यह वनस्पति आम तौर पर बेकार जमीन मे उगती है। इसमे काँटे होते है और इसे अच्छी नजर से नही देखा जाता है। घर के आस-पास यदि यह दिख जाये तो लोग इसे उखाडना पसन्द करते है। गाँव के ओझा जब विशेष तरह का भूत उतारते है।
* इसका वैज्ञानिक नाम आर्जिमोन मेक्सिकाना यह इशारा करे कि यह मेक्सिको का पौधा है, पर प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथो मे इसके औषधीय गुणों का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसका संस्कृत नाम 'स्वर्णक्षीरी' सत्यानाशी की तरह बिल्कुल भी नही डराता है। यह नाम तो स्वर्ग से उतरी किसी वनस्पति का लगता है।
* आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘भावप्रकाश निघण्टु’ में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी जैसे सुंदर नामों से सम्बोधित किया गया है। इसके विभिन्न भाषाओ में नाम है-स्वर्णक्षीरी, कटुपर्णी।
हिन्दी- सत्यानाशी, भड़भांड़, चोक।
मराठी- कांटेधोत्रा।
गुजराती- दारुड़ी।
बंगाली- चोक, शियालकांटा।
* यह कांटों से भरा हुआ, लगभग 2-3 फीट ऊंचा और वर्षाकाल तथा शीतकाल में पोखरों, तलैयों और खाइयों के किनारे लगा पाया जाने वाला पौधा होता है। इसका फूल पीला और पांच-सात पंखुड़ी वाला होता है। इसके बीज राई जैसे और संख्या में अनेक होते हैं। इसके पत्तों व फूलों से पीले रंग का दूध निकलता है, इसलिए इसे ‘स्वर्णक्षीरी’ यानी सुनहरे रंग के दूध वाली कहते हैं।
* इसकी जड़, बीज, दूध और तेल को उपयोग में लिया जाता है। इसका प्रमुख योग ‘स्वर्णक्षीरी तेल’ के नाम से बनाया जाता है। यह तेल सत्यानाशी के पंचांग (सम्पूर्ण पौधे) से ही बनाया जाता है। इस तेल की यह विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार के व्रण (घाव) को भरकर ठीक कर देता है।
व्रणकुठार तेल बनाये:
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निर्माण विधि: आप इस पौधे को सावधानीपूर्वक कांटों से बचाव करते हुए, जड़ समेत उखाड़ लाएं। इसे पानी में धोकर साफ करके कुचल कर इसका रस निकाल लें। फिर जितना रस हो, उससे चौथाई भाग अच्छा शुद्ध सरसों का तेल मिला लें और मंदी आंच पर रखकर पकाएं। जब रस जल जाए, सिर्फ तेल बचे तब उतारकर ठंडा कर लें और शीशी में भर लें। यह व्रणकुठार तेल है। जैसे अगर 200 ग्राम रस है तो 50 ग्राम ही शुद्ध घानी का सरसों का तेल डाले और पक के वापस 50 ग्राम तेल बचे तो रख लें।
प्रयोग विधि: किसी भी प्रकार के जख्म (घाव) को नीम के पानी से धोकर साफ कर लें। साफ रूई को तेल में डुबोकर तेल घाव पर लगाएं। यदि घाव बड़ा हो, बहुत पुराना हो तो रूई को घाव पर रखकर पट्टी बांध दें। कुछ दिनों में घाव भर कर ठीक हो जाएगा। ये घाव ठीक करने की अचूक दवा है। अगर पुराना नासूर है तो भी ये दवा उतनी ही कारगर है।
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SUNDAY, JANUARY 8, 2012
आँख में उपयोगी ...सत्यानाशी का पौधा
कल मैं मम्मी के साथ बाहर धूप में बैठी थी और मम्मी ने देखा कि में आँखें जल्दी-जल्दी झपक रही थी ... मम्मी ने कहा की मेरी दादी यानी कि मेरी मम्मी की दादी जिनका जन्म 1880 में हुआ होगा॥
ज़ब भी किसी की आँख में दर्द होता तो उसकी आँखों में सत्यानाशी पौधे का दूध डालती थी ..मैंने झट कंप्यूटर ऑन कर सत्यानाशी का पौधा गूगल किया और मुझे याद भी आ गया कि हमारे खेतों, बाड़ों के डोलों पर यह पौधा खूब होता था ..सत्यानाशी का पौधा
और मुझे यह नीचे दी जानकारी भी मिली ..
