*डेंगू एवं चिकनगुनिया का होम्योपैथिक तथा आयुर्वेदिक इलाज*
*सबसे महत्वपूर्ण बात:* इम्युनिटी/रोग प्रतिरोधक क्षमता अर्थात रोगों से लड़ने की शारीरिक क्षमता सही हो तो मौसमी तथा संक्रामक बीमारी आसानी से दबोच ही नहीं सकती। बेशक यह सच है कि इम्युनिटी एक-दो दिन में नहीं बढ़ सकती। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए नियमित रूप से पर्याप्त, पोषक और संतुलित भोजन करें, नशे तथा अखाद्य एवं असुपाच्य भोजन से बचें। मौसमी फल, हरी सब्जियां, दाल, दूध-दही आदि का भी खूब सेवन करते रहें। आपका लीवर हमेशा स्वस्थ रहे इसका विशेष रूप से ध्यान रखें।
इन दिनों वायरल फीवर के साथ-साथ डेंगू और चिकनगुनिया भी फैल रहा है। अत: इनसे बचाव और इनका उपचार जरूरी है। इस बारे में चिकित्सकीय परामर्श तो अनिवार्य है ही, लेकिन कुछ उपयोगी जानकारी प्रस्तुत है:-
*1. अपने आसपास गंदगी तथा गंदे पानी में मच्छरों को पनपने का मौका नहीं दें।*
*2. अभी तक डेंगू और चिकनगुनिया का कोई टीका नहीं है। अनुभव बताता है कि ऐलोपैथिक एंटीबायोटिक्स असरकारी नहीं होते हैं। अत: बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं करें।*
*3. रोगी को पर्याप्त आराम और सकारात्मक माहौल मिले तथा अधिक से अधिक मात्रा में सुपाच्य तरल आहार, नारियल पानी एवं ओआरएस का घोल आदि देना चाहिए।
*4. बॉडी पैन होने पर बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी प्रकार की दर्द निवारक गोली एस्प्रिन, ब्रूफेन या कॉम्बिफ्लेम को नहीं लेना चाहिए।*
*लक्षणानुसार होम्यापैथिक इलाज:* होम्योपैथी में किसी भी बीमारी की कोई फिक्स दवाई नहीं होती है। रोगी के लक्षणों के अनुसार और किसी भी होम्योपैथ के अनुभव के अनुसार दवाई दी जाती है। अत: *कोई भी दवाई देने से पहले रोगी के लक्षणों का मिलान और चिकित्सकीय परामर्श अवश्य कर लेना चाहिये।*
*1. यूपेटोरियम परफोलियेटम (Eupatorium Perfoliatum) 30:* रोग की प्रथम अवस्था में यूपेटोरियम पर्फ 30 को दिया जा सकता है। इसके लक्षण-मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू बुखार और इन्फ्लुएंजा आदि किसी भी बुखार में जब रोगी का हर अंग और प्रत्येक मांसपेशी दर्द करने लगती है। हर हड्डी और हर जोड़, खासकर हाथ की कलाई, ऐसा दर्द करने लगती है, मानो हड्डियां चूर-चूर हो गई हों, तब इस बुखार तथा दर्द को यह दवा दूर कर देती है। जिस किसी भी बुखार में *हड्डियां दर्द करने लगें उसमें यह औषधि रामबाण का काम करती है।*
*2. रस टॉक्स (Rhus Tox=Rhus Toxicodendron) 30:* किसी भी प्रकार के बुखार में इस औषधि का मुख्य प्रभाव मांसपेशियों, पुट्ठों पर होता है। मांसपेशियों के पुट्ठे अकड़ जाते हैं, दर्द करने लगते हैं। सामान्यत: आराम/विश्राम से दर्द घटा करता है, परन्तु इस औषधि का विलक्षण-लक्षण यह है कि दर्द विश्राम से बढ़ता और हरकत से घटता है। अत: रोगी लगातार हरकत किया करता है। इसके अलावा रोगी नमी या ठंडी नहीं सह सकता। रोगी वायु-मंडल के लगातार होने वाले परिवर्तनों को नहीं सह सकता है। आसमान में बादल आने पर एहतियातन वह गर्म कपड़ा ओढ़ लेता है। *थोड़ी-सी भी नम या हवा लगने से रोगी का दर्द उभर आते हैं।*
