English : Prickly Chalf Flower
Botanical Name: Achyranthes Aspera
अपां दोषान् मार्जयति संशोधयति इति अपामार्गः । अर्थात् जो दोषों का संशोधन करे, उसे अपामार्ग कहते हैं।
- चर्म रोगों में इसके मूल को पीसकर प्रयुक्त करते हैं।
- इसके पत्रों का स्वरस दाँतों के दर्द में लाभ करता है तथा पुराने से पुरानी केविटी को भरने में मदद करता है।
- व्रणों विशेषकर दूषित व्रणों में इसका स्वरस मलहम के रूप में लगाते हैं।
- इसका बाह्य प्रयोग विशेष रूप से जहरीले जानवरों के काटे स्थान पर किया जाता है।
- कुत्ते के काटे स्थान पर तथा सर्पदंश-वृश्चिक दंश अन्य जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर ताजा स्वरस तुरन्त लगा देने से जहर उतर जाता है यह घरेलू ग्रामीण उपचार के रूप में प्रयुक्त एक सिद्ध प्रयोग है। काटे स्थान पर बाद में पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी बाँध देते हैं।
- व्रण दूषित नहीं हो पाता तथा विष के संस्थानिक प्रभाव भी नहीं होते। बर्र आदि के काटने पर भी अपामार्ग को कूटकर व पीसकर उस लुगदी का लेप करते हैं तो सूजन नहीं आती।
- शोथ वेदना युक्त विकारों में इसका लेप करते हैं अथवा पुल्टिस बनाकर सेकते हैं । वेदना मिटती है व धीरे-धीरे सूजन उतर जाता है।
संस्कृत | किणिही, मयूरक, खरमंजरी, अध:शल्य, मर्कटी, दुर्ग्रहा, शिखरी, अपामार्ग। |
हिंदी | चिरचिटा, चिचड़ा, ओंगा चिचरी, लटजीरा। |
मराठी | अघाड़ा, अघेड़ा। |
गुजराती | अघेड़ों। |
अरबी | चिचिरा अल्कुम। |
तैलगु | दुच्चीणिके। |
फारसी | खारेवाजगून |
बंगाली | अपांग। |
अंग्रेजी | प्रिकली चाफ फ्लावर। |
लैटिन | एचिरैन्थस ऐस्पेरा। |
सामान्य परिचय : अपामार्ग का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। यह गांवों में अधिक मिलता है। खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है। अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है। आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं। सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं। इसके अलावा फल चपटे होते हैं, जबकि लाल अपामार्ग का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।
इसे अत्यंत भूख लगने (भस्मक रोग), अधिक प्यास लगने, इन्द्रियों की निर्बलता और सन्तानहीनता को दूर करने वाला बताया है। इस पौधे से सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जन्तु के काटे हुए को ठीक किया जा सकता है।
और
दूसरी दवाओं वाले नुस्खों के साथ इसका उपयोग करने पर यह बहुत अच्छा काम करता है।
रविवार, 28 नवम्बर 2010
इसे अपामार्ग कहते हैं, कहीं -कहीं इसे अपामार्ग कहते हैं, कहीं -कहीं लटजीरा और चिरचिटा भी कहते हैं-
- अगर प्रेग्नेंट महिला को पेनलेस & नोर्मल डिलीवरी करानी है!
- अगर आपको अपना फैट ख़त्म करना है!
- अगर आपको सिर पे बाल उगाने हैं!
- अगर आपको अपना बाँझपन ख़त्म करना है!
