2. यह पीलिया और हेपेटाईटिस बी एवं सी के लिये रामबाण है।
3. यह लीवर की सबसे प्रमाणिक औषधि है।
4. साल में एक माह इसका काढा पीने से सालभर लीवर की सुरक्षा होती है।
5. मु्ह/मसूडों के छालों में यह अत्यन्त लाभकारी है।
6. यदि पेट में पीड़ा का कारण समझ नहीं आये तो भुई आंवला का काढ़ा बनाकर पी लें आराम हो जाएगा।
7. भुई आंवला में काली मिर्च मिलाकर सेवन करें। इससे आप मधुमेह जैसे खतरनाक बीमारी से मुक्त हो जाएँगे।



उपचार ( Treatment ) : रक्त प्रदर रोग से छुटकारा पाने के लिए भुई थोड़ा आंवला का रस लें, कुछ दूब का रस लें, इन दोनों को मिला लें, कुछ दिनों तक हर रोज सुबह शाम दो से तीन चम्मच पियें. इसे पीने से कुछ ही दिनों में आपका रक्त प्रदर रोग ठीक हो जाएगा.
भूमि आंवल लीवर की सूजन, सिरोसिस, फैटी लिवर, बिलीरुबिन बढ़ने पर, पीलिया में, हेपेटायटिस B और C में, किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर, मधुमेह आदि में चमत्कारिक रूप से उपयोगी हैं।
यह पौधा लीवर व किडनी के रोगो मे चमत्कारी लाभ करता है। यह बरसात मे अपने आप उग जाता है और छायादार नमी वाले स्थानो पर पूरा साल मिलता है। इसके पत्ते के नीचे छोटा सा फल लगता है जो देखने मे आंवले जैसा ही दिखाई देता है। इसलिए इसे भुई आंवला कहते है। इसको भूमि आंवला या भू धात्री भी कहा जाता है। यह पौधा लीवर के लिए बहुत उपयोगी है। इसका सम्पूर्ण भाग, जड़ समेत इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके गुण इसी से पता चल जाते हैं के कई बाज़ीगर भूमि आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को चबा जाते हैं।
बरसात मे यह मिल जाए तो इसे उखाड़ कर रख ले व छाया मे सूखा कर रख ले। ये जड़ी बूटी की दुकान पंसारी आदि के पास से आसानी से मिल जाता है।
साधारण सेवन मात्रा : आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ दिन मे 2-4 बार तक। या पानी मे उबाल कर छान कर भी दे सकते हैं। इस पौधे का ताज़ा रस अधिक गुणकारी है।
लीवर की सूजन, बिलीरुबिन और पीलिया में फायदेमंद : लीवर की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है। लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा। बिलीरुबिन बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पौधे को जड़ों समेत उखाडकर, उसका काढ़ा सुबह शाम लें। सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ बाईलीरुबिन ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी। पीलिया किसी भी कारण से हो चाहे पीलिया का रोगी मौत के मुंह मे हो यह देने से बहुत अधिक लाभ होता है। अन्य दवाइयो के साथ भी दे सकते (जैसे कुटकी/रोहितक/भृंगराज) अकेले भी दे सकते हैं। पीलिया में इसकी पत्तियों के पेस्ट को छाछ के साथ मिलाकर दिया जाता है। वैकल्पिक रूप से इसके पेस्ट को बकरी के दूध के साथ मिलाकर भी दिया जाता है। पीलिया के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर भी इसकी पत्तियों को सीधे खाया जाता है।
कभी नहीं होगी लीवर की समस्या : अगर वर्ष में एक महीने भी इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी। LIVER CIRRHOSIS जिसमे यकृत मे घाव हो जाते हैं। यकृत सिकुड़ जाता है उसमे भी बहुत लाभ करता है। Fatty LIVER जिसमे यकृत मे सूजन आ जाती है। पर बहुत लाभ करता है।
हेपेटायटिस B और C में. Hepatitis B – Hepatitis C : हेपेटायटिस B और C के लिए यह रामबाण है। भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें। ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी बिलकुल ठीक हो जाती है।
डी टॉक्सिफिकेशन : इसमें शरीर के विजातीय तत्वों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है।
मुंह में छाले और मुंह पकने पर : मुंह में छाले हों तो इनके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या बाहर निकाल दें। यह मसूढ़ों के लिए भी अच्छा है और मुंह पकने पर भी लाभ करता है।
स्तन में सूजन या गाँठ : स्तन में सूजन या गाँठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लें पूरा आराम होगा।
जलोदर या असाईटिस : जलोदर या असाईटिस में लीवर की कार्य प्रणाली को ठीक करने के लिए 5 ग्राम भुई आंवला +1/2 ग्राम कुटकी +1 ग्राम सौंठ का काढ़ा सवेरे शाम लें।
खांसी : खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर काढ़ा बनाकर लें .
