Online Dr. P.L. Meena (डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा)

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गर्मी की परेशानियों से बचाव के उपाय

गर्मी की परेशानियों से बचाव के उपाय

गर्मियां इन दिनों पूरे जोरों पर हैं। घर से बाहर निकलो तो शरीर झुलसने लगता है और कब हीट स्ट्रोक के लपेटे में आ जाएं , पता ही नहीं लगता। अंदर रहकर पसीना आए तो स्किन की प्रॉब्लम शुरू हो जाती हैं। कुछ उलटा - सीधा खा लिया तो डायरिया हो सकता है। दरअसल , कई ऐसी बीमारियां हैं , जो गर्मियों या बढ़ते तापमान से सीधे जुड़ी हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसी ही बीमारियों , उनकी रोकथाम और इलाज के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह :


घमौरियां और रैशेज 
1. गर्मियों में पसीना निकलने से स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहता है , जिसमें कीटाणु ( माइक्रोब्स ) आसानी से पनपते हैं। इस दौरान ज्यादा काम करने से स्वेट ग्लैंड्स ( पसीने की ग्रंथियां ) ब्लॉक हो जाते हैं और पसीना स्किन की अंदरूनी परत के अंदर जमा रह जाता है। यह रैशेज और घमौरियों का रूप ले लेता है। 

2. घमौरियां और रैशेज होने पर स्किन लाल पड़ जाती है और उसमें खुजली व जलन होती है। रैशेज से स्किन में दरारें - सी नजर आती हैं और स्किन सख्त हो जाती है , वहीं घमौरियों में लाल - लाल दाने निकल आते हैं। बच्चों में बुखार के दौरान आमतौर पर दानेवाली घमौरियां निकलती हैं। इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती। 

क्या करें : मोटे और सिंथेटिक कपड़ों की बजाय खुले , हल्के और हवादार कपड़े पहनें। ऐसे कपड़े न पहनें , जिनमें रंग निकलता हो। ध्यान रहे कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। खूब पानी पीएं। हवादार और ठंडी जगह में रहें। घमौरियों वाले हिस्से की दिन में एक - दो बार बर्फ से सिकाई करें और कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। मॉइस्चराइजर वाला कैलेमाइन लोशन (Calosoft, Efatop-C आदि ) लगाना बेहतर है। ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं। 

सनबर्न और टैनिंग 
1. गर्मियों में अक्सर लोगों को सनबर्न ( स्किन का झुलसना ) और टैनिंग ( स्किन का रंग गहरा होना ) हो जाती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक टैनिंग खराब चीज नहीं है इसलिए उसके लिए किसी तरह का उपाय करने की जरूरत नहीं है। लेकिन सनबर्न और पिग्मेंटेशन ( जगह - जगह धब्बे पड़ना ) होने पर स्किन में जलन और खुजली होती है। जो लोग सनबर्न होने के बाद भी धूप में घूमते रहते हैं , अगर वे पानी न पिएं तो उन्हें हीट स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है। 

क्या करें : एसपीएफ 30 तक का नॉन - ऑइली सनस्क्रीन लगाएं। ढीले , पूरी बाजू के , हल्के रंग के कॉटन के कपड़े पहनें। बाहर जाते हुए छाते का इस्तेमाल जरूर करें। सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक धूप में निकलने से बचें। बाहर निकलें तो काले रंग की छतरी लेकर जाएं। खूब पानी पिएं। 

1. कैलेमाइन लोशन या ऐंटि - इन्फ्लेमेट्री यानी सूजन और जलन से राहत दिलाने वाले लोशन हाइड्रोकॉर्टिसोन (Hydrocortisone) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है और मार्केट में अलग - अलग ब्रैंड नेम से मिलता है। 

2. ज्यादा खुजली हो तो डॉक्टर ऐंटि - अलर्जिक गोली सिट्रिजिन (Cetirizine) खाने की सलाह देते हैं। यह भी जेनरिक नाम है। जब तक सनबर्न ठीक न हो , धूप से बचें। 

3. घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। आधा कप दही में आधा नीबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। फ्रिज में रख लें और रात को सोने से पहले क्रीम की तरह लगा लें। पांच मिनट बाद इसके ऊपर से हल्का मॉइस्चराइजर भी लगा सकते हैं। राहत मिलेगी। मुल्तानी मिट्टी में गुलाब जल मिलाकर भी लगा सकते हैं। 

शरीर में बदबू 
1. पसीने में मॉइस्चर की वजह से गर्मियों में हमारे शरीर में बदबू आने लगती है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं , जिससे बदबू या पीलापन पैदा होता है। 

क्या करें : लहसुन - प्याज आदि का इस्तेमाल कम करें। दिन में दो - तीन बार पानी में नीबू डालकर नहाएं। बॉडी पर बर्फ लगा सकते हैं , जिससे पसीना कम निकलेगा। रोजाना साफ अंडरगार्मेंट और जुराबें पहनें। डियो या परफ्यूम इस्तेमाल करें। 

1. कूलिंग , ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर (Nysil आदि ) या ऐंटि - फंगल पाउडर यूज करें या कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - फंगल पाउडर मार्केट में माइकोडर्म (Mycoderm), अब्जॉर्ब (Abzorb), जिएजॉर्ब (Zeasorb) आदि ब्रैंड नेम से मिलता है। 

2. दिन में दो बार फिटकरी को हल्का गीला कर बॉडी फोल्ड्स में लगा लें। इससे पसीना कम आता है , लेकिन इसे जोर से रगड़े नहीं , वरना स्किन कट जाएगी। ऐंटि - प्रॉस्पैरंट लोशन या पाउडर लगा सकते हैं। इसका जेनरिक नाम ऐल्युमिनियम हाइड्रॉक्साइड (Aluminium Hydroxide) है। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे। 

