पीलिया
हम पीलिया की दवाई खुद बनाते हैं और पीलिया से पीड़ित दुखी मानवता की सेवा हेतु पूरी तरह से मुफ्त में बांटते हैं। हमारा आपसे भी निवेदन है कि कृपया यदि कोई स्त्री-पुरुष या छोटो बच्चा पीलिया रोग से पीड़ित हो, तो उसके उपचार में एक दिन की भी लापरवाही नहीं करें। मंत्र, तंत्र, गण्डा, ताबीज आदि के चक्कर में बीमार की जान को खतरा हो सकता है। आप तत्काल बीमार को हमारे पास लायें या बीमार के परिवार वालों को हमसे सम्पर्क करने को कहें।
पीलिया रोग क्या, क्यों और कैसे पहचाना जाये?
पीलिया रोग को पाण्डु और कामला रोग भी कहा जाता है। आम तौर पर बहुत सारे लोगों को ऐसा मानना है कि यकृत जिसे जिगर और अंग्रेजी में लीव
र कहा जाता है, में बीमारी या खराबी हो जाने के कारण पीलिया रोग होता है, जबकि यह सच नहीं है। सच यह है कि यकृत के भीतर ही पित्ताशय का स्थान है, उसी पित्ताशय से निकला हुआ पित्त किसी शारीरिक कमी या गड़बड़ी के कारण निर्धारित रीति से निकलकर रक्त में नहीं मिले तो आँख, मुँह, नाखून और कुछ मामलों के बदन भी पीले हो जाते हैं। इसी शारीरिक स्थिति को पीलिया रोग कहा जाता है।
पित्ताशय से पित्त क्यों रुक जाता है?
पित्त पथरी, पित्त की राह में किसी प्रकार का बाहरी या आन्तरिक दबाव, पित्त नली में कृमि का प्रवेश, पित्त नली का किसी कारण से सुकड़ जाना, डिस्पेप्सिया अर्थात् मन्दाग्नि या अपच या बदहजमी, पित्त नली में किसी कारण से सूजन। अधितकर लोगों को अन्तिम दो कारणों से ही ये रोग होता देखा जाता है। इसके अलावा कुछेक लोगों अन्य कारणों से पीलिया रोग होता है।
पीलिया के प्रकट लक्षण :
1. आँख, मुँह, नाखून और पेशाब में पीलापन।
2. भूख कम और मिचलिया-उबकाईयॉं आती रहती हैं, कुछ मामलों में उल्टी भी हो जाती हैं।
3. कभी पतले दस्त आते हैं, कभी पेट फूल जाता है और मल में बदबू आती है।
4. नब्ज धीमी गति से चलती है। एक मिनट में 30-40 बार तक धीमी हो जाती है।
5. रोगी को नींद नहीं आती और कमजोरी आ जाती है।
6. रोग पुराना हो जाने पर शरीर में भयानक रूप से खुजली हो जाती है।
रोगी को क्या नहीं खिलायें।
रोगी को जिन खाद्य पदार्थों को खाने से उपरोक्त में से कोई भी तकलीफ हो या जिस खाद्य या फल की रोगी को इच्छा नहीं हो, वह सब रोगी को जबरन नहीं खिलाना चाहिये।
रोगी को क्या खिलायें?
वैसे तो रोगी को जो भी अच्छा लगे और जो रोगी के लिये सुपाच्य हो वही खाद्य उसे दिया जाना चाहिये। फिर भी पीलिया के रोगी को पुराना जौ, गेहूँ, चावल, मूँग-मसूर की दाल, कच्चा केला, परवल, गन्ना, आदि दिए जा सकते हैं।
पीलिया की दवाई
हमारी ओर से जो दवाई भेजी या दी जाती है। इससे सामान्यत: 90 फीसदी से अधिक रोगियों का रोग ठीक हो जाता है। जिन रोगियों को पित्त पथरी या पित्त नली में कृमि प्रवेश कर जाने या अन्य किसी असाध्य कारण से पित्त नली में सूजन आने के कारण पीलिया रोग हुआ हो। उनको इस दवाई से लाभ होने की आशा नहीं करें। अत: दवाई का सेवन करने से पूर्व इस बात का ठीक से पता लगा लें कि पीलिया रोग का कारण क्या है। इसके बाद ही दवाई का सेवन करें।
दवाई का सेवन किस प्रकार करें?
