परिचय : हिन्दू धर्म शास्त्रों में दूब (घास) को परम पवित्र माना गया है, प्रत्येक शुभ कामों पर पूजन सामग्री के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। देवता, मनुष्य और पशु सभी की प्रिय दूब (घास), खेल के मैदान, मन्दिर परिसर, बाग व बगीचों में विशेष तौर पर उगाई जाती है, जबकि यह यहां-वहां यह अपने आप उग जाती है। इसके तने में अनेक गांठे होती हैं, इसकी छोटी-छोटी शाखाएं भूमि से ऊपर उठी रहती है। हरी दूब 2-4 इंच लम्बी तथा चिकनी होती है तथा इसकी नोकदार पतली पत्तियां निकलती हैं। यह वर्ष भर हरी रहती है, गर्मी के दिनों में सूख जाती है। खासतौर पर हरी और सफेद दूब (घास) देखने को मिलती है, कहीं-कहीं नीली या काली दूब (घास) भी होती है।
दूब (घास) तीन प्रकार की होती है :-
1. नीली दूब : नीली दूब वात, पित्त, बुखार, भ्रम, शंका, प्यास को मिटाती है और लोहे को गलाती है।
2. सफेद दूब : सफेद दूब रुचि को बढ़ाती है। यह कड़वी, शीतल, कषैली और मधुर होती है तथा कफ-पित्त, जलन और खांसी को नष्ट करती है। सफेद दूब फुंसी, रक्तविकार, कफ एवं जलननाशक होती है।
3. हरी दूब : यह दस्त, वमन (उल्टी), बुखार और रक्त (खून) के विभिन्न रोगों को शान्त करती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी | हरी दूब, नीली दूब, रामघास, दूर्बा |
संस्कृत | अमरी, अमृता, अनन्ता, नील, दूर्वा, रूहा |
बंगाली | नीलदूर्वा |
तमिल | अरुगम-पिल्लू |
तेलगू | धोरिचा, गोरिचा, गुड्डी |
मराठी | नीलदूर्बा |
अरबी | उष्ण |
फारसी | मर्ग |
गुजराती | नीलीध्रो |
अंग्रेजी | क्रीपिंग साइनोडन |
रंग : दूब हरे और सफेद रंग की होती है।
स्वाद : दूब तीखी और कषैली होती है।
स्वरूप : दूब सारे भारत वर्ष में पाई जाती है, इसका पौधा ऊपर को नहीं उठता बल्कि पृथ्वी पर फैलता है। इसकी गांठे भी जड़ पकड़ती जाती हैं, दूब की बेल वनों व पर्वतों तथा गांवों में जलाशय के स्थानों पर पायी जाती है।
प्रकृति : दूब (घास) प्रकृति शीतल है।
हानिकारक प्रभाव : दूब का सामान्य से अधिक मात्रा में सेवन करने पर यह आमाशय को नुकसान पहुंचा सकती है और कामशक्ति में कमी ला सकती है। हरी दूब का अधिक मात्रा में सेवन करने से स्त्रियों को उल्टी आने लगती है।
दोषों को दूर करने वाला : कालीमिर्च व इलायची के साथ इसका सेवन करने पर हरी दूब के दोष दूर होते हैं।
मात्रा : दूब का रस 10-20 मिलीलीटर। काढ़ा 40-80 मिलीलीटर। पत्तियों का चूर्ण 1-3 ग्राम। जड़ का चूर्ण 3-6 ग्राम।
गुण :
दूब कुष्ठ (कोढ़), मुंह के छाले, दांतों का दर्द, पित्त की गर्मी तथा हैजे के लिए लाभदायक है। इसका लेप लगाने से खुजली शान्त होती है। यही लेप मस्तक पर लगाने से नकसीर ठीक होती है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार दूब रस में मधुर, तीखी, कषैली, छोटी, चिकनी, प्रकृति में शीतल तथा कफ-पित्त नाशक होती है। यह रक्तस्तम्भन, मूत्रवर्द्धक है तथा एण्टीसैप्टिक होने के कारण रक्तविकार, रक्तस्राव (खून का बहना), खांसी, वमन (उल्टी), अतिसार (दस्त), दाद, मूत्र दाह (पेशाब में जलन), बुखार तथा रक्तप्रदर में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार दूब की तासीर सर्द होती है। सफेद दूब में कामशक्ति घटाने के गुण के कारण साधु, संन्यासी इसको सेवन करते हैं। इससे वीर्य की कमी होती है। इसके सेवन से प्यास मिटती है, पेशाब खुलकर आता है, खुजली दूर होती है तथा मुंह के छाले ठीक होते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार दूब का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें 28.17 प्रतिशत रेशा, 10.47 प्रतिशत प्रोटीन और 11.75 प्रतिशत राख होती है। इसकी राख में थोड़ी सी मात्रा में फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम और पोटैशियम भी पाया जाता है। प्रयोगों से पता चला है कि दूब एक ‘शक्तिवर्द्धक दवाई है, क्योंकि इसमें ग्लाइकोसाइड, अल्केलाइड, विटामिन `ए´ तथा विटामिन `सी´ की पर्याप्त मात्रा होती है। इसको हर रोज सेवन करने से शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है, अधिक मेहनत करने पर थकान महसूस नहीं होती है।