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:कृपया ध्यान दें:
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता हेतु प्रकाशित सामग्री को पढकर आप खुद अपना या अपने किसी स्वजन का उपचार करने का खतरा नहीं उठायें, क्योंकि रोगी के लक्षणों को जानने के बाद, उपयुक्त दवाई की शक्ति और मात्रा का निर्धारण, एक अनुभवी डॉक्टर ही कर सकता है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
हेल्थ वाट्सएप: 85-619-55-619
मोबाईल नम्बर: 98750-66111
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*3. पाइरोजिनियम (Pyrogenium) 30:* यह सभी बुखारों के लिये एक महान औषधि है। रोगी को बिस्तर कड़ा अनुभव होता है, रोगी बिस्तर पर पड़ा ऐसा अनुभव करता है मानो चट्टान पर पड़ा हो, तकिया भी बड़ा कड़ा प्रतीत होता है। रोगी को सिर्फ मांस-पेशियां ही नहीं, बल्कि उसकी हड्डियों में भी दर्द होता है। रोगी बेचैन रहता है, और यह बेचैनी ‘गर्मी’ और ‘हरकत’ से कम होती है। *रोगी के प्रत्येक स्राव से असहनीय दुर्गन्ध आती है।* पेशाब, ऋतु-स्राव, मैला-पानी, पसीना, सांस, मुंह-इन सब से अत्यंत बदबू आना। जब रोगी को बुखार अधिक हो तो पाइरोजिनियम 30 अवश्य दी जा सकती है।
*4. पल्साटिला (Pulsatilla) 30:* दर्द एक जोड़ से दूसरे जोड़ में चला जाता है, दर्द का लक्षण बदलता रहता है। दर्द में ठंड की झुरझुरी या सिहरन महसूस होती है। रोगी को सहानुभूति की चाहत होती है। यदि रोगी को *तेज बुखार होने पर भी प्यास नहीं लगती।* रोगी का मुंह खुश्क हो तो प्यास लगनी चाहिये, परन्तु इस रोगी के मुंह में खुश्क होने पर भी प्यास नहीं लगती। रोगी को ‘खुली हवा की इच्छा’ होती है और ‘चलने-फिरने से आराम’ का अनुभव होता है।
*5. ब्रायोलिया (Bryonia) 30:* यदि हरकत से दर्द की वृद्धि हो और विश्राम से दर्द में कमी हो तो ब्रायोलिया दी जा सकती है। यहां यह समझ लें कि दर्द होने पर हरकत से रोग बढ़ेगा, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, परन्तु हरकत से रोग बढ़ने का गूढ़ अर्थ है। अगर रोगी लेटा हुआ है, तो आंख खोलने या आवाज सुनने तक से रोगी कष्ट अनुभव करता है। जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटने से रोगी को आराम मिलता है। असल में, यह लक्षण ‘हरकत से रोग की वृद्धि’-इस लक्षण का ही दूसरा रूप है। जब दर्द का हिस्सा दब जाता है, तब उस अंग में हरकत बन्द हो जाती है तो रोगी को आराम मिलता है। यही नहीं रोगी ठंडी हवा पसन्द करता है, ठंडा कपड़ा ओढ़ना चाहता है, परन्तु दर्द में अपनी प्रकृति के विरुद्ध उसे सेंक/गर्मी से आराम मिलता है। इसके अलावा रोगी को खुश्की के कारण प्यास बहुत लगती है। यद्यपि *रोगी जल्दी-जल्दी नहीं, बल्कि देर-देर में अधिक मात्रा पानी पीता है।*