अपामार्ग : एक दिव्य औषधि
डॉ. नवीन जोशी Sunday September 15, 2013
क्या आपने एक ऐसी औषधि के बारे में जाना है? जिसे दोषों का संशोधन करने वाली, भूख बढानेवाली एवं असाध्य रोगों को ठीक करने वाली औषधि के रूप में जाना जाता है और यह औषधि प्रायः सम्पूर्ण भारत में पायी जाती है नाम है "अपामार्ग " मयूरक, खरमंजरी, मर्कटी, शिखरी आदि नामों से प्रचलित यह वनस्पति समस्त भारत में पायी जाती है, इसके फूल हरे या गुलाबी कलियों से युक्त होते हैं तथा बीजों का आकार चावल क़ी तरह होता है! बाहर से देखने में इसका पौधा 1 से 3 फुट उंचा होता है, शाखाएं पतली, पत्ते अंडाकार एक से पांच इंच लम्बे होते हैं, फूल मंजरियों में पत्तों के बीच से निकलते हैं अपामार्ग क़ी क्षार का प्रयोग विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में बहुतायात से किया जाता है। अपामार्ग कफ़-वात शामक तथा कफ़-पित्त का संशोधन करने वाले गुणों से युक्त होता है। इसे रेचन, दीपन, पाचन, कृमिघ्न, रक्तशोधक, रक्तवर्धक, शोथहर, डायुरेटिक गुणों से युक्त माना जाता है।
आइये अब इसके कुछ औषधीय प्रयोगों क़ी चर्चा करें :-
- 1-सिरदर्द: यदि आप आधे सिर के दर्द से परेशान हों तो इसके बीजों के पाउडर को सूंघने मात्र से दर्द में आराम मिलता है।
- 2-साइनस : यदि साइनस में सूजन (साईनोसाईटीस) जैसी समस्या से आप परेशान हो रहे हों जिस कारण नाक हमेशा बंद रहती हो और सिर में अक्सर भारीपन बना रहता हो तो इसके चूर्ण को सूंघने मात्र से लाभ मिलता है।
- 3-दांत दर्द : दांतों के दर्द में इसके पत्तों का स्वरस रूई में लगाकर स्थानिक रुप से दांत पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
- 4-दातून : यदि अपामार्ग की ताज़ी जड़ का प्रयोग दातून के रूप में कराया जाय तो दांतों क़ी चमक बरकार रहेगी और दाँतों क़ी विभिन्न समस्याओं जैसे दाँतों का हिलना, मसूड़ों क़ी दुर्गन्ध एवं दाँतों के हिलने जैसे स्थितियों में लाभ मिलता है।
- 5-कान की तकलीफ : अपामार्ग क़ी जड़ को साफ़ से धो कर इसका रस निकालकर बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर आग में पकाकर, तेल शेष रहने पर छानकर किसी शीशी या बोतल में भरकर रख लें, हो गया ईयर ड्राप तैयार, अब इसे दो-दो बूँद कानों में डालने से कान के विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है।
- 6-बलगमयुक्त खांसी : अपामार्ग क़ी जड़ को बलगमयुक्त खांसी और दमे जैसी स्थितियों में चमत्कारिक रूप से प्रभावी पाया गया है।
- 7-बलगम/कफ निकालने के लिये: अपामार्ग क़ी क्षार क़ी 500 मिलीग्राम क़ी मात्रा में लेकर इसमें शहद मिलाकर सुबह शाम चाटने मात्र से कफ़उत्क्लेषित होकर बाहर आ जाता है, यह योग बच्चों में विशेष रूप से फायदेमंद होता है।
- 8-बलगम/कफ और खांसी: यदि आप बार-बार आनेवाली खांसी से परेशान हों या कफ़ बाहर निकलने में परेशानी हो रही हो तो कफ़ गाढा निकल रहा हो तो अपामार्ग के क्षार को 250 मिलीग्राम एव 250 मिलीग्राम मिश्री के साथ मिलाकर गुनगुने पानी से देने से काफी लाभ मिलता है।
- 9-सांस/दमा: यदि रोगी सांस (दमे) के कारण सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहा हो तो अपामार्ग क़ी जड़ का पाउडर पांच ग्राम, ढाई ग्राम काली मिर्च के पाउडर के साथ प्रातः सायं लेने से लाभ मिलता है।
- 10-बवासीर/पाईल्स: अपामार्ग के बीजों को पीस लें और प्राप्त चूर्ण को 2.5 ग्राम क़ी मात्रा में सुबह-शाम चावल को धोने के बाद शेष बचे पानी के साथ प्रातः सायं देने से खूनी बबासीर (ब्लीडिंग पाइल्स) में लाभ मिलता है।
- 11-बवासीर/पाईल्स: अपामार्ग क़ी पत्तियों को 5 क़ी संख्या में लेकर इसे काली मिर्च के पांच टुकड़ों के साथ पानी में पीसकर सुबह-शाम लेने से पाइल्स (अर्श) में लाभ मिलता है और इस कारण निकलने वाला खून भी बंद हो जाता है।
- 12-पेटदर्द: यदि रोगी पेट के दर्द से परेशान हो तो अपामार्ग की पंचांग को दस से पंद्रह ग्राम की मात्रा में लेकर इसे आधा लीटर पानी में पकाने के बाद चार भाग शेष रहे तो इसमें 250 मिलीग्राम नौसादर का पाउडर और लगभग 2.5 ग्राम काली मिर्च पाउडर मिलाकर दिन में दो बार सात से दस दिन तक लगातार देने से लाभ मिलता है।
- 13-भूख बढाने के लिये: यदि आप भूख न लगने जैसी समस्या से परेशान हों तो घबराएं नहीं बस अपामार्ग की पंचांग (जड़, तने, पत्ती, फूल एवं फल) का क्वाथ बनाकर इसे बीस से पच्चीस मिली की मात्रा में खाली पेट सेवन करें तो इससे पाचक रसों की वृद्धि होकर भूख लगने लगती है तथा हायपरएसिडिटी में भी लाभ मिलता है।
