पाचनतंत्र एवं विचारतंत्र को ठीक किये बिना स्थायी स्वास्थ्य लाभ मुश्किल!
लेखक: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
वैज्ञानिक शोध एवं चिकित्सकों के क्लीनिकल अनुभव इस बात को प्रमाणित करते हैं कि संसार की आधी से अधिक आबादी पेट और दिमांगी समस्याओं से ग्रस्त है। जिसके कारण लोगों को अनेक प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां झेलनी पड़ रही हैं। एक प्रसिद्ध डॉक्टर का कहना है कि अधिकतर लोग जो भोजन करते हैं, उसमें से आधा अपने लिये तथा शेष आधा डॉक्टरों की रोजी रोटी चलाने के लिये खाते हैं। विश्व प्रसिद्ध लेखक और वकृत्वकला के गुरू डेल कॉरनेगी का कहना है कि जो लोग चिंता पर नियंत्राण नहीं कर पाते, वे ना-ना प्रकार की असाध्य बीमारियों को झेलते हुए अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
उपरोक्त पृष्ठभूमि में यह तथ्य भली-भांति और स्वत: स्पष्ट है कि हमारे शरीर में पाचनतंत्र को संचालित करने वाले लीवर और विचारतंत्र को संचालित करने वाले मस्तिष्क को सकारात्मक और, नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले हालात और कारण मनुष्य के स्वास्थ्य और बीमारी के मूलाधार होते हैं।
अस्पतालों में भर्ती 90 फीसदी रोगियों के पाचनतंत्र एवं विचारतंत्र में होने वाली उथल-पुथल एवं गड़बड़ियां जिम्मेदार होती हैं। शेष 10 फीसदी में से जो दुर्घटनाओं के परिणाम होते हैं, उनके पीछे भी विचारतंत्र जिम्मेदार होता है। बहुत कम ऐसे मामले होते हैं, जिनमें रोगी पाचनतंत्र एवं विचारतंत्र की भूमिका के बिना अस्पताल में भर्ती होता है।
अत: समझने वाली बात यह है कि शरीर में प्रत्यक्ष प्रकट बीमारियों का इलाज करवाने से पूर्व अपने पाचनतंत्र एवं विचारतंत्र का स्वयं अवलोकन करें और इस तरह की तकलीफों को छिपायें नहीं, बल्कि समस्त हालातों को अपने चिकित्सक को विस्तार से बतायें। अन्यथा किन्हीं अपवादों को छोड़कर पाचनतंत्र एवं विचारतंत्र को ठीक किये बिना स्थायी स्वास्थ्य लाभ बहुत मुश्किल है!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', HCF&MDC
(Health Care Friend and Marital Dispute Consultant)
स्वाथ्य रक्षक सखा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार
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Jaipur, Rajasthan, 04 दिसम्बर, 2017
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