( अंकुरित भोजन को इसे पूर्व पचित भोजन भी कहते हैं।)
परिचय : अंकुरित भोजन शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक संतुलन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अंकुरित भोजन केवल भोजन नहीं रहता, बल्कि उसमें ‘वेतासार ग्लूकोज एवं प्रोटीन एमिनों एसिड में बदलकर पचाने के साथ स्वास्थ्य एवं शक्ति बढ़ाने के गुण पैदा हो जाते हैं। इसलिए इसे पूर्व पचित भोजन भी कहते हैं।
[दाम्पत्य सुख को समझने और भोगने के इच्छुक हर एक स्त्री और पुरुष को पढने योग्य अति महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी प्रदान करने वाला एक पढने योग्य आलेख!-"अतृप्त दाम्पत्य कारण एवं निवारण!" ]
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
अंकुरित भोजन भूख बढ़ाने वाला, शरीर के जहरीले तत्व निकालने वाला मूत्रर्वधक होता है। अंकुरित भोजन आपको फिर से जवान बनाने वाला भोजन है, जो मनुष्य को सुन्दर स्वस्थ और रोग से छुटकारा दिलाता है। अंकुरित भोजन शरीर को ऊर्जा देने का अच्छा स्रोत है। यह जल्द और आसानी से शरीर द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।
लाभकारी :
- अंकुरित भोजन कुपोषण को दूर करता है।
- अंकुरित भोजन पेट में से गैस व कब्ज को दूर करता है।
- अंकुरित भोजन रोगों को ठीक करने वाला होता है।
जानकारी : मंहगे फल और सब्जियों की जगह अंकुरित भोजन ले सकते हैं। यह सस्ता, सरल और बनाने में आसान है। इसलिए यह सभी के बजट के अनूकूल होता है। अंकुरित भोजन व्यक्ति को नया जीवन देने वाला होता है और इसमें कोई मिलावट भी नहीं होती है।
अंकुरित किये जाने वाले खाद्य-पदार्थ : गेंहू, मूंग, मोठ, सोयाबीन, मूंगफली, मक्का, तिल, चना, अल्फाल्फा, अन्न, दालें और बीज आदि अंकुरित किये जा सकते हैं।
अंकुरित करने की विधि : सूखे अनाज व दाल आदि जिसे भी अंकुरित करना हो उसे धोकर एक पानी से भरे बर्तन में भिगो दें, फिर 12 घंटे बाद पानी से निकालकर कपडे़ आदि में ऐसे रखें कि उन्हे नमी और हवा मिलती रहे। इसके 12 से 30 घंटे के बीच अंकुर फूटनी चालू हो जाती है।
अब आपका अंकुरित भोजन तैयार हो गया है। इस स्थित में इसे धो लें और इसका प्रयोग करें।
अंकुरित भोजन को कैसे खायें :
अंकुरित भोजन को कच्चा, अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग करने से लाभ होता है।
एक दलीय : एक दलीय अंकुरित (गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर, किशमिश, मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा सकते हैं।
द्विदलीय : द्विदलीय अंकुरित (चना, मूंग, मोठ, मटर, मूंगफली, सोयाबीन, आदि) के साथ टमाटर, गाजर, खीरा, ककड़ी, शिमला मिर्च, हरे पत्ते (पालक, पुदीना, धनिया, बथुआ, आदि) और सलाद, नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है।
बच्चे व बूढ़े के लिए अंकुरित भोजन के मिश्रण को पीसकर लपसी जैसा बना लें और धीरे धीरे चटायें या पिलायें।
अंकुरित भोजन को कच्चा ही खायें, क्योंकि पकाकर खाने से इसके पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुण में कमी आ जाती है।
