ना, शौच व पेशाब के साथ खून आना जैसे घातक रोग होने का भय रहता है। नाक से खून आना तथा नेत्रों में जलन होना तो सन स्ट्रॉक के प्रारम्भिक लक्षण हैं। कुछ लोगो को धूप में बाहर निकलने से सन बर्न अर्थात् त्वचा जलने जैसी पर॓शानी हो जाती है। त्वचा पर लाल रंग के चकते पड़ जाते हैं। धूप से बचाव के लिये सन स्क्रीन लोशन या क्रीम कारगर नहीं है बल्कि शरीर के अन्दर उपलब्ध चिकनाहट ही त्वचा का बचाव करती है।
डॉ. केपीएस नाथावत का कहना है कि सन स्ट्रॉक के इलाज से अधिक जरूरी है इसका बचाव करना। उनका कहना है एक व्यक्ति को एक दिन में 6 लीटर पानी पीना चाहिए। गर्मी में अधिकांश रोग शरीर में जल की कमी के कारण होते हैं। जब भी धूप में बाहर निकलना हो, दो गिलास पानी पीकर ही जायें। गर्मी में शरीर को पूरी तरह से ढंक कर रखना चाहिए ताकि सीधी धूप का प्रभाव त्वचा पर न पड़े। बाहर से आने पर ठण्डे पानी से मुंह धोयें लेकिन देर तक पानी में नहीं रहें। गर्मी के दिनों में दही, छाछ, आम का पन्ना, लस्सी, ग्लूकोज, ताजे फलों का रस तथा ठण्डाई आदि लाभकारी हैं। ध्यान रहे गर्मी से खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं। सड़क के किनार॓ खड़े ठेलों पर बिक रहे खाद्य पदार्थों में संक्रमण होने का भय बना रहता है इसलिये खुले में बिकने वाले पदार्थांे के सेवन से बचना चाहिए। फलों में पोषक तत्वों के साथ जल, शर्करा, फ्रक्टोज, लवण, खनिज, विटामिन, सोडियम, कैल्शियम, फाइबर आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं। जो शरीर को पर्याप्त ऊर्जा के साथ संतुलित आहार प्रदान करते हैं परन्तु कोला इत्यादि शीतल पेय पदार्थों के प्रयोग से दूर रहना चाहिए। आयुर्वेद में दही को धरती पर अमृत कहा गया है। इसमें शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ाने वाले तत्व व बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। दही में पाया जाने वाला कैल्शियम, विटामिन डी, फास्फोरस तथा विटामिन ए आंतों के लिये बहुत लाभकारी है। गर्मी के दिनों में प्रचुर मात्रा में दही व छाछ का सेवन करना चाहिए। गर्मी या लू लगने पर नींबू, नमक व चीनी का घोल बनाकर लेना चाहिए ताकि शरीर में जल तत्वों की कमी न रहे। घर के अन्दर ही उपलब्ध खाद्य व पेय पदार्थों से छोटे-छोटे उपाय करके गर्मी व लू के प्रकोप से बचा जा सकता है।-
नफा नुकसान
0 जानकारी अच्छी लगे तो कृपया एक कमेंट अवश्य करें।:
Post a Comment