- 14-गर्भ धारण: स्त्रियों में अनियमित मासिक चक्र, अधिक रक्तस्राव आदि कारणों से गर्भ धारण में हो रही समस्या में भी अपामार्ग अत्यंत ही लाभकारी औषधि के रूप में जानी जाती है ..बस इसके बीजों के पाउडर को पांच से दस ग्राम की मात्रा में या इसकी जड़ को साफ कर सुखाकर बनाए गए पाउडर को पांच से दस ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ पिलाने से लाभ मिलता है!
- 15-आसान प्रसव: अपामार्ग, वासा, पाठा, कनेर इनमें से किसी एक औषधि की जड़ को स्त्री की नाभि, मूत्र प्रदेश या योनि के आसपास लेपन करने मात्र से सुख-प्रसव होना विदित है...!
- 16-योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट: अपामार्ग की जड़ को पीसकर योनि के आसपास रुई में मिलाकर योनि में रखने मात्र से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावर दूर होती है।
- 17-जोड़ों की सूजन: जोड़ों की सूजन में इसके ताजे पत्तों को पीसकर लेप करने मात्र से सूजन घटने लग जाती है।
- 18-बुखार: अपामार्ग की ताज़ी पत्तियों को आठ से दस की संख्या में लेकर काली मिर्च के पांच से आठ टुकड़े एवं तीन से पांच ग्राम लहसुन के साथ एक साथ पीसकर गोली बनाकर एक गोली बुखार आने से पूर्व सेवन करने पर यह ज्वर मुक्त करने में मदद करता है।
- 19-एंटीवाइरल: हल्दी के साथ अपामार्ग की जड़ का प्रयोग बराबर मात्रा में नियमित रूप से करने पर एंटीवाइरल प्रभाव प्राप्त होता है।
- आंखों के रोग :-आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है। धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।"
- खांसी :- अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है।
- कफ और खांसी : अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है। खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम *अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।
- श्वास रोग : श्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।
- विसूचिका (हैजा) : अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है। अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं। कंजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।"
- बवासीर : अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है। अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है। पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं। अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है। अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।"
- उदर विकार (पेट के रोग) : अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है। पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।"
- भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना): भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है। अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर, तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।"
- वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) और पथरी : अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।
- योनि में दर्द होने पर : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई को भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
- गर्भधारण करने के लिए : अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें। अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।"
- रक्तप्रदर : अपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरी दूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है।
- रक्त प्रदर : 10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।"
- व्रण (घावों) पर : घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।
- संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) : जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।
- बुखार : अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।
- श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) : जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।
- दमा या श्वास रोग : अपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है।
- कफ : अपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है।
- कफ : अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
- श्वास रोग : चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है। अपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो, जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक किलो पानी में भरकर पकाते हैं। पांच किलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास, दमा रोग नष्ट हो जाता है।