विलुप्त हो गई जड़ी-बूटियां
http://www.chauthiduniya.com/2010/12/bilupt-ho-gayi-jadi-butiyaan.html
यह ऊपर दिये लिंक में पाया.........कानपुर में पाया जाने वाला पुनर्नवा, जो आंत की बीमारी और मुंह के छाले में लाभदायक होता है, भी दुर्लभ है. स्वप्नदोष की बीमारी में लाभदायक धतूरा और आंख की बीमारी में उपयोगी सत्यानाशी कादूध भी खोजे नहीं मिल रहा. इसका उपयोग दाद-खाज की दवा के रूप में भी किया जाता है. धान के खेतोंमें स्वत: उगने वाली गोरखमुंडी ही नहीं, पीलिया की अचूक दवा अमरबेल या आकाशबेल को भी हमसहेज कर नहीं रख पाए. हर जगह मिलने वाली मकोई रसभरी अब खोजे नहीं मिलती. चोपन के जंगलोंमें पाई जाने वाली वनकवाच या काली कांच की जड़ भी अब हमारे लिए बीते दिनों की बात होती जा रहीहै. वनकवाच की जड़ पीस कर पीने से स्वप्नदोष और नपुंसकता की बीमारी दूर होती है.
http://haqeeqat-e-bayan.blogspot.in/2012/01/ramzi-blogger-kediri-animated-rain.html
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THURSDAY, JANUARY 26, 2012
सत्यानाशी (argemone, maxican prickly poppy)
सत्यानाशी को पीतदुग्धा और स्वर्णक्षीरी भी कहा जाता है. इसके कोमल हल्के पीले रंग के फूल होते है. इसके पत्ते कांटेदार होते हैं. इसके कभी-कभी सफेद रंग के फूल भी हो सकते हैं. यह आमतौर पर सर्वत्र पाया जाने वाला पौधा है. इसे देखभाल की आवश्यकता बिलकुल नहीं है. किसी भी बेकार पडी जगह पर यह उग जाता है. इसके बीज कुछ-कुछ सरसों से मिलते जुलते होते हैं. इनसे निकला हुआ तेल कुछ बेईमान सरसों के तेल में मिलाकर बेचते हैं; जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है. लेकिन इस पौधे को विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग में लाया जाए तो यह रक्त शोधक, प्रमेह और कमजोरी को दूर करने वाला पौधा है.
नेत्र रोगों के लिए इसके पौधे के पीले दूध (डाली तोड़ने पर पीला सा दूध निकलता है) को संग्रहित कर लें. इसमें दो तीन बार रुई भिगोकर सुखाएं. उसे सुखाकर गाय के शुद्ध घी में बत्ती बनाकर काजल बनायें. कहते हैं कि इससे नेत्र ज्योति भी बढती है.
अगर शक्ति का ह्रास महसूस होता हो तो इसकी जड़ का पावडर मिश्री के साथ लें.
नपुंसकता के लिए इसके जड़ के टुकड़े को बड़ के रस की एक भावना (भिगोकर सुखाना) दें . पान के पत्तों के रस की दो भावनाएं दें. फिर चने जितना भाग सुबह शाम दूध के साथ लें.
जलोदर ascites का रोग हो या urine कम आता हो तो इसके पंचांग को छाया में सुखाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें. इसका 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाएं. सवेरे शाम लें.
चर्म रोग या psoriasis को ठीक करने के लिए ताज़ी सत्यानाशी के पंचांग का रस एक किलो लें. इसे आधा किलो सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाएं. जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और प्रभावित जगह पर लगाएँ.
खाज खुजली होने पर इसके पत्ते उबालकर उस पानी से नहाएँ.
http://indiantrenches.blogspot.in/2012/01/blog-post_5025.html
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' आॅन लाईन होम्योपैथ एवं परम्परागत चिकित्सक, 9875066111
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Thanks for sharing Valuable and helpful informative article. Keep it up.
ReplyDeletePG in Laxmi Nagar