Hindi : द्रोणपुष्पी
English Name : Spider Wort
B. Name : Leucas Cephalotes
शॉर्ट नोट्स
- 1. द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है।
- 2. यह विषहर है। हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है। सांप जहर नाशक।
- 3. आयुर्वेदिक मतानुसार द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है।
- 4. एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है। इसे रक्तशोधक माना जाता हैै।
- 5. लीवर ठीक न हो, SGOT, SGPT आदि बाधा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें।
- 6-त्रिदोषनाशक: वात, पित्त और कफ तीनों दोषों का नाशक है।
- 7. साइनस/Sinus या पुराना सिरदर्द है, तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार-चार बूँद नाक में डालें। यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है।
- 8. सूखा रोग खासकर छोटे बच्चों को होता है। गुम्मा (द्रोणपुष्पी) के टहनी या पत्ते को पीस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करें। इससे सूखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है।
द्रोणपुष्पी एलर्जी और सर्पविष की रामबाण औषधी
Posted in Daily Healthy Tips,
Education By Dr. D K Goyal On May 30, 2016
द्रोणपुष्पी (एलर्जी और सर्पविष की अचूक दवा)
द्रोणपुष्पी का पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। यह एक से डेढ़ फुट तक का होता है। द्रोण का अर्थ है दोना। इसके पुष्प दोने के आकार के होते हैं।इसको गुम्मा भी कहते हैं। देखने में ऐसा लगता है, मानो पौधे के ऊपर नन्हा गुम्बद रखा हो और गुम्बद में से नन्हें पुष्प निकल रहे हों। यह विषहर है।हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है। ऐसा माना जाता है कि सांप के काटने से बेहोश हुए व्यक्ति की नाक में अगर इसकी पत्तियों का रस डाला जाए, तो उसकी बेहोशी टूट जाती है।
द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 30 से 90 सेमी होती है और टहनी रोमों से युक्त होती है। इसके पत्ते तुलसी के पत्तों के समान 2.5 से 5 सेमी लंबे और 2.5 सेमी चौडे़ होते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है। द्रोण (प्याला) के फूल होने के कारण इसका नाम द्रोणपुष्पी है। इसका फल हरा व चमकीला होता है। सर्दी के मौसम में इसमें फूल और बसन्त के सीजन में फल आते हैं। इसकी कई जातियां होती हैं।
आयुर्वेदिक मतानुसार द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है। यह वात, पित्त, कफ को नष्ट करती है तथा बुखार, रक्तविकार, सर्पविष और पाचन संस्थान के रोगों में उपयोगी है। इसके अतिरिक्त सिर दर्द, पीलिया, खुजली, सर्दी, खांसी, यकृत, प्लीहा आदि रोगों में भी गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार द्रोणपुष्पी गर्म प्रकृति की और खुश्क होती है। यह सांप के जहर, पीलिया, कफज बुखार, पेट के कीड़े तथा कब्ज आदि रोगों को दूर करती है। वायु और कफ को मिटाना इसका खास गुण है।
वैज्ञानिक मतानुसार द्रोणपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर फूलों में एक उड़नशील, सुगंधित तेल और एल्कोलाइड की उपस्थिति का पता चलता है। इनके बीजों से थोड़ी मात्रा में स्थिर तेल मिलता है। इसका असर बलगम हटाने, कीड़ों का दूर करने वाला, उत्तेजक, विरेचक (दस्तावर) होता है।
द्रोणपुष्पी (Leucas Cephalotes) के आयुर्वेदिक और औषधीय गुण :
Eczema/एग्जीमा, एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है. यह रक्तशोधक माना जाता है. अगर त्वचा की कोई परेशानी है, सांप के जहर का असर है, कोई विषैला कीड़ा काट गया है, या Skin/ स्किन पर Allopathy/एलोपैथी की दवाइयों का Reaction/रीएक्शन हो गया है; तो इसके 5 ग्राम पंचांग में 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलाकर, दो गिलास पानी में उबाल लें। जब आधा गिलास बच जाए तो पी लें। ये कुछ दिन सुबह शाम लें।
Sinus/साईनस या पुराना सिरदर्द है तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार चार बूँद नाक में डालें. यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है। पुराना बुखार हो तो इसकी दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पीयें।
लीवर ठीक न हो, SGOT, SGPT आदि बढा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें।
Infection/इनफेक्शन या कैंसर जैसी समस्याओं के लिए ताज़ी द्रोणपुष्पी+भृंगराज+देसी बबूल की पत्तियों का रस या काढ़ा पीयें। डाक्टरों के निर्देशन में अन्य दवाइयों के साथ भी इसे ले सकते हैं। इससे चिकित्सा में जटिलता कम होंगी।
शरीर में Chemicals/कैमीकल्स का जहर हो, Toxins/टोक्सिंस हों या एलर्जी हो तो इसके पंचांग का 2-3 ग्राम का काढ़ा ले सकते हैं। विभिन्न एलर्जी और बीमारियों को दूर करने के लिए द्रोणपुष्पी का सत भी लिया जा सकता है।
सत बनाने की विधि :
इसका सत बनाने के लिए, इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटों के लिए रख दें। इसके बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए Residue/अवशेष को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें। तीन चार दिन बाद यह सूखकर पावडर बन जाएगा। इसे द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं। इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं। और अगर कोई व्याधि नहीं है, तब भी यह लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं, प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है।
1. खुजली: द्रोणपुष्पी के ताजा रस को खुजली वाली जगह पर मलने से राहत मिलती है। खाज-खुजली होने पर द्रोणपुष्पी का रस जहां पर खुजली हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
2. सर्पविष: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में 2 कालीमिर्च पीसकर मिलाएं। इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार रोगी को पिलायें या रोगी की आंखों में इसके पत्तों का रस 2-3 बूंद रोजाना 4-5 बार डालें। इससे जहर का असर खत्म हो जाता है।
