गिलोय-गुडूची जो अमृता है!
परिचय: गिलोय की बेल पूरे भारत में पाई जाती है। इसकी आयु कई वर्षों की होती है। इसका काण्ड/डंठल छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा हो सकता है। इसके पत्ते पान के आकार के होते हैं। इसमें ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे पीले रंग के गुच्छों में फूल आते हैं। इसके फल मटर के दाने के आकार के होते हैं जो पकने पर लाल हो जाते हैं।
नाम: मधुपर्णी, अमृता, तंत्रिका, कुण्डलिनी गुडूची आदि इसी के नाम हैं।
श्रृष्ठ गिलोय: नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय को औषधीय दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
मात्रा: एक वयस्क के लिये गिलोय चूर्ण के रूप में 3 से 6 ग्राम, सत के रूप में 2 ग्राम तक तथा क्वाथ के रूप में 50 से 100 मि.ली. की मात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।
औषधीय उपयोग: औषधि के रूप में गिलोय के जड़, काण्ड तथा पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इनके अलावा गिलोय का धनसत्व भी प्रयोग किया जाता है। इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।
घनसत्व बनाने की विधि: घनसत्व तैयार करने के लिए ताजा गिलोय की बेल को एक या दो इंच के टुकड़ों में काट कर उन्हें कुचल लें। इस कुचले हुए गिलोय को कांच या मिट्टी के बर्तन में लगभग चार घंटे के लिए भिगो दें। चार घंटे बाद हाथों से मल−मलकर गिलोय बाहर फेंक दें और पानी को कपड़े से छानकर तीन-चार घंटे पड़ा रहने दें इससे इसका सत्व तेजी से तली में बैठ जाता है। बाद में सावधानी पूर्वक पानी को दूसरे बर्तन में निकाल लें और बर्तन में नीचे जमी/बची सफेद तलछट को धूप में सुखा लें। यही मटमैले रंग की तलछट गिलोय का धनसत्व कहलाता है। इसका प्रयोग तीन महीने तक किया जा सकता है।
या
घनसत्व तैयार करने की विधि इस प्रकार है-हो सके तो नीम पर चढ़ी हुई, नहीं तो सामान्य गिलोय बेल जो ताजा, रसदार चमकीली हो, लेकर उसकी एक या दो-दो इंच के टुकड़े कर लें। उन टुकड़ों को पत्थर से कुचल कर एक साफ बरतन में (कांच या मिट्टी का) पानी के अन्दर गला दें। चार घंटे पश्चात उन्हें हाथों से मल-मल कर बाहर निकाल कर फेंक दें। पानी को कपड़े से छानकर 3-4 घंटे पड़ा रहने दें, जिससे गिलोय सत्व बरतन की पेंदी में जम जाए। धीरे-धीरे उस पानी को दूसरे बरतन में निकाल लें और नीचे जो सफेद रंग का सत्व जमा हो, उसे निकाल कर धूप में सुखा लें। यह मटमैला रंग का पदार्थ ही गिलोय घन सत्व है इसे लगभग तीन माह तक प्रयुक्त कर सकते हैं।
पंचामृत: गिलोय रस 10-20 मिलीग्राम, घृतकुमारी रस 10-20 मिलीग्राम, गेहूँ का जवारा 10-20 मिलीग्राम, तुलसी 7 पत्ते, नीम 2 पत्ते, सुबह शाम खली पेट सेवन करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य रोगों में लाभ होता है। यह पंचामृत शरीर की शुद्धि व रोग प्रतिरोधक क्षमता/Disease Resistance के लिए अत्यंत लाभकारी है। इसे रसायन के रूप में शुक्रहीनता दौर्बल्य में भी प्रयोग करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह शुक्राणुओं के बनने की और उनके सक्रिय होने की प्रक्रिया को बढ़ाती है। इस प्रकार यह औषधि एक समग्र कायाकल्प योग है। साथ ही शोधक भी तथा शक्तिवर्धक भी है।
पाये जाने वाले तत्व: गिलोय के काण्ड में स्टार्च के अलावा अनेक जैव सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें तीन प्रकार के एल्केलाइड पाए जाते हैं, जिनमें बरबेरीन प्रमुख है। इसमें एक कड़वा ग्लूकोसाइड 'गिलोइन' भी पाया जाता है। इसके धनसत्व में जो स्टार्च होता है, वह ताजे में 4 प्रतिशत से लेकर सूखे में 1.5 प्रतिशत होता है।
प्रमुख गुण:
मुख्य रूप से गिलोय का
उल्टी,
बेहोशी,
कफ,
पीलिया,
धातू विकार,
सिफलिस,
एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार,
चर्म रोग,