- दांतों में कीड़े लगना : चिरमिटी की जड़ को कान पर बांधने से दांतों में लगे कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
- आंखों के रोग : चिरमिटी को पानी में उबालकर, उसका पानी पलकों पर लगाने से आंखों की सूजन, आंखों की जलन, अभिष्यन्द और पलकों पर होने वाली मवाद आदि रोग दूर हो जाते हैं।
- रतौंधी (रात में दिखाई न देना) : 10 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को शाम के समय भोजन करने के बाद रोजाना चबाकर सो जाने से 2 से 4 दिनों के बाद ही रतौंधी रोग समाप्त हो जाता है।
- रतौंधी : अपामार्ग (चिरचिटा ) की जड़ को छाया में सुखाकर और फिर उसका चूर्ण बनाकर 5 ग्राम चूर्ण रात को पानी के साथ खाने से 4-5 दिन में रतौंधी रोग में आराम आने लगता है।
- रतौंधी : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को गाय के पेशाब में घिसकर आंखों में लगाएं।
- गर्भनिरोध : अपामार्ग की जड़ को स्त्री की योनि में बत्ती बनाकर रखने से स्थिर गर्भ भी नष्ट हो जाता है।
- मुंह का रोग : अपामार्ग की जड़ का काढ़ा बनाकर इसमें सेंधानमक मिलाकर कुल्ला करने से गले, मुंह का दाना व होंठों का फटना बंद हो जाता है।
- मूत्ररोग : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ 5 ग्राम से 10 ग्राम या काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम को मुलेठी और गोखरू के साथ सुबह-शाम लेने से पेशाब की जलन और सूजन दूर होती है।
- कष्टार्तव (मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना) : अपामार्ग की जड़ 10 ग्राम, कपास के फूल 10 ग्राम, गाजर के बीज 10 ग्राम को 250 ग्राम जल में उबालें। जब 20 ग्राम के लगभग जल शेष रह जाए तो इसे छानकर रात्रि के समय पिलाने से सुबह ऋतुस्राव (माहवारी) बिना दर्द के होता है|
- मृत्वत्सा दोष (गर्भ में बच्चे का मर जाना) : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ के साथ लक्ष्मण बूटी की जड़ को, एक रंग वाली गाय (जिस गाय के बछड़े न मरते हो) के दूध में पीसकर खाने से पुत्र की आयु बढ़ती है तथा गर्भ में बच्चे की मृत्यु नहीं होती है।
- पथरी : 2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पानी के साथ पीस लें। इसे प्रतिदिन पानी के साथ सुबह-शाम पीने से पथरी रोग ठीक होता है।
- जलोदर (पेट में पानी का भरना) : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 से 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा बनाकर 15 ग्राम से लेकर 50 ग्राम को मुलेठी और गोखरू के साथ रोज दिन में सुबह और शाम खुराक के रूप में लेने से पेशाब की अम्लता कम हो जाती है और जलोदर में लाभ होता है।
- यकृत का बढ़ना : अपामार्ग का क्षार मठ्ठे के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।
- पेट का बढ़ा होना : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले पीने से आमाशय का ढीलापन में कमी आकर पेट का आकार कम हो जाता है।
- पित्त की पथरी में : पित्त की पथरी में चिरचिटा की जड़ आधा से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से पूरा लाभ होता है। काढ़ा अगर गर्म-गर्म ही खायें तो लाभ होगा।
- नाक के रोग/नकसीर : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर नाक से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाता है।
- गुल्म (वायु का गोला) : अपामार्ग की जड़, स्याह मिर्च पीसकर घी के साथ प्रयोग कर सकते हैं।
- योनि का दर्द : 5 ग्राम अपामार्ग की जड़ और 5 ग्राम पुनर्नवा की जड़ को लेकर बारीक पीसकर योनि पर लेप करने से योनि (भग) के दर्द से छुटकारा मिलता है।
- पेट में दर्द होने पर : चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को 5 ग्राम से 10 ग्राम या इसी का काढ़ा बनाकर 15 ग्राम से 50 ग्राम को कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले सुबह और शाम पिलाने से भोजन के न पचने के कारण होने वाले पेट का दर्द मिटता है और खाना खाने के बाद पीने से अम्लदोष में आराम होगा।
- गठिया रोग : अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्ते को पीसकर, गर्म करके गठिया में बांधने से दर्द व सूजन दूर होती है।
- कण्ठमाला के लिए : अपामार्ग की जड़ की राख को खाने और गांठों पर लगाने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) समाप्त हो जाता है।
अपामार्ग (चिचड़ी) के प्रयोग
- "विष पर : *जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है।
