सामान्य परिचय : सारे भारत में अडूसा के झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं। ये 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्ते 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। ये नोकदार, तेज गंधयुक्त, कुछ खुरदरे, हरे रंग के होते हैं। अडूसा के पत्तों को कपड़ों और पुस्तकों में रखने पर कीड़ों से नुकसान नहीं पहुंचता। इसके फूल सफेद रंग के 5 से 7.5 सेमी लंबे और हमेशा गुच्छों में लगते हैं। लगभग 2.5 सेमी लंबी इसकी फली रोम सहित कुछ चपटी होती है, जिसमें चार बीज होते हैं। तने पर पीले रंग की छाल होती है। अडूसा की लकड़ी में पानी नहीं घुसने के कारण वह सड़ती नहीं है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत | वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरूष। |
हिंदी | अडूसा, विसौटा, अरूष। |
मराठी | अडूलसा, आडुसोगे। |
गुजराती | अरडूसों, अडूसा, अल्डुसो। |
बंगाली | वासक, बसाका, बासक। |
तेलगू | पैद्यामानु, अद्दासारामू। |
तमिल | एधाडड। |
अरबी | हूफारीन, कून। |
पंजाबी | वांसा। |
अंग्रेजी | मलाबार नट। |
लैटिन | अधाटोडा वासिका |
रंग : अडूसा के फूल का रंग सफेद तथा पत्ते हरे रंग के होते हैं।
स्वाद : अडूसा के फूल का स्वाद कुछ-कुछ मीठा और फीका होता है। पत्ते और जड़ का स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप :
पेड़ : अडूसा के पौधे भारतवर्ष में कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाड़ियों के समूह में उगते हैं। अडूसा का पेड़ होता है जो मनुष्य की ऊंचाई के बराबर का होता है।
पत्त्ते : पत्ते 7.5 से 20 सेमी लम्बे रोमश, अभिमुखी, दोनों और से नोकदार होते हैं।
फूल : श्वेतवर्ण 5 से 7.5 सेमी लंबे लम्बी मंजरियों में फरवरी-मार्च में आते हैं।
फली : लगभग 2.5 सेमी लम्बी, रोमश, प्रत्येक फली में चार बीज होते है।
स्वभाव : अडूसा खुश्क तथा गर्म प्रकृति का होता है। परन्तु फूल शीतल प्रकृति का होता है।
मात्रा : फूल और पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर (2 से 4 चम्मच), जड़ का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर तक तथा पत्तों, फूलों और जड़ों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तक ले सकते हैं।
गुण :
अडूसे का फूल यक्ष्मा (टी.बी.) और खून की गर्मी को दूर करने में उपयोगी होती है। आयुर्वेदिक मतानुसार अडू़सा कड़वा, कसैला, शीतल प्रकृति का, स्वर के लिए उत्तम, हल्का, हृदय के लिए गुणकारी, कफ़, पित्त, रक्त विकार (खून के रोग), वमन (उल्टी), सांस, बुखार, प्यास, खांसी, अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना), प्रमेह (वीर्य विकार), पुराना जुकाम और साइनोसाइटिस जैसे रोगों में सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति के मतानुसार अडू़सा नकसीर व रक्तपित्त को तुरंत रोकता है और उष्ण होने के कारण श्लेष्मा निस्सारक तथा जीवाणुनाशी श्वास संस्थान की प्रमुख औषधि है। यह स्वरशोधक होने के साथ-साथ खांसी की बूटी के नाम से भी विख्यात है।
वैज्ञानिक मतानुसार, अडूसा के रासायनिक संगठन से ज्ञात होता है कि इसकी पत्तियों में 2 से 4 प्रतिशत तक वासिकिन नामक एक तिक्त एल्केलाइड होता है। इसके अतिरिक्त इंसेशियल आइल, वासा अम्ल, राल, वासा, शर्करा, अमोनिया व अन्य पदार्थ भी मिलते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में पोटैशियम नाइट्रेट लवण पाए गए हैं। जड़ में वासिकिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इन्हीं घटकों के कारण अडूसा में इतने सारे उपयोगी औषधीय गुण मिलते हैं।
होम्योपैथिक चिकित्सकों के मतानुसार अडूसा से नाक से छींक आना, सर्दी से खांसी हो जाना, एलर्जी होना, गला बैठना, कुकरखांसी (हूपिंग कफ) व साइनोसाइटिस जैसे रोगों में काफी लाभ होता है। इसकी 30 और 200 पोटेंसी बहुत लाभ पहुंचाती है।
औषधीय उपयोग
क्षय (टी.बी.) :
- अडूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खिलाएं।
- अडूसा (वासा) टी.बी. में बहुत लाभ करता है इसका किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी है। अडूसे के रस में शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार देना चाहिए।
- वासा अडूसे के 3 किलो रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें जब गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाय तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंडा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। साथ ही यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त तथा बुखार को भी दूर करता है।
- वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।
- अडूसा की जड़ की छाल को लगभग आधा ग्राम से 12 ग्राम या पत्ते के चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक खुराक के रूप में सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।
दमा :
- अड़ूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
- अडूसा के ताजे पत्तों को सुखाकर उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों के चूर्ण का धूम्रपान (बीड़ी बनाकर पीने से) करने से पुराने दवा में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
- यवाक्षार लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
- लगभग आधा ग्राम अर्कक्षार या अड़ूसा क्षार शहद के साथ भोजन के बाद सुबह-शाम दोनों समय देने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
- श्वास रोग (दमा) में अडू़सा (बाकस), अंगूर और हरड़ के काढ़े को शहद और शर्करा में मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ मिलता है।
- श्वास रोग (दमा) में अड़ूसे के पत्तों का धूम्रपान करने से श्वास रोग ठीक हो जाता है। अडूसे के पत्ते के साथ धतूरे के पत्ते को भी मिलाकर धूम्रपान किया जाए तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।
- अड़ूसे के रस में तालीस-पत्र का चूर्ण और शहद मिलाकर खाने से स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
- अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस पांच-पांच ग्राम मिलाकर दिन में 3-3 घंटे पर पिलाएं। इससे 40 दिनों में दमा दूर हो जाता है।
- अड़ूसा के पत्तों का एक चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पुरानी खांसी, दमा, टी.बी., मल-मूत्र के साथ खून का आना, खून की उल्टी, रक्तपित्त रोग और नकसीर आदि रोगों में लाभ होता है।
खांसी और सांस की बीमारी में : अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।
नकसीर व रक्तपित्त : अड़ूसा की जड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा बराबर की मात्रा में मिलाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराने से नाक और मुंह से खून आने की तकलीफ दूर होती है।
फोड़े-फुंसियां : अडूसा के पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप बनाकर फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बांधने से इनका असर कम हो जाएगा। यदि पक गए हो तो शीघ्र ही फूट जाएंगे। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाएंगे।
पुराना जुकाम, साइनोसाइटिस, पीनस में : अडूसा के फूलों से बना गुलकन्द 2-2 चम्मच सुबह-शाम खाएं।
खुजली : अडूसे के नर्म पत्ते और आंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अडूसे के पत्तों को पानी में उबाले और उस पानी से स्नान करें।
गाढ़े कफ पर : गर्म चाय में अडूसे का रस, शक्कर, शहद और दो चने के बराबर संचल डालकर सेवन करना चाहिए।
बिच्छू के जहर पर : काले अडूसे की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर काटे हुए स्थान पर लेप करें।
सिर दर्द :
- अडूसा के फलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर 4 खुराक बना लें। सिरदर्द का दौरा शुरू होते ही 1 गोली खिला दें, तुरंत लाभ होगा।
- अडूसे की 20 ग्राम जड़ को 200 ग्राम दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर इसमें 30 ग्राम मिश्री 15 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिर का दर्द, आंखों की बीमारी, बदन दर्द, हिचकी, खांसी आदि विकार नष्ट होते हैं।
- छाया में सूखे हुए वासा के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर-दर्द या सिर से सम्बंधी कोई भी बाधा दूर हो जाती है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।
नेत्र रोग (आंखों के लिए) : इसके 2-4 फूलों को गर्मकर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है।
मुखपाक, मुंह आना (मुंह के छाले) :
- यदि केवल मुख के छाले हो तो अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। पत्तों को चूसने के बाद थूक देना चाहिए।
- अडूसा की लकड़ी की दातुन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
- अडूसा (वासा) के 50 मिलीलीटर काढे़ में एक चम्मच गेरू और 2 चम्मच शहद मिलाकर मुंह में रखने करने से मुंह के छाले, नाड़ीव्रण (नाड़ी के जख्म) नष्ट होते हैं।
दांतों का खोखलापन : दाढ़ या दांत में कैवटी हो जाने पर उस स्थान में अडूसे का सत्व (बारीक पिसा हुआ चूर्ण) भर देने से आराम होता है।
मसूढ़ों का दर्द : अडूसे (वासा) के पत्तों के काढ़े यानी इसके पत्तों को उबालकर इसके पानी से कुल्ला करने से मसूढ़ों की पीड़ा मिटती है।
दांत रोग : अडू़से के लकड़ी से नियमित रूप से दातुन करने से दांतों के और मुंह के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
चेचक निवारण : यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का एक पत्ता तथा मुलेठी तीन ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।
कफ और श्वास रोग :
- अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रिगंणी के 10-20 ग्राम काढे़ में एक ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं।
- अडूसे के छोटे पेड़ के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर नित्य 10 ग्राम मात्रा की फंकी देने से श्वांस और कफ मिटता है।
फेफड़ों की जलन : अडूसे के 8-10 पत्तों को रोगन बाबूना में घोंटकर लेप करने से फेफड़ों की जलन में शांति होती है।
आध्यमान (पेट के फूलने) पर : अडूसे की छाल का चूर्ण 10 ग्राम, अजवायन का चूर्ण 2.5 ग्राम और इसमें 8वां हिस्सा सेंधानमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरलकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के पश्चात 1 से 3 गोली सुबह-शाम सेवन करने से वातजन्य ज्वर आध्मान विशेषकर भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना दूर होता है। वासा का रस भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) : अडूसे और नीम के पत्तों को गर्मकर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 ग्राम रस में उतना ही शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्यर्चजनक रूप से लाभ पहुंचता है।
मासिक-धर्म : यदि मासिक-धर्म समय से न आता हो तो वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा किलो पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई की मात्रा में शेष बचे तो इसे उतार लें। इस तैयार काढ़े को कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।
मूत्रावरोध : खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसे के पत्ते बराबर लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
मूत्रदाह (पेशाब की जलन) : यदि 8-10 फूलों को रात्रि के समय 1 गिलास पानी में भिगो दिया जाए और प्रात: मसलकर छानकर पान करें तो मूत्र की जलन दूर हो जाती है।
शुक्रमेह : अडूसे के सूखे फूलों को कूट-छानकर उसमें दुगुनी मात्रा में बंगभस्म मिलाकर, शीरा और खीरा के साथ सेवन करने से शुक्रमेह नष्ट होता है।
जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) : जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाए तो अडूसे के पत्तों का 10-20 ग्राम स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से मूत्रवृद्धि हो करके यह रोग मिटता है।
सुख प्रसव (शिशु की नारमल डिलीवरी) :