नुकीले दाने
गर्मियों में आमतौर पर नुकीले या तीखे दाने निकलते हैं। वाइटहेड , ब्लैकहेड के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। फोड़े - फुंसी और बाल तोड़ भी हो सकते हैं। बाल तोड़ शुगर के मरीजों में काफी होते हैं। असल में , जब कीटाणु स्किन के नीचे पहुंच जाते हैं और पस बनाना शुरू कर देते हैं तो यह समस्या हो जाती है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है , लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपने वाले बैक्टीरिया की वजह से होता है। 

क्या करें : ऐंटि बैक्टीरियल साबुन से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो , सूखा और फ्रेश रखें। हवा में रहें। 
1. सेलिसायलिक (Salicylic) बेस्ड क्लींजर या फेशवॉश इस्तेमाल करें। इससे ऑइल कम हो जाता है। 

2. ऐंटि - बायॉटिक क्रीम लगाएं , जिनके जेनरिक नाम फ्यूसिडिक ऐसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। 

3. गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक , लहसुन , अजवाइन , मेथी , चाय - कॉफी आदि कम खाएं - पिएं। इनसे ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं , जिससे कीटाणु जल्दी आ जाते हैं। 

4. ग्रंथियां ज्यादा काम कर रही हैं तो क्लिंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मुहासों की भी रोकथाम करता है और मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। ऐंटि ऐक्ने साबुन ऐक्ने - एड (Acne-Aid), ऐक्नेक्स (Acnex), मेडसॉप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं।

फंगल इन्फेक्शन
रिंग वॉर्म यानी दाद - खाज की समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है। यह शरीर के उन हिस्सों में होता है , जिनमें पसीना ज्यादा आता है। इसमें गोल - गोल टेढ़े - मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं , रिंग की तरह। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे में फैल जाते हैं। 

क्या करें : नहाने के बाद बॉडी को अच्छी तरह सुखाएं। कहीं पानी रहने से इन्फेक्शन हो सकता है। ऐंटि - फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazol) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनरिक नेम हैं। 

छपाकी
ज्यादा गरम चीजें ( नॉनवेज , नट्स , लहसुन आदि ) खाने से कई बार स्किन पर अचानक लाल - लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। इनमें हल्की खुजली होती है। इस स्थिति को अर्टिकेरिया या हाइव्स भी कहा जाता है। 

क्या करें : कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - अलजिर्क पाउडर या लोशन लगाएं। 

ऐथलीट्स फुट 
जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं , उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है। 

क्या करें : जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों को साबुन से साफ करें। फिर फिटकरी लगा लें। पैरों पर पाउडर भी डाल सकते हैं। क्लोट्राइमाजोल क्रीम या पाउडर लगाएं। 

कॉन्टैक्ट अलर्जी
आर्टिफिशल जूलरी , बेल्ट , जूते आदि के अलावा जिन कपड़ों से रंग निकलता है , उनसे कई बार अलर्जी हो जाती है , जिसे कॉन्टैक्ट अलर्जी कहा जाता है। जहां ये चीजें टच होती हैं , वहां एक लाल लाइन बन जाती है और दाने बन जाते हैं। इनमें काफी जलन होती है। अगर जूलरी आदि को लगातार पहनते रहेंगे तो बीमारी बढ़ जाएगी और उस जगह से पानी निकलना ( एक्जिमा ) शुरू हो जाएगा। 

क्या करें : सबसे पहले उस चीज को हटा दें , जिससे अलर्जी है। गर्मियों में आर्टिफिशल जूलरी से बचें। उस पर हाइड्रोकोर्टिसोन लगाएं। 

स्किन से जुड़ी समस्याएं
सनस्क्रीन और डिओ

1. सनस्क्रीन दो तरह के होते हैं : एक जो सूरज की किरणों को ब्लॉक करते हैं। ये तभी तक काम करते हैं , जब तक स्किन पर मौजूद रहते हैं। दूसरी तरह के सनस्क्रीन केमिकल आधारित होते हैं और स्किन में समाकर अंदर से सुरक्षा देते हैं। इन्हें बेहतर माना जाता है। हालांकि आजकल दोनों फैक्टरों को मिलाकर तैयार किए गए सनस्क्रीन मार्केट में ज्यादा मिलते हैं। सनस्क्रीन वॉटर बेस्ड लगाना चाहिए और सूरज में निकलने से कम - से - कम 10-15 मिनट पहले लगाना जरूरी है। अगर धूप में रहना है तो हर दो घंटे बाद फिर से लगाना चाहिए। यह झुर्रियां आने की रफ्तार कम करता है। घर में ही रहना है तो सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं है।

2. एसपीएफ यानी सन प्रोटेक्शन फैक्टर को लेकर अक्सर लोगों को गलतफहमी होती है , मसलन ज्यादा - से - ज्यादा एसपीएफ का सनस्क्रीन लगना बेहतर है। असल में , हम भारतीयों की स्किन टाइप 3 और टाइप 4 कैटिगरी में आती है। बहुत गोरे लोगों की स्किन टाइप 1 व टाइप 2 होती है और बेहद काले ( नीग्रो आदि ) की टाइप 5 व 6 कैटिगरी में आती है। ऐसे में हम लोगों के लिए 30 एसपीएफ काफी है। सांवली स्किन वाले लोगों को भी 15-30 एसपीएफ का सनस्क्रीन यूज करना चाहिए। यह धारणा गलत है कि सांवले लोगों को सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चों को पांच साल की उम्र के बाद ही सनस्क्रीन लगाएं। 

