वात रोग
मनुष्य के शरीर का ढांचा मांसपेशियों, हड्डियों, एवं जोड़ों से बना है| वात रोग इन्ही जोड़ों का रोग है | वात के अंतर्गत कई प्रकार के रोग आते हैं | रोग की प्रकृति एवं लक्षणों के आधार पर वात रोगों के विभिन्न नाम दिए गए हैं | आधुनिक चिकित्सा पद्धति इसे असाध्य रोगों की श्रेणी में रखती है | इसके 100 से भी अधिक प्रकारों को अब तक खोजा जा चुका है| इन रोगों के लक्षण भले ही भिन्न हों, परन्तु कारण एक ही होता है–वह है शरीर में विजातीय द्रव्यों [विष] का एकत्र होना |
जोड़ों मांसपेशियों में सुजन, दर्द, जकड़न के साथ-साथ शरीर का तापमान बढ़ना इस रोग का प्रधान लक्षण है |

इन्ही रोगों में मुख्यतः संधिवात [ Rheumotoid Arthritis ] पेशिवात [Muscular Rheumotoid] और अस्थिजरा [Ostio Arthritis] आदि है |
अप्राकृतिक आहार-विहार और विचार के फलस्वरूप मल निष्कासक अंगों पर अतिरिक्त कार्य पड़ने के कारण वे अंग पूरी तरह से मल [विजातीय द्रव्य] को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाते, जिससे रक्त संचालन की अस्तव्यस्तता एवं रक्त की विषाक्तता बढ़ जाती है एवं रक्त का क्षारत्व घटने लगता है| रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है| यूरिक एसिड के क्रिश्टल जोड़ों में एकत्र होकर वहां दर्द, सूजन आदि उत्पन्न कर देते हैं| यह स्थिति संधिवात [Rheumotoid Arthritis] होती है| उक्त विजातीय द्रव्य का दुष्प्रभाव जब तंतुओं पर पड़ता है तो पेशीजरा एवं इसका आक्रमण हड्डियों पर होने लगता है तो अस्थियों में Degeneration की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| इस स्थिति को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अस्थिजरा [Ostio Arthritis] की संज्ञा देता है |
इस प्रकार यदि देखा जाये तो वातरोग [Rheumatism] किसी अंग विशेष का रोग न होकर सम्पूर्ण शरीर का रोग है|
लक्षण :
- हड्डियों के जोड़ों में सूजन के साथ बुखार आना|
- एक या एक से अधिक जोड़ों में कडापन, सूजन, दर्द होना|
- कभी-कभी केवल घुटनों में दर्द/ सूजन होना|
- रक्त में एसिड एवं कैल्शियम तत्वों की अधिकता हो जाना |
- संधिवात में जोड़ों में दर्द, सूजन के साथ ही जोड़ सख्त पड़ जाते हैं, जिससे विकलांगता भी उत्पन्न हो जाती है|
- पेशिवात में कोई अंग कुचल जाने जैसा दर्द होता है|
- गठिया की शुरुआत में पैर के अंगूठों में दर्द के साथ घुटनों, कुहनियों एवं कानों के बाहरी भाग में दर्द एवं सूजन के साथ सर्दी के साथ बुखार भी आ सकता है|
- आस्टियो arthritis में जोड़ों के सिरे मिलने पर आवाज होना एवं जोड़ों के साथ नयी हड्डी पनपना|
- कभी-कभी हाँथ – पैर की अँगुलियों में चुभन एवं भुरभुरापन होना|
चिकित्सा : यह एक जीर्ण रोग है, परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा से इससे मुक्ति पाई जा सकती है| अच्छा तो यह होगा कि किसी प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर चिकित्सा ली जाये यदि ऐसा संभव नहीं है तो घर पर निम्न चिकित्सा की जा सकती है|
प्रातः
धीरे-धीरे टहलना, योगाभ्यास, प्राणायाम एवं जोड़ों के व्यायाम लाभकारी हैं|
रोगग्रस्त जोड़ों पर गरम ठंडा सेंक|
गरम पैर स्नान 10-20 मिनट|
रोगग्रस्त जोड़ों पर स्थानीय भाप देकर पट्टी लपेट 45 मिनट|
सायंकाल :
रोगग्रस्त जोड़ों पर गरम ठंडा सेंक|
इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार एनिमा, सप्ताह में एक बार सम्पूर्ण शरीर की "गीली चादर लपेट", धूप स्नान, भाप स्नान भी लेना चाहिए| इनकी घरेलु विधियों हेतु आपको यदि कोई असुविधा हो तो कभी भी मोबाइल न. 9760897937 पर हमसे संपर्क कर सकते हैं |
योग चिकित्सा :
सूक्षम व्यायाम : जोड़ों से सम्बंधित व्यायाम|
प्राणायाम : अनुलोम-विलोम, सूर्यभेदी, भस्त्रिका|
आहार चिकित्सा :
प्रातः खाली पेट–शाम की भीगी हुयी मेथी का पानी|
अल्पाहार–अंकुरित मूंग+मेथी अथवा कोई भी मौसमी फल या फलों का रस|
दोपहर भोजन–उबली हरी सब्जियां + मोटे चोकर समेत आंटे की रोटी + सलाद|
अपराह्न 3-4 बजे–सब्जियों का सूप 250 मिली.
रात्रि भोजन–उबली हरी सब्जियां+मोटे चोकर समेत आंटे की रोटी या दलिया+ सब्जी|
डॉ. कैलाश द्विवेदी
चिकित्साधिकारी
निःसर्ग प्राकृतिक चिकित्सा एवं अनुसन्धान केंद्र
वात्सल्य ग्राम, वृन्दावन
मोबाइल:- ९७६०८९७९३७
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