- अडू़से की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलो व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर से बांधने से बालक आसानी से पैदा हो जाता है।
- पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग, इनमें किसी एक बूटी की जड़ को नाभि, बस्तिप्रदेश (नाभि के पास) तथा भग प्रदेश (योनि के आस-पास) लेप देने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
प्रदर :
- पित्त प्रदर में अडूसे के 10-15 मिलीलीटर स्वरस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
- अडूसा के 10 ग्राम पत्तों के स्वरस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पित्त प्रदर मिटता है।
बाइटें (अंगों का सुन्न पड़ जाना) : 10 ग्राम वासा के फूलों को 2 ग्राम सोंठ के साथ 100 ग्राम जल में पकाकर पिलाने से बाइटों में आराम मिलता है।
ऐंठन : अडूसे के पत्ते के रस में तिल के तेल मिलाकर गर्म कर लें। इसकी मालिश से आक्षेप (लकवा), उदरस्थ वात वेदना तथा हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
वातरोग : वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिंकाई करने से जोड़ों का दर्द, लकवा और दर्दयुक्त चुभन में आराम पहुंचाता है।
रक्तार्श (खूनी बवासीर) : अडूसे के पत्ते और सफेद चंदन इनको बार-बार मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है और खून का बहना बंद हो जाता है। बवासीर के अंकुरों में यदि सूजन हो तो इसके पत्तों के काढ़ा का बफारा देना चाहिए।
रक्त पित्त :
- ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस निकालकर 10-20 ग्राम रस में शहद तथा खांड को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है। उर्ध्व रक्तपित्त में इसका प्रयोग होता है।
- अडूसा का 10-20 ग्राम स्वरस, तालीस पत्र का 2 ग्राम चूर्ण तथा शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ विकार, पित्त विकार, तमक श्वास, स्वरभेद (गले की आवाज का बैठ जाना) तथा रक्तपित्त का नाश होता है।
- अडूसे की जड़, मुनक्का, हरड़ इन तीनो को बराबर मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें। चौथाई भाग शेष रह जाने पर उस काढ़े में चीनी और शहद डालकर पीने से खांसी, श्वांस तथा रक्तपित्त रोग शांत होते हैं।
कफ-ज्वर : हरड़, बहेड़ा, आंवला, पटोल पत्र, वासा, गिलोय, कटुकी, पिपली की जड़ को मिलाकर इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।
कामला :
- त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा अडूसा 20 ग्राम लेकर 320 ग्राम पानी पकायें, जब चौथाई भाग शेष रह जाये तो इस काढे़ में शहद मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से कामला तथा पांडु रोग नष्ट होता है।
- इसके पंचाग के 10 मिलीलीटर रस में शहद और मिश्री बराबर मिलाकर पिलाने से कामला रोग नष्ट हो जाता है।
दाद, खाज-खुजली : अडूसे के 10-12 कोमल पत्ते तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एकत्रकर गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करने से खुजली और सूजन शीघ्र नष्ट हो जाती है। इससे दाद, खाज-खुजली में भी लाभ होता है।
आन्त्र-ज्वर (टायफाइड) : 3 से 6 ग्राम अडूसे की जड़ के चूर्ण की फंकी देने से आन्त्र ज्वर ठीक हो जाता है।
शरीर की दुर्गन्ध : अडूसे के पत्ते के रस में थोड़ा-सा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
जंतुध्न (छोटे-मोटे जीव-जतुंओं के द्धारा होने वाले जल के दोषों) को दूर करने के लिए : अडूसा जलीय कीड़ों तथा जंतुओं के लिए विषैला है। इससे मेंढक इत्यादि छोटे जीव-जंतु मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।
पशुओं के रोग : गाय तथा बैलों को यदि कोई पेट का विकार हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। इससे पशुओं के पेट के कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं।
कीड़ों के लिए : अडूसे के सूखे पत्ते पुस्तकों में रखने से उनमें कीडें नहीं लगते हैं।
वायुप्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) :
- नये वायु प्रणाली के शोथ (ब्रोंकाइटिस) में अड़ूसा, कंटकारी, जवासा, नागरमोथा और सोंठ का काढ़ा उपयोगी होता है।
- वासावलेह 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में बहुत लाभ मिलता है।
सान्निपात ज्वर :
- अडूसा, पित्तपापड़ा, नीम, मुलहठी, धनिया, सोंठ, देवदारू, बच, इन्द्रजौ, गोखरू और पीपल की जड़ का काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से सिन्नपात बुखार, श्वास (दमा), खांसी, अतिसार, शूल और अरुचि (भूख का न लगना) आदि रोग समाप्त होते हैं।
- सिन्नपातिक ज्वर में पुटपाक विधि से निकाला अडूसा का रस 10 ग्राम तथा थोड़ा अदरक का रस और तुलसी के पत्ते मिलाकर उसमें मुलहठी को घिसें। फिर इसे शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए।
- सिन्नपात ज्वर में इसकी जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम, कालीमिर्च एक ग्राम का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।
वात-पित्त का बुखार : अडूसा, छोटी कटेरी और गिलोय को मिलाकर पीस लें, इस मिश्रण को 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार और खांसी के रोग में लाभ मिलता है।
बुखार :
- वासा (अडूसे) के पत्ते और आंवला 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूटकर पीस लें और किसी बर्तन में पानी में डालकर रख दें। सुबह थोड़ा-सा मसलकर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पैत्तिक बुखार समाप्त हो जाता है।
- 10 ग्राम अडूसे का रस, अदरक का रस 5 ग्राम, थोड़ा-सा शहद मिलाकर दिन में कई बार चाटने से बहुत लाभ होता है।
- अडूसे का रस, अदरक का रस और तुलसी के पत्तों का रस 5-5 ग्राम मिलाकर उसमें 5 ग्राम मुलहठी का चूर्ण डालकर सेवन करने से श्लैष्मिक बुखार समाप्त होता है।
गीली खांसी : 7 से 14 मिलीमीटर वासा के ताजा पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी नष्ट हो जाती है।
टी.बी. युक्त खांसी :
- वासा के ताजे पत्तों के स्वरस को शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग (टी.बी.) में बहुत फायदा होता है।
- वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच, 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम हो जाता है।
- क्षय रोग (टी.बी.) में अडूसे के पत्तों के 20-30 ग्राम काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण बुरककर पिलाने से पुरानी खांसी, श्वांस और क्षय रोग में फायदा होता है।
काली खांसी (कुकर खांसी) : अड़ूसा के सूखे पत्तों को मिट्टी के बर्तन में रखकर, आग पर गर्म करके उसकी राख को तैयार कर लेते हैं। उस राख को 24 से 36 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद के साथ रोगी को चटाने से काली खांसी दूर हो जाती है।
खांसी :
- अड़ू़सा के रस को शहद के साथ मिलाकर चाटने से नयी और पुरानी खांसी में लाभ होता है। इससे कफ के साथ आने वाला खून भी बंद हो जाता है।
- लगभग एक किलो अड़ूसा के रस में 320 ग्राम सफेद शर्करा, 80-80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और गाय का घी मिलाकर धीमी आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद इसे गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा होने के लिए रख देते हैं। अब इसमें 320 ग्राम शहद मिलाकर रख देते हैं। यह राज्ययक्ष्मा (टी.बी.) खांसी, श्वास, पीठ का दर्द, हृदय के शूल, रक्तपित्त तथा ज्वर को भी दूर करता है। इसकी मात्रा एक चम्मच अथवा रोग की स्थिति के अनुसार रोगी को देनी चाहिए।
- अड़ूसा के सूखे पत्तों को जलाकर राख तैयार कर लेते हैं। यह राख और मुलहठी का चूर्ण 50-50 ग्राम काकड़ासिंगी, कुलिंजन और नागरमोथा 10-10 ग्राम सभी को खरल करके एक साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
- 40 ग्राम अड़ूसा, 20 ग्राम मुलहठी और 10 ग्राम बड़ी इलायची को लेकर चौगुने पानी के साथ काढ़ा बना लें। इसके आधा बाकी रहने पर उतार लें और उसमें थोड़ा सा छोटी पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से सभी प्रकार की खांसी जैसे कुकर खांसी, श्वास कफ के साथ खून का जाना आदि में बहुत लाभ मिलता है।
- कफयुक्त बुखार में अडू़सा (बाकस) के पत्तों को पीसकर निकाला गया रस 5 से 15 ग्राम, अदरक का रस या छोटी पीपल, सेंधानमक और शहद के साथ सुबह-शाम देने से लाभ मिलता है।
- बच्चों के कफ विकार में 5-10 ग्राम अड़ूसा (बाकस) का रस सुहागे की खीर के साथ रोजाना 2-3 बार देने से आराम आता है।
- अड़ूसा और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से खांसी मिट जाती है।
- अड़ूसा और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर ठंडा करके पीने से सूखी खांसी नष्ट हो जाती है।
- अड़ूसा के वृक्ष के पंचांग को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को रोजाना 10 ग्राम सेवन करने से खांसी और कफ में लाभ मिलता है।
- अड़ूसा के पत्ते और पोहकर की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने श्वांस (सांस) की खांसी में लाभ मिलता है।
- अड़ूसा की सूखी छाल को चिलम में भरकर पीने से श्वांस (सांस) की खांसी दूर हो जाती है।
- अड़ूसा, तुलसी के पत्ते और मुनक्का तीनों को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
- अड़ूसा, मुनक्का, सोंठ, लाल इलायची तथा कालीमिर्च सभी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को सुबह और शाम सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
चतुर्थकज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) : वासा मूल, आमलकी और हरीतकी फल मिश्रण, शालपर्णी पंचांग (शालपर्णी की तना, पत्ती, जड़, फल और फूल), देवदारू की लकड़ी और शुंठी आदि को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर 5 से 10 ग्राम शर्करा और 5 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लें।
निमोनिया :
- बच्चों के गले और सीने में घड़घड़ाहट होने पर 10 से 20 बूंद अड़ूसा लाल (लाल बाकस) के पत्तों के रस को सुहागा की खील के साथ या छोटी पीपल और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अंतराल पर देने से बच्चे को पूरा लाभ मिलता है।
- निमोनिया के रोग में 4 काले अड़ूसा (बाकस) के पत्तों का रस सहजने की छाल का रस और सामुद्रिक नमक शहद के साथ देने से लाभ होता है।
पुरानी खांसी : अड़ूसा के अवलेह का सेवन पुरानी खांसी में बहुत उपयोगी होता है।
सूखी खांसी : 14 मिलीमीटर वासा के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में घी और शर्करा को मिलाकर दिन में 2 बार लेने से खांसी ठीक हो जाती है।
मोतियाबिंद : अडूसे के पत्तों को साफ पानी से धोकर पत्तों का रस निकाल लें। इस रस को अच्छे पत्थर की खल में डालकर (ताकि पत्थर घिसकर दवा में न मिले।) मूसल से खरल करते रहें। शुष्क हो जाने पर आंखों में काजल की तरह लगाएं। यह सब तरह के मोतियाबिंद में आराम आता है।
अफारा : अडूसा (बाकस) के पत्तों का 5 ग्राम से लेकर 15 ग्राम को खुराक के रूप में देने से लाभ होता है।
उर:क्षत (हृदय में जख्म) होने पर : वासा के ताजे पत्तों का रस 7 से 14 मिलीमीटर की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत में लाभ मिलता है।
जुएं का पड़ना :
- अडूसा के पत्तों से बने काढे़ से बालों को धोने से जूएं मर जाते हैं।
- अडूसा के पत्तों में फल बांधकर रखा जाए तो सड़ नहीं पाता, इसके (एलकोहलिक टिंचर) को छिड़कने से मक्खी, मच्छर एवं पिप्सू आदि भाग जाते हैं। अडूसा के पत्तों से बनी खाद को खेतों में डाला जाए तो फसलों में कीड़े नहीं लगते हैं। ऊनी कपड़ों के तह में पत्तों को रखने से कपड़ों में कीड़े नहीं आते हैं। इसी तरह इसके काढे़ से बालों को धोने से बालों के जूँ मर जाते हैं।
खून की उल्टी : अडूसे के पत्तों के रस में शहद को मिलाकर सेवन करने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है।
जुकाम :
- 20 ग्राम अडूसे के पत्तों को 250 ग्राम पानी में डालकर उबालने के लिए रख दें। उबलने पर जब पानी 1 चौथाई बाकी रह जाये तो उसे उतारकर और पानी में ही मलकर अच्छी तरह से छान लें। इस काढ़े को पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
- अडूसे के पत्तों का रस निकालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