झाइयां,
झुर्रियां,
कमजोरी,
गले के संक्रमण,
खाँसी,
छींक,
विषम ज्वर नाशक,
सुअर फ्लू,
बर्ड फ्लू,
टाइफायड,
मलेरिया,
कालाजार,
डेंगू,
पेट कृमि,
पेट के रोग,
सीने में जकड़न,
शरीर का टूटना या दर्द,
जोडों में दर्द,
रक्त विकार,
निम्न रक्तचाप,
हृदय दौर्बल्य,
क्षय (टीबी),
लीवर,
किडनी,
मूत्र रोग,
मधुमेह,
रक्तशोधक,
रोग पतिरोधक,
गैस,
बुढापा रोकने वाली,
खांसी मिटाने वाली,
भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है।
गिलोय भूख बढ़ाती है, शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है।
गिलोय से प्रमुख रोगों का उपचार:
1-रोगाणूनाशक: आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष-गिलोय की रोगाणुनाशी क्षमताओं पर बड़े विशाल स्तर पर प्रयोग हुए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार सूक्ष्मतम विषाणु समूह से लेकर स्थूल कृमियों तक इसका प्रभाव होता है। 'इण्डियन जनरल ऑफ एक्सपेरीमेण्टल बायोलॉजी' (6, 245, 1938) के अनुसार प्रायोगिक परीक्षणों में पाया गया कि वायरस पर गिलोय का घातक प्रभाव होता है।
2-डेंगू और मलेरिया: गिलोय ऐसी आयुर्वेदिक बेल है, जिसमें सभी प्रकार के ज्वर विशेषकर डेंगू और मलेरिया रोगों से लड़ने के गुण हैं। आयुर्वेद के विशेषज्ञों का मानना है कि गिलोय का इस्तेमाल डेंगू पीडि़तों के लिए वरदान साबित हो सकता है। शोधों से ज्ञात हुआ है कि गिलोय ज्वर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काफी कारगर साबित हुआ है। बुखार को ठीक करने का इसमें अद्भुत गुण है। यह मलेरिया पर अधिक प्रभावी नहीं है, लेकिन शरीर की समस्त मेटाबोलिक क्रियाओं को व्यवस्थित करने के साथ सिनकोना चूर्ण या कुनाईन (कोई भी एंटी मलेरियल) औषधि के साथ देने पर उसके घातक प्रभावों को रोक कर शीघ्र लाभ देती है।
आजकल डेंगू एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है, जिससे कई लोगों की जान जा रही है। यह एक ऐसा वायरल रोग है, जिसका मेडिकल चिकित्सा पद्धति में कोई इलाज नहीं है, परन्तु आयुर्वेद में इसका इलाज है और वो इतना सरल और सस्ता है की उसे कोई भी कर सकता है।
लक्षण: तीव्र ज्वर, सर में तेज़ दर्द, आँखों के पीछे दर्द होना, उल्टियाँ लगना, त्वचा का सूखना तथा खून के प्लेटलेट की मात्रा का तेज़ी से कम होना डेंगू के कुछ लक्षण हैं, जिनका यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी सकती है।
3-प्लेटलेट्स: अगर रोगी के प्लेटलेट्स बहुत कम हो गए हैं, तो चिंता की बात नहीं, एलोवीरा और गिलोय मिलाकर सेवन करने से प्लेटलेट्स तेजी से बढ़ते हैं। गिलोय इसमें पपीता के 3-4 पत्तों का रस मिलाकर दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है। प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है। यह चिकनगुनियां, डेंगू, स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
4-प्लेटलेट्स काढा: यदि किसी को डेंगू यह रोग हुआ हो और खून में प्लेटलेट्स की संख्या कम होती जा रही हो तो चार चीजें रोगी को दें:-
(1) अनार जूस
(2) गेहूं घास रस
(3) पपीते के पत्तों का रस
(4) गिलोय/अमृता/अमरबेल सत्व
- -अनार जूस तथा गेहूं घास रस नया खून बनाने तथा रोगी की रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए है, अनार जूस आसानी से उपलब्ध है। यदि गेहूं घास रस ना मिले तो रोगी को सेब का रस भी दिया जा सकता है।
- -पपीते के पत्तों का रस सबसे महत्वपूर्ण है, पपीते का पेड़ आसानी से मिल जाता है। उसकी ताज़ी पत्तियों का रस निकाल कर मरीज़ को दिन में दो से तीन बार दें, एक दिन की खुराक के बाद ही प्लेटलेट की संख्या बढ़ने लगेगी।
- -गिलोय बेल की डंडी ले, डंडी के छोटे टुकड़े करे। उसे दो गिलास पानी मे उबालें, जब पानी आधा रह जाये तो ठंडा होने पर काढ़े को रोगी को पिलायें। मात्र 45 मिनट बाद सेल्स बढ़ने शुरू हो जाएँगे!
