- यह घर के रोगों के जीवाणु खत्म करता है.
- वातावरण शुद्ध करता है.
- पेट में कीड़े या infections हों तो इसकी पत्तियों का रस खाली पेट लें. छोटे बच्चों को 4-6 बूँद दे सकते हैं.
- इसकी चटनी भी लाभ करती है. अपच अफारा /flatulence हो तो भी इसके चटनी बहुत लाभकारी है.
- सर्दी, जुकाम हो तो मरुआ+सौंफ+मुलेटी का काढ़ा लें.
- इसके पत्तों को चाय में डालकर उबालकर पीयें तो पेट भी ठीक रहता है.
- Migraine या सिरदर्द हो तो इसके पत्ते पीसकर माथे पर लेप करें या 2-2 बूँद रस खाली पेट नाक में डालें.
- मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इसके पत्ते मुंह में चबाएं.
- मसूढ़ों में सूजन हो तो इसके पत्ते पानी में उबालकर नमक मिलाकर कुल्ले करें.
- खांसी और बलगम हो तो इसके पत्ते और अदरक का काढ़ा पीयें.
- मांसपेशियों में दर्द हो तो मरुआ+अश्वगंधा+अदरक का काढ़ा पीयें.
- पेट दर्द हो तो इसकी चटनी खाएं, इसका काढ़ा पीयें या ऐसे ही चबाकर रस अंदर लेते रहें.
- इसके एक चम्मच बीज रात को भिगोकर सुबह मिश्री मिलाकर खाए जाएँ तो इससे शरीर में शक्ति तो आती ही है श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) की बीमारी भी ठीक होती है.
कई रोगों की दवा, मलेरिया-डेंगू मच्छरों का कंट्रोलर है 'मरुआ'


इसकी पत्तियां कुछ बड़ी, नुकीली, मोटी, नरम और चिकनी होती हैं जिनमें से काफी तेज महक आती है। इसकी फुनगी पर कार्तिक अगहन में तुलसी के भांति मंजरी निकलती है जिसमें छोटे-छोटे सफेद फूल लगते हैं। मरुआ दो प्रकार का होता है, काला और सफेद। काले मरुए का प्रयोग औषधि रूप में नहीं होता है और केवल फूल आदि के साथ देवताओं पर चढ़ाने के काम आता है। सफेद मरुआ औषधियों में काम आता है।
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इसे चरपरा, कड़ुआ, रूखा और रुचिकर तथा तीखा, गरम, हलका, पित्तवर्धक, कफ और वात का नाशक, विष, कृमि और कृष्ठ रोग नाशक माना गया है। ये जहां भी लगा होता है आस-पास के लोगों को डेंगू और मलेरिया होने का खतरा नही रहता इसकी खुशबू से इन बीमारियों के मच्छर भाग जाते हैं। बारिश के दिनों में ये विशेष उपयोगी होता है। जितनी तीव्र इसकी महक होती है। उतनी ही दूर तक मच्छरों और जहरीले कीड़ों का बसेरा नही रहता। इससे कई तरह की औषधिय दवाईयां बनायी जाती हैं।
MARUWA - मरूआ
मरूआ के फायदे
मिथिला सहित देश के कई राज्यों खासकर विहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उतरांचल तथा भारत के दक्षिणी राज्यों में बहुतायत में इस्तेमाल किया जाने वाला मरूआ एक संपूर्ण अनाज होता है जिसमें कई तरह के पोषक तत्व बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। मिथिला एवं उत्तर भारत मे इसके आँटे से रोटी पकाकर दाल-सब्जी के साथ परोसा जाता है । दक्षीण भारत में ज्यादातर इसके आँटे से गोलाकार पिंड बनाकर उसे पकाया जाता है जिसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में रागी मड्डे या रागी संकटी कहा जाता है। रागी मड्डे को सब्जी सांभर या दाल के साथ खाया जाता है। यह दक्षिण भारत के सुदूर ग्रामीण इलाके का प्रमुख भोजन है। इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों को देखकर शहरी क्षेत्रों में भी इसे बड़े पैमाने पर अपनाया जाने लगा है।
Source : http://www.maryadamithila.com/maruwa_chikkas.html
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http://www.jkhealthworld.com/hindi/%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%86
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