3. शोथ (सूजन): द्रोणपुष्पी और नीम के पत्ते के छोटे से भाग को पीसकर सूजन पर गर्म-गर्म लेप लगाने से आराम मिलता है।
4. खांसी: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
5. संधिवात: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में इतना ही पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।
6. सिरदर्द: द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और इसमें 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से दर्द में आराम मिलता है।
7. पीलिया: द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
8. सर्दी: द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।
9. बुखार: 2 चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।
10. श्वास, दमा: द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।
11. यकृत (जिगर) वृद्धि: द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।
12. दांतों का दर्द: द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद तथा तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दांतों का दर्द ठीक होता है।
13. खांसी: 3 ग्राम द्रोणपुष्पी के रस में 3 ग्राम बहेड़े के छिलके का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी का रोग ठीक हो जाता है।
14. विषम-ज्वर: गुम्मा या द्रोणपुष्पी की टहनी या पट्टी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे। इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है ।
15. सूखा रोग में: सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है। गुम्मा के टहनी या पत्ते को पीस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करे। इस से सूखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है ।
साँप के काटने पर :- किसी भी व्यक्ति को कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो उसे द्रोणपुष्पी के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए । अगर वयक्ति बेहोश हो गया हो तो गुम्मा (द्रोणपुष्पी ) के रस निकाल कर उसके कान , मुँह और नाक के रास्ते टपका दे ।इसे व्यक्ति अगर मरा नही हो तो निश्चित ही ठीक हो जाएगा ।ठीक होने के बाद उसे कुछ घण्टे तक सोन न दे ।
हानिकारक प्रभाव : ठण्डी प्रकृति वालों के लिए द्रोणपुष्पी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
मात्रा : द्रोणपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण 5 से 10 ग्राम। रस 10 से 20 मिलीलीटर।
Source : http://dkgoyal.com/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A3%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80-leucas-cephalotes/
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Monday, 9 March 2015
Thumbai Poo | Plant Health Benefits & Medicinal Uses: Home Remedy For Insect Bites & Skin Diseases
Thumbai is a small plant that grows wildly in abundance. It's botanical name is Leucas Aspera and it is found all over India extensively (बड़े पैमाने पर) . It is called dronapushpi (द्रोणपुष्पी) in Sanskrit, darunaphula in Bengali, goma madhupati in Hindi and Kubo in Sindhi. You can spot thumbai easily because of it's beautiful white flowers and it is also the best way to identify this plant. Both the flowers and leaves are used in home remedies. Here in Tamil Nadu, you can easily get thumbai plant, if you visit any village. It is hard to get thumbai plant in nurseries, but you can easily grow it in small pots with the seeds and they look really beautiful. In our village side thumbai is used extensively in home remedies and we use it for cooking too. This plant is the best medicine for insect bites and it is even used for treating snake bites! Thumbai juice is given to the patient who is bitten by a snake and the juice is also rubbed on the bitten area and this is done once every 30 minutes. This treatment is still carried on in many villages, but it is best done under the supervision of an experienced person. I wanted to write this treatment because usually these kinds of treatments might save lives during an emergency, if medical help is not available immediately. Since this plant is found very commonly in our village, if anyone gets bitten by small insects, they just collect the leaves and rub it on a stone to get a paste and then apply on the affected area. Usually the pain will subside very quickly and with regular application the pain will be completely gone. Since this plant is edible, you can safely take the juice of this plant without any side effects. When having oil bath during winter season, people who are suffering from sinus problems might get a headache. But when oil is heated along with thumbai flowers, they will not have any of the problems at all. A reader of this blog was asking me remedies for noise in the ears. If it is caused due to infection, thumbai oil will treat it very effectively. I have to mention this plants effect on skin diseases. If you are suffering from any skin diseases that causes intense itching and hardening of the skin, try applying the crushed thumbai leaves on that area. With regular use, you will get good relief. Consuming the juice along with the external application will speed up the healing process....