किडनी : यह किडनी के इन्फेक्शन को भी खत्म करती है। इसका काढ़ा किडनी की सूजन भी खत्म करता है। SERUM CREATININE बढ़ गया हो, पेशाब मे इन्फेक्शन हो बहुत लाभ करेगा।
स्त्री रोगो में : प्रदर या प्रमेह की बीमारी भी इससे ठीक होती है। रक्त प्रदर की बीमारी होने पर इसके साथ दूब का रस मिलाकर 2-3 चम्मच प्रात: सायं लें। इसकी पत्तियाँ गर्भाधान को प्रोत्सहित करती है। इसकी जड़ो एवं बीजों का पेस्ट तैयार करके चांवल के पानी के साथ देने पर महिलाओ में रजोनिवृत्ति के समय लाभ मिलता है।
पेट में दर्द : पेट में दर्द हो और कारण न समझ आ रहा हो तो इसका काढ़ा ले लें। पेट दर्द तुरंत शांत हो जाएगा। ये पाचन प्रणाली को भी अच्छा करता है।
शुगर में : शुगर की बीमारी में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें . इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर की बीमारी भी ठीक होती है।
पुराना बुखार : पुराना बुखार हो और भूख कम लगती हो तो , इसके साथ मुलेठी और गिलोय मिलाकर, काढ़ा बनाकर लें। इसका उपयोग घरेलू औषधीय के रूप में जैसे ऐपेटाइट, कब्ज. टाइफाइट, बुखार, ज्वर एवं सर्दी किया जाता है। मलेरिया के बुखार में इसके संपूर्ण पौधे का पेस्ट तैयार करके छाछ के साथ देने पर आराम मिलता है।
आँतों का इन्फेक्शन : आँतों का इन्फेक्शन होने पर या अल्सर होने पर इसके साथ दूब को भी जड़ सहित उखाडकर , ताज़ा ताज़ा आधा कप रस लें . रक्त स्त्राव 2-3 दिन में ही बंद हो जाएगा .
