स्वस्थ जीवन क्या है?
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हर व्यक्ति किसी न किसी माने में अस्वस्थ होता है। उसे किसी न किसी रूप में उपचार की जरूरत होती है। उपचार के अनेक रूप हो सकते हैं और होते भी हैं। जैसे-औषधि, व्यायाम, परिश्रम, परामर्श, सलाह, प्रार्थना, सम्मोहन, आशीष, दुआ, माहौल परिवर्तन, इत्यादि-इत्यादि। अत: इन सभी विषयों पर विचार करना हमारा मूल मकसद होना चाहिये और है भी। जिससे हर आम-ओ-खास को स्वस्थ जीवन जीने का सहजता से अवसर मिल सके। जिससे कि हमारा जीवन शारीरिक व्याधियों से मुक्त, चिन्ता, तनाव, पीड़ा से रहित और शारीरिक बल से परिपूर्ण हो।
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लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
आमतौर पर हृदय की धड़कन, रक्तचाप, लम्बाई या उम्र के अनुसार वजन, खून में विशेष तत्वों की मात्रा आदि अनेक तत्वों, पदार्थों आदि की कमी या अधिकता को चिकित्सक अपने वैज्ञानिक अनुभव के आधार पर शारीरिक या मानसिक अस्वस्थता घोषित करते देखे जा सकते हैं। इसके बाद अपने हिसाब से उसकी चिकित्सा भी शुरू करते हैं। इस प्रकार चिकित्सक रोग को या रोग के अभाव को तो माप सकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य को मापने का उनके पास आज तक कोई वैज्ञानिक पैमाना नहीं है। अत: हम इस बात को जान लें कि स्वास्थता या अस्वस्थता का कोई तकनीकी निर्णायक बिन्दु या तत्व या पैमाना अभी तक विज्ञान द्वारा नहीं खोजा जा सका है।
यही कारण है कि प्रचलित सभी चिकित्सा पद्धतियों में स्वास्थ्य की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकी है। सभी की अपनी-अपनी मान्यताएं और सभी के अपने-अपने अनुभव हैं। इसके बावजूद स्वस्थ जीवन से हमारा अभिप्राय क्या है? यह जानना प्रत्येक व्यक्ति की चाहत होती है। बेशक बहुत कम लोग स्वस्थ रहने के लिये सचेत और प्रयासरत रहते हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि-स्वस्थ रहना सबसे बड़ा सुख है। भारत में कहावत भी प्रचलित है कि—'पहला सुख निरोगी काया'। हम यह जानते हैं कि हम तब ही अपने जीवन का पूरा आनन्द उठा सकता है, जब हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।
आमतौर पर मान्यता यह भी रही है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। लेकिन नये शौध बतलाते हैं कि जब तक मस्तिष्क स्वस्थ है, तब तक ही शरीर पूरी तरह स्वस्थ रह सकता है। इस प्रकार मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों एक-दूसरे के लिये पूरक और अनिवार्य हैं।
विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र की बातों और खोजों को छोड़ भी दिया जाये तो भी दैनिक जीवन में आमतौर पर, आम लोगों द्वारा यह सवाल एक-दूसरे से और अपने आप से पूछा जाता रहा है, पूछा भी जाना चाहिये कि 'स्वास्थ्य क्या है?' अर्थात् किस व्यक्ति को हम स्वस्थ कह सकते हैं? साधारण रूप से यह माना जाता है कि किसी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग का न होना ही स्वास्थ्य है। हालांकि यह स्वास्थ्य की नकारात्मक परिभाषा है। यह सत्य के निकट होकर भी पूरी तरह सत्य नहीं मानी जा सकती। वास्तव में स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति की क्रियाशीलता से है। जो व्यक्ति शरीर और मन से पूरी तरह क्रियाशील और चिन्तनशील है, उसे ही पूर्ण स्वस्थ कहा जाना चाहिये।
शारीरिक या मानसिक रोग हो जाने पर व्यक्ति की क्रियाशीलता में कमी या शिथिलता आती देखी जा सकती है, इसलिए उसका स्वास्थ्य और अन्तत: उसका जीवन भी प्रभावित होता है। शारीरिक या मानसिक रोग उत्पन्न होने के अनेक कारण और हालात होते हैं। जिसके दुष्परिणामस्वरूप ही किसी व्यक्ति विशेष में शारीरिक या मानसिक रोग पनपता है या पनपते हैं। अत: उन कारणों को जाने बिना स्वास्थ्य या स्वस्थता को न तो जाना जा सकता है और न हीं समझा जा सकता।
इसलिये हमें इस बात को ठीक से समझना होगा कि सामाजिक व्यवस्था में रहकर जीवन जीने वाले एक आम व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति या उसकी शारीरिक और मानसिक स्वस्थता—उस व्यक्ति विशेष की सामाजिक, शैक्षणिक, कार्यालयीन, व्यावसायिक, पारिवारिक, दाम्पत्यिक, आर्थिक और पर्यावरण सहित अनेक बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर होती/करती है। जिस किसी भी व्यक्ति के उपरोक्त परिस्थितिजन्य हालात जैसे होंगे, उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी वैसा ही होगा। अत: किसी भी व्यक्ति या समाज के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को जानना या ठीक करना है तो उस व्यक्ति या समाज के सामाजिक, शैक्षणिक, कार्यालयीन, व्यावसायिक, पारिवारिक, दाम्पत्यिक, आर्थिक और पर्यावरण सहित समग्र परिस्थितियों और हालातों को जांचना, परखना और ठीक करना होगा। यह अलग बात है कि सब कुछ व्यक्ति के नियंत्रण में नहीं होता, न ही हो सकता है।
इसीलिये हर व्यक्ति किसी न किसी माने में अस्वस्थ होता है। उसे किसी न किसी रूप में उपचार की जरूरत होती है। उपचार के अनेक रूप हो सकते हैं और होते भी हैं। जैसे-औषधि, व्यायाम, परिश्रम, परामर्श, सलाह, प्रार्थना, सम्मोहन, आशीष, दुआ, माहौल परिवर्तन, इत्यादि-इत्यादि। अत: इन सभी विषयों पर विचार करना हमारा मूल मकसद होना चाहिये और है भी। जिससे हर आम-ओ-खास को स्वस्थ जीवन जीने का सहजता से अवसर मिल सके। जिससे कि हमारा जीवन शारीरिक व्याधियों से मुक्त, चिन्ता, तनाव, पीड़ा से रहित और शारीरिक बल से परिपूर्ण हो।
->>>>>>>>सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मो. एवं वाट्स एप नम्बर : 9875066111/20.12.2016
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