Part Used: Leaves-पत्तियां, Root-जड़, Fruits-फल, Seeds-बीज, Bark-छाल।
Medicinal Use: This plant is useful in gout, tuberculosis, ulcers, bleeding disorders, and worms. It cures burning sensation. Decoction-काढ़ा used in a toothache and tender-नाज़ुक gums-मसूढे. Leaves are locally applied to boils and ulcers. Roots are used in fever, chest affection and urethritis-मूत्रमार्ग का प्रदाह. Antipyretic-ज्वरनाशक, Laxative-दस्तावर, Carminative-वायुनाशी-अग्निवर्धक, Anodyne-वेदनाहर-पीड़ा-नाशक, Cardiac Tonic-हृदय टॉनिक, Nervine Tonic-स्नायविक विकार को दूर करने वाली ओषधि, Antidiabetic-मधुमेहनिवारक and hypoglycaemic-रक्तशर्करा कम हो जाना,
Medicinal Properties: It is digestive, laxative, expectorant, diuretic, astringent, analgesic, anti-inflammatory, anthelmintic, demulcent and aphrodisiac.
औषधीय गुण: यह पाचन, रेचक, कफेलदार-बलगम निकालने वाली, मूत्रवर्धक-मूत्रल, कसैले-संकोचक, एनाल्जेसिक-पीड़ाहर-दर्दनिवारक, सोजन निवारक, कृमिनाशक, शांतिदायक और कामोद्दीपक है।
अतिबला (खरैटी) के 37 अद्भुत फायदे
1. पेशाब का बार-बार आना: खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
2. प्रमेह (वीर्य प्रमेह): अतिबला के बारीक चूर्ण को यदि दूध और मिश्री के साथ सेवन किया जाए तो यह प्रमेह को नष्ट करती है। महाबला मूत्रकृच्छू को नष्ट करती है।
3. गीली खांसी: अतिबला, कंटकारी, बृहती, वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इसे 14 से 28 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।
4. सीने में घाव (उर:क्षत): बलामूल का चूर्ण, अश्वगंधा, शतावरी, पुनर्नवा और गंभारी का फल समान मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार लेते हैं। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत नष्ट हो जाता है।
5. मलाशय का गिरना: अतिबला (खिरेंटी) की पत्तियों को एरंडी के तेल में भूनकर मलाशय पर रखकर पट्टी बांध दें।
6. बांझपन दूर करना: अतिबला के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान (मासिक-धर्म) के बाद, दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
7. मसूढ़ों की सूजन: अतिबला (कंघी) के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
8. नपुंसकता (नामर्दी): अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से नामर्दी में पूरा लाभ होता है।
9. दस्त: अतिबला (कंघी) के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त में लाभ होता है।
10. पेशाब के साथ खून आना: अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।
11. बवासीर: अतिबला (कंघी) के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
12. रक्तप्रदर: खिरैंटी और कुशा की जड़ के चूर्ण को चावलों के साथ पीने से रक्तप्रदर में फायदा होता है।
13. रक्त प्रदर-1: खिरेंटी के जड़ का मिश्रण (कल्क) बनाकर उसे दूध में डालकर गर्म करके पीने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
14. रक्त प्रदर-2: रक्तप्रदर में अतिबला (कंघी) की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चीनी और शहद के साथ देने से लाभ मिलता है।
15. रक्त प्रदर-3: अतिबला की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम, 100-250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।
16. श्वेतप्रदर: अतिबला की जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में दूध में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ प्राप्त होता है।
17. प्रदर: खिरैटी की जड़ की राख दूध के साथ देने से प्रदर में आराम मिलता है।”
18. दर्द व सूजन: दर्द भरे स्थानों पर अतिबला से सेंकना फायदेमंद होता है।
19. पित्त ज्वर: खिरेटी की जड़ का शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
20. रुका हुआ मासिक-धर्म: खिरैटी, चीनी, मुलहठी, बड़ के अंकुर, नागकेसर, पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल इनको दूध में पीसकर घी और शहद मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
21. पेट में दर्द होने पर: खिरैंटी, पृश्नपर्णी, कटेरी, लाख और सोंठ को मिलाकर दूध के साथ पीने से `पित्तोदर´ यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में लाभ होगा।
22. मूत्ररोग: अतिबला के पत्तों या जड़ का काढ़ा लेने से मूत्रकृच्छ (सुजाक) रोग दूर होता है। सुबह-शाम 40 मिलीलीटर लें। इसके बीज अगर 4 से 8 ग्राम रोज लें तो लाभ होता है।
23. पेशाब खुलना: खिरैटी के पत्ते घोटकर छान लें, इसमें मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
24. मूत्रकृच्छ: खिरैटी के बीजों के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ लेने से मूत्रकृच्छ मिट जाती है।
25. फोड़ा (सिर का फोड़ा): अतिबला या कंघी के फूलों और पत्तों का लेप फोड़ों पर करने से लाभ मिलता है।
26. शरीर को शक्तिशाली बनाना: शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है।