नाश्ते के लिये अंकुरित भोजन : अंकुरित भोजन शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसे फल के साथ खाने से ज्यादा लाभ होता है। अगर फल न हो तो केवल अंकुरित भोजन ही खायें। अंकुरित भोजन केवल भिगोये हुए दाने से कहीं ज्यादा लाभदायक होता है, क्योंकि इसमें अंकुरण के समय शरीर के लिए लाभदायक तत्व पैदा हो जाते हैं। दोनों के अन्दर एन्जाइम में भी बदलाव होते हैं। ये एन्जाइम दाने के अन्दर प्रोटीन को अमीनो अम्ल में और कार्बोहाइड्रेट को साधारण शक्कर में बदल देता है। ऐसे ही वसा पदार्थ को भी छोटे-छोटे भागों में बांट दिया जाता है। इसके अलावा विटामिन आदि का निर्माण भी इसी समय होता है और खासकर विटामिन `ए´, `ई´, और `के´, की मात्रा इस समय भरपूर मात्रा में पायी जाती है।
विटामिन `के´ खून का थक्का बनाने में मदद करता है और इसके साथ यह जिगर के पूरे कार्य प्रणाली के लिये जरूरी होता है। अंकुरित होने वाले भोजन में काले चने, मटर, मसूर, मूंग, गेंहू, सोयाबीन और मूंगफली मुख्य रूप में होते हैं।
जानकारी : अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करते हैं। इन अंकुरित दानों को कच्चा ही खाया जाता है। इनमें 2 या 3 प्रकार के अंकुरित दाने मिला सकते हैं। यदि आपको ये अंकुरित दाने कच्चे खाने में अच्छे नहीं लगते हैं, तो आप इन्हें हल्का सा पका सकते हैं। फिर इसमें कटे हुए प्याज, कटे छोटे टमाटर के टुकड़े, बारीक कटी हुई मिर्च, बारीक कटा हुई धनियां एक साथ मिलाकर, उसमें नींबू का रस मिलाकर खाने से अच्छा स्वाद मिलता है।
अंकुरित भोजन : वर्तमान की जरूरत
(सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए।)
अंकुरण से भोज्य पदार्थ के पोषक तत्वों में बढ़ोतरी नैसर्गिक रूप से होती है, इसलिए इनकी पाचनशीलता बढ़ाते हुए इनके सेवन से किसी हानिकारक परिणाम की कोई गुंजाइश नहीं रहती है।
अनाज में गेहूँ, ज्वार, बाजरा, साबुत दालों में मूँग, मोठ, चवला, काला चना, काबुली चना, सोयाबीन आदि को आसानी से अंकुरित कर इनसे विभिन्न स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन बनाए जा सकते हैं।
अंकुरण से खाद्यान्नों को अधिक पौष्टिक व सुपाच्य बनाने के अलावा और भी कई फायदे हैं, जो अच्छे पोषण की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।
ख़ड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें मौजूद अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है। इन बीजों के अंकुरित होने पर यही मात्रा लगभग दस गुना हो जाती है।
अंकुरण की प्रक्रिया से 'विटामिन बी कॉम्प्लेक्स' खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी1, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी2 व नायसिन की मात्रा भी दोगुनी हो जाती है। इसके अलावा शाकाहार में पाए जाने वाले 'केरोटीन' नामक पदार्थ, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है, की भी मात्रा बढ़ जाती है।
विटामिन ए आँखों व त्वचा के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं, अंकुरीकरण से अनाजों में मौजूद लौहतत्व का शरीर में अवशोषण बढ़ जाता है। लौहतत्व खून में हिमोग्लोबीन के निर्माण के लिए निहायत जरूरी है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों से कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है। इसी कारण अंकुरित अनाज बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अच्छा अंकुरण कैसे करें?
