मूत्र में जलन से रोगी को बहुत पीड़ा होती है। मूत्र का अवरोध हो जाता है या बंूद-बूंद करके मूत्र निष्कासित होता है। ग्रीष्म ऋतु में उष्णता के कारण मूत्र में जलन की अधिक विकृति होती है।
उत्पत्ति :
विशेषज्ञों के अनुसार अधिक उष्ण, तेल, घी से निर्मित मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शरीर में अम्ल बढ़ने से मूत्र में जलन की विकृति होती है। अधिक चाय, कॉफी पीने से भी मूत्र में जलन की उत्पत्ति होती है। जलन के अनेक कारण हो सकते हैं। शराब पीने वालों को अधिक जलन होती है। शराब पीने से विकृति को बहुत हानि पहुंचती है।
यौन रोग उपदंश व सूजाक में पूय के कारण मूत्र में अवरोध होता है तो मूत्र त्याग के समय रोगी को बहुत जलन व पीड़ा होती है। दूसरे कारणों से भी मूत्र में अवरोध होने पर जलन की उत्पत्ति होती हैं मल-मूत्र के वेगों को देर तक रोकने, अधिक मैथुन करने से भी जलन की उत्पत्ति हो सकती है। अप्राकृतिक मैथुन के कारण भी जलन होती है। अधिक घुड़सवारी और ऊंट पर यात्रा करने से भी मूत्र में जलन की विकृति होती है।
एलोपेथी औषधियों के कारण भी मूत्र में जलन की उत्पत्ति हो सकती है। शिश्न पर चोट लगने से भी मूत्र त्याग के समय जलन व पीड़ा हो सकती है। जल कम पीने वालों को ग्रीष्म ऋतु में जलन की विकृति होती है।
लक्षण :
मूत्र त्याग के समय तीव्र जलन की अनुभूति होती है। प्रारंभ में हल्की जलन होती है, लेकिन भोजन में अधिक उष्ण मिर्च-मसालों के खाद्य पदार्थों का सेवन करने से अधिक जलन होती है। तीव्र जलन से रोगी तड़प उठता है। मूत्र की जलन से स्त्री-पुरुष दोनों पीड़ित हो सकते हैं।
मूत्र का अवरोध होने पर नाभि के आस-पास तीव्र शूल होता है। ऐसे में बूंद-बंूद मूत्र निष्कासित होता है तो जलन होती है। मूत्राशय में पथरी होने पर जब पथरी खिसकर मूत्र नली में आ जाती है तो मूत्र में अवरोध की पीड़ा के साथ जलन की विकृति भी होती है।
क्या खाएं?
* मूत्र में जलन होने पर अधिक मात्रा में शीतल जल का सेवन करें।
* आंवले के 50 ग्राम रस में 25 ग्राम जल मिलाकर सेवन करें। मूत्र की जलन शीघ्र नष्ट होगी।
* नारियल का जल पीने से जलन नहीं होती।
* गन्ने का रस दिन में दो-तीन बार पीने से जलन नष्ट होती है।
* गाजर खाने और रस पीने से जलन नष्ट होती है।
* कच्चे दूध की लस्सी बनाकर पीने से मूत्र की जलन नहीं होती है।
* फालसे खाने और उसका शरबत पीने से जलन का निवारण होता है।
* अनार का रस ग्रीष्म ऋतु में मूत्र की जलन नष्ट करता है।
* इलायची को पीसकर दूध में मिलाकर पीने से जलन नष्ट होती है।
* शहतूत का शरबत पीने स ेमूत्र की जलन नष्ट होती है।
* हरे धनिए को पीसकर कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस में शक्कर मिलाकर सेवन करें।
* रात को धनिया जल में डालकर रखें। प्रातः धनिये को थोड़ा-सा मसलकर, छानकर, मिसरी मिलाकर पिएं। जलन नष्ट होती है।
* तरबूज खोने और तरबूज का रस पीने से जलन का निवारण होता है।
* भिंड़ी, तोरई, फूलगोभी का सब्जी खाने से लाभ होता है।
* मूली का रस सेवन करने स ेमूत्र की जलन नष्ट होती है।
* पेठे की मिठाई खाने से जलन का निवारण होता है।
* नीबू का रस जल में मिलाकर चीनी डालकर पिएं।
* आइसक्रीम खाने व कोल्ड डिंªक पीने से जलन नष्ट होती है।
* आंवले का मुरब्बा भी मूत्र की जलन में लाभ करता है।
क्या न खाएं?
* चाय, कॉफी और शराब न पिएं।
* घी, तेल, मक्खन आदि से बने पकवान व चटपटे व्यंजन सेवन न करें।
* छोल-भठूरे, गोल-गप्पे, समोसे, कचौड़ी आदि न खाएं।
* हरी या लाल मिर्च की चटनी न खाएं।
* मांस, मछली व अंडे का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसालें व अम्लीय रसों के खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
स्त्रोत : जियो जिन्दगी, ०७.०3.११
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