27. शक्ति का विकास: खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।
28. धातु गाढ़ी और शुक्रमेह बंद: शुक्रमेह के लिए खरैटी की ताजी जड़ का एक छोटा टुकड़ा लगभग 5-6 ग्राम एक कप पानी के साथ कूट-पीस और घोंट-छानकर सुबह खाली पेट पीने से कुछ दिनों में शुक्र धातु गाढ़ी हो जाती है और शुक्रमेह होना बंद हो जाता है।
29. श्वेत प्रदर (Leukorrhea): महिला को श्वेत प्रदर (Leukorrhea ) रोग हो तो बला के बीजों का बारीक पिसा और छना चूर्ण एक एक चम्मच सुबह-शाम शहद में मिलाकर कर दे और फिर ऊपर से मीठा दूध हल्का गर्म पी लें।
30. बल वीर्य तथा ओज बढ़ता है: शरीरिक कमजोरी के लिए आधा चम्मच की मात्रा में इसकी जड़ का महीन पिसा हुआ चूर्ण सुबह-शाम मीठे हल्के गर्म दूध के साथ लेने और भोजन में दूध-चावल की खीर शामिल कर खाने से शरीर का दुबलापन दूर होता है शरीर सुडौल बनता है सातों धातुएं पुष्ट व बलवान होती हैं तथा बल वीर्य तथा ओज बढ़ता है।
31. मूत्रातिसार: खरैटी के बीज और छाल समान मात्रा में लेकर कूट-पीस-छानकर महीन चूर्ण कर लें तथा एक चम्मच चूर्ण घी-शकर के साथ सुबह-शाम लेने से वस्ति और मूत्रनलिका की उग्रता दूर होती है और मूत्रातिसार होना बंद हो जाता है।
32. बवासीर: बवासीर के रोगी को मल के साथ रक्त भी गिरे तो इसे रक्तार्श यानी खूनी बवासीर कहते हैं। बवासीर रोग का मुख्य कारण खानपान की बदपरहेजी के कारण कब्ज बना रहना होता है। बला के पंचांग को मोटा-मोटा कूटकर डिब्बे में भरकर रख लें और प्रतिदिन सुबह एक गिलास पानी में दो चम्मच यानी कि लगभग 10 ग्राम यह जौकुट चूर्ण डालकर उबालें और जब चौथाई भाग पानी बचे तब उतारकर छान लें फिर ठण्डा करके एक कप दूध मिलाकर पी पाएं-इस उपाय से बवासीर का खून गिरना बंद हो जाता है।
33. पेशाब में खून का आना बंद: अतिबला की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद हो जाता है।
34. मसूढ़ों के रोग: अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन तीन से चार बार कुल्ला करें ये प्रयोग रोजाना करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
35. मासिकधर्म की परेशानी: जिनको मासिक धर्म रुक जाता है या अनियमित आता है उनको खिरैटी+चीनी+मुलहठी+बड़ के अंकुर+ नागकेसर+पीले फूल की कटेरी की जड़ की छाल लेकर इनको दूध में पीसकर घी और शहद में मिलाकर कम से कम 15 दिनों तक लगातार पिलाना चाहिए। इससे मासिक स्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
36. गीली खांसी: अतिबला+कंटकारी+बृहती+वासा (अड़ूसा) के पत्ते और अंगूर को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। फिर इसे 15 से 30 मिलीमीटर की मात्रा में 5 ग्राम शर्करा के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से गीली खांसी ठीक हो जाती है।
37. दीर्घजीवी पुत्र उत्पन्न होता है: अतिबला (खिरैटी) के साथ नागकेसर को पीसकर ऋतुस्नान के बाद दूध के साथ सेवन करने से लम्बी आयु वाला (दीर्घजीवी) पुत्र उत्पन्न होता है।
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अतिबला
खूनी बवासीर: रोजाना 10 ग्राम पंचांग का काढा पियें।
मसूढों की सूजन: पत्तों का काढा बनाकर रोजाना तीन बार कुल्ला करें।
गांठ या अनपके फोड़े: अतिबला के कोमल पत्तों को पीसकर इसकी पुल्टीस बाँधकर ऊपर पानी के छींटे मारते रहे। इस से गांठ या फोड़ा बिना चीरा लगाए पककर फूट जाता है।
दुर्बलता: आधा चम्मच अतिबला की जड़ का बारीक चूर्ण सुबह-शाम मीठे दूध के साथ लेने से शरीर का दुबलापन दूर हो जाता है।
खूनी बवासीर: अतिबला के पंचांग को मोटा कूठकर उसका चूर्ण बना लें। सुबह शाम 10 ग्राम चूर्ण एक गिलास पानी में उबालें। चौथाई पानी रहे हो जाए तब उतारकर छान दें। ठंडा करके पानी को एक कप दूध में मिलाकर पीने से शीघ्र खुनी बवासीर लाभ होता है।
स्वरभेद: आधा चम्मच गुलाब की जड़ का चूर्ण, शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से आवाज ठीक हो जाती है।
तृषा: बला की जड़ का काढ़ा आदर्श 10 ग्राम पीने से तृषा शांत होती है।
शुक्रमेह: बला की ताजा जड़ 6 ग्राम, एक कप पानी के साथ घोटकर वो छानकर सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है।
श्वेत प्रदर: बला के बीजों का बारीक चूर्ण, एक चम्मच सुबह शाम शहद में मिलाकर लेने से तथा ऊपर से मीठा दूध पीने से श्वेत प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
दाह: अतिबला की छाल का रस निकालकर शरीर पर लेप करने से जलन कम हो जाती है।
बिच्छू दंश: बला के पत्तों का रस बिच्छू द्वारा काटी गई जगहों पर लगाकर मसलने से दर्द दूर हो जाता है।
अतिबला (Atibala) का प्रयोग निम्नलिखित बीमारियों, स्थितियों और लक्षणों के उपचार, नियंत्रण, रोकथाम और सुधार के लिए किया जाता है:
दर्द
माइक्रोबियल संक्रमण
कब्ज
मलेरिया
घाव
सूजन
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Online Dr. PL Meena: Health Care Friend and Marital Dispute Consultant, Health Advice WhatsApp No.: 85619-55619, Mobile No.: 9875066111 (10AM to 10 PM)
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