दस्त आने पर : अडूसे (बाकस) के पत्तों का रस 5 ग्राम से लेकर 15 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार (सुबह और शाम) पीने से अतिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
आमातिसार (दस्त में आंव आना) : 5 से 15 ग्राम बाकस (अडूसे) के पत्तों का रस निकालकर रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ मिलाकर रोगी को देने से आमातिसार में ठीक होता है।
खूनी अतिसार : अडूसे के पत्तों का रस पिलाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) मिट जाता है।
कनफेड : अडूसा के पत्तों को पीसकर लगाने से कनफेड में लाभ होता है।
भगन्दर : अडूसे के पत्ते को पीसकर उसकी टिकिया बनाकर तथा उस पर सेंधानमक बुरककर बांधने से भगन्दर ठीक होता है।
दर्द व सूजन :
- बाकस के पत्ते की पट्टी बांधने से सूजन में आराम होता है।
- लाल बाकस के पत्तों को नारियल के पानी में पीसकर लेप करने से सूजन मिट जाती है। ऊपर से एरंड तेल लगे मदार के पत्ते बांधने और जल्द लाभ देता है।
अम्लपित्त :
- अडूसा, गिलोय और छोटी कटेली को मिलाकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को शहद के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी), खांसी, श्वास (दमा) और बुखार आदि बीमारियों में लाभ मिलता है।
- अडूसा, गिलोय, पित्तपापड़ा, नीम की छाल, चिरायता, भांगरा, हरड़, बहेड़ा, आमला और कड़वे परवल के पत्तों को मिलाकर पीसकर पकाकर काढ़ा बनाकर शहद डालकर पीने से अम्लपित्त शांत हो जाती है।
गिल्टी : काले आडूसे (बाकस) के पत्तों के रस तेल में मिलाकर गांठों पर लगाने से गिल्टी रोग में लाभ होता है।
रक्तप्रदर :
- अडूसा के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से रक्त प्रदर मिट जाता है।
- वासा के पत्ते का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को शर्करा 5-10 ग्राम के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।
स्तनों की सूजन : अडूसा (बाकस) के पत्ते, नारियल के रस को मिलाकर पीसकर स्तन पर लगायें और ऊपर से धतूरे के पत्तों को बांधे। इससे दूध की अधिकता के कारण होने वाली स्तन की सूजन समाप्त हो जाती है।
पेट के कीडे़ : आडू के पत्तों को पीसकर प्राप्त 30 ग्राम रस में थोड़ी-सी मात्रा में हींग मिलाकर चाटने से पेट में उपस्थित कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
घाव (व्रण) : अमलतास, गिलोय और अडूसा का काढ़ा बना लें। इस काढ़े में अण्डी का तेल मिलाकर पीने से घाव ठीक हो जाता है।
उपदंश (सिफलिस) : अडूसे की जड़ की छाल को पानी के साथ पीसकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना लें, सुबह के समय 1-1 गोली घी के साथ खायें इससे उपदंश दूर हो जाता है।
गठिया रोग : अडूसा (वाकस) के पत्तों की पट्टी बांधने से इस रोग में लाभ मिलता है और हिड्डयों की कमजोरी दूर होती है।
योनि रोग : अडूसा, कड़वे परवल, बच, फूलिप्रयंगु और नीम को लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें, इसी प्रकार से अमलतास के काढ़े से योनि को धोकर योनि में इसी चूर्ण को रखने से योनि में से आने वाली बदबू और चिकनापन (लिबलिबापन) समाप्त हो जाता है।
जोड़ों के दर्द : जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए अडूसे के पत्ते को गर्म करके जोड़ों पर लगाने से दर्द दूर होते हैं।
हाथ-पैरों की ऐंठन :
- अडूसे की जड़, पत्ते और फूलों का गाढ़ा काढ़ा बनाकर चाटने से हाथ-पैरों में ऐंठन सा दर्द खत्म हो जाता है।
- अडूसे के फूलों को सोंठ के साथ काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
- अडूसे के फूल और फलों को सरसों के तेल में जलाकर छान लें। इस तेल की मालिश हाथ-पैरों पर करने से ऐंठन का दर्द ठीक होता है।
कुष्ठ (कोढ़) :
- 5 से 15 ग्राम अडूसा के पत्तों का रस कुष्ठ (कोढ़) के रोगी को सुबह और शाम पिलाने, पत्तों का रस लगाने और पत्तों के काढ़े से नहाने से लाभ होता है।
- अड़ूसा के कोमल पत्ते और हल्दी को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से `कच्छू-कुष्ठ´ रोग सिर्फ तीन दिन में ही ठीक हो जाता है।
- अडूसे के कोमल पत्तों को पीसकर हल्दी और गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से तीन ही दिन में कच्छू-कोढ़ दूर हो जाता है।
शीतला (मसूरिका) :
- अडूसे के रस में शहद को मिलाकर पीने से कफज-मसूरिका ठीक हो जाती है।
- अडूसा, गिलोय, नागरमोथा, पटोलपत्र, धनिया, जवासा, चिरायता, नीम, कुटकी और पित्तपापड़ा को मिलाकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से रुकी हुई मसूरिका (छोटी माता) में लाभ होता है।
पांडु रोग (पीलिया) :
- अडूसे के रस में कलमीशोरा डालकर पीने से मूत्र-वृद्धि होकर पांडु रोग यानी पीलिया में लाभ होता है।
- आंवला, हरड़, बहेड़ा, चिरायता, अडूसा के पत्ते, कुटकी नीम की छाल को बराबर की मात्रा में बारीक से कूट-पीसकर इसकी पच्चीस ग्राम मात्रा को 250 ग्राम पानी में उबालें, जब 50 ग्राम शेष रह जाए तब उसे ठंडाकर पीएं। 10 दिनों में ही कमला रोग में लाभ हो जायेगा।
खसरा : 5-5 ग्राम पाद, पटोल, कुटकी, लाल चंदन सफेद चंदन, खस, आमला, अडूसा, जवासा, को बारीक पीसकर 3 पुड़िया बना लें फिर 1 पुड़िया को रात को 250 ग्राम पानी में भिगो लें और सुबह उबालने के लिए रख दें जब पानी 1 चौथाई रह जाये तो उसे छानकर उसमें एक चम्मच पिसी हुई मिश्री मिलाकर खाली पेट पिएं।
खून की कमी : एक कप पके अड़ूसों का रस निकालकर 8 दिन तक पीने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ जाती है।
नाड़ी का दर्द : नाड़ी के दर्द में बाकस (अडूसे) के पत्तों की पट्टी बांधने से लाभ होता है।
सफ़ेद फूलों वाले अडूसा को मालाबार नट भी कहते हैं. ये पांच से लेकर आठ फिट की ऊंचाई वाले अनेक शाखाओं वाले झाडीदार पेड़ होते हैं. जिसके पत्ते दोनों तरफ से नोंकदार होते हैं. ये हमेशा हरे रहने वाले पेड़ हैं. इनके पत्ते, फूल ,जड़, तना सभी औषधीय दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं . ये नीचे अडूसा या वासा के चित्र हैं.