* एकदम सही अंकुरीकरण के लिए अनाज/साबुत दालों को कम से कम आठ घंटे इतने पानी में भिगोना चाहिए कि वह सारा पानी सोख लें व दाना फूल जाए। इन फूले हुए दानों को किसी नरम, पतले सूती कपड़े में बांधकर पोटली बना लेना चाहिए। इस पोटली को ढंककर गरम स्थान में रखना चाहिए। पोटली को थोड़े-थोड़े समय बाद गीला करते रहें।
* 12 से 24 घंटे में अच्छे अंकुर निकल आते हैं। वैसे अंकुरित किए हुए मूँग, मोठ आदि बाजार में भी उपलब्ध होते हैं, किन्तु इनकी गुणवत्ता की जानकारी अवश्य होना चाहिए। यदि दूषित जल के प्रयोग से अंकुरण हुआ है तो खाद्यान्न शरीर में रोगाणुओं के वाहक भी हो सकते हैं।
* आजकल बाजार में विशेष प्रकार के जालीदार पात्र 'स्प्राउटमेकर' के नाम से मिलने लगे हैं, जिनका उपयोग खाद्यान्नों के अंकुरीकरण के लिए किया जाता है। खाद्यान्नों के अंकुरित होने का समय तापमान पर निर्भर करता है।
* सर्दियों में अंकुरण की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार 24 घंटे से भी अधिक समय अंकुरण आने में लग जाता है। अतः इन दिनों भीगे हुए अनाज को गरम स्थान में रखने का विशेष तौर से ध्यान रखना चाहिए। इसके ठीक विपरीत गर्मियों में अंकुर जल्दी ही निकल जाते हैं। स्वाद व गुणवत्ता की दृष्टि से एक सेंटीमीटर तक के अंकुर स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इनके स्वाद में भी मिठास में कमी आने लगती है।
* अंकुरित खाद्यान्नों को कच्चा ही नमक, काली मिर्च, नीबू अथवा सलाद मसाला के साथ सेवन किया जा सकता है। आधे पके रूप में किसे हुए प्याज, पत्तागोभी, टमाटर, ककड़ी व गाजर के साथ पौष्टिक सलाद भी बनाया जा सकता है। अंकुरित खाद्यान्नों का सेवन परिवार के स्वास्थ्य की गारंटी है।
अंकुरित अनाज और पौष्टिक आहार खायें
Padma Srivastava द्वारा 10 अप्रैल, 2008 12:00:00 PM IST
स्त्रोत :
माई वेब दुनिया हिंदी
अधिकांश लोग अपने आहार पर ध्यान नहीं देते हैं। भोजन में सिर्फ अनाज की अधिकता होती है। फल तथा अंकुरित अनाज की मात्रा नहीं के बराबर होती है। हमें स्वस्थ रहने के लिये भोजन करना, तो जरूरी है ही पर भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है।
आजकल अधिकांश लोग कुपोषण के शिकार हो जाते हैं, जिससे शरीर में खून की कमी हो जाती है। कुछ लोग सोचते हैं कि हम महंगा फल, सब्जी, मेवा नहीं खा सकते, शायद इसलिये हम बीमार होते हैं। पर इसकी जगह हम जो मोटा अनाज खा रहे हैं, उस पर ही अगर ध्यान दें कि उसे कैसे उचित तरीके से खायें। महिलायें अपने परिवार पर ज्यादा ध्यान देने के कारण खुद पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती हैं, जबकि उनके लिए भी पौष्टिक आहार जरूरी है और इसके लिये ऐसा कोई स्पेशल नहीं बनाना है। महंगी चीजें नहीं लानी है। बस उसी अनाज, सब्जी को सही तरीके से खायें और परिवार में भी सबको दें। खासतौर पर गर्भावस्था में दोगुनी या अच्छे स्तर के पौष्टिक आहार लेने की जरूरत होती है तभी आप अपनी व होने वाले बच्चों की जरूरत पूरी कर सकती हैं। आजकल गांव में खून की कमी की शिकायत बढ़ती जा रही है। पोषक स्तर गिरता जा रहा है।
सामान्यतः आहार में तीन तरह के खाद्य पदार्थ होते हैं :-
- - पहला है कार्बोहाइड्रेट और वसा युक्त पदार्थ जो शरीर को उर्जा प्रदान करते हैं जैसे- अनाज, कंदमूल, फल, मेवा गुड़ तेल आदि।
- -दूसरे हैं प्रोटीन युक्त पदार्थ जो शरीर को बनाते हैं तथा उनकी क्षतिपूर्ती करते हैं जैसे- दूध, फलीदार अनाज, दालें, गिरीवाले फल, सोयाबीन आदि।