3. डिओ लगाने से कोई नुकसान नहीं है। यह शरीर को ताजगी और खुशबू देते हैं। लेकिन डिओ को सीधे बॉडी पर लगाने की बजाय कपड़ों पर लगाना बेहतर है , ताकि उसके केमिकल शरीर में कम जाएं। जब भी पसीना आए , डिओ लगा सकते हैं। आमतौर पर डिओ अलर्जी नहीं करते लेकिन जिन्हें अलर्जी है , उन्हें डिओ नहीं लगाना चाहिए।

ध्यान दें 
1. गर्मियों में अक्सर लोग बॉडी की मॉइस्चराइजिंग को लेकर लापरवाह हो जाते हैं , लेकिन गमिर्यों में भी शरीर को मॉइस्चर करना जरूरी है। 
2. दिन में दो बार चेहरे और बॉडी को माइल्ड क्लींजर से साफ करें। फिर चेहरे पर अल्कोहल - फ्री टोनर लगाएं और इसके बाद 30 तक एसपीएफ वाला वॉटर बेस्ड मॉइस्चराइजर लगाएं। बॉडी पर भी अच्छी क्वॉलिटी का लोशन यूज करें। 
3. जिनकी स्किन सेंसटिव हैं , वे सेलिसायलिक (Celisylic) बेस्ड फेशवॉश यूज करें। 

लू लगना ( हीट स्ट्रोक ) 
1. गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से शरीर में पानी और नमक की ज्यादा कमी होने पर लू लगने की आशंका होती है। धूप में घूमने वालों , बच्चों , बूढ़े और बीमारों को लू लगने का डर ज्यादा होता है। 

बचाव है बेहतर
एक्सर्पट्स का मानना है कि लू के इलाज से बेहतर है बचाव। बचाव इस तरह कर सकते हैं : 
1. तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें। धूप से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल करें। इसके अलावा , सिर पर गीला या सादा कपड़ा रखकर चलें। चश्मा पहनकर बाहर जाएं। चेहरे को कपड़े से ढक लें। 

2. घर से बाहर पूरे और ढीले कपड़े पहनकर निकलें , ताकि उनमें हवा लगती रहे। ज्यादा टाइट और गहरे रंग के कपड़े न पहनें। सूती कपड़े पहनें। सिंथेटिक , नायलॉन और पॉलिएस्टर के कपड़े न पहनें। 

3. खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर भूखे रहने से बचें। घर से पानी या कोई ठंडा शरबत पीकर निकलें , जैसे आम पना , शिकंजी , खस का शर्बत आदि। साथ में भी पानी लेकर चलें। 

4. बहुत ज्यादा पसीना आया हो तो फौरन ठंडा पानी न पीएं। सादा पानी भी धीरे - धीरे करके पीएं। 

5. रोजाना नहाएं और शरीर को ठंडा रखें। घर को ठंडा रखने की कोशिश करें। खस के पर्दे , कूलर आदि का इस्तेमाल करें। 

क्या होता है लू लगने पर
1. लू लगने पर शरीर में गर्मी , खुश्की , सिरदर्द , कमजोरी , शरीर टूटना , बार - बार मुंह सूखना , उलटी , चक्कर , तेज बुखार , सांस लेने में तकलीफ , दस्त और कई बार निढाल या बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। लू लगने पर पसीना नहीं आता। 

2. शरीर में गर्मी , खुश्की और थकावट महसूस होती है , शरीर टूटने लगता है और शरीर का तापमान एकदम बढ़ जाता है। अक्सर बुखार बहुत ज्यादा मसलन 105 या 106 डिग्री फॉरनहाइट तक पहुंच जाता है। यह इमरजेंसी की हालत होती है , जिसमें ब्लडप्रेशर भी लो हो जाता है और लिवर - किडनी में सोडियम पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में बेहोशी भी आ सकती है। इसके अलावा , लो बीपी , ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक की स्थिति भी बन सकती है। ठीक वक्त पर इलाज न कराया जाए तो मौत भी हो सकती है। 

क्या करें 
1. बुखार 104 डिग्री से ज्यादा है तो रेक्टल ( गुदा से ) टेंपरेचर लें। इसके लिए अलग थर्मोमीटर आते हैं। इससे बॉडी के अंदरूनी तापमान का सही आकलन हो पाता है। लू लगने पर अक्सर बाहर के तापमान से ज्यादा होता है अंदरूनी तापमान। 

2. इतने तेज बुखार में पैरासिटामोल ( क्रोसिन , कालपोल आदि ) टैब्लेट्स असरदार नहीं होतीं। सबसे पहले शरीर का तापमान कम करना जरूरी है। मरीज को बहते पानी के नीचे बिठा दें या उसके पूरे शरीर पर बर्फ के पानी की पट्टियां रखें। आसपास का माहौल ठंडा रखें। पंखा , कूलर और एसी चला दें। बॉडी की स्पॉन्जिंग करें , जब तक तापमान कम न जो जाए। 

3. लगातार तरल और ठंडी चीजें दें , जैसे कि नीबू पानी , नारियल पानी , सत्तू का घोल , बेल का शर्बत , आम पना , राई का पानी आदि। शरीर में पानी की कमी न होने दें और ठंडी चीजें खिलाकर अंदरूनी तापमान को कम करें। 

4. उसके हाथ - पैरों की हल्के हाथों से मालिश करें। तेल न लगाएं। गुलाब जल में रुई भिगोकर आंखों पर रखें। फिर भी आराम न आए तो फौरन मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं। 

5. मरीज को बाहर का खाना न खिलाएं। घर में भी परांठा , पूड़ी - कचौड़ी आदि तला - भुना न खिलाएं। पतली खिचड़ी , दलिया जैसा हल्का खाना दे सकते हैं। जितना हो सके , ठंडी चीजें खिलाएं। 