औषधीय उपचार :
खूनी बवासीर :
- तालाब के नजदीक की हरी दूब को मिट्टी के बर्तन में थोड़े पानी के साथ आंच पर चढ़ाकर उबालने से खूनी बवासीर का दर्द शान्त होता है।
- दूब के पत्तों, तनों, टहनियां और जड़ों को दही में पीसकर मस्सों व गुदा में लगायें और सुबह-शाम 1 कप की मात्रा में सेवन करें। इससे खूनी बवासीर में लाभ मिलेगा।
चोट से रक्तस्राव :
- चोट से खून निकलने पर दूब का लेप बनाकर लगाने से और पट्टी बांधने से रक्तस्राव (खून बहना) रुक जाता है और जख्म जल्द ही भर जाता है।
- कटने या चोट लगने से यदि रक्तस्राव (खून बहना) हो तो दूब को कूटकर उसका रस निकालकर उसमें कपड़े को भिगोकर चोट पर उस कपड़े को बांधने से खून का बहना बंद हो जाता है।
नाक से खून निकलना : नाक से खून निकले तो ताजी व हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों में टपकाने से नाक से खून आना बंद हो जायेगा।
मुंह के छाले : दूब के काढ़े से दिन में 3-4 बार गरारे करने से मुंह के छालों में लाभ पहुंचता है।
त्वचा के रोग : दूब के रस और सरसों के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करें जब पानी उड़ जाए तो इस तेल को चर्म विकारों (चमड़ी के रोगों) पर दिन में 2-3 बार लगाने से लाभ होता है।
दाद, खाज-खुजली : हल्दी के साथ बराबर मात्रा में दूब पीसकर बने लेप को नियमित रूप से 3 बार लगाने से दाद, खाज-खुजली और फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
मानसिक रोग : शरीर में ज्यादा गर्मी, जलन, महसूस होने पर दूब का रस सारे शरीर पर लगाने से मानसिक रोग के कष्ट में आराम मिलता है।
सिर दर्द : जौ को 3 चम्मच दूब के रस में घोटकर सिर पर मलने से सिर दर्द दूर होता है।
हिचकी : दूब का रस और 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से हिचकी आना बंद होती है।
पेशाब में जलन : 4 चम्मच दूब के रस को 1 कप दूध के साथ सेवन करने से पेशाब के जलन में लाभ मिलता है।
पेशाब उतरने में कष्ट : 10 ग्राम दूब की जड़ को 1 कप दही में पीसकर सेवन करने से पेशाब करते समय का दर्द दूर हो जाता है।
प्यास की अधिकता : हरी दूब का 2 चम्मच रस 3-4 बार सेवन करने से किसी भी रोग में प्यास दूर हो जाती है।
पथरी : दूब को जड़ सहित उखाड़कर उसकी पत्तियों को तोड़कर अलग कर लेते हैं फिर इसमें स्वादानुसार मिश्री डालकर छान लेते हैं। इसे 1 गिलास की मात्रा में रोजाना पीने से पथरी गल जाती है और पेशाब खुलकर आता है।
फोड़ा : पके फोड़े पर रोजाना दूब को पीसकर लेप करने से फोड़ा फूट जाता है।
आंखों की जलन : ताजी दूब को बारीक पीसकर 2 चपटी गोलियां बना लेते हैं। इन गोलियों को आंखों की पलकों पर रखने से आंखों का जलन और दर्द समाप्त हो जाता है।
आंख की रोशनी : सुबह के समय हरी दूब में नंगे पैर चलने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
मूत्रकृच्छ : दूब की जड़ को पीसकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब मे जलन) का रोग नष्ट हो जाता है।
मासिक धर्म की रुकावट : सफेद दूब और अनार की कली को रात को जले राख में भीगे चावलों के साथ पीसकर 1 सप्ताह तक सेवन करने से ऋतुस्राव (माहवारी) की रूकावट में लाभ मिलता है।
सूजन : दूब के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से विभिन्न सूजनों में लाभ मिलता है।
अतिसार : दूब का ताजा रस संकोचक होता है। इसलिए यह पुराने अतिसार और पतले दस्तों में उपयोगी होता है।
