निरोगधाम: पर 100 फीसदी शुद्ध आॅर्गेनिक मकोय
आयुर्वेद शास्त्रियों का कहना है कि मकोय का पौधा इस पृथ्वी पर यकृत के रोगों व हृदय रोगों की सबसे अच्छी औषधि कही जाती है। मकोय पीलिया (जॉन्डिस) की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है। मकोय भूख को बढ़ाने वाला फल है। इसकी कार्य क्षमता इतनी है कि इसका 10 प्रतिशत भाग भी सही रहे अर्थात् शुद्ध रहे तो भी यह काम करती रहेगी। वर्तमान समय की कड़वी हकीकत यह है कि बहुत कम आयुर्वेदिक औषधियां सही और शुद्ध मिलती हैं। इस कारण अनेक चिकित्सक विद्वानों का ऐसा अनुभव रहा है कि यदि मकोय 10 फीसदी शुद्ध हो तो भी कुछ न कुछ काम अवश्य करती है।

कल्पना करें कि यदि खतपतवार नाशक कीटनाशकों की मार झेलने के बाद भी खेत में शेष बची मकोय को किसानों द्वारा खेत से काटकर मेड़ के आसपास जो मकोय फेंकी जाती है। वही मकोय जब सूख सड़—गल जाती है और धूप में सूख जाती। ऐसी मकोय को पंसारियों के द्वारा बेचा जायेगा, तो मकोय के सेवन से स्वस्थ होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? दूसरी ओर इस देश का दुर्भाग्य है कि बाजरा, ज्वार जैसी बहुत सस्ती फसल प्राप्त करने के लिये किसानों द्वारा मकोय जैसी महौषधि को नष्ट किया जा रहा है। मकोय के पौधे में अनेक रोगों को नष्ट करने के गुण होते हैं। जैसे—
चर्म रोग, पीलिया, गठिया, बवासीर, सूजन, कोढ़, दिल के रोग, आंखों की बीमारी, खांसी, कफ, स्वर शोधक, रसायन, वीर्य उत्पादक और वीर्यवर्द्धक, प्रमेह नाशक, ज्वर नाशक, वमन को दूर करती, नेत्रों रोगों में हितकर है। मकोय यकृत/लीवर एवं हृदय के रोगों को हरने वाली औषधि है। मकोय त्रिदोषनाशक अर्थात वात,पित्त व कफ तीनों दोषों का शमन करने वाली महौषधि है। इसके अलावा भी मकोय अनेको रोगों को ठीक करती है।

यकृत की क्रिया विधि जब बिगड़ जाती है तो शरीर में अनेक उपद्रव यथा सूजन, पतले दस्त व पीलिया जैसे रोगों के अलाबा कई बार बवासीर जैसे रोग होने लगते हैं। इन रोगों में मकोय का सेवन बहुत ही लाभ करता है। यह औषधि यकृत की क्रियाविधि को धीरे-धीरे सुदृढ करके लीवर सम्बन्धी सभी रोगों को जड़ से नष्अ कर देती है। कुछ अन्य औषधियों के साथ इस औषधि के प्रयोग से यकृत सम्बन्धी रोग समाप्त हो जाते हैं। भूख बढ जाती है। शरीर पुष्ट हो जाता है। इस औषधि के पत्तों का रस/पाउडर आँतों में पहुँचकर वहाँ इकठ्ठे विषों को नष्ट कर देता है और विषैले द्रव्य पेशाब के मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। खूनी बबासीर में या मुँह के किसी भी हिस्से से रक्त स्त्राव में मकोय के पत्तों का रस लाभप्रद है। यदि शरीर में खुजली की शिकायत हो तथा वह किसी भी दवाई से मिट नहीं रही हो। तो मकोय के रस की 25 से 50 ग्राम की मात्रा लेते रहने से यह मिट जाऐंगी। इससे शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है और रक्त से जुड़े सभी रोग मिट जाते हैं।
उपरोक्त विवरण एक आम व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है कि मकोय कितनी उपयोगी और अमूल्य औषधि है। अत: हमने जयुपर स्थित हमारे निरोगधाम पर पिछले वर्ष से मकोय की 100 फीसदी शुद्ध आॅर्गेनिक खेती की शुरूआत की है। जिससे मकोय का शुद्ध पाउडर रोगियों को उपलब्ध करवाया जाता है। एक दुर्घटना का शिकार हो जाने के कारण पिछले साल तो हम मकोय का मात्र 5 किलो शुद्ध पाउडर ही उपलब्ध करवा पाये थे। इस वजह से अनेक रोगियों को पर्याप्त मात्रा में मकोय पाउडर उपलब्ध नहीं करवा सके। जिसका हमें खेद है। इस महने वर्ष मकोय की खेती बढा दी है। हमारा लक्ष्य है कि इस बार हम मकोय, श्योनाक, शरफुंका, पुनर्नवा, भूई आंवला आदि दर्जनों 100 फीसदी शुद्ध औषधियों के सहयोग से हम कम से कम 2000 ऐसे रोगियों को स्वस्थ कर सकेंगे, जिनको जीवन लीवर या लीवर सम्बन्धी बवासीर, अपच, कब्ज, भगंदर आदि बीमारियों ने परेशान किया हुआ है।
नोट: यहां पर मकोय के जितने भी चित्र दिये गये हैं। सभी हमारे निरोगधाम पर लहलहाती मकोय के हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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