- *इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है
- *ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दंश पर इसके पत्ते का रस लगा देने से
- जहर उतर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध देते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है"
- दांतों का दर्द :- अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वाले तेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है। अपामार्ग के फूलों की मंजरी/बायल को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। पत्तों के रस को दांतों के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातुन करने से भी दांत मजबूत होते हैं एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है। इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभपहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा को भरने में मदद करता है। अपामार्ग की ताजी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। इससे दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
- प्रसव सुगमता से होना : प्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए, अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेड़ू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें। चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योनि में रखने से बच्चा आसानी से पैदा होता है। पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ के तैयार लेप को नाभि,नाभि के नीचे के हिस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है,परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए। अपामार्ग की जड़ तथा कलिहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। फिर स्त्री की कमर से पोटली को बांध दें। प्रसव आसानी से हो जाता है।"
- स्वप्नदोष : अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें। 1चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।
- मुंह के छाले : अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।
- शीघ्रपतन : अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2 चम्मचकी मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।
- संतान प्राप्ति के लिए : अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
- मोटापा : अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।
- कमजोरी : अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।
- सिर में दर्द : अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।
- मलेरिया से बचाव : अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।
- गंजापन : सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।
- खुजली : अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।
- आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) : इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।
- बहरापन : अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल को मिलाकर आग में पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूंद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापन दूर होता है।
- आंखों के रोग : आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है। धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।"
- खांसी : अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है। अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है। खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो,इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम *अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है। श्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।
- विसूचिका (हैजा) : अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है। अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं। कंजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समानमात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।"
- बवासीर : अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है। अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवनकरने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है। पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल केधोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं। अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है। अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।"
- उदर विकार (पेट के रोग) : अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है। पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल,फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।"
- भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) : भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है. अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर,तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।"
- वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) : अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।
- योनि में दर्द होने पर : अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई कोभिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
- गर्भधारण करने के लिए : अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें। अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य होजाती है।"
- रक्तप्रदर : अपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरी दूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है। 10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।"
- व्रण (घावों) पर : घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।
- संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) : जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।
- बुखार : अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।
- श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) : जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग(चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।
- दमा या श्वास रोग : अपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है। अपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है। अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है। चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
- अपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो,जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक किलो पानी में भरकर पकाते हैं। पांच किलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास, दमा रोग नष्ट हो जाता है।
अपामार्ग को कई नामों से जाना जाता है जैसे की चिरचिटा, लटजीरा, प्रिकली चाफ फ्लावर आदि। अपामार्ग का पौधा, अक्सर अपने मार्ग में आने वाले लोगों के लिए बाधा करता है, इसके बीज कपड़ों पर अच्छे से चिपक से जाते है, और इसलिए शायद इसे अपामार्ग नाम मिला है। इसके पौधे मयूर या मोर की तरह सीधे खड़े हुए दिखाई देते है तथा यह पौधा मयूर, मयूरका कहलाता है।
बारिश के मौसम यह प्राकृतिक रूप से हर जगह उगता पाया जाता है। आयुर्वेद में अपामार्ग के पूरे सूखे पौधे को औषधीय प्रयोजनों लिए हजारों वर्षों से प्रयोग किया जाता रहा है। अपामार्ग में काफी मात्रा में क्षार पाया जाता है इसलिए इसका प्रयोग अपामार्ग क्षार Apamarga Kshara और अपामार्ग क्षार तेल Apamarga Kshara Taila बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
अपामार्ग स्वाद में कड़वा, चरपरा, और तासीर में गर्म hot होता है। इसे खांसी, अस्थमा, बढ़े हुए प्लीहा, मलेरिया, माहवारी में दर्द, दांत दर्द, आदि के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह कफनाशक expectorant, रक्तशोधक blood purifying, रुचिकारक appetizer, विरेचक laxative और मूत्रल diuretic है।
अपामार्ग को मधुमेह diabetes, काली खांसी whooping cough के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पूरे पौधे से बने काढ़े को विरेचक laxative के रूप में प्रयोग किया जाता है और बाह्य रूप से और फोड़े boils और मुंहासों pimples पर लगाया जाता है।
दवा Cystone में अपामार्ग का प्रयोग किया जाता है जो की शरीर में स्टोन बनाने वाले पदार्थों जैसे की oxalic एसिड, कैल्शियम हाइड्रॉक्सीप्रोलाइन आदि को बनने से रोकता है और मूत्र मार्ग में संक्रमण से भी बचाता है। अपामार्ग से बनने वाले दवा के करीब पैंतीस पेटेंट है जो की अस्थमा, गले की सूजन और श्वशन संक्रमण के लिए हैं।
★ सामान्य जानकारी General Information
अपामार्ग का पौधा कड़ा stiff, सीधा straight, 0.3-0.9 मीटर की उंचाई का होता है। भारत में यह 900 मीटर की उंचाई तक एक खरपतवार की तरह हर जगह पाया जाता है। इसकी पत्ती लम्बी, और नूकदार होती हैं। यह दो प्रकार का होता है लाल और सफ़ेद।
वानस्पतिक नाम: अकाईरंथेस अस्पेरा Achyranthes aspera
कुल (Family): एमरेनथेसिएई Amaranthaceae/goosefoot family
औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
पौधे का प्रकार: खरपतवार, छोटा झाड़
वितरण: पूरे भारत में 900 मीटर की उंचाई तक।
पर्यावास: सूखी ज़मीन
Vernacular names/Synonyms of Apamarga
Sanskrit: Mayura, Mayuraka, Pratyakpushpa, Kharamanjar मयूर, मयूरका, प्रत्याकपुष्पा, खरमंजर
Unani: Chirchita चिरचिटा
Siddha/Tamil: Nayuruvi
Folk: Chirchitta, Chichidaa, Latjeera
Bengali: Apamg
English: Prickly Chaff Flower प्रिकली चाफ फ्लावर
Gujrati: Aghedo अघेड़ो
Hindi: Chirchita, Latjira चिरचिटा, लटजीरा
Kannada: Uttarani
Malayalam: Katalati
Marathi: Aghada
Punjabi: Puthakanda
Tamil: Nayuruvi
Telugu: Uttarenu
Urdu: Chirchita चिरचिटा
Constituents of Apamarga – सपोनिंस Saponins
Ayurvedic Properties and Action of Apamarga
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
गुण (Pharmacological Action): सार, तीक्ष्ण
वीर्य (Potency): उष्ण
विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म: दीपन (promote appetite but do not aid in digesting undigested food), पाचन (assist in digesting undigested food food, but do not increase the appetite), कफ-हर, वात-हर, मेदोहर, छेदन (discharge from the body adherent phlegm or other humours), वमक (emesis of bile, mucus and other contents of the stomach), शिरोविरेचन
★ Home remedies Using Apamarga/Medicinal Use of Apamarga in Hindi
अपामार्ग में विरेचक laxative, मूत्रवर्धक diuretic और आल्टरेटिव alterative (पूरे शरीर के अंगों का फंक्शन नार्मल करना, जैसे की खून साफ़ करना, भूख बढ़ाना, पाचन और विरेचन कराना आदि) गुण हैं। बड़ी मात्रा में इसका सेवन वमनकारी (उल्टी लाने वाला) emetic है। लेकिन कम मात्रा में यह कफ ढीला करने वाला है।
आल्टरेटिव होने के कारण इसे रक्त शोधक के रूप में प्रयोग किया जाता है
अपामार्ग का पाउडर शहद के साथ जलोदर dropsy, ascites की स्थिति में लिया, ग्रंथियों वृद्धि और त्वचा संबंधी विकारों में प्रयोग किया जाता है। बाह्य रूप से अपामार्ग का प्रयोग कुत्ता काटने, सांप के काटने, आदि के मामलों में प्रयोग किया जाता है।
• प्रसव पीड़ा labor pain
भयंकर पीड़ा होने पर जब प्रसव में विलम्ब हो रहा है तो इसकी जड़ को पीसकर पेडू पर लेप करने से प्रसव शीघ्र हो जाता है।
• आधाशीशी migraine, दिमाग के रोग, पीनस, नाक, माथे में अधिक कफ
बीजों का चूर्ण बनाकर सूंघने से कफ ढीला हो कर निकलने में मदद मिलती है।
• कीड़ों का काटना, बिच्छू काटना, सोरिसिस
पत्तों का पेस्ट प्रभावित हिस्सों पर लगाएं।
• पथरी
ताज़ी जड़ (6 ग्राम) की मात्रा में पानी में घोंटकर दी जाती है।
• यक्ष्मा Tuberculosis
पौधे का पाउडर (5 ग्राम) + शहद, का प्रयोग किया जाता है।
• दांत दर्द Toothache
दांत पर ताजा पत्तों को रगड़, मालिश करें।
ताज़ा जड़ों से दांत साफ करें।
• हैज़ा cholera
1 चाय के चम्मच में भरकर रूट पाउडर का सेवन हैजे में लाभ करता है।
• खुजली Scabies
रूट पाउडर + एक चुटकी नमक को बाह्य रूप से प्रभावित अंग पर लगाएं।
• बुखार Fever
रूट पाउडर (5 ग्राम) + आधा काली मिर्च को खाने से आराम मिलता है।
• बवासीर Hemorrhoids
रूट पाउडर (5 ग्राम), खाली पेट लें।
पत्तों का पेस्ट, तिल तेल में मिलाकर प्रभावित हिस्से पर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
• दमा Asthma
करंज पत्तों + वासा के पत्ते + अपामार्ग जड़ + कंटकारी, से बना काढा २ चम्मच लिया जाता है।
• फोड़ा Abscess
बाह्य रूप से जड़ का पेस्ट लगाएं।
• विसूचिका Visuchika (Gastro-enteritis with piercing pain)
रूट पाउडर (3-6 ग्राम) दिन में तीन बार लें।
• रक्त-बवासीर
बवासीर में बीजों का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।
• घाव
घाव पर पत्तों का एस लगाने से उन्हें भरने में मदद मिलती है।
कान का बहरापन, कान में आवाज़ पाना, काने से पानी बहना, • कान में दर्द
कान के विकार होने पर, अपामार्ग क्षार का तिल में बना तेल जो की मार्किट में ‘अपामार्ग क्षार तेल’ के नाम से जाना जाता है, 2-6 बूँद की मात्रा में कान में डालना चाहिए।
• नकसीर, नाक से खून
अपामार्ग क्षार तेल की कुछ बूंदे नाक में डालें।
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कृपया अपने चिकित्सक के परामर्श के बिना, सुझाई गयी (किसी भी प्रकार की) दवा का सेवन नहीं करें।
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