3 AMAZING HEALTH BENEFITS OF THUMBAI:
1. Thumbai Oil For Oil Bath & Noise In The Ear :
If you are suffering from sinusitis and if this problem is keeping you from having oil bath, try the oil made with thumbai flowers. To make the oil, heat unrefined sesame oil in a small pan along thumbai flowers in a low flame. Fry till the flowers are cooked well and strain, use this oil for having oil massage. This oil also prevents sinus headaches. A drop of this oil in each ear will prevent the noise in the ears that I mentioned earlier.
2. For Insect Bites & Skin Diseases:
Take the leaves of the plant and pound it as finely as you can in a mortar and pestle and apply it as a poultice over the affected area. Take a thin cotton cloth and tie it over the poultice to prevent it from falling down and also make sure not to add any water or very little water while pounding the plant.
3. Thumbai Juice:
To make the juice, take the leaves and grind it to a smooth paste along with little-boiled water. Take around 1 tbsp of the juice for 3 days in an empty stomach daily to speed up the healing process. This juice also can be applied to skin problems. This juice also removes intestinal worms (आंत के कीड़े).
NOTES: Always try to make the preparations with fresh herb.
Thumbai poultice is very very effective and if you are suffering from skin diseases, please give it a try. You can also grind the paste using a mixer.
You can also add few drops of honey to the juice, if you find it difficult to drink it as it is.
Source : http://www.wildturmeric.net/2015/03/thumbai-poo-plant-health-benefits-medicinal-uses.html
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Dronpushpi: बेहद गुणकारी है द्रोणपुष्पी- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)
वानस्पतिक नाम : Leucas cephalotus (Roth) Spreng. (ल्युकस सिफॅलोटुस)
Syn-Phlomis cephalotes Roth
कुल : Lamiaceae (लेमिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Thumbe (थम्बे)
संस्कृत-द्रोणपुष्पी, फलेपुष्पा, पालिंदी, कुंभयोनिका, द्रोणा; हिन्दी-गूमाडलेडोना, गोया, मोरापाती, धुरपीसग; कन्नड़-तुम्बे (Tumbe); गुजराती-दोशिनाकुबो (Doshinokubo), कुबो (Kubo), कुबी (Kubi); मराठी-तुम्बा (Tumba), देवखुम्बा (Devkhumba), शेतवाद (Shetvad);पंजाबी-छत्रा (Chatra), गुल्डोडा (Guldoda), मलडोडा (Maldoda); तमिल-कोकरातासिल्टा (Kocaratacilta), नेयप्पीरक्कू (Neyppirkku); तेलुगु-पेड्डातुम्नी (Peddatumni), तुम्मी (Tummi); बंगाली-घलघसे (Ghalghase), बराहलकसा (Barahalkasa); नेपाली-सयपत्री (Syapatri); मलयालम-तुम्बा (Tumba); राजस्थानी-उडापता (Udapata), निडालू कुबी (Nidalu kubi)।
परिचय
यह विश्व में भूटान एवं अफगानिस्तान में पाया जाता है। भारत के हिमालय क्षेत्रों में यह 1800 मी की ऊचाँई तथा पंजाब, बंगाल, आसाम, गुजरात एवं चेन्नई में 900 मी की ऊँचाई पर खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसके पुष्प द्रोण (दोना या प्याला) के सदृश होते हैं, इसलिए इसे द्रोणपुष्पी कहा जाता है। इसकी कई प्रजातियां होती हैं।