शाम के समय एक अधपका ताजा केला लेकर उसके छिलके को छीलें, लेकिन पूरा नहीं हटायें और केले में 4 चीरे लगा लें। उन चीरों में एक पुड़िया दवाई को भर दें। इसके बाद केले के ऊपर केले के छिलके को वापस चढा दें और फिर केले के छिलके को धागे से ढीला सा बांध कर खाली और हवादार जगह पर रख दें। इस केले को सुबह छिलका हटाकर रोगी को खाली पेट खिला दें। इस प्रकार रोगी के रोग की स्थिति के अनुसार 7 से 12 दिन तक दवाई केले में खिलाते रहें। भगवान की कृपा से रोगी रोग से पूरी तरह से मुक्त हो जायेगा।
दवाई का शुल्क कितना?
रोग से मुक्त होने के बाद, हमें सूचित करें और तय कर लें कि आप पीलिया के किसी भी रोगी को इस रोग के कारण कष्ट नहीं भोगने देंगे और जैसे ही आपको पता चले कि कोई पीलिया से पीड़ित है, आप तत्काल उसे हमारे बारे में सूचना देंगे। बस यही आपका दवाई का शुल्क है।
रोग से मुक्त होने के बाद गरिष्ठ खाद्य नहीं।
रोग से मुक्त हो जाने के बाद रोगी को ऐसा कोई भी खाद्य पदार्थ नहीं खिलावें, जो पचने में आसान नहीं हो। पीलिया रोग के कारण रोगी काफी कमजोर हो जाता है। इस कारण रोगी को शीघ्र ताजा करने के इरादे से अनेक परिजन खुराख देना शुरू कर देते हैं, जो उचित नहीं है। रोगी को हल्का, रुचिकर और सुपाच्य भोजन एवं पेय पदार्थों का सेवन करावें। अन्यथा रोगी को अन्य अनेक प्रकार की तकलीफें होने का खतरा हो सकता है। जहॉं तक सम्भव हो रोगी को सुपाच्य फलों के रस एवं फलों का सेवन करावें। यदि सम्भव हो तो रोगी को दिन में कम से कम दो बार गन्ने का स्वच्छ और ताजा रस पीने को देंवे। चिकनाई से दूर रखें।
अन्य बीमारियॉं
हम पीलिया का तो मुफ्त में उपचार करते हैं। इसके अलावा निम्न बीमारियों का भी उपचार किया जाता है। जिसके लिये अग्रिम समय लेकर मिलना होता है :-
1. आसान प्रसव और सुरक्षित जच्चा-बच्चा : हम वर्ष 1991 से स्त्रियों को गर्भावस्था के दौरान ऐसी दवाईयों का सेवन करवा रहे हैं, जिससे जहॉं एक ओर गर्भस्त्राव या गर्भपात नहीं होता है और निर्धारित समय पर प्रसव होता है, वहीं दूसरी ओर प्रसव-आसान और सुरक्षित होता है। प्रसव पूर्व फाल्स पैन अर्थात् झूठे दर्द नहीं सहने पड़ते, प्रसव के दौरान प्रसूता को आधे से भी कम दर्द झेलना पड़ता है, प्रसव स्वाभाविक और सही समय पर होता है, इसलिये सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। अन्त में सबसे बड़ी बात
हमारी दवाईयों से स्त्री की योनि में इस प्रकार का लीचीलापन उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण प्रसव के दौरान स्त्री की योनि में किसी प्रकार का जख्म नहीं आता है और प्रसव के बाद योनि प्रसव पूर्व की स्थित में सिकुड़ जाती है। दाम्पत्य सम्बन्धों के लिये ये बरदान स्वरूरप है। प्रसव के बाद प्रसूता स्त्री को ऐसी दवाईयॉं दी जाती हैं, जिससे नवजात को पर्याप्त दूध मिले और नवजात बच्चे के लिये भी ऐसी दवाईयॉं दी जाती हैं, जिससे उसका सही एवं स्वाभाविक विकास हो और दॉंत निकलते समय किसी प्रकार की तकलीफ नहीं हो।