अन्य उपयोग :
- खुजली होने पर इसके पत्तों का रस मलने से लाभ होता है।
- इसे मूत्र तथा जननांग विकारों के लिये उपयोग किया जाता है।
- प्लीहा एवं यकृत विकार के लिये इसकी जडों के रस को चावल के पानी के साथ लिया जाता है।
- इसे अम्लीयता, अल्सर, अपच, एवं दस्त में भी उपयोग किया जाता है।
- इसे बच्चों के पेट में कीडे़ होने पर देने से लाभ पहुँचाता है।
- इसकी पत्तियाँ शीतल होती है।
- इसकी जडों का पेस्ट बच्चों में नींद लाने हेतु किया जाता है।
- इसकी पत्तियों का पेस्ट आंतरिक घावों सुजन एवं टूटी हड्डियो पर बाहरी रूप से लगाने में किया जाता है।
- एनीमिया, अस्थमा, ब्रोकइटिस, खांसी, पेचिश, सूजाक, हेपेटाइटिस, पिलिया एवं पेट में ट्यूमर होने की दशा में उपयोग किया जा सकता है।
लीवर व किडनी रोगियों के लिए विशेष : लीवर व किडनी के रोगी को खाने मे घी तेल मिर्च खटाई व सभी दाले बंद कर देनी चाहिए। मूंग की दाल कम मात्रा मे ले सकते हैं। मिर्च के लिए कम मात्रा मे काली मिर्च व खटाई के लिए अनारदाना प्रयोग करना चाहिए।भोजन मे चावल का अधिक प्रयोग करना चाहिए। हरे नारियल का पानी बहुत अच्छा है।
भोजन :–
1- सभी किस्म की दाले बंद कर दे। केवल मूंग बिना छिलके की दाल ले सकते।
2-लाल मिर्च, हरी मिर्च, अमचूर, इमली, गरम मसाला और पैकेट का नमक बंद कर दे।
3- सैंधा नमक और काली मिर्च का प्रयोग करे बहुत कम मात्रा मे।
4- यदि खटाई की इच्छा हो खट्टा सूखा अनारदाना प्रयोग करे।
5- प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम किशमिश/दाख/ मुनक्का (सूखा अंगूर) , खजूर व सुखी अंजीर पानी मे धो कर खिलाए।
6- चावल उबालते समय जो पानी (माँड़) निकलता है वह ले। वह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है।
7- गेहू का दलिया, लौकी की सब्जी, परवल की सब्जी दे
8- भिंडी, घुइया (अरबी), कटहल आदि न खाए।
9- सफ़ेद पेठा (कूष्माण्ड जिसकी मिठाई बनाई जाती है) वह मिले तो उसका रस पिए व उसकी सब्जी खाए। पीले रंग का पेठा जिसे काशीफल या सीताफल कहते हैं वह न खाए।
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Bhumi amla medicinal plant uses and pictures
BY ANOOP SHARMA · JULY 13, 2015
Bhumi amla medicinal plant uses and pictures (Phyllanthus niruri)
Since time immemorial, Bhumi Amla has been used as a medicinal plant. It is an annual herb and as a whole used in various treatments. It is famous for its anti-viral activities across the world. It has been seen growing in coastal areas. It looks like Amla and grows 50-70cm high. Hence of Amla like appearance and short height, it is called as Bhumi Amla. Because of its low harvest in the climatic situation, it has to go through the shortage. The seeds can be sown from late April to late May. After 3 months, the crops get ready for harvest. The plant can be described as analgesic and digestive.
Bhumi amla Plant / Phyllanthus niruri

The genus Phyllanthus means leaf and flower. The flowers and seeds are seemed to be united with the leaves. The leaves are small and flowers are whitish green.
Common name
Country gooseberry
Botanical name
Family- Euphorbiaceae
Botanical name- Phyllanthus Niruri
Geological distribution of Bhumi Amla
The plant is mostly seen in India, China, Philippines, Cuba, Nigeria, Guam, and West Africa, America. In India, it grows as a weed in rainy season in Punjab, Uttar Pradesh, Tamil Nadu, Maharashtra, Sikkim, and Odisha. This is a tropical weed and can survive during high rainfall.
Bhumi amla Fruit / Phyllanthus niruri Fruit
Medicinal use of Bhumi Amla
Bhumi Amla is a medicinal plant used in India. It has several medicinal properties such as hepatoprotective, antiviral, anticancer, anti-diabetic, antibacterial and anti-inflammatory properties.

It cures inflammation of the liver. The extract of the plant is used to cure Hepatitis A, Hepatitis B, and Hepatitis C. Specialists expect it to cure AIDS in the days to come.
It gives relief from jaundice, dyspepsia, ulcers, wounds, chronic dysentery, diabetes, dropsy and menorrhagia. Because of its bitter, cold and astringent nature; it is useful for cough, asthma and spleen disorder.
A paste of Bhumi Amla plant can be used to get relief from swelling of breasts.
The juice of the leaves can be used for abdominal pain. The dry powder of Bhumi Amla mixed with black pepper can be used to cure diabetes.
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