- -तीसरे हैं विटामिन एवं खनिजयुक्त पदार्थ जो शरीर की रक्षा करते हैं जैसे - हरी सब्जियां, दूध, पनीर, घी, मक्खन, गाजर, दालें फलों का रस अंकुरित अनाज आदि।
हम दो तरह से भोजन की पौष्टिकता को बढ़ा सकते हैं। पहला भोजन को मिश्रित पद्धति से और दूसरा अंकुरित पद्धति से। चोकर सहित रोटी बनायें। उसी आटे में पत्तेदार सब्जियाँ मिलाकर, आटा, घी, गुड़ मिलाकर। मूंगफल्लीदाने, गुड मिलाकर, लड्डू बनाकर। इस प्रकार हम कैल्शियम, विटामिन ए और बी के अलावा कैलोरिज़ अच्छी मात्रा में ले सकते हैं। इसी तरह तमाम सब्जियों को मिलाकर सलाद एवं फ्रूट सलाद बना सकते हैं, जो एक साथ कई फायदे देता है।
इन चीजों को आप घर के आसपास अपने बगीचे में आसानी से उगा सकते है तथा पौष्टिक आहार आसानी से प्राप्त कर सकते हैं तथा उन्हें अपने आहार में सम्मिलित कर सकते हैं। बस थोड़ी सा शिक्षित होने की जरूरत है कि इसके सेवन से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। जो लोग मोटा अनाज खाते हैं वे उन्हें अंकुरित कर खायें। ये पोषक एवं जीवंत आहार माना जाता है ये तुरंत शरीर को ताकत व उर्जा देता है। अनेक बीमारियों से हमें बचाता है।
इसमें तीन गुण पाये जाते हैं :-
(1) इससे रक्त का शुद्धिकरण होता है।
(2) पोषक तत्वों का स्त्रोत है।
(3) प्राकृतिक पौष्टिक आहार है।
अंकुरित भोजन के फायदे :-
- यह सस्ता व बनाने में आसान है।
- चना, मूंग, गेहूं, सोयाबीन, मेथी अंकुरित किया जा सकता है।
- ये आहार आसानी से हमारा शरीर ग्रहण करता है।
- इसमें विटामिन तथा अन्य पोषक तत्वों की क्षमता बढ़ जाती है।
- स्वादिष्ट बनाने के लिये अनाज को अंकुरित कर उसमें खीरा, ककडी,टमाटर, प्याज, धनिया, मिर्च, नींबू, तथा नमक मिलायें साथ ही काली मिर्च भी डालें।
- इन्हे खाने के बाद ये आसानी से पचाकर पुनः भूख लगने की क्षमता को बढ़ा देता है।
- इसे हम अपने सुबह के नाश्ते में शामिल कर सकते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम शहर में इन कैसे उगायें, तो निराश होने की जरूरत नहीं है आप शहर में भी अपने बगीचे में टेरेस के ऊपर गमलों में हरी सब्जियाँ उगा सकते हैं। ताजी हरी सब्जियों का जूस निकाल कर तुरंत पी सकते हैं। मगर हम लोग सुबह ब्रेड, मक्खन, बाजारी जूस का नाश्ता करते हैं जो प्राकृतिक नहीं है। महंगी फल सब्जियों की तुलना में पत्तेदार हरी सब्जियों में विटामिन, लौह तत्व अधिक होते है जो शरीर को विकसित एवं स्वथ्य बनाये रखने में मदद करता है। इसके पीछे कारण यह है कि पौष्टिक तत्वों का स्त्रोत हैं, हरी पत्तेदार सब्जियों में भरपूर लौह (कैरोटीन) की मात्रा होती है, जो आखों की सुरक्षा के साथ-साथ बच्चों के शारीरिक विकास में सहायक है। गुड, चावल, चिवडा, शहद ,साबुदाना, शक्करकंद, आलू, बेल, केला खजूर, गन्ने का रस, जौ, बाजरा, गेहूं आदि में कार्बोहाइट्रेड की मात्रा अधिक पाई जाती है। पालक, हरीमेथी, चौलाई, बथुआ, सरसों का साग, चने का साग, फूलगोभी, पत्तागोभी इसमें सर्वोत्तम पौष्टिक तत्व मिलते हैं। जैसे चौलाई, बथुआ में कैलशियम, विटामिन, ए, बी.एंव लौह तत्व पाये जाते हैं। कई इलाकों में महुआ, सांवा, पाया जाता है जिसमें कैलशियम, फसफोरस, लौह, कार्बोहाइट्रेड, विटामिन सी पाया जाता है जो गर्भावस्था में महिलाओं की जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में यह सब आसानी से मिल जाता है। इन चीजों को हम अपने दैनिक आहार में शामिल कर महिलाओं में खून की कमी को दूर कर सकते हैं। हिमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। अजन्मे बच्चों में शारीरिक व मानसिक दुर्बलता व अविकसितता के दूर किया जा सकता है।