2. खूनी बवाशीर : गुदा से खून आता हो।
3. खूनी प्रदर : जिसे रक्त प्रदर भी कहते हैं, जिसमें स्त्रियों की योनि से महावारी के अलावा भी रक्त स्त्राव होता रहता है। इस कारण रोगिणी कमजोर हो जाती है।
4. आधाशीशी-सिरदर्द-स्नायुशूल : सिर की इस पीड़ा को 40 फीसदी औरतें आजन्म झेलती रहती हैं और उनकी समस्या को अनेदखा कर दिया जाता है, क्योंकि खूब इलाज-दवाई करवाने के बाद भी लाभ नहीं होता है। इन दिनों तो कुंवारी लड़कियों और पढने वाले बच्चों में भी ये तकलीफ देखने को मिल रही है।
5. पुरुष योन रोग : योन उत्तेजना का अभाव, अत्यन्त उत्तेजना, नामर्दी का अनुभव होना या शीघ्र वीर्य स्खलन हो जाना, हस्तमैथुन जनित कमजोरी, स्वप्नदोष की समस्या।
6. स्त्री योन रोग : योन असन्तुष्टि, अति उत्तेजना या उत्तेजना का अभाव और ठण्डापन, महावारी से पूर्व, महावारी के दौरान या महावारी के बाद में तकलीफ कमर या पेट में दर्द, रक्त प्रदर, स्वप्नदोष की समस्या।
7. स्टूडेण्ट टोनिक : परीक्षा से पूर्व या परीक्षा के दौरान विद्यार्थियों को बहुत घबारहट होने लगती है। जिसके चलते जो कुछ याद होता है, उसे भी भूल जाते हैं। या सामान्य दिनों में कुछ याद ही नहीं होता, मन चलायमान रहता है।
9. पुराना घाव जो भरने का नाम ही नहीं लेता : सारे इलाज कराने के बाद भी पुराना घाव नहीं भरे तो एक बार हमें भी सेवा का मौदा दें।
10. डिसेंटरी-पेचिश : मरोड़ के साथ दस्त आये, जिसमें ऑव या रक्त मिश्रित हो। बार-बार दस्त की इच्छा, लेकिन संतुष्टि नहीं मिले।
11. प्रेम रोग : जिसमें लड़का या लड़की अपने प्रेमी की जुदाई या बेवफाई से उबर नहीं पाता हो और दिन रात उसी के खयालों में खोया रहे।
: हमारा नाम-पता और मोबाइल नम्बर :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, म. नं. 7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
मोबाइल नं. 098750-66111
मिलने आने से पूर्व मोबाइल पर समय लें।
रोगी को दिखाना हो तो रोगी को लाने या परिवार के किसी भी सदस्य को यहॉं आने से पूर्व मोबाइल पर मिलने का समय जरूर ले लें। जिस दिन का समय दिया जावे उस दिन भी चलने से पूर्व एक बार फिर से मोबाइल पर पक्का कर लें कि हम जयपुर में हैं और ठीक समय पर पहुँचें।
पीलिया से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप निचे दिए गए लेख जरूर पड़ें, यहाँ पर पीलिया के बारे में साड़ी जानकारी दी गई हैं, जैसे लक्षण, उपचार, घरेलु इलाज, आयुर्वेदिक इलाज आदि इस रोग में क्या खाये क्या न खाये सब कुछ दिया गया हैं आप इनको एक-एक कर सभी पड़ें ताकि आपको पीलिया के बारे में पूर्ण जानकारी हो जाए.
ReplyDeleteजानिये पीलिया के लक्षण - 10 Symptoms Of Jaundice in Hindi
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