नोट : गर्मियों के बुखार को नजरअंदाज न करें। सामान्य बुखार के अलावा , हीट स्ट्रोक की आशंका तो होती है , साथ ही मच्छरों का सीजन होने की वजह से कई बार मलेरिया होने के भी चांस होते हैं। 

पेट की बीमारियां 
गर्मियों में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन हो जाता है। इसे गैस्ट्रोइंटराइटिस या समर फ्लू कहते हैं। ऐसा होने पर मरीज को बार - बार उलटी , दस्त , पेट दर्द , शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है। अगर स्टमक में इन्फेक्शन हो तो उलटी और पेट दर्द होगा। इंटेस्टाइन ( आंत ) में इन्फेक्शन हो तो दस्त और पेट दर्द होगा। इन दोनों ही स्थिति में बुखार भी हो सकता है। 

डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं , लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों , पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। आम बोल-चाल में कहें तो एक बार दस्त का मतलब है करीब एक गिलास पानी की कमी। इस तरह डीहाइट्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी हो सकती है। 

कितनी तरह का
डायरिया आमतौर पर तीन तरह का होता है : वायरल , बैक्टीरियल और प्रोटोजोअल। पहला वायरस से होता है और ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है , जबकि दूसरा बैक्टीरिया और तीसरा अमीबा से होता है। ये दोनों ज्यादा खतरनाक हैं और इनमें डॉक्टर की देखरेख के बिना इलाज नहीं करना चाहिए। 

1. अगर तेज बुखार हो , पेशाब कम हो रहा हो और मल के साथ खून या पस आ रहा है तो बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल डायरिया हो सकता है। बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ऐंटि - बायॉटिक और प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में ऐंटि - अमेबिक दवा दी जाती है। अगर किसी बहुत ज्यादा ऐंटि - बायोटिक खाई हैं , तो उसे साथ में प्रोबायोटिक्स भी देते हैं। वैसे , दही प्रोबायोटिक्स का बेहतरीन सोर्स है। 

2. वायरल डायरिया है तो आमतौर पर डरने की बात नहीं होती। मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए Domperidone टैब्लेट ले सकते हैं। ये मार्केट में Domstal, Dom DT आदि नाम से मिलती हैं। लूज मोशंस के लिए Racecadotril ले सकते हैं। ये Imodium, Loperamide आदि ब्रैंड नेम से मिलती हैं। पेट में मरोड़ हैं तो Maftal Spas ले सकते हैं। एक दिन में उलटी या दस्त न रुके तो डॉक्टर के पास ले जाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर आईवी ( इंट्रा - वीनस ) फ्लुइड भी देते हैं , क्योंकि पानी की ज्यादा कमी से किडनी पर भी असर पड़ सकता है। 

3. लोगों में गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना - पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि उलटी - दस्त के जरिए सब कुछ निकल जाता है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। इससे खतरा बढ़ जाता है। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें , जैसे कि नारियल पानी , नींबू पानी ( हल्का नमक और चीनी मिला ), छाछ , लस्सी , दाल का पानी , ओआरएस का घोल , पतली खिचड़ी , दलिया आदि देते रहें। मरीज को सिर्फ तली - भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। 

बरतें ये सावधानियां 
1. पानी खूब पिएं लेकिन बाहर का पानी पीने से बचें। घर का साफ और उबला पानी पिएं। हैंडपंप का पानी न पिएं। 

2. बासी खाने से परहेज करें। हमेशा घर की बनी ताजा खाने की चीजें इस्तेमाल करें। 

3. खाने की चीजों को अच्छी तरह धोएं और अच्छी तरह पकाएं। सलाद आदि से परहेज करें या खूब अच्छी तरह धोकर खाएं। 

4. खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं। 

5. बाहर बिकने वाले कटे फल , दही भल्ले , गोल गप्पे व चटनी , सलाद , गन्ने का रस , शेक आदि पीने से बचें। 

6. फ्रूट - जूस भी बाहर का तभी पिएं , जब सफाई की गारंटी हो। 

7. खाने में दही का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें , क्योंकि यह पेट को ठंडा रखने के साथ स्किन आदि के लिए भी फायदेमंद है। 

8. गोभी , आलू जैसी सब्जियों के बजाय तोरी , भिंडी , लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं। 

9. संतरा , अंगूर , तरबूज , ककड़ी जैसे मौसमी फल खाएं। 

10. नीबू पानी , आम पना , बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है। 

11. गर्मी में कच्ची प्याज खाना भी लाभदायक होता है। 

नोट : बड़ों के मुकाबले बच्चों में पानी की कमी तेजी से होती है। इसका सीधा - सा गणित शरीर का वजन और ऊंचाई है। जितना बड़ा शरीर होता है , उसमें उतना ही पानी आता है यानी बड़े लोगों में आमतौर पर पांच से छह लीटर और बच्चों में दो से ढाई लीटर पानी होता है। बच्चे बड़ों से ज्यादा सक्रिय होते हैं। इस वजह से उनके पानी की खपत ज्यादा होती है। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
1. डॉ . अनूप मिश्रा, डायरेक्टर , फॉटिर्स सीडॉक सेंटर फॉर इंटरनल मेडिसिन 
2. डॉ . के . के अग्रवाल, सीनियर जनरल फिजिशन, मूलचंद हॉस्पिटल 
3. डॉ . गोविंद श्रीवास्तव, डेप्युटी डायरेक्टर, स्किन इंस्टिट्यूट ऐंड स्कूल ऑफ डर्मोटॉलजी 
4. डॉ . मोनिका जैन, सीनियर कंसल्टेंट , गैस्ट्रोएंट्रॉलजी फोर्टिस हॉस्पिटल 
5. डॉ . एम . भगत, सीनियर कंसल्टेंट , गैस्ट्रोएंट्रॉलजी , श्री बालाजी ऐक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट 
6. डॉ . इंदु तोलानी, सीनियर कंसल्टेंट , डर्मोटॉलजी, बी . एल . कपूर हॉस्पिटल (नवभारत टाइम्स,दिल्ली,3.6.12)
 स्त्रोत : स्वास्थ्य ब्लॉग, Kumar Radharaman रविवार, 10 जून 2012

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--->--->श्रीमती जानकी पुरुषोत्तम मीणा जिनका 08 अप्रेल, 2012 को असमय निधन हो गया!

