*कौंच : सड़ी-गली-पुरानी अनुपयोगी आयुर्वेदिक औषधियां!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'*
आयुर्वेद के बारे में यह कहने वाले लोग बहुत सारे हैं कि-
- *आयुर्वेद की दवाईयां कोई असर ही नहीं करती?*
- या
- *आयुर्वेद से कोई फायदा ही नहीं होता?*
- या
- *मैंने आयुर्वेदिक दवाईयां भी लेकर देख ली, कुछ नहीं हुआ।*
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जहां एक ओर आयुर्वेद के प्रति लोगों में गहरी आस्था है, वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से असन्तुष्ट लोगों की संख्या भी कम नहीं है। लोगों का आयुर्वेद से मोहभंग होता दिखना दु:खद और चिन्ताजनक है। जिसके अनेक कारण हो सकते हैं। जिनकी पड़ताल करने की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी भारत सरकार और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े लोगों की है।
*मैं भी आयुर्वेद के प्रति गहरी आस्था और विश्वास रखने वालों में शामिल हूं। अत: इस बारे में अपना अनुभव बांटना जरूरी समझता हूं।*
मैं आयुर्वेदिक दवाईयों की उपलब्धता के लिये जयपुर के प्रतिष्ठित त्रिपोलिया बाजार से अनेक औषधियां लेकर आता रहता हूं। जिन औषधियों के बीज दवाई के रूप में उपयोग करने होते हैं। उनको उपयोग में लाने से पहले मैं अंकुरित करके देखता हूं। जो बीज अंकुरित नहीं होते वे सड़े-गले और पुराने होते हैं। अत: ऐसे बीजों को मैं फेंक देता हूं।
पिछले दिनों मुझे कौंच के पाउडर की जरूरत थी। अत: बाजार से पाउडर खरीदने के बजाय मैंने कौंच खरीदना उचित समझा। मैं सफेद और काले दोनों प्रकार के कौंच के बीज खरीद कर लाया। सफेद बीजों का अंकुरण तो बेहद उत्साहवर्द्धक रहा, लेकिन 250 ग्राम काले कौंच के बीजों में से एक भी बीज अंकुरित नहीं हुआ! यदि मैं कौंच का पाउडर लाया होता तो मुझे कभी पता नहीं चलता कि कौंच का पाउडर उपयोगी है या अनुपयोगी?
इस उदाहरण से पाठकों को समझ में आ जाना चाहिये कि पंसारी अर्थात् दवा विक्रेता पुरानी और सड़ी-गली औषधियों को बेचकर आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेदिक उपचार में आस्था तथा विश्वास रखने वालों के प्रति कितना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं। सबसे दु:खद इसे रोकने के लिये सरकारी ऐजेंसी कुछ नहीं कर रही हैं।
अत: आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को कोसने के बजाय, आयुर्वेद के उपचार के असफल होने के मूल कारणों को खोजकर दूर करना बहुत जरूरी है। इस दिशा में हमारी ओर से छोटा सा प्रयास किया गया है। हमने अनेक दर्जन आयुर्वेदिक औषधियों को हमारे फार्म पर उगा रखा है। जिनसे उम्मीद से भी अधिक सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं। दवाईयां तत्काल असर कर रही हैं। आने वाले एक साल में कौंच की एक क्विंटल से अधिक पैदावार होने की सम्भावना है। इस बार भी हमने सफेद कौंच की शुद्ध पैदावार प्राप्त की हैं।
*सरकार को सुझाव*
मेरा सुझाव है कि भारत सरकार को इस दिशा में ध्यान देकर ऐसा कानून बनाने की जरूरत है, जिससे आयुर्वेद की सड़ी-गली-पुरानी औषधियां बेचना दण्डनीय अपराध हो।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
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