गर्भपात : प्रदर रोग में तथा रक्तस्राव (खून आना), गर्भपात आदि योनि रोगों में दूब का उपयोग करते हैं। इससे खून रुक जाता है, गर्भाशय को शक्ति मिलती है तथा गर्भ को पोषण करता है।
मूत्रविकार :
- दूब की जड़ का काढ़ा दर्दनाशक (दर्द को दूर करने वाला) और मूत्रवर्द्धक (पेशाब लाने वाला) होता है। इसलिए वस्तिशोथ, सूजाक और पेशाब की जलन में यह बहुत ही उपयोगी होता है।
- दूब को मिश्री के साथ घोट छानकर पिलाने से पेशाब के साथ खून आना बंद हो जाता है।
- दूब को पीसकर दूध में छानकर पिलाने से पेशाब की जलन मिट जाती है।
मलेरिया बुखार : मलेरिया के बुखार में दूध के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में 2-3 बार चटाने से, बारी से चढ़ने वाला मलेरिया बुखार में अत्यधिक लाभ मिलता है।
कामशक्ति की कमी : सफेद दूब वीर्य को कम करती है और कामशक्ति को घटाती है।
बच्चों के रोग : बड़ी-बड़ी शाखाओं वाली दूब जो अक्सर कुंओं पर होती है। उसे छानकर उसमें 2-3 ग्राम बारीक पिसे हुए नागकेशर और छोटी इलायची के दाने मिलाकर, सुबह सूरज उगने से पहले उस बच्चे को जिसका तालू बैठ गया हो उसकी नाक में डालकर सुंघाने से तालू ऊपर को चढ़ जाती है। इसके सेवन से ताकत बढ़ती है। बच्चे दूध निकालना बंद कर देते हैं तथा बच्चों का दुबलापन (कमजोरी) समाप्त हो जाती है।
आंखों का दर्द : हरी दूब (घास) का रस पलकों पर लेप करने या उसको पीसकर लुगदी बनाकर रात में सोते समय आंखों पर बांधने से आंखों के दर्द और जलन दूर हो जाती है। आंखों का धुंधलापन दूर हो जाता है। कुछ दिनो तक लगातार इसका प्रयोग करना चाहिए।
आंखों का इलाज : सुबह-सुबह नंगे पैर पार्क मे हरी दूब (घास) पर घूमने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
बादी का बुखार : दूब के रस मे अतीस का चूर्ण मिलाकर चाटने से बादी का बुखार उतर जाता हैं।
एलर्जिक का बुखार : दूब और हल्दी को पीसकर पूरे शरीर पर लेप करने से शीत-पित्त का रोग मिट जाता हैं।
जीभ और मुंख का सूखापन : पित्त की वृद्धि से होने वाले जीभ या मुंह का सूखापन के रोग में 10 से 20 ग्राम सफेद दूब या हरी दूब के रस को मिश्री के साथ मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से लाभ होता है।
वमन (उल्टी) :
- अगर उल्टी आने का रोग पुराना हो तो दूब के रस में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह और शाम पीने से यह रोग दूर हो जाता है।
- सफेद दूब के रस को चावलों के पानी के साथ पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
- दूब का 1 चम्मच रस में काली मिर्च पीसकर सेवन करने से वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।
आंव (आंव अतिसार) होने पर :
- दूब, सोंठ और सौंफ को पानी में उबालकर पीने से पेट में आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त को बंद कर देता है।
- दूब घास और आम को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से आंव (एक प्रकार का चिकना पदार्थ जो मल के साथ बाहर निकल जाता हैं) दस्त समाप्त हो जाता हैं।
गर्भपात रोकना : हरी दूब (दूर्वा) का रस 10 ग्राम की मात्रा में मिश्री के साथ सुबह-शाम कुछ दिनों तक लगातार सेवन करने से अत्यार्त्तव (मासिक धर्म का अधिक आना) तथा बार-बार गर्भपात होना आदि का रोग ठीक हो जाता है।
दस्त के लिए : हरी दूब का रस लगभग 10 ग्राम की मात्रा में रोगी को पिलाने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं।
बहरापन : धोली दूब को घी में डालकर आग पर पकाकर जला लें। फिर इसे आग पर से उतार कर ठण्डा कर लें। इस तेल को चम्मच मे हल्का सा गर्म करके 2-2 बूंदे दोनो कानों में डालने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।
कान का बहना : हरी दूब के रस को छानकर 2 से 3 बूंद रोजाना 3 से 4 बार कान में डालने से कान से पानी आना, मवाद बहना और बहरापन ठीक हो जाता है।
