लेखक: डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
स्वभाव सामान्यत: गर्म। स्वाद कड़वा, तीखा और ठंडा। पित्तकारक, लेकिन कफ तथा वात नाशक। वीर्य वर्धक। पेचिश नाशक। सभी प्रकार के चर्म रोगों में अत्यंत उपयोगी।
सितम्बर माह के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के पहले-दूसरे सप्ताह के दौरान अर्थात बरसात के मौसम की समाप्ति के बाद जैसे ही धूप निकलना शूरू हो तो हुलहुल के पौधे को जड़ से उखाड़ कर और छाया शुष्क करके इसका पंचांग बनाया जा सकता है। इसी प्रकार से हरे पत्ते और पकने पर फलियों को सुखाकर बीज संग्रहित किये जा सकते हैं। संग्रहित औषधि तत्वों को ठीक से सुखाकर सूखे और हवाबंद डब्बों में सुरक्षित किया जा सकता है।
इसके पत्तों को पीसकर पुल्टिस बना लें और गुदा द्वार अर्थात बवासीर पर चिपकाकर लंगोल बांध कर रखें। 4 से 7 दिन में बवासीर के बाहरी मस्से झड़कर ठीक हो जायेंगे।
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जड़ को धागे में बांधकर गर्भिणी के हाथ, सिर, कान या कमर में बांधने से प्रसव आसानी से हो जाता है, लेकिन याद रखकर प्रसव होने के तुरंत बाद इसे प्रसूता के शरीर से इसे हटा/खोल देना चाहिये। अन्यथा अनर्थ हो सकता है।
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उपदंश (सिफलिस-Syphilis):
एक पुरानी बैक्टीरिया संवाहक बीमारी, जो मुख्य रूप से यौन सम्बन्धों के दौरान संक्रमण से सम्पर्क में आती है, लेकिन विकासशील भ्रूण को संक्रमण से भी संयोग से भी हो सकती है। इस तकलीफ में हुलहुल की पत्तियों को पीसकर और पानी में घोलकर पीने से आराम मिलता है।
प्रमेह या सूजाक में पुरुषों की लिंग/मूत्रमार्ग या स्त्रियों की योनि/मूत्रमार्ग में सूजन होने के साथ—साथ पनीले, पीले या सफेद द्रव्य का स्राव होता है। इस तकलीफ में हुरहुर का सेवन जहां प्रमेह नाशक है, वहीं वीर्य/शक्ति एवं स्वास्थ्य वर्धक भी है। अत: इसके बीजों के पाउडर या पंचांग पाउडर का सेवन किया जा सकता है।
हाथ-पैरों में ऐंठन होने पर हुलहुल के 50 से 70 ग्राम ताजा पत्तों को पीसकर या 5 से 10 ग्राम शुद्ध पाउडर को कुछ दिनों तक पानी में मिलाकर पीने से हाथ-पैरों में ऐंठन वाला दर्द ठीक हो जाता है।
पत्तियों का रस कान दर्द से छुटकारा पाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। बहरेपन/कम सुनाई देने या कान से निकलने वाले पीबयुक्त/मवाद स्राव की तकलीफ से परेशान आस्ट्रेलियन आदिवासियों द्वारा इसके रस को तेल में उबालकर कान में डाला जाता है।
पेट की शिकायतों में बीज काढ़ा इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज आंतों के कीड़ों को मार देते हैं और वायुनाशक हैं। अफ्रीका एवं अमेरिका में हुलहुल को कृमिनाशक (पेट के कीड़े को दुर करने की दवा) के रूप में प्रयोग किया जाता है। बीज का ताजा पाउडर वयस्कोंं को 2000 से 4000 मिलीग्राम तथा अवयस्कों या बच्चों को 300 मिलीग्राम से 1300 मिलीग्राम तक सोते समय पानी के साथ पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। पेट दर्द का निदान होता है और पेट की अनेक तकलीफों में आराम मिलता है।
इसका काढा कब्ज का असरकारी इलाज है।