यह 60-90 सेमी ऊँचा, सीधा अथवा विसरित, बहुशाखित, खुरदरा, प्रबल, रोमश, वर्षायु शाकीय पौधा होता है। इसका काण्ड तथा इसकी शाखाएँ कुंठाग्र, चतुष्कोणीय, दृढ़रोमी अथवा रोमश होती हैं। इसके पत्र सरल, लगभग वृंतहीन, 3.8-7.5 सेमी लम्बे, 1.3-2.5 सेमी व्यास के, अण्डाकार अथवा अण्डाकार-भालाकार, अल्प रोमश, स्वाद में कड़वे तथा गंधयुक्त होते हैं। इसके पुष्प छोटे, श्वेत वर्ण के, वृंतहीन, बृहत्, गोलाकार, सघन, अंतस्थ अथवा कक्षीय चक्करों में, 2.5-5 सेमी व्यास के होते हैं। फल 3 मिमी लम्बे, अण्डाकार, भूरे वर्ण के एवं चिकने होते हैं। बीज छोटे, चिकने, भूरे वर्ण के होते हैं। इसकी मूल श्वेत रंग की तथा स्वाद में चरपरी होती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से दिसम्बर तक होता है।
उपरोक्त वर्णित द्रोणपुष्पी के अतिरिक्त इसकी निम्नलिखित प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है।
- 1. Leucas aspera (Willd.) Link (द्रोणकपुष्पी)-
- 2. Leucas zeylanica Br (क्षुद्र द्रोणपुष्पी)- यह 50-60 सेमी ऊँचा, एकवर्षायु, छोटा शाकीय पौधा है। इसकी काण्ड एवं शाखाएं चतुष्कोणीय होती है। पत्तियां रेखाकार, भालाकार, 1-4 मिमी लम्बे वृन्त वाली एवं रोमश होती है। शाखाओं के अग्र भाग पर गुच्छों में श्वेत वर्ण के पुष्प आते हैं। फल आयताकार, त्रिकोणीय एवं चक्करदार होते हैं। यह उत्तेजक, आमवातरोधी एवं प्रशामक होता है। इसका प्रयोग अरूचि, आध्मान, शूल, विषम ज्वर, ज्वरजन्य अजीर्ण तथा उदरकृमियों की चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
द्रोणपुष्पी मधुर, कटु, लवण, उष्ण, गुरु, लघु, तीक्ष्ण, वातपित्तकारक, कफशामक, पथ्य, भेदन, मेध्य तथा रुचिकारक होती है।
यह आमदोष, कामला, शोफ, तमक-श्वास, कृमि, ज्वर, कास, तथा अग्निमांद्य नाशक है।
इसका पञ्चाङ्ग कृमिघ्न, स्वेदजनन, विरेचक, उत्तेजक, श्वसनिका शोथ, कामला, शोथ, श्वासकष्ट, अजीर्ण, पक्षाघात, जीर्ण ज्वर तथा त्वग्रोग नाशक होता है।
इसके पुष्प तथा पत्र कटु, तापजनन, पित्तशामक, वातानुलोमक, पाचक, कृमिघ्न, शोथघ्न, आतर्वजनक, ज्वरघ्न, कफनिसारक,
जीवाणुनाशक, शोधक तथा स्वेदजनक होते हैं।
पुष्प तथा काण्ड से प्राप्त सत् श्लीपद नाशक क्रिया प्रदर्शित करते हैं।
इसके पञ्चाङ्ग का मेथेनॉल-सार परखनलीय परीक्षण में अनॉक्सीकारक क्रियाशीलता एवं जैविकीय परीक्षण में वेदनाशामक एवं शोथहर क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- शिरशूल-द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस का मस्तक पर लेप लगाने व नस्य देने से शिरशूल का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग को पीसकर उसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मस्तक पर लगाने से शिरशूल का शमन होता है।
- प्रतिश्याय-द्रोणपुष्पी का क्वाथ बनाकर बफारा देने से या क्वाथ से स्नान करने पर प्रतिश्याय में लाभ होता है।
- 10 मिली गूमा पत्र-स्वरस में समभाग आर्द्रक-स्वरस तथा शहद मिलाकर पिलाने से प्रतिश्याय का शमन होता है।
- 5-10 ग्राम द्रोणपुष्पी पत्र में समभाग वनफ्शा तथा मुलेठी चूर्ण मिलाकर, क्वाथ बनाकर 10-30 मिली क्वाथ में मिश्री मिलाकर पीने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।
- नेत्ररोग-द्रोणपुष्पी को तण्डुलोदक से पीसकर (1-2 बूंद मात्रा में) नस्य लेने से नेत्र पटलगत रोग तथा नेत्रों में अञ्जन करने से पीलिया का शमन होता है।
- कास-5 मिली द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में समभाग शहद मिलाकर पीने से कास (खांसी) तथा प्रतिश्याय (जुकाम) में लाभ होता है।