*6. केरिका पपाया (Carica Papaya) Q एवं टीनोस्पोरा (Tinospora) Q क्रमश: पपीते के पत्ते का रस एवं गिलोय का सत है जो कि प्लेटलेट्स काउंट को नियंत्रित करता है। इसे 15-15 बूंद एक कप पानी में मिलाकर दिन में दो बार दे सकते हैं।*
*7. अन्य:* उपरोक्त के अलावा रोगी के लक्षणों के अनुसार Phosphorus, Calcarea carb, Sulphur, Tuberculinum, Sepia, Arsenicum album, Natrium mur, Nux vomica, Lycopodium, Belladonna, Merc sol, Causticum, Lachesis, China, Ferrum met आदि में से किसी उपयुक्त दवाई का चुनाव किया जा सकता है। लेकिन प्रथम दवाई अर्थात *यूपेटोरियम परफोलियेटम (Eupatorium Perfoliatum) 30 को अवश्य साथ में चलने दें।*
*डेंगू और चिकनगुनिया की प्रतिषेधक दवाई:*
1. अनेक होम्योपैथ का अनुभव है कि यूपेटोरियम परफोलियेटम (Eupatorium Perfoliatum) 200 सप्ताह में एक बार और पाइरोजिनियम (Pyrogenium) 30 दिन में दो बार, जब तक परिवार के सभी सदस्यों को डेंगू का संक्रामक प्रकोप फैला हो, तब देते रहें। इससे सामान्य अवस्था में डेंगू और चिकनगुनिया से बचाव हो सकता है।
2. अनेक होम्योपैथ का यह भी अनुभव है कि ओसीमम सेक्टम (Ocimum Sanctum) Q तथा एजाडिरेक्टा इण्डिका (Azadirachta Indica) Q इन दोनों को आपस में मिलाकर प्रतिदिन सुबह या शाम, केवल एक मात्रा लेते रहने से इसके प्रभाव से मच्छर नहीं काटते हैं या काट भी लेते हैं तो शरीर में डेंगू के वायरस नहीं पनपते हैं।
*मेरा अनुभवसिद्ध चिकनगुनिया/डेंगू नाशक काढा*
1. नीम गिलोय की चार इंच लम्बी, 1/2 इंच मोटी डंडी।
(नीम चढी गिलोय नहीं मिले तो दो-तीन नीम के पत्ते मिला लें)
2. तुलसी के मध्यम आकार के पांच पत्ते।
3. काली मिर्च-तीन दाने।
4. मूंगफली के एक दाने के बराबर ताजा अदरक।
5. चार गुणा चार (4x4) इंच साइज का पपीता का ताजा और कोमल पत्ता।
>>>>>उक्त सभी को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें 100 मिलीलीटर शेष रहने पर रोगी को सुबह-शाम 5-7 दिन तक पिलायें। सुबह नाश्ते से 30 मिनट पहले और शाम को डिनर के 10 मिनट बाद।
>>>>> उपरोक्त के अलावा: नारियल पानी, अनार ज्यूस, सेव ज्यूस, शुद्ध पानी भी रोगी को पिलाते रहें।
*नोट:* अगर आप होम्योपैथिक या उक्त नुस्खे को रोगी को इलाज के तौर पर दे रहे हैं तो भी आप अपने एलोपैथिक डॉक्टर के इलाज को बंद न करें। उसके साथ ही इसे भी ले सकते हैं।
*नोट: किसी योग्य चिकित्सक की राय के बाद दवाईयों का सेवन करना चाहिये।*
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', आॅल लाईन स्वास्थ्य रक्षक सखा। परामर्श समय: सुबह 10 से सायं 10 बजे के बीच। हेल्थ परामर्श हेतु वाट्सएप नम्बर: 85-619-55-619 , 04.11.2017, Mobile: 9875066111
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