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पेट में मरोड़ के साथ दर्द होना और मरोड़ के साथ पेचिश/दस्त आना जिसमें आंव एवं रक्त का मिश्रण हो, तो कुछ दिन तक हुलहुल के पत्तों का काढा पीने जल्दी आराम मिल जाता है।
हुलहुल का काढा रेचक/दस्तावर होने के साथ-साथ भूख को बढ़ाने और पाचन शक्ति को मजबूत करने में भी सहायक है।
सिरदर्द की तकलीफ से परेशान लोगों द्वारा इसके पत्तों का पुल्टिस/लेप इस्तेमाल किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी सिरदर्द के उपचार के लिए इसकी पत्तियों का उपयोग करते हैं।
विटामिन सी की कमी के कारण दांतों में एक बीमारी होती है, जिसमें दांतों के मसूढों में सूजन और रक्तस्राव होता है। हुलहुल की जड़ों का उपयोग स्कर्वी रोधक/मसूड़ों से रक्तस्राव एवं सूजन रोधक सिद्ध हुआ है एवं यह इन तकलीफों के उपचार में सहायक/प्रोत्साहक के रूप में उपयुक्त पाया गया है।
श्रीलंका सहित अनेक देशों में इलुहुल को जड़ों और बीजों को हृदय को मजबूती प्रदान करने वाले प्रोत्साहक/उत्तेजक के रूप में उपयोग किया जाता रहा है।
हुलहुल के बीजों का उपयोग ठंड लगकर आने वाले बुखार, मलेरिया और बुखार के साथ दस्त की तकलीफ के उपचार लिए भी किया जाता है।
शिशुओं की पसली चलने के साथ में होने वाली बेहोशी और ऐंठन में इसके बीजों का उपयोग किया जाता है।
हुलहुल मूत्रवर्धक है।
पत्तों का रस।
सार (Abstract):
संक्षेप में कहा जाये तो नवीनतम शोधों के अनुसार हुरहुर के पौधे में मलेरिया बुखार, सिर दर्द, ओटिटिस मीडिया-[otitis media-मध्यकर्णशोथ], आंखों के घावों, अल्सर, स्कर्वी, संधिशोथ, त्वचा रोग, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग [gastrointestinal (जठरांत्र-relating to the stomach and the intestines-पेट और आंतों से संबंधित], डिस्प्सीसिया [dyspepsia-indigestion-अपच, अजीर्ण, बदहजमी], ब्रोंकाइटिस [bronchitis-श्वास नली का प्रदाह, श्वसनीशोध], जिगर की बीमारियों, गर्भाशय की शिकायतों और शिशुओं के आंतों के इलाज में उपयोगी माना जाता है।
- पत्ते: 2 ग्राम-पाचन क्रिया को सुधारते है।
- बीज: 2 ग्राम-आँतों के कीड़े नष्ट करते है।
- पत्तों का रस: 2 ग्राम-दमा मिटता है।
- जड़: कान में बाँधने से भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं होता।
यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है। वर्षा ऋतु में यह पुष्पित व फलित होता है तथा सड़कों के किनारे फुटपाथ पर आसानी से नजर आ जाता है।
पौधे की ऊँचाई लगभग 1 मीटर तक होती है पत्तियाँ 5 पालियों में बँटी होती है और रोमिल होती है पुष्प पीले रंग के होते हैं। पुंकेसर स्पष्ट व लम्बे होते हैं। फल, फली की तरह लम्बे, सम्पुटिका युक्त होते हैं।
यह उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है और जंगली अवस्था में प्राकृतिक रूप में उगता है। पौधे में विशिष्ट गन्ध होती है। इसमें क्लीओमिन और विस्कोसिन एल्केलाइड पाये जाते हैं।
पत्तियाँ खाने योग्य व पौष्टिक होती हैं। इनका स्वाद कड़वा होता है, इसलिये अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर आहार में शामिल की जा सकती हैं।
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