इसके पत्ते कफ विकारों में बहुत काम आते हैं. टी.बी. का तो ये बेहद असरकारी इलाज है. हमारे देश में चालीस प्रतिशत रोगी टी.बी.से ग्रसित होते हैं, और इसी रोग के साथ जिन्दगी बिता देते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन छः महीने का एलोपैथ का कोर्स सचमुच हमारे देश की जनता के लिए कठिन है. उसमें भी अगर गैप हो जाए तो फिर से शुरू कीजिये. जबकि किसी आयुर्वेदिक औषधि के साथ ऐसा नहीं है. आयुर्वेदिक औषधियों को लेने का एक ही नियम है कि वे खाली पेट सुबह ही ले ली जाएं. १० दिन लेने के बाद दो चार दिन का गैप भी हो जाए तो कोई परेशानी नहीं है. लेकिन आयुर्वेदिक दवा कम से कम २१ या ज्यादा दिनों का रोग हो तो ४१ दिन लेने का नियम शास्त्र सम्मत है.
***अडूसा या वासा के पत्तो को आप सुखा कर रख भी सकते हैं किन्तु फिर उसकी मियाद तीन महीने तक ही होती है. इन पत्तो का चूर्ण मलेरिया में बहुत तेज काम करता है. १० ग्राम सुबह और १० ग्राम शाम को दीजिये.
***अगर खून में पित्त की मात्रा ज्यादा हो गयी है अर्थात पीलापन शरीर में बढ़ गया है या आपको पित्त की अधिकता का एहसास हो रहा है तो पत्तो का एक कप(६० ग्राम) रस निकालिए और उसमें तीन चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाइए. हर बार एक कप रस ताजा निकालिए,ज्यादा फ़ायदा करेगा. ये प्रक्रिया पांच दिन तक कीजिये.
*** अगर श्वांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो वासा के पत्तों के रस में अदरक का रस तथा शहद मिला कर कम से कम ५ दिन तक पिलाइए. जितना पत्तों का रस हो उसका आधा अदरक का रस और अदरक के रस का आधा शहद. दिन में एक बार खाली पेट.
*** शरीर में कही खाज-खुजली की शिकायत हो तो पत्तों के रस में हल्दी मिलाकर लेप कर लीजिये. तीन- चार दिन में कीड़े ही ख़त्म हो जायेंगे.
*** पेट में कीड़े पड़ गये हो तो पत्तो के रस में शहद मिलाकर दिन में एक बार लीजिये
***मूत्रत्याग में कोई परेशानी हो या मूत्राशय से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो गन्ने के रस में २५ ग्राम वासा के पत्तो का रस मिलाकर पी कर देखिये.
*** हैजा हो गया हो तो इसके फूलों का रस शहद मिलाकर दीजिये.
*** जुकाम में २५ ग्राम पत्तो के रस में १३ ग्राम तुलसी के पत्तो का रस और १० ग्राम शहद मिला कर दिन में दो बार पीजिये. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लेंगे तो जादू जैसा असर दिखाई देगा.
वासा के पत्तों में वेसिनिन, आधाटोदिक अम्ल, वसा, राल, शर्करा, गोंद, उड़नशील तेल, पीत्रन्जक तत्व, एल्केलायड, एनाएसोलिन, वेसिसीनोन आदि तत्वों की भरमार होती है.
दूसरा पीले फूलों वाला पौधा या झाडी होती है, इसकी ऊँचाई चार फिट के अन्दर ही देखी गई है. इसका एक नाम कटसरैया भी है. कहीं-कहीं पियावासा भी बोलते हैं. ये झाड़ियाँ कंटीली होती हैं. इसके पत्ते भी ऊपर वाले वासा से मिलते जुलते होते हैं. किन्तु इस पौधे के पत्ते और जड़ ही औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं. इसके चित्र सबसे ऊपर दिए गए हैं, आप ठीक से पहचान लीजिये.
इसमें पोटेशियम की अधिकता होती है इसी कारण यह औषधि दाँत के रोगियों के लिए और गर्भवती नारियों के लिए अमृत मानी गयी है.
****गर्भवती नारियों को इसके जड़ के रस में दालचीनी, पिप्पली, लौंग का २-२ ग्राम चूर्ण और एक चौथाई ग्राम केसर मिलाकर खिलाने से अनेक रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, तन स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है, पैर सूजना, जी मिचलाना, मन खराब रहना, लीवर खराब हो जाना, खून की कमी, ब्लड प्रेशर, आदि तमामतर कष्ट दूर ही रहते हैं. बस सप्ताह में दो बार पी लिया करें.
****मुंह में छले पड़े हों या दाँत में दर्द होता हो या दाँत में से खून आ रहा हो या मसूढ़े में सूजन /दर्द हो तो बस इसके पत्ते चबा लीजिये,उसका रस कुछ देर तक मुंह में रहने दीजिये फिर चाहें तो निगल लें, चाहें तो बाहर उगल दें. कटसरैया की दातुन भी कर सकते हैं.
****मुंहासों में इसके पत्तों के रस को नारियल के तेल में खूब अच्छे तरीके से मिला लिजिये, दोनों की मात्रा बराबर हो, बस रात में चेहरे पर रगड़ कर लगा कर सो जाएं, चार दिनों में ही असर दिखाई देगा. मुंहासे वाली फुंसियां भी इससे नष्ट होती हैं.