- -गिलोय की बेल का सत्व मरीज़ को दिन में दो तीन बार दें, इससे खून में प्लेटलेट की संख्या बढती है, रोग से लड़ने की शक्ति बढती है तथा कई रोगों का नाश होता है।
- -यदि गिलोय की बेल आपको ना मिले तो किसी भी नजदीकी पतंजली चिकित्सालय में जाकर “गिलोय घनवटी” ले आयें, जिसकी एक एक गोली रोगी को दिन में तीन बार दें।
- -यदि बुखार एक दिन से ज्यादा रहे तो खून की जांच अवश्य करवा लें।
- -यदि रोगी बार-बार उलटी करे तो सेब के रस में थोडा निम्बू मिलाकर रोगी को दें, उल्टियाँ बंद हो जाएंगी।
- -यदि रोगी को अंग्रेजी दवाइयां दी जा रही है, तब भी यह (उक्त) चीज़ें रोगी की बिना किसी डर के दी जा सकती हैं।
- -डेंगू जितना जल्दी पकड़ में आये उतना जल्दी उपचार आसान हो जाता है और रोग जल्दी ख़त्म होता है।
- -रोगी के खान पान का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि बिना खान पान कोई दवाई असर नहीं करती।
4-पुराना बुखार: पुराने बुखार या 6 दिन से भी ज्यादा समय से चले आ रहे बुखार के लिए गिलोय उत्तम औषधि है। इस प्रकार के बुखार के लिए लगभग 40 ग्राम गिलोय को कुचलकर मिट्टी के बर्तन में पानी मिलाकर रात भर ढक कर रख देते हैं। सुबह इसे मसल कर छानकर रोगी को दिया जाना चाहिए। इसकी 80 ग्राम मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है। गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
5-अज्ञात कारणों से बुखार: ऐसा बुखार जिसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा हो उसका उपचार भी गिलोय द्वारा संभव है। पुररीवर्त्तक ज्वर/Typhus fever में गिलोय की चूर्ण तथा उल्टी के साथ ज्वर होने पर गिलोय का धनसत्व शहद के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए।
6-मलेरिया, कालाजार, टायफायड: बार-बार होने वाला मलेरिया, कालाजार जैसे रोगों में भी यह बहुत उपयोगी है। मलेरिया में कुनैन के दुष्प्रभावों को यह रोकती है। टायफायड जैसे ज्वर में भी यह बुखार तो खत्म करती है और रोगी की शारीरिक दुर्बलता भी दूर करती है।
7-रोगाणु नाशक: टीबी के कारक माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलम बैसीलस जीवाणु की वृद्धि को यह रोक देती है। यह रक्त मार्ग में पहुंच कर उस जीवाणु का नाश करती है और उसकी सिस्ट बनाने की प्रक्रिया को बाधित करती है। ऐस्केनिशिया कोलाइ नामक रोगाणु जिसका आक्रमण मुख्यतः मूत्रवाही संस्थान तथा आंतों पर होता है, को यह समूल नष्ट कर देती है। ग्लूकोज टोलरेंस तथा एड्रीनेलिनजन्य हाइपर ग्लाइसीमिया के उपचार में भी गिलोय आश्चर्यजनक परिणाम देती है। इसके प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर नीचे आता है। मधुमेह के दौरान होने वाले विभिन्न संक्रमणों के उपचार में भी गिलोय का प्रयोग किया जाता है।
8-गिलोय-जड़ शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट: गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है।
मात्रा: गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम तक क्वाथ के रूप में 50से 100 मि. ली.की मात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।
9-कमजोरी: बुखार या लंबी बीमारी के बाद आई कमजोरी को दूर करने के लिए गिलोय के क्वाथ का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए 100 ग्राम गिलोय को शहद के साथ पानी में पकाना चाहिए। सुबह-शाम इसकी बीस-तीस मिलीलीटर मात्रा का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में शक्ति का संचार होता है।
10-त्वचा विकार: एलर्जी, कुष्ठ तथा सभी प्रकार त्वचा विकारों में भी गिलोय का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। आंत्रशोथ तथा कृमि रोगों में भी गिलोय लाभकारी है। घाव: एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है। गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभ मिलता है-खून साफ होता है।
10-गुर्दे की पथरी: गिलोय/अमृता एक बहुत अच्छी उपयोगी मूत्रवर्धक एजेंट भी है जो कि गुर्दे की पथरी को दूर करने में मदद करता है और रक्त से यूरिया कम करता है।
11-सर्दी, जुकाम, बुखार: गिलोय-सर्दी, जुकाम, बुखार आदि में एक अंगुल मोटी व 4 से 6 लम्बी गिलोय लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें, 100 ग्राम रहने पर पीयें। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता/इम्यून सिस्टम को मजबूत कर त्रिदोषों का शमन करती है व सभी रोगों, बार-बार होने वाले सर्दी, जुकाम, बुखार आदि को भी ठीक करती है। नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद में मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
12-त्रिदोषनाशक: यह तीनों प्रकार के दोषों का नाश भी करती है। घी के साथ यह वातदोष, मिसरी के साथ पित्तदोष तथा शहद के साथ कफ दोष का निवारण करती है। हृदय की दुर्बलता, लो ब्लड प्रेशर तथा विभिन्न रक्त विकारों में यह फायदा पहुंचती है।
13-कभी कोई बीमारी ही नहीं होगी: गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल लें। उसमें 4-5 पत्तियां तुलसी की मिला लें। इसको एक गिलास पानी में मिलाकर, उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। इसके साथ ही तीन चम्मच एलोवेरा का गूदा पानी में मिलाकर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नजदीक नहीं आती है।
14-जलन: गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।
15-खून की कमी (एनीमिया): प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर होती है।
16-दिमांगी कमजोरी दूर करे-याददाश्त बढ़ाये: गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल यानी हृदय मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त वर्धक है। साथ में अपामार्ग, शतावरी और शंखपुष्पी मिलाकर सेवन करने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है!
17-वात संतुलित करे: गैस, जोडों का दर्द, शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है।
18-पित्त की बीमारियों का इलाज: एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
19-गठिया और आमवात:
- (1) गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है। एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से खून साफ होता है। और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।
- (2) गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।