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सभी के स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना के साथ-मेरे प्यारे और दुलारे तीन बच्चों की ममतामयी अद्वितीय माँ (मम्मी) जो दुखियों, जरूतमंदों और मूक जानवरों तक पर निश्छल प्यार लुटाने वाली एवं अति सामान्य जीवन जीने की आदी महिला थी! वह पाक कला में निपुण, उदार हृदया मितव्ययी गृहणी थी! मेरी ऐसी स्वर्गीय पत्नी "जानकी मीणा" की कभी न भुलाई जा सकने वाली असंख्य हृदयस्पर्शी यादों को चिरस्थायी बनाये रखते हुए इस ब्लॉग को आज दि. 08.08.12 को फिर से पाठकों के समक्ष समर्पित कर रहा हूँ!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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Immunity Impotence IMPOTENCY Incurable indigestion Jaundice Juice Juice of Berries LAND CALTROPS Lemon Leucas Aspera Leucas Cephalotes Leucorrhea Lever Liver Liver Cirrhosis Liver fibrosis Low Blood Pressure Marital Dispute Consultant Masturbation Mental Mexican Daisy Mexican Poppy Migraine Migraines Myopia Neurons Night Jasmine Nutgrass Nutmeg Nutsedge Obesity Omega 3 Oroxylum indicum Painkillers Periquito Sessil Phyllanthus Niruri Piles Portulaca Oleracea Post Effect Pregnancy Safe-Guard Pregnancy Safeguard Pregnancy-Safe-Guard Premature Ejaculation Prostate Gland Protein Purple Nutsedge Raan Tulas Radish Rectal Collapse Rectal Prolapse rectum collapse Saffron Senna occidentalis Separation Sex Sexual Power Sickness Side Effects side effects less Side-Effects Spermatorrhoea Sperms Spiny Amaranth Stone Stone Breaker Sword fruit tree TECOMA STANS Thermometer Tickweed Tips Treatment of Incurable Tribulus Terrestris Tridax Procumbens Umbrella Sedge Unquenchable Conjugal Uterine Prolapse vaginal Creaks Vaginal Prolapse Viral Vitamins Vitex Negundo Wart Wheatgrass White Discharge Yellow Spider Flower अंकुरित अनाज अंकुरित गेहूं-Wheat germ अंकुरित भोजन-Sprouts अखरोट अंगूर-Grapes अचूक चमत्कारिक चूर्ण अजवाइन अजवायन अजीर्ण-Indigestion अंडकोष अडूसा (वासा)-Adhatoda Vasika-Malabar nut अण्डी अतिबला अतिसार अतिसार-Diarrhea अतृप्त अतृप्त दाम्पत्य अत्यंत असहिष्णुता अदरक अदरख अंधश्रृद्धा अध्ययन अनिद्रा अपच अपराजिता अपराधबोध अफरा अफीम अमरूद अमृता अम्लपित्त-Pyrosis अरंडी अरणी अरण्ड अरण्डी अरलू अरुचि अरुचि-Anorexia-Distaste अर्जुन अर्थराइटिस अर्द्धसिरशूल अर्श अर्श रोग-बवासीर-Hemorrhoids-Piles अलसी अल्टरनेथेरा सेसिलिस अल्सर अल्सर-Ulcers अवसाद अवसाद-Depression अश्मःभेदः अश्वगंधा अश्वगंधा-Winter Cherry असंतुष्ट असफल असर नहीं असली अस्थमा अस्थमा-दमा-Asthma आइरन आक आकड़ा आघात आत्महत्या आंत्र कृमि आंत्रकृमि-Helminth आंत्रिक ज्वर-टायफाइड-Typhoid fever आदिवासी आधाशीशी आधासीसी आंधीझाड़ा-ओंगा-अपामार्ग-Prickly Chalf flower आमला आमवात आमाशय आयुर्वेद आयुर्वेदिक आयुर्वेदिक उपचार आयुर्वेदिक औषधियां आयुर्वेदिक सीरप-Ayurvedic Syrup आयुर्वेदिक-Ayurvedic आरोग्य आँव आंव आंवला आंवला जूस आंवला रस आशावादी-Optimistic आसन आसान प्रसव-Easy Delivery आहार चार्ट आहार-Food आॅपरेशन आॅर्गेनिक आॅर्गेनिक कौंच इच्छा-शक्ति इन्द्रायण इन्फ्लुएंजा इमर्जेंसी में होम्योपैथी इमली-Tamarind Tree इम्युनिटी इलाज इलाज का कुल कितना खर्चा इलायची उच्च रक्तचाप उच्च रक्तचाप-High Blood Pressure-Hypertension उत्तेजक उत्तेजना उदर शूल-Abdominal Haul उदासी उन्माद-Mania उपवास उम्र उल्टी