**** शरीर में कहीं सूजन हो तो पूरे पौधे को मसल कर रस निकाल लीजिये और उसी रस का प्रयोग सूजन वाले स्थान पर बार-बार कीजिये.
****पत्तो का रस पीने से बुखार नष्ट होता है, पेट का दर्द भी ठीक हो जाता है. रस २५ ग्राम लीजियेगा .
**** घाव पर पत्ते पीस कर लेप कीजिये. पत्तो की राख को देशी घी में मिलाकर जख्मों में भर देने से जख्म जल्दी भर जाते हैं,कीड़े भी नहीं पड़ते और दर्द भी नही होता.
इस पौधे में बीटा-सिटोस्तीराल, एसीबार्लेरिन, एरीडोइड्स बार्लेरिन, स्कूतेलारिन रहामनोसिल ग्लूकोसैड्स जैसे तत्वों की उपस्थिति है. इसका वैज्ञानिक नाम है- बार्लेरिया प्रिओनितिस .
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अडूसा (वासा) 59 रोगों की एक रामबाण औषिधि
THURSDAY, 24 MARCH 2016
अडूसा या वासा (Malabar Nut, Adhatoda Vasika)
★ परिचय :
सारे भारत में अडूसा के झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं। ये 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्ते 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ अमरूद के पत्तों जैसे होते हैं। ये नोकदार, तेज गंधयुक्त, कुछ खुरदरे, हरे रंग केअडूसा एक आयुर्वेदिक औषधी है जो 120 से 240 सेमी ऊंचे होते हैं। अडूसा के पत्तों, अमरूद के पत्ते के समान 7.5 से 20 सेमी तक लंबे और 4 से साढ़े 6 सेमी चौडे़ होते हैं। होते हैं। अडूसा के पत्तों को कपड़ों और पुस्तकों में रखने पर कीड़ों से नुकसान नहीं पहुंचता। इसके फूल सफेद रंग के 5 से 7.5 सेमी लंबे और हमेशा गुच्छों में लगते हैं। लगभग 2.5 सेमी लंबी इसकी फली रोम सहित कुछ चपटी होती है, जिसमें चार बीज होते हैं। तने पर पीले रंग की छाल होती है। अडूसा की लकड़ी में पानी नहीं घुसने के कारण वह सड़ती नहीं है।
• संस्कृत : वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरूष।
• हिंदी : अडूसा, विसौटा, अरूष।
• मराठी : अडूलसा, आडुसोगे।
• गुजराती : अरडूसों, अडूसा, अल्डुसो।
• बंगाली : वासक, बसाका, बासक।
• तेलगू : पैद्यामानु, अद्दासारामू।
• तमिल : एधाडड।
• अरबी : हूफारीन, कून।
• पंजाबी : वांसा।
• अंग्रेजी : मलाबार नट।
• लैटिन : अधाटोडा वासिका
• रंग : अडूसा के फूल का रंग सफेद तथा पत्ते हरे रंग के होते हैं।
• स्वाद : अडूसा के फूल का स्वाद कुछ-कुछ मीठा और फीका होता है। पत्ते और जड़ का स्वाद कडुवा होता है।
स्वरूप :
• पेड़ : अडूसा के पौधे भारतवर्ष में कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाड़ियों के समूह में उगते हैं। अडूसा का पेड़ मनुष्य की ऊंचाई के बराबर का होता है।
• पत्ते : पत्ते 7.5 से 20 सेमी लम्बे रोमश, अभिमुखी, दोनों और से नोकदार होते हैं।
• फूल : श्वेतवर्ण 5 से 7.5 सेमी लंबे लम्बी मंजरियों में फरवरी-मार्च में आते हैं।
• फली : लगभग 2.5 सेमी लम्बी, रोमश, प्रत्येक फली में चार बीज होते है।
• स्वभाव : अडूसा खुश्क तथा गर्म प्रकृति का होता है। परन्तु फूल शीतल प्रकृति का होता है।
• मात्रा : फूल और पत्तों का ताजा रस 10 से 20 मिलीलीटर (2 से 4 चम्मच), जड़ का काढ़ा 30 से 60 मिलीलीटर तक तथा पत्तों, फूलों और जड़ों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तक ले सकते हैं।
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★ गुण : अडूसे का फूल यक्ष्मा (टी.बी.)और खून की गर्मी को दूर करने में उपयोगी होती है। आयुर्वेदिक मतानुसार अडू़सा कड़वा, कसैला, शीतल प्रकृति का, स्वर के लिए उत्तम, हल्का, हृदय के लिए गुणकारी, कफ़, पित्त, रक्त विकार (खून के रोग), वमन (उल्टी), सांस, बुखार, प्यास, खांसी, अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना), प्रमेह (वीर्य विकार), पुराना जुकाम और साइनोसाइटिस जैसे रोगों में सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति के मतानुसार अडू़सा नकसीर व रक्तपित्त को तुरंत रोकता है और उष्ण होने के कारण श्लेष्मा निस्सारक तथा जीवाणुनाशी श्वास संस्थान की प्रमुख औषधि है। यह स्वरशोधक होने के साथ-साथ खांसी की बूटी के नाम से भी विख्यात है।
वैज्ञानिक मतानुसार, अडूसा के रासायनिक संगठन से ज्ञात होता है कि इसकी पत्तियों में 2 से 4 प्रतिशत तक वासिकिन नामक एक तिक्त एल्केलाइड होता है। इसके अतिरिक्त इंसेशियल आइल, वासा अम्ल, राल, वासा, शर्करा, अमोनिया व अन्य पदार्थ भी मिलते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में पोटैशियम नाइट्रेट लवण पाए गए हैं। जड़ में वासिकिन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इन्हीं घटकों के कारण अडूसा में इतने सारे उपयोगी औषधीय गुण मिलते हैं।
होम्योपैथिक चिकित्सकों के मतानुसार अडूसा से नाक से छींक आना, सर्दी से खांसी हो जाना, एलर्जी होना, गला बैठना, कुकरखांसी (हूपिंग कफ) व साइनोसाइटिस जैसे रोगों में काफी लाभ होता है। इसकी 30 और 200 पोटेंसी बहुत लाभ पहुंचाती है।
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★ विभिन्न रोगों में उपयोगी :
1. क्षय (टी.बी.) : अडूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खिलाएं।
अडूसा (वासा) टी.बी. में बहुत लाभ करता है इसका किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी है। अडूसे के रस में शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार देना चाहिए।
वासा अडूसे के 3 लीटर रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें जब गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाय तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंडा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। साथ ही यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त तथा बुखार को भी दूर करता है।
वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।
अडूसा की जड़ की छाल को लगभग आधा ग्राम से 12 ग्राम या पत्ते के चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक खुराक के रूप में सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।
2. दमा : अड़ूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
अडूसा के ताजे पत्तों को सुखाकर उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों के चूर्ण का धूम्रपान (बीड़ी बनाकर पीने से) करने से पुराने दमा में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
