उदर शूल (Abdominal Haul)
आधुनिक परिवेश में अनियमित और प्रकृति विरूद्ध भोजन करने से सभी छोटे-बडे़ उदर शूल से पीड़ित होते है। स्तनपान कराने वाली स्त्रियां जब अधिक उष्ण मिर्च-मसालों व अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करती हैं तो उनके शिशु भी उदर शूल से पीड़ित होते है।
उत्पत्ति:
उदर शूल कोई स्वतंत्र रोग नहीं, बल्कि दूसरे रोग-विकारों के कारण उदर शूल की उत्पत्ति होती है। जब भोजन में अधिक वात विकारक, गरिष्ठ और प्रकृति विरूद्ध खाद्य पदार्थो का सेवन किया जाता है तो पाचन क्रिया की विकृति से उदर शूल की उत्पत्ति होती है। कोष्ठबद्धता, आध्मान (अफारा), अम्लपित्त, अतिसार, अजीर्ण, प्रवाहिका आदि रोगों में तीव्र उदर शूल होती है। भोजन करके एक दम से सो जाने पर भी उदर में शूल हो सकता है। उदर में लम्बे समय तक केंचुए व दूसरे कृमि बने रहें तो उदर शूल की उत्पत्ति करते है। गैस बनने की विकृति से भी तीव्र उदर शूल होता है। पेप्टिक अल्सर होने पर रोगी के पेट में तीव्र शूल होता है। अधिक भोजन करने और अधिक उपवास करने से भी उदर में शूल की उत्पत्ति होती है। स्त्रियों को ऋतुस्त्राव के दिनों में उदर शूल होता है। कुछ स्त्रियों को ऋतुस्त्राव प्रारंभ होने से एक एक-दो दिन पहले उदर शूल प्रारंभ हो जाता है। और ऋतुस्त्राव की समाप्ति पर बंद हो जाता है।
लक्षण:
विभिन्न रोग-विकारों के कारण किसी समय भी उदर शूल की उत्पत्ति हो सकती है। पाचन क्रिया की विकृति से जब उदर शूल की उत्पत्ति होती है। तो प्रारंभ में हल्का-हल्का शूल होता है, लेकिन भोजन में लापरवाही करने से शूल अधिक उग्र हो जाता है। आध्यान रोग में जब उदर से वायु का निष्कासन नहीं हो पाता तो तीव्र शूल की उत्पत्ति होती है। गैस की विकृति में भी तीव्र शूल होता है।
प्रवाहिका रोग में ऐंठन, मरोड़ होने से तीव्र शूल होता है। कुछ रोगों में असहनीय शूल होने से रोगी जल बिन मछली की तरह तड़प उठता है। अम्ल पित्त से उदर शूल होने पर रोगी को खट्टी डकारें आती है। जी मिचलाता है और वमन भी हो जाती है। उदर शूल के कारण रोगी का पेट बहुत कड़ा हो जाता है। रोगी को भूख भी नहीं लगती। कई बार उदर उदर शूल के कारण रोगी मूत्र में अवरोध अनुभव करता है।
क्या खांए ?
- * नीबू के रस में जल और सेंधा नमक मिलाकर पीने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * कोष्ठबद्धता के कारण उदर शूल होने पर 200 ग्राम मट्ठे में भुना हुआ जीरा 5 ग्राम और काला नमक 5 ग्राम, अच्छी तरह मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- * अमलतास का गूदा 25-30 गा्रम, अच्छी तरह मिलाकर पीने से लाभ होता है।
- * अदरक का रस, नीबू का रस, काली मिर्च का चूर्ण 1 ग्राम मात्रा में मिलाकर पीने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * लहसुन के रस में थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
- * तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रस 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर हल्के गर्म जल में मिलाकर पिंए।
- * मूली के 30 ग्राम रस में काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
- * जमुन में सेंधा नमक लगाकर खाने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * अनार के 50 ग्राम रस में काली मिर्च और सेंधा नमक को पीसकर, मिलाकर सेवन करने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * काला नमक, सोंठ और भुनी हुई हींग का चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * हींग को गर्म जल में धोलकर नाभि के आस-पास लेप करें।
- * सोंठ का 3 ग्राम चूर्ण सेंधा नमक मिलाकर हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें।
- * कोष्ठबद्धता के कारण उदर शूल होने पर हरड का 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें।
- * अजवायन और काला नमक बराबर मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल से सेवन करें। उदर शूल षीघ्र नष्ट होगा।
- * जामुन के 10 ग्राम सिरके को 100 ग्राम जल में मिलाकर पीने से उदर शूल नष्ट होता है।
- * वायु विकार के कारण उदर शूल होने पर 5 ग्राम हल्दी और सेंधा नमक मिलाकर हल्के गर्म जल से सेवन करें।
क्या न खांए ?
- * उदर शूल होने पर गरिष्ठ व शीतल खाद्य पदार्थ व पेयों का सेवन न करें।
- * अरबी, कचालू, गोभी, आलू, बैंगन, चावन आदि न खांए।
- * उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
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