ऊर्जा एक्जिमा एक्यूप्रेशर एग्जिमा एजिंग-Aging एंटी ऑक्सीडेंट्स एंटी-ओक्सिडेंट एंटीऑक्सीडेंट एण्टी-आॅक्सीडेंट एनजाइना एनीमिया एमिनो एसिड एरंड एलर्जी एलर्जी-Allergy एलोवेरा एलोवेरा जूस एल्यूमीनियम ऐंठन ऐलोपैथ ऐसीडिटी ऑर्गेनिक ओमेगा 3 के स्रोत ओमेगा-3 ओर्गेनिक औषध-Drug औषधि सूची-Drug List औषधियों के नुकसान-Loss of drugs कचनार कचनार-Bauhinia Purpurea कटुपर्णी कड़वाहट कंडोम कद्दू कनेर कपास-COTTON कपिकच्छू कपूरीजड़ी कफ कब्ज कब्ज़ कब्ज-कोष्ठबद्धता-Constipation कब्ज. Cucumber कब्जी कमजोरी कमर कमर दर्द कमेड़ा करेला कर्ण वेदना कर्णरोग कष्टार्तव-Dysmenorrhea कांच निकलना काजू कान कानून सम्मत काम काम शक्ति कामवाण पाउडर कामशक्ति कामशक्ति-Sexual power कामेच्छा कामोत्तेजना कायाकल्प कार्बोहाइड्रेट कार्बोहाइड्रेट-Carbohydrates काला जीरा काला नमक काली जीरी काली तुलसी काली मिर्च काले निशान कास-खांसी-Cough किडनी किडनी संक्रमण किडनी स्‍टोन कीड़े कीमोथेरेपी कुकरौंधा कुकुंदर कुटकी-Black Hellebore कुबडापन कुमेड़ा कुल्थी कुल्ला कुष्ट कुष्ठ कृमि केला केसर कैफीन-Caffeine कैलोरी कैलोरी चार्ट कैलोरी-Calories कैवांच कैविटी कैंसर कॉफी कॉफ़ी कॉलेस्ट्रॉल कोंडी घास कोढ़ कोबरा कोलेस्ट्रॉल कोलेस्ट्रॉल-Cholesterol कोलेस्ट्रोल कौंच कौमार्य क्रियाशीलता क्रोध क्षय रोग-Tuberculosis क्षारीय तत्व क्षुधानाश खजूर खजूर की चटनी खनिज खरबूजा-Musk melon खरेंटी खरैंटी शिलाजीत खाज खांसी खिरेंटी खिरैटी खीप खीरा खुजली खुशी-Joy खुश्की खुश्बू खोया गंजापन-Baldness गठिया गठिया-Arthritis गठिया-Gout गड़तुम्बा गंडा-ताबीज गंध गन्ने का रस गरमा गरम गर्भ निरोधक गर्भधारण गर्भपात गर्भवती गर्भवती कैसे हों? गर्भावस्था गर्भावस्था की विकृतियां-Disorders of Pregnancy गर्भावस्था के दौरान संभोग-Sex During Pregnancy गर्भाशय गर्भाशय भ्रंश गर्भाशय-उच्छेदन के साइड इफेक्ट्स-Side Effects of Hysterectomy गर्म पानी गर्मी गर्मी-Heat गलगण्ड गाजर गाजवां गांठ गाँठ-Knot गारंटी गारण्टेड इलाज गाल ब्लैडर गिलोय गिल्टी गुड़हल गुंदा गुदाद्वार गुदाभ्रंश गुम्मा गुर्दे गुलज़ाफ़री गुस्सा गृध्रसी गृह-स्वामिनी गेदुआ की छाछ गैस गैस्ट्रिक गैहूं का जवारा गोक्षुरादि चूर्ण गोखरू गोखरू (LAND CALTROPS) गोंद कतीरा-Hog-Gum गोंदी गोभी-Cabbage गोरख मुंडी गोरखगांजा गोरखबूटी गोरखमुंडी ग्रीन-टी घमोरी घरेलु ​नुस्खे घाघरा घाव चकवड़ चक्कर चपाती चमत्कारिक सब्जियां चरित्र चर्बी चर्म चर्म रोग चर्मरोग चाय चाय-Tea चालीस के पार-Forty Across चिकनगुनिया चिकित्सकीय चिटकन चिंतित चिरायता-Absinth चिरोटा चुंबन चोक चौलाई छपाकी छरहरी काया छाछ छाजन बूटी छाले छींक छीकें छुअ छुआरा छुहारा छोटा गोखरू छोटा धतूरा छोटी हरड़ जंक फूड जकवड़ जख्म जंगली तिल्ली जंगली तुलसी जंगली पेड़ जंगली मिर्ची जंगली-कटीली चौलाई जटामांसी-Spikenard जलजमनी जलन जलोदर रोग-Ascites Disease जवारा जवारे जवासा-Alhag जहर जामुन का जूस जायफल जिगर जीरा जीवन रक्षक जीवनी शक्ति जुएं जुकाम जुदाई जुलाब जूएं जूस जोड़ों के दर्द जोड़ों में दर्द जौ ज्यूस ज्योति ज्वर ज्वर-Fiver झाइयाँ झांईं झाड़-फूंक झुर्रियाँ झुर्रियां झुर्री झूठे दर्द टमाटर का रस टमाटर-Tomatoes टाइफाइड टाटबडंगा टायफायड टूटी हड्डी टॉन्सिल टोटला ट्यूमर ठंड ठंडापन ठेकेदार डॉक्टर डकार डकारें डायबिटीज डायरिया डिग्री फ़ारेनहाइट डिग्री सेल्सियस डिजिसेक्सुअल डिटॉक्सीफाई डिटॉक्सीफिकेशन डिनर डिप्रेशन डिब्बाबंद भोजन डिलेवरी डीकामाली डीगामाली डेंगू डेंगू-Dengue डॉ. निरंकुश डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' डॉ. मीणा ढकार ढीलापन ढीली योनि तकलीफ का सही इलाज तंत्र-मंत्र तम्बाकू तरबूज-Watermelon तलाक ताकत तिल तिल्ली तुंबा तुंबी तुम्बा तुलसी तेल त्रिदोषनाशक त्रिफला त्वचा त्वचा रोग थकान थाईरायड थायरायड-Thyroid थायरॉइड दण्डनीय अपराध दंत वेदना दन्तकृमि दन्तरोग दमा दर वेदना दरार दर्द दर्द निवारक दर्द निवारक दवा दर्दनाक दस्त दही दाग-धब्बे-Stains-Spots दाढ़ दांत दांतो में कैविटी-Teeth Cavity दाद दाम्पत्य दाम्पत्य विवाद सलाहकार दाम्पत्य-Conjugal दाल दालचीनी दालें दिमांग दिल दीर्घायु दु:खी दुर्गंध दुर्बलता दुष्प्रभाव दुष्प्रभावरहित दूध दूध वृद्धि दूधी दूधी-Milk Hedge दृष्टिदोष दो मन द्रोणपुष्पी द्रोणपुष्पी-Leucas Cephalotes धड़कन धनिया बीज धनिया-Coriander धमासा धात धातु धातु पतन धार्मिक धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं? धैर्यहीन नज़ला नपुंसक नपुंसकता नाइट्रिक एसिड नाक नाखून नागबला नागरमोथा नाडी हिंगु नाड़ी हिंगु (डिकामाली) नामर्दी नारकीय पीड़ा नारियल नाश्ता निमोनिया निम्न रक्तचाप निम्बू नियासिन निराश निरोगधाम निर्गुण्डी निर्गुन्डी निष्कपट स्नेह निष्ठा निसोरा नींद नींबू नींबू-Lemon नीम-azadirachta indica नुस्खे नुस्खे-Tips नेगड़ नेत्र रोग नेुचरल नैतिक नॉर्मल डिलेवरी नोनिया नौसादर न्युमोनिया-Pneumonia न्यूरॉन्स पक्षघात पंचकर्म पढ़ने में मन लगेगा पंतजलि पत्तागोभी-CABBAGE पत्थर फोड़ी पत्थरचट्टा पत्नी पथरी पदार्थ पनीर पपीता पपीता-CARICA PAPPYA पमाड परदेशी लांगड़ी परम्परागत चिकित्सा परहेज पराठा परामर्श परिस्थिति पवाड़ पवाँर पाइल्स पाक-कला पाचक पाचन पाचनतंत्र पाचनशक्ति पाठक संख्या 16 लाख पार पाठक संख्या पंद्रह लाख पायरिया पारदर्शिता पारिजात पालक पालक-Spinach पित्त पित्ताशय पित्ती पिंपल-मुंहासे-Pimples-Acne पिरामिड पीलिया पीलिया-Jaundice पीलिया-कामला-Jaundice पुआड़ पुदीना पुनर्नवा-साटी-सौंटी-Punarnava पुरुष पुंसत्व पेचिश पेट के कीड़े पेट दर्द पेट में गैस पेट रोग पेड़ पेद दर्द पेरिकिटो सेसिल पेशाब पेशाब में रुकावट पेंसिल थेरेपी-Pencil Therapy पोष्टिक लड्डू पौधे पौरुष पौरुष ग्रंथि पौष्टिक रागी रोटी प्याज-Onion प्यास प्रजनन प्रतिरक्षा प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिरोधक प्रतिरोधक-Resistance प्रदर प्रमेह प्रवाहिका (पेचिश)-Dysentery प्रसव प्रसव सुरक्षा चक्र प्रसव-पीड़ा प्रसूति प्राणायाम प्रेग्नेंसी-Pregnancy प्रेम प्रेमरस प्रेमिका प्रेमी प्रोटीन प्रोटीन का कार्य प्रोटीन के स्रोत प्रोस्टेट प्रोस्‍टेट कैंसर प्रोस्टेट ग्रंथि प्रोस्टेट ग्रन्थि प्लीहा प्लूरिसी-Pleurisy प्लेटलेट्स फंगल फटन फफूंद-Fungi फरास फल फाइबर फिटकरी फुंसी-Pimples फूलगोभी-CAULIFLOWER फेंफड़े फेरम फॉस फैट फैटी लीवर फोटोफोबिया फोड़ा फोड़े-Boils फोरप्ले फोलिक एसिड फ्लू फ्लू-Flu फ्लेक्स सीड्स बकायन बकुल बड़ी हरड़ बथुआ बथुआ पाउडर बथुआ-White Goose Foot बदबू बंध्यापन बबूल-ACACIA बरसाती बीमारियाँ बरसाती बीमारियां बलगम बलवृद्धि बला बलात्कार बवासीर बहरापन बहुनिया बहुमूत्रता- बांझपन बादाम-Almonds बादाम. बाल बाल झड़ना बाल झडऩा-Hair Falling बिना सिजेरियन मां बनें बिवाई बीजबंद बीड़ी बीमारियों के अनुसार औषधियां बीमारी बील बुखार बूंद-बूंद पेशाब बेल बेली बैक्टीरिया बॉयोकैमी ब्र​ह्मदण्डी ब्रेस्ट ग्रोथ ब्लड प्रेशर ब्लैक मेलिंग ब्लॉकेज भगंदर भगंदर-Fistula-in-ano भगनासा भगन्दर भगोष्ठ भड़भांड़ भय भविष्य भस्मक रोग भावनात्मक भुई आंवला-Phyllanthus Niruri भूई आमला भूई आंवला भूख भूख बढ़ाने भूत-प्रेत भूमि भूमि आंवला भोजनलीवर मकोय मकोय-Soleanum nigrum मक्का मक्का के भुट्टे मंजीठ मटर-PEA मंद दृष्टि मंदाग्नि मदार मधुमेह मधुमेह-Diabetes