यवाक्षार लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
लगभग आधा ग्राम अर्कक्षार या अड़ूसा क्षार शहद के साथ भोजन के बाद सुबह-शाम दोनों समय देने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
श्वास रोग (दमा) में अडू़सा (बाकस), अंगूर और हरड़ के काढ़े को शहद और शर्करा में मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ मिलता है।
श्वास रोग (दमा) में अड़ूसे के पत्तों का धूम्रपान करने से श्वास रोग ठीक हो जाता है। अडूसे के पत्ते के साथ धतूरे के पत्ते को भी मिलाकर धूम्रपान किया जाए तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।
अड़ूसे के रस में तालीस-पत्र का चूर्ण और शहद मिलाकर खाने से स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस पांच-पांच ग्राम मिलाकर दिन में 3-3 घंटे पर पिलाएं। इससे 40 दिनों में दमा दूर हो जाता है।
अड़ूसा के पत्तों का एक चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पुरानी खांसी, दमा, टी.बी., मल-मूत्र के साथ खून का आना, खून की उल्टी, रक्तपित्त रोग और नकसीर आदि रोगों में लाभ होता है।
3. खांसी और सांस की बीमारी में : अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।
4. नकसीर व रक्तपित्त : अड़ूसा की जड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा बराबर की मात्रा में मिलाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराने से नाक और मुंह से खून आने की तकलीफ दूर होती है।
5. फोड़े-फुंसियां : अडूसा के पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप बनाकर फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बांधने से इनका असर कम हो जाएगा। यदि पक गए हो तो शीघ्र ही फूट जाएंगे। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाएंगे।
6. पुराना जुकाम, साइनोसाइटिस, पीनस में : अडूसा के फूलों से बना गुलकन्द 2-2 चम्मच सुबह-शाम खाएं।
7. खुजली : अडूसे के नर्म पत्ते और आंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अडूसे के पत्तों को पानी में उबाले और उस पानी से स्नान करें।
8. गाढ़े कफ पर : गर्म चाय में अडूसे का रस, शक्कर, शहद और दो चने के बराबर संचल डालकर सेवन करना चाहिए।
9. बिच्छू के जहर पर : काले अडूसे की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर काटे हुए स्थान पर लेप करें।
10. सिर दर्द : अडूसा के फलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर 4 खुराक बना लें। सिरदर्द का दौरा शुरू होते ही 1 गोली खिला दें, तुरंत लाभ होगा।
अडूसे की 20 ग्राम जड़ को 200 मिलीलीटर दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर इसमें 30 ग्राम मिश्री 15 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिर का दर्द, आंखों की बीमारी, बदन दर्द, हिचकी, खांसी आदि विकार नष्ट होते हैं।
छाया में सूखे हुए वासा के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर-दर्द या सिर से सम्बंधी कोई भी बाधा दूर हो जाती है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।
11. नेत्र रोग (आंखों के लिए) : इसके 2-4 फूलों को गर्मकर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है।
12. मुखपाक, मुंह आना (मुंह के छाले) :
यदि केवल मुख के छाले हो तो अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। पत्तों को चूसने के बाद थूक देना चाहिए।
अडूसा की लकड़ी की दातुन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
अडूसा (वासा) के 50 मिलीलीटर काढे़ में एक चम्मच गेरू और 2 चम्मच शहद मिलाकर मुंह में रखने करने से मुंह के छाले, नाड़ीव्रण (नाड़ी के जख्म) नष्ट होते हैं।
13. मसूढ़ों का दर्द : अडूसे (वासा) के पत्तों के काढ़े यानी इसके पत्तों को उबालकर इसके पानी से कुल्ला करने से मसूढ़ों की पीड़ा मिटती है।
14. दांत रोग : अडू़से के लकड़ी से नियमित रूप से दातुन करने से दांतों के और मुंह के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
15. चेचक निवारण : यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का एक पत्ता तथा मुलेठी तीन ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।
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16. कफ और श्वास रोग : अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रिगंणी के 10-20 मिलीलीटर काढे़ में एक ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं।
अडूसे के छोटे पेड़ के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर नित्य 10 ग्राम मात्रा की फंकी देने से श्वांस और कफ मिटता है।
17. फेफड़ों की जलन : अडूसे के 8-10 पत्तों को रोगन बाबूना में घोंटकर लेप करने से फेफड़ों की जलन में शांति होती है।
18. आध्यमान (पेट के फूलने) पर : अडूसे की छाल का चूर्ण 10 ग्राम, अजवायन का चूर्ण 2.5 ग्राम और इसमें 8वां हिस्सा सेंधानमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरलकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के पश्चात 1 से 3 गोली सुबह-शाम सेवन करने से वातजन्य ज्वर आध्मान विशेषकर भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना दूर होता है। वासा का रस भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
19. वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) : अडूसे और नीम के पत्तों को गर्मकर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 ग्राम रस में उतना ही शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्यर्चजनक रूप से लाभ पहुंचता है।
20. मासिक-धर्म : यदि मासिक-धर्म समय से न आता हो तो वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा किलो पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई की मात्रा में शेष बचे तो इसे उतार लें। इस तैयार काढ़े को कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।
21. मूत्रावरोध : खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसे के पत्ते बराबर लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
22. मूत्रदाह (पेशाब की जलन) : यदि 8-10 फूलों को रात्रि के समय 1 गिलास पानी में भिगो दिया जाए और प्रात: मसलकर छानकर पान करें तो मूत्र की जलन दूर हो जाती है।
23. शुक्रमेह : अडूसे के सूखे फूलों को कूट-छानकर उसमें दुगुनी