गोखरू (LAND CALTROPS-Tribulus Terrestris)
January 12, 2015 by hashmiherbal026
परिचय : Gokhru गोखरू भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं। गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है।
बड़े एवं छोटे गोखरू: छोटे गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। गोखरू के फूल पीले रंग के होते हैं तथा यह छत्ते की तरह जमीन पर फैल जाते हैं। बडे़ गोखरू के पौधे छोटे तथा उठे हुए रहते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी गोखरू
संस्कृत गोक्षुर
मराठी सराटे
गुजराती गोखरू
पंजाबी भखड़ा
फारसी खोरखसक
अरबी हसक
तेलगू पान्नेरुमुल्लू
तमिल नेरूनाजि
कन्नड़ सन्नानेग्गुलु
बंगाली गोखरी
अंग्रेजी लेण्ड केलट्राप्स
लैटिन ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस
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रंग: गोखरू हरे और पीले रंग के होते हैं।
स्वाद: गोखरू स्वाद में तीखे होते हैं।
स्वरूप: गोखरू दो प्रकार का होता है। दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं।
प्रकृति: गोखरू की प्रकृति गर्म होती है।
हानिकारक: गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।
तुलना : ककड़ी और खीरों के बीजों से गोखरू की तुलना की जा सकती है।
मात्रा : गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं।
गुण: गोखरू शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करने वाला, पथरी को नष्ट करने वाला, जलन को शान्त करने वाला, प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है और यह पथरी को भी गला देता है। गोखरू स्वभाव को कोमल बनाता है तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है।
गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।
आयुर्वेदिक मतानुसारः गोखरू स्वाद में मीठा, चिकना, ठण्डा तथा भारी होता है। यह वात-पित्त को नष्ट करता है। यह पेट के कई रोगों को ठीक करने वाला होता है। इसके सेवन से लिंग में उत्तेजना पैदा होती है। यह दर्द को नष्ट करता है। सूजाक-प्रमेह, श्वास, खांसी, बवासीर आदि रोग भी इसके सेवन से ठीक हो सकते हैं। यह गर्भाशय को शुद्ध करने वाला, बांझपन को दूर करने वाला, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन दूर करने वाला एवं हृदय रोग को ठीक करने वाला होता है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसारः गोखरू गर्म और खुश्क होता है। यह ब्लेडर और गुर्दे की पथरी को दूर करता है। गोखरू मूत्रावरोध को दूर कर सूजाक तथा प्रमेह (वीर्य विकार) रोग को ठीक करने में लाभकारी होता है। यह नपुंसकता को दूर करने में भी लाभकारी है।
वैज्ञानिक मतानुसारः गोखरू का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसकी पत्तियों में लगभग 7 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत राख और 78 प्रतिशत पानी पाया जाता है। इसके अलावा इसमें कुछ मात्रा में लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन सी भी पाया जाता है। इसके फल में एल्कोलायड की मात्रा 1 प्रतिशत होती है। इसके फल में शर्करा, नाइट्रेट्स, राल, टैनिन, रिस्टरोल, ग्लाइकोसाइड, अवाष्पशील तेल तथा सुगंधित तेल भी होते हैं। पौधों में हरमन तथा बीजों में हरमिन नामक ऐल्कोलायड उपस्थित पाये जाते हैं। इसके बीजों में अधिक मात्रा में फास्फोरस और नाइट्रोजन पाये जाते हैं।
गोखरू की सब्जी:
रंग : गोखरू की सब्जी हरे रंग की होती है।
स्वाद : गोखरू की सब्जी का स्वाद फीका होता है।
स्वरूप : गोखरू की सब्जी बहुत ही लोकप्रिय है।
प्रकृति : गोखरू की सब्जी की प्रकृति रूखी होती है।
हानिकारक : गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला: नमक, गोखरू की सब्जी के दोषों को दूर करता है।
तुलना : गोखरू की सब्जी की तुलना कुलफा के साग से की जा सकती है।