अपक्वाहार
(नेचर केयर)
आयुर्वेद का कथन है “प्रकृति स्मामिक्ष स्मेरत” अर्थात प्रकृति का सदैव अनुसरण करो | मनुष्यों से दूर जंगलों में रहने वाले जीव-जन्तु कम बीमार पड़ते हैं और यदि बीमार पड़ भी जाएँ तो जल्द ही स्वस्थ्य हो जाते हैं उन्हें किसी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती वे कोई टानिक नहीं पीते फिर भी वे मनुष्य से अधिक शक्तिशाली होते हैं| उनकी माँ गर्भकाल में कोई कथित स्वास्थ्य संवर्धक औषधियां नहीं लेती, न ही कोई विटामिन/आयरन आदि खनिजों को गोलियों के रूप में लेतीं फिर भी वे बिना किसी सर्जरी,बिना किसी कष्ट के अपने बच्चे को जन्म देती हैं, वह भी ऐसे बच्चे को जो जन्म से ही फुदकने दौड़ने लगे | मनुष्य के कोमल सुकुमार शिशु की तरह नहीं जिसको एक फूल की भी चोट लगते ही शरीर पर खून की लाली उभर आये |
सभ्य मनुष्य ने मानसिक तौर पर विकास भले ही कर लिया हो परन्तु शारीरिक दृष्टि से उसका निरंतर क्षय होता जा रहा है | इसका सीधा सा कारण है मनुष्य का प्रकृति से लगातार दूर होना | आज व्यक्ति के प्रत्येक कार्य में कृतिमता आती जा रही है चाहे वह उसका रहन-सहन हो, चाहे भोजन हो या फिर चाहे उसकी मनोदशा हो | आज के अधिकांश व्यक्ति हँसते भी हैं तो लगता है अभिनय कर रहे | उन्मुक्त हंसी, जिसका एक पल भी हमारे पूरे शरीर पर अपना स्वास्थ्यमय प्रभाव छोड़ जाता है, कभी-कभी ही देखने को मिलती है |
व्यक्ति के स्वस्थ्य रहने या रोगमुक्त होने में भोजन की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है | हम भोजन के अधिकांश भाग को आग में पकाकर प्रयोग करते हैं | आदिकाल में मनुष्य ने पत्थरों को रगड़कर अग्नि को उत्पन्न किया तभी से अग्नि मनुष्य की सभ्यता की कसौटी बन मानव सभ्यता के विकास की साक्षी बनी | वास्तव में अग्नि तत्व प्रकृति एवं प्राकृतिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण तत्व है | अग्नि का स्वभाव है जलाना,तपाना परन्तु क्या अग्नि में तपकर प्रत्येक वस्तु कुंदन ही बनती है ? …. यह एक विचारणीय प्रश्न है |
एक फल या अन्न का पेड़ पर प्राकृतिक रूप से पकने का अर्थ है-उसके अन्दर के बीज का पूर्णता को प्राप्त हो जाना एवं बोने के बाद अपनी वंश परंपरा को आगे बढ़ाने की योग्यता आ जाना , परन्तु उसे अग्नि पर पकाने के पश्चात् क्या उस बीज में यह योग्यता शेष रह पाती है ? आज हमारे भोजन में अपक्वाहार ( आग से न पकाया गया भोजन ) की मात्रा पचास से सौ ग्राम सलाद या फिर दिन भर में दो सौ पचास ग्राम से पांच सौ ग्राम फल के रूप में सिमट कर रह गयी है इसमें भी देश की आबादी के बहुत बड़े प्रतिशत को फलों का सेवन एक स्वप्न मात्र ही है | हम भोजन को सुस्वादु या फिर कहें स्वाद परिवर्तन के चक्कर में पकाकर उनमें तेल,घी,मिर्च-मसाले आदि डालकर प्रयोग करते हैं इन परिशोधित, निष्प्राण व्यंजनों के कारण ही हमारा शारीर दिन- प्रतिदिन रोगी एवं शक्तिहीन होता जा रहा है | यह एक आश्चर्य का विषय है कि आज जिस स्तर पर नयी-नयी दवाएं इजाद हो रही हैं, जिस अनुपात में चिकित्सकों की संख्या में वृद्धि हो रही है उससे कहीं बड़े अनुपात में रोग और रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है इसको देखते हुए आज के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत आवश्यक हो गया है कि हम प्रकृति का मार्गदर्शन प्राप्त करें एवं प्रकृति के नियमों को अपनी जीवन शैली में सम्मिलित करें | इसकी शुरुआत हम अपनी रसोई से कर सकते हैं | इस सन्दर्भ में प्रकृति के एक नियम – ” प्रकृति प्रदत्त प्रत्येक वस्तु का उपयोग उसका स्वरूप नष्ट किये बिना किया जाय |” का अनुपालन अत्यंत आवश्यक है | भोजन के सन्दर्भ में यह आवश्यक है कि कच्चा भोजन जो स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर हो, को रुचिकर बनाने की कला का विकास किया जाय | अपक्वाहार या प्राकृतिक आहार को समर्थन का यह आशय कदापि नहीं कि हम जानवरों की भांति घास-पात, फल-फूल पर निर्भर हों बल्कि इसका अर्थ यह है कि हम अधिकांश खाद्यों को स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर विधि से सेवन करें इस सन्दर्भ में अंकुरित आहार की बहुत बड़ी उपयोगिता सिद्ध हो सकती है |
अंकुरित आहार को अमृताहर कहा गया है अंकुरित आहार भोजन की सप्राण खाद्यों की श्रेणी में आता है | यह पोषक तत्वों का श्रोत मन गया है | अंकुरित आहार न सिर्फ हमें उन्नत रोग प्रतिरोधी व उर्जावान बनाता है बल्कि शरीर का आंतरिक शुद्धिकरण कर रोग मुक्त भी करता है | अंकुरित आहार अनाज या दालों के वे बीज होते जिनमें अंकुर निकल आता हैं इन बीजों की अंकुरण की प्रक्रिया से इनमें रोग मुक्ति एवं नव जीवन प्रदान करने के गुण प्राकृतिक रूप से आ जाते हैं |
अंकुरित आहार के रूप मेंप्रयोग किये जाने वाले बीज मुंग, मेथी, चना, गेहूं, लोबिया,सूर्यमुखी,मूंगफली आदि के बीजों को आवश्यकतानुसार अंकुरित कर उपयोग कर सकते हैं |
अंकुरण की विधि
- सर्वप्रथम अंकुरित करने वाले बीजों को कई बार अच्छी तरह पानी से धोकर एक शीशे के जार में भर लें शीशे के जार में बीजों की सतह से लगभग चार गुना पानी भरकर भीगने दें अगले दिन प्रातःकाल बीजों को जार से निकाल कर एक बार पुनः धोकर साफ सूती कपडे में बांधकर उपयुक्त स्थान पर रखें |
- गर्मियों में कपडे के ऊपर दिन में कई बार ताजा पानी छिडकें ताकि इसमें नमी बनी रहे |
- गर्मियों में सामान्यतः 24 घंटे में बीज अंकुरित हो उठते हैं सर्दियों में अंकुरित होने में कुछ अधिक समय लग सकता है | अंकुरित बीजों को खाने से पूर्व एक बार अच्छी तरह से धो लें तत्पश्चात इसमें स्वादानुसार हरी धनियाँ, हरी मिर्च, टमाटर, खीरा, ककड़ी काटकर मिला सकते हैं | यथासंभव इसमें नमक न मिलाना ही हितकर है |
ध्यान दें -
- अंकुरित करने से पूर्व बीजों से मिटटी, कंकड़ पुराने रोगग्रस्त बीज निकलकर साफ कर लें | प्रातः नाश्ते के रूप में अंकुरित अन्न का प्रयोग करें | प्रारंभ में कम मात्रा में लेकर धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाएं |
- अंकुरित अन्न अच्छी तरह चबाकर खाएं |
- नियमित रूप से इसका प्रयोग करें |
- वृद्धजन, जो चबाने में असमर्थ हैं वे अंकुरित बीजों को पीसकर इसका पेस्ट बनाकर खा सकते हैं | ध्यान रहे पेस्ट को भी मुख में कुछ देर रखकर चबाएं ताकि इसमें लार अच्छी तरह से मिल जाय |
लाभ-
- अंकुरित आहार शरीर को नवजीवन देने वाला अमृतमयी आहार है |
- अंकुरित अन्न विटामिन तथा खनिज पदार्थों को प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट स्रोत है |
- अंकुरित आहार सप्राण होने के कारण शरीर आसानी से आत्मसात कर लेता है जिस से शरीर उर्जावान बनता है |
- बीजों के अंकुरित होने के पश्चात् इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है |
MAIN YEH JAANNA CHAHTA HUN..KI KAUN KAUN SE BEEJ EK SATH ANKURIT KARKE KHA SAKTE HAI..
ReplyDeleteAGAR JAISE SOYABEEN CHANA GEHUN MONGFALI KE DANE EK SATH BHIGOKAR KHA SAKTE HAI...ISSE KOI SAMASYA TO NAHI HOGI ....