मन्दाग्नि-Dyspepsia मरुआ मरोड़ मर्द मर्दाना मलाशय मलेरिया मलेरिया (Malaria) मवाद मसाले मस्तिष्क मस्से मस्से-WARTS महंगा इलाज महत्वपूर्ण लेख महाबला माइग्रेन माईग्रेन माईंड सैट माजूफल मानवव्यवहार मानसिक मानसिक लक्षण मानसिक-Mental मानिसक तनाव-Mental Stress मायोपिया मासिक मासिक-धर्म मासिकधर्म मासिकस्राव माहवारी मिनरल मिर्गी मिर्च-Chili मीठा खाने की आदत मुख मैथुन-ओरल सेक्स-Oral Sex मुख्य लक्षण मुधमेह मुलहठी मुलेठी मुहाँसे मूँगफली मूड डिस्ऑर्डर-Mood Disorders मूत्र मूत्र असंयमितता मूत्र में जलन-Burning in Urine मूत्ररोग मूत्राशय मूत्रेन्द्रिय मूर्च्छा (Unconsciousness) मूली मूली कर रस मृत्यु मृत्युदण्ड मेथी मेथी दाना मेंहदी मैथुन मोगरा (Mogra) मोटापा मोटापा-Obesity मोतियाबिंद मौत मौलसिरी मौसमी बीमारियां यकृत यकृत प्लीहा यकृत वृद्धि-Liver Growth यकृत-लीवर-जिगर-Lever यूपेटोरियम परफोलियेटम यूरिक एसिड लेबल योग विज्ञापन योन योन संतुष्टि योनि योनि ढीली योनि शिथिल योनि शूल-Vaginal Colic योनि संकोचन योनिद्वारा योनिभ्रंश योनी योनी संकोचन यौन यौन आनंद यौन उत्तेजक पिल्स (sexual stimulant pills) यौन क्षमता यौन दौर्बल्य यौन शक्तिवर्धक यौन शिक्षा यौन समस्याएं यौनतृप्ति यौनशक्ति यौनशिक्षा यौनसुख यौनानंद यौनि रक्त प्रदर (Blood Pradar) रक्त रोहिड़ा-TECOMELLA UNDULATA रक्तचाप रक्तपित्त रक्तशोधक रक्ताल्पता रक्ताल्पता (एनीमिया)-Anemia रस-juices रातरानी Night Blooming Jasmine/Cestrum nocturnum रामबाण रामबाण औषधियाँ-Panacea 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शीघ्रपतन शीस शुक्राणु शुक्राणु-Sperm शुक्राणू शुगर शोक शोथ शोध श्योनाक श्रेष्ठतर श्वास श्वांस श्वेत प्रदर श्वेत प्रदर-Leucorrhea श्वेतप्रदर षड़यंत्र संकुचन संकोच संक्रमण संक्रमित संक्रामक संखाहुली सगतरा संतरा-Orange संतान संतुष्टि सत्यानाशी सदा सुहागन सदाफूली सदाबहार सदाबहार चूर्ण सनबर्न सफ़ेद दाग सफेद पानी सफेद मूसली सब्जि सब्जी संभालू संभोग समर्पण-Dedication सरकार को सुझाव सरफोंका सरहटी सर्दी सर्दी-जुकाम सर्पक्षी सर्पविष सलाद संवाद संवेदना सहदेई सहदेवी सहानभूति साइटिका साइटिका-Sciatica साइड इफेक्ट्स साबूदाना-Sago सायटिका सिगरेट सिजेरियन सिर दर्द सिर वेदना सिरका सिरदर्द सिरोसिस सी-सेक्शन सीजर डिलेवरी सुगर सुदर्शन सुहागा सूखा रोग सूजन सेक्स सेक्स उत्तेजक दवा सेक्स परामर्श-Sex Counseling सेक्स पार्टनर सेक्स पावर सेक्स समस्या सेक्स हार्मोन सेक्‍स-Sex सेंधा नमक सेब सेमल-Bombax Ceiba सेल्स सोजन-सूजन सोंठ सोना पाठा सोयाबीन सोयाबीन (Soyabean) सोयाबीन-Soyabean सोराइसिस सोरियासिस-Psoriasis सौंठ सौंदर्य सौंदर्य-Beauty सौन्दर्य सौंफ सौंफ की चाय सौंफ-Fennel स्किन स्खलन स्तन स्तन वृद्धि स्तनपान स्तम्भन स्त्री स्त्रीत्व स्त्रैण स्पर्श स्मृति-लोप स्वप्न दोष स्वप्नदोष स्वप्नदोष-Night Fall स्वभाव स्वभावगत स्वरभंग स्वर्णक्षीरी स्वस्थ स्वास्थ्य स्वास्थ्य परामर्श स्वास्थ्य रक्षक सखा हजारदानी हड़जोड़ हड्डी हड्डी में दर्द हड्डी संक्रमण हड्डीतोड़ ज्वर हड्डीतोड़ बुखार हरड़ हरसिंगार हरी दूब-CREEPING CYNODAN हरीतकी हर्टबर्न हस्तमैथुन हस्तमैथुन-Masturbation हाई बीपी हाथ-पैर नहीं कटवायें हारसिंगार हालात हिचकी हिचकी-Hiccup हिमोग्लोबिन-hemoglobin हिस्टीरिया हिस्टीरिया-Hysteria हींग हीनतर हुरहुर हुलहुल हृदय हृदय-Heart हेपेटाइटिस हेपेटाईटिस हेल्थ टिप्स-Health-Tips हेल्थ बुलेटिन हैजा हैपीनेस-Happiness हैल्थ होम केयर टिप्स-Home Care Tips होम्यापैथ होम्योपैथ होम्योपैथिक होम्योपैथिक इलाज होम्योपैथिक उपचार होम्योपैथी होम्योपैथी-Homeopathy