गुण : गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।
Source : https://hashmidawakhana.wordpress.com/2015/01/12/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A4%B0%E0%A5%82-land-caltrops-tribulus-terrestris-in-hindi/
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(पेडालियम मुरेक्स)
कई देशों में पाया जाए गहरे रंग का एक शाक दवाओं में बहु उपयोगी आयुर्वेद में जमाता धाक, पत्ते पकाकर सब्जी बने अच्छी सब्जी का है स्रोत गुर्दे की पत्थरी दूर करता कमजोरी में जलाता जोत, वियाग्रा का काम करता है पेट की अल्सर करता दूर भूख को बढ़ाता है झटपट खांसी को कर देता है चूर, मूत्र के रोगों को हटा देता त्वचा के विकार करता दूर दमा, डायरिया, ल्युकोरिया हृदय रोग कर दे चकनाचूर, शरीर दर्द में होता उपयोगी खून को करता है यह साफ माहवारी को बढ़ाता है यह कोढ़ शरीर का कर दे साफ, शरीर दर्द में बड़ा उपयोगी पत्ते भी बहु उपयोगी होते शरीर की गर्मी को दूर करे गर्मी से जब जन खूब रोते, बवासीर को दूर भगाता है पत्तों में है पोटाशियम, जस्त फल में बेरियम पाया जाता खाए जन तो हो जाए मस्त, जंगलों में खड़ा मिलता यह भाखड़ी से गुण मिलते खूब पत्ते पानी में लार छोड़ते हैं बनाकर पी लो इसका सूप।
**होशियार सिंह, लेखक, कनीना, हरियाणा, भारत**
Source : http://hoshiarwriter.blogspot.in/2014/08/blog-post_31.html
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SATURDAY, SEPTEMBER 4, 2010
मै आपको बता दू की आयुर्वेद से मुझे बचपन से ही लगाव रहा है| अब ब्लॉग के माध्यम से मै आपको इस ज्ञान की खुराक समय समय पर पिलाया करूंगा |
सबसे पहले आते है आजकल के आम रोग पथरी पर | यह रोग आजकल ज्यादा ही पैर पसार रहा है | इस रोग की संभावना उन लोगो में ज्यादा है जिन्हें बहुत कम पेशाब की हाजत होती है | इस रोग की दो अवस्था होती है प्रथम अवस्था में यह बहुत परेशान करता है जब मूत्राशय में पत्थर बनने शुरू हो जाते है | क्यों की ये पत्थर इधर उधर गतिमान होते रहते है जिससे रोगी के पेट में बहुत दर्द महसूस होता है | उसके बाद इनके आकार में वृद्धि हो जाती है और ये अपनी जगह बना लेते है और नलिकाओं में व्यवस्थित हो जाते है | उस के बाद दर्द बंद हो जाता है | रोगी सोचता है की वह ठीक हो गया है | लेकिन महीने दो महीने बाद जब उस स्टोन की साईज और ज्यादा बढ़ जाती है और पेशाब की नलीकाये अवरूद्ध हो जाती है तब दुबारा ज्यादा दर्द होना शुरू हो जाता है |
पत्थरी की चिकित्सा में सबसे महत्वपूर्ण औषधी है गोखरू जिसे कई नामों से जाना जाता है | संस्कृत में गोक्षुर, बंगाली में गोखरी ,तेलगु में पालेरी कहते है | यह उत्तर भारत में बहुत ज्यादा पाया जाता है | यह दो तरह का होता एक पहाडी दूसरा देशी| औषधीय उपयोग में देशी गोखरू ही उपयोग में आता है | इसका फल कटीला होता है| फूल पीले रंग के होते है| पोधे की ऊँचाई अधिकतम 18 इंच तक होती है |
औषधी विक्रेता के पास इसके बीज मिलते है जिनका उपयोग आप कर सकते है| पत्थरी के रोगी को इसके बीजो का चूर्ण दिया जाता है तथा पत्तों का पानी बना के पिलाया जाता है| इसके पत्तों को पानी में कुछ देर के लिए भिगो देते है| उसके बाद पतो को 15 बीस बार उसी पानी में डुबोते है और निकालते है इस प्रक्रिया में पानी चिकना गाढा लार युक्त हो जाता है| यह पानी रोगी को पिलाया जाता है स्वाद हेतु इसमे चीनी या नमक थोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है| यह पानी स्त्रीयों में स्वेत प्रदर, रक्त प्रदर पेशाब में जलन आदि रोगों की राम बाण औषधी है| यह मूत्राशय में पडी हुयी पथरी को टुकड़ों में बाट कर पेशाब के रास्ते से बाहर निकाल देता है| अगर किसी प्रकार की कोइ शंका हो तो किसी अच्छे वैध से परामर्श लेवे |
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