- (3) गिलोय और सोंठ समान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।
- (4) गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटनों के दर्द में लाभ होता है।
20-बाँझपन से मुक्ति: गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
21-दुग्ध वृद्धि: गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है।
22-पेट दर्द: गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
23-पीलिया: गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह-सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है। गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से भी पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
24-बवासीर: मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।
25-कान रोग: गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
26-बच्चों का सूखा रोग: गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखिया रोग जल्द ठीक होगा।
27-प्रदर: गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और शतावरी को साथ-साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर इसे पकाएं। जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें। प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
28-चर्मरोग: मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयों पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है। गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए और सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है।
29-कैंसर: कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें। इसमें गैहूं घास/जवारा का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें। इसका सेवन खाली पेट करने से Aplastic Anaemia-एप्लासिटक एनीमिया भी ठीक होता है।
30-कोढ़: 1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल का चूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बार सेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है। गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा।
31-नेत्र विकार: लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं।
32-मिर्गी: गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
33-शोधक और शक्तिवर्धक: गिलोय एक उच्च कोटि की शोधक तथा शक्तिवर्धक औषधि है। अत: गिलोय रक्त शोधन करके शारीरिक दुर्बलता को भी दूर करती है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। हृदय को मजबूत करती है।
34-मोटापा: गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है। गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2–3 बार सेवन करने से भी मोटापा घटने लगता है।
35-संभोग शक्तिवर्धक: बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति में वृद्धि होती है।
36-वीर्य गाढ़ा: अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे गिलोय के रस तथा शहद के साथ हफ्ते–दस दिन तक सेवन करे इससे वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
गिलोय
गिलोय पान के पत्ते कि तरह की एक त्रिदोष नाशक श्रेष्ट बहुवर्षिय औषधिये बेल होती है। अमृत के गुणों वाली गिलोय की बेल लगभाग भारत वर्ष के हर गाँव शहर बाग़ बगीचे में और वन उपवन में बहुतायत से पायी जाती है यह मैदानों, सड़कों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी हुई दिखाई दे जाती है। नीम पर चढ़ी गिलोय में सब से अधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं, नीम पर चढी हुई गिलोय नीम का गुण अवशोषित कर लेती है। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फासफोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। यह वात, कफ और पित्त का शमन करती है। गिलोय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। गिलोय एक श्रेष्ट एंटीबायटिक एंटी वायरल और एंटीएजिड भी होती है। यदि गिलोय को घी के साथ दिया जाए तो इसका विशेष लाभ होता है, शहद के साथ प्रयोग से कफ की समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रमेह के रोगियों को भी यह स्वस्थ करने में सहायक है। ज्वर के बाद इसका उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है। यह शरीर के त्रिदोषों (कफ ,वात और पित्) को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। गिलोय का उल्टी,बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां,झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, सुअर फ्लू, बर्ड फ्लू,टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, शरीर का टूटना या दर्द, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है। गिलोय भूख बढ़ाती है, शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। अमृता एक बहुत अच्छी उपयोगी मूत्रवर्धक एजेंट है जो कि गुर्दे की पथरी को दूर करने में मदद करता है और रक्त से रक्त यूरिया कम करता है। गिलोय रक्त शोधन करके शारीरिक दुर्बलता को भी दूर करती है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्टकरता है। ह्रदय को मजबूत करती है। इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।
गिलोय के औषधीय उपयोग
- गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रदयरोग नाशक, शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है।
- गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसकेसाथ ही तीन चम्मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप से सेवनकरते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4पत्तो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
- गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
- गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
- गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
- गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस कीएक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा।
- गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
- क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
- गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
- एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
- गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक होता है। और गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त का बढ़ना रुकता है।
- प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
- गिलोय ज्वर पीडि़तों के लिए अमृत है, गिलोय का सेवन ज्वर के बाद टॉनिक का काम करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को दूर करता है।
- फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है।
- सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।
- गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त को भी बढाती है।
- गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें।प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है।
- मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
- गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन इन सब को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर ठीक होता है।
- गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक चम्मच को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ सेवन करने से ज्वर में लाभ मिलता है।
- गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक चम्मच भर लेने से बुखार में आराम मिलता है।
- गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।
- गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है। औरगिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें इससे बारम्बार होनेवाला बुखार ठीक होता है।गिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकरलेने से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है।
- गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।
- गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी से सेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।
- गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कमहोता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमेंशिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
- गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से मोटापा घटने लगता है।
- बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति मजबूत होती है।
- अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे गिलोय के रस तथा शहद के साथ हफ्ते – दस दिन तक सेवन करे इससे वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
- लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक ग्राम) मिलाकर,इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक होजाते हैं।
- गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है।
- गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के रोग दूर हो जाते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।
- गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान पर लगाइए औरसुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है।
- गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस ठीक होती है।
- श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है।गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
- गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
- गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
- 6 इंच गिलोय का तना लेकर कुट कर काढ़ा बनाकर इसमे काली मिर्च का चुर्ण डालकर गरम गरम पीने से साधारण जुकाम ठीक होगा।
- पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन, कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए भी फायदेमंद है।
- नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
- 1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच अनन्तमूल काचूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप प्रतिदिन दिन में तीन बारसेवन करें इससे खून साफ होता हैं और कोढ़ ठीक होने लगता है।
- गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है।
- एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम रोगों में लाभ मिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग भी ठीक हो जाता है।
- गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से गठिया ठीक हो जाता है।
- गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।
- या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है।
- गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
- मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा ।
- गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
- गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
- गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
- गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
- गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से प्रदररोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
- गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखिया रोग जल्द ठीक होगा।
मात्रा: गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम तक क्वाथ के रूप में 50से 100 मि. ली.की मात्रा लाभकारी व संतुलित होती है।
स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं करें, तुरंत स्थानीय डॉक्टर (Local Doctor) से सम्पर्क करें। हां यदि आप स्थानीय डॉक्टर्स से इलाज करवाकर थक चुके हैं, तो आप मेरे निम्न हेल्थ वाट्सएप पर अपनी बीमारी की डिटेल और अपना नाम-पता लिखकर भेजें और घर बैठे आॅन लाइन स्वास्थ्य परामर्श प्राप्त करें।
Online Dr. P.L. Meena (डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा)
Health Care Friend and Marital Dispute Consultant
(स्वास्थ्य रक्षक सक्षा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार)
-:Mob. & WhatsApp No.:-
85619-55619 (10 AM to 10 PM) 2nd Mob: 9875066111
नमस्ते , आपका ये लेख सराहनिए हे काफी अच्छी जानकारी दी हे आपने , मेने अपने ब्लॉग पर गेहूं के जवारे के बारे में जानकारी दी हे किर्पया मेरी साईट पर भी आयें केंसर में गेहूं के जवारे का प्रयोग
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