बवासीर : 50 ग्राम दूब का रस लेकर उसमें चीनी मिलाकर पीने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
घाव :
- ताजा कटे-फटे घाव में हरी दूब की पत्तियों को पीसकर लेप करें तथा उन पत्तियों को घाव पर बांधते भी हैं। इससे खून का बहना रुकता है और घाव जल्दी भर जाता है।
- घाव से बहते हुए खून को रोकने के लिए दूब को घाव पर पीसकर लगाने से लाभ होता है।
पथरी :
- दूब की जड़ तथा तने को पानी में अच्छी तरह से धोकर बारीक लेप बना लें। 5 ग्राम लेप को 1 गिलास पानी में मिलाकर 15 से 20 दिन पीने से पथरी ठीक हो जाती है।
- दूब की जड़ और तने को अच्छी तरह से धोकर पीस लें तथा पानी में मिलाकर शर्बत बनाकर छान लें। इस शर्बत में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीयें। इससे पथरी गल जाती है तथा पेशाब खुलकर आता है।
जलोदर (पेट में पानी का भरना) : 10 ग्राम हरी दूब (दूर्वा) के रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) के रोग में लाभ होता है।
पित्त बढ़ने पर : पित्त के बढ़ने पर हरी दूब का 10 ग्राम रस सुबह-शाम मिश्री के साथ रोगी को देने से फायदा होता है। पित्त के बढ़ने पर हरी दूब के अलावा अगर सफेद दूब का उपयोग किया जाये तो ज्यादा लाभ मिलता है।
रक्तप्रदर :
- 2 चम्मच दूब के रस में आधा चम्मच चन्दन और मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2-3 बार सेवन करने से रक्तप्रदर नष्ट होता है।
- हरीदूब (दूर्वा) का रस 10 ग्राम रोजाना शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
- मासिक-स्राव में अधिक रक्त स्राव (खून बहने) होने पर दूब का रस आधा कप मिश्री मिलाकर सुबह-शाम को देना चाहिए। इससे रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है। इसके साथ ही चावल का पानी मिला दिया जाए तो इस रोग में लाभ और अच्छा मिलता है।
शीतपित्त : दूब और हल्दी को एक साथ पीसकर लेप करने से शीतपित्त जल्दी ही खत्म हो जाती है।
रक्तपित्त :
- रक्तपित्त के रोग में दूब का रस, अनार के फूलों का रस, गोबर और घोड़े की लीद का रस मिलाकर पीने से खून का बहना बंद हो जाता है।
- दूब का 30 मिलीलीटर रस लेने से रक्तपित्त में आराम आता है। इसके साथ ही यह खूनी बवासीर और टी.बी के रोगी का बहने वाला खून भी रोक देती है।
नाक के रोग :
- 40 ग्राम रोहित घास का काढ़ा सुबह और शाम पीने से जुकाम ठीक हो जाता है और कफ (बलगम) का रोग भी ठीक हो जाता है।
- दूब (घास) को किसी पत्थर पर पीसकर कपड़े में रखकर निचोड़कर लगभग 1 किलो के करीब इसका रस निकाल लें। इसके बाद इसे कड़ाही में डालकर इसमें लगभग साढ़े 4 किलोग्राम तेल डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद जब तेल बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छान लें। इस तेल को रोजाना नाक में डालने से मुंह और नाक से गन्दी हवा निकलने का रोग ठीक हो जाता है।
शिश्न चर्म रोग : लिंग की त्वचा को खीचकर उस पर हरी घास, हल्दी और नीम के पत्तों से बने रस की मालिश करने से लिंग की आगे की खाल हट जाती है।
नकसीर :
- हरी दूब का ताजा रस निकालकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
- हरी ताजी दूब (घास) को जमीन पर से उखाड़कर पानी से धो लें। फिर उस घास को पीसकर उसका रस निकाल लें। इस रस की 2-2 बूंदे नाक के दोनों छेदों में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
- 2 चम्मच चीनी को दूब के रस में मिलाकर नाक में डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
उपदंश (सिफलिस) : दूब की जड़ का काढ़ा पीने से उपदंश के घाव और दाग मिट जाते हैं।
गठिया (घुटने का दर्द) : गठिया के रोगी का उपचार करने के लिए रोहितघास के पत्तों से बने तेल को लेकर मालिश करने से रोगी को लाभ मिलता है।