- अजीर्ण-द्रोणपुष्पी के पत्रों का शाक बनाकर सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है।
- कामला-द्रोणपुष्पी स्वरस का अंजन तथा नस्य करने व 5 मिली स्वरस में समभाग शहद मिलाकर पीने से कामला में लाभ होता है।
- 5-10 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में 500 मिग्रा काली मरिच का चूर्ण तथा सेंधानमक मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पांडु कामला में लाभ होता है।
- यकृत्प्लीहा-विकार-द्रोणपुष्पी मूल चूर्ण में चतुर्थांश पिप्पली चूर्ण मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में सेवन करने से यकृत्प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
- संधिशूल-द्रोणपुष्पी का फाण्ट बनाकर परिषेचन करने से संधिशूल का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग क्वाथ (10-30 मिली) में पिप्पली चूर्ण (1-2 ग्राम) मिलाकर पिलाने से संधिवात का शमन होता है।
- रोमकूपशोथ-द्रोणपुष्पी पत्र भस्म को अश्व मूत्र में मिलाकर, लेप करने से रोमकूप शोथ का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पत्र स्वरस या कल्क का लेप करने से व्रण, दाह, पामा तथा कण्डु का शमन होता है।
- अनिद्रा-10-20 मिली द्रोणपुष्पी बीज क्वाथ का सेवन करने से नींद अच्छी आती है।
- योषापस्मार-द्रोणपुष्पी का फाण्ट बनाकर स्नान करने से योषापस्मार में लाभ होता है।
- विषमज्वर-5 मिली द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में 1 ग्राम काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से मलेरिया व पत्र-स्वरस का अञ्जन करने से ज्वर में लाभ होता है।
- 10-30 मिली पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से विषमज्वर में लाभ होता है।
- पत्रों का पुटपाक-विधि से रस निकालकर 5-10 मिली रस में लवण मिलाकर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।
- स्नायविक-विकार-द्रोणपुष्पी पत्र-क्वाथ का सेवन करने से स्नायविक विकारों का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी क्वाथ को स्नान व स्वेदन करने से ज्वर में लाभ होता है।
- 10-30 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में पित्तपापडा चूर्ण 5 ग्राम, नागरमोथा चूर्ण 5 ग्राम तथा चिरायता चूर्ण 5 ग्राम मिलाकर, पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी के पत्रों को पीसकर शरीर पर मलने से ज्वरजन्य दाह का शमन होता है।
- वातविकार-10 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में मधु मिलाकर पिलाने से वातविकारों का शमन होता है।
- विषम-ज्वर-द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग में पित्तपापड़ा, सोंठ, गिलोय तथा चिरायता को समभाग मिलाकर क्वाथ बना लें। 10-30 मिली क्वाथ को पीने से विषम ज्वर में लाभ होता है।
- वृश्चिक-दंश-द्रोणपुष्पी के पत्रों को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से वृश्चिक दंशजन्य-विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग :पञ्चाङ्ग, पत्र, मूल एवं बीज।
मात्रा :स्वरस 5-10 मिली। क्वाथ 10-30 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
https://www.1mg.com/hi/patanjali/dronpushpi-benefits-in-hindi/
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द्रोणपुष्पी-JK HealthWorld
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द्रोण पुष्पी
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