खाज-खुजली : 2 चम्मच दूब के रस को तिल्ली के 100 ग्राम तेल में मिलाकर खुजली वाले स्थान पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
हैजा : बराबर मात्रा में 10-10 ग्राम दूब और अरबा चावल (कच्चा चावल) लेकर पीसकर रोगी को पिला देने से हैजा में लाभ होता है।
मिर्गी (अपस्मार) : 10 ग्राम हरीदूब के रस का सेवन सुबह और शाम को करने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है।
फोड़े-फुंसियां : दूब (घास) को पीसकर पके हुए फोड़े पर लगाने से फोड़ा तुरन्त फूट जाता है।
चेहरे की झांइया : 40 ग्राम हरीदूब (दूर्वा) की जड़ का काढ़ा सुबह और शाम पिलाने से चेहरे की झांइयों के साथ-साथ त्वचा के सारे रोग मिट जाते हैं।
कुष्ठ (कोढ़) : दूब की ओस (पानी की बूंदे) को कुछ समय तक लगाते रहने से सफेद कोढ़ समाप्त हो जाता है।
चेहरे के दाग और धब्बे : हरी दूब को हल्दी के साथ मिलाकर पीस लें और घोल बनाकर पूरे शरीर पर लगाने से खाज-खुजली, दाद और त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
बिवाई (एंड़ी का फटना)
- हरी दूब (घास) को पीसकर बिवाई (फटी एड़ियों) पर लगाने से आराम आता है।
- दूब का लेप बिवाइयों (फटी एड़ियों) पर लगाने से आराम मिलता है।
- यदि शरीर की त्वचा कहीं-कहीं से फट गई हो और उसमें से खून भी निकल रहा हो तो हरी दूब (घास) को थोड़ी सी हल्दी के साथ पीसकर पानी में मिला लें और साफ कपड़े से छान लें। इसमें थोड़ा-सा नारियल का तेल मिलाकर सारे शरीर की मालिश करने से धीरे-धीरे त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
त्रिदोष नाशक है दूब घास और कपाल भाति क्रिया-योगगुरु विजय श्रीवास्तव
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कपाल भाति |
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पाचनतंत्र |
शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा| हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है| हिंदी में इसे दूब, दुबडा| संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली| मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा| गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो| अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन| बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामो से जाना जाता है|
इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है|
इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है| दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है| यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है| सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए|
दूब का औषधीय महत्व
संथालजाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व आयुर्वेद के महान आचार्य चरक भी दूब के गुणों से बखूबी अन्य जड़ी-बूटियों के साथ दूब का काढ़ा बनाकर दस्त तथा अत्यधिक प्रमाण में होने वाले मासिक धर्म को रोकने के लिए प्रयोग किया जाता है। पुराने प्रमेह रोग में दूब पीसकर दही के साथ देने का भी विधान है।
दूब शीतल तासीर वाली औषधि है, इसलिए दूब का ताज़ा रस मिरगी, हिस्टीरिया, उन्माद इत्यादि मानसिक रोगों में प्रयुक्त होता है। दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मुँह के छाले मिट जाते हैं। दूब को पीसकर ललाट पर लेप करने से भी नकसीर बंद हो जाती है।
हकीमों की यह मान्यता है कि हरी दूब का रस पीने से बार-बार लगने वाली प्यास बूझ जाती है। इससे पेशाब खुलकर होने लगता है। इसके साथ ही खून की अनावश्यक गरमी शांत होकर चर्म विकार दूर होने लगते हैं।
आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के प्रशमनार्थ दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। स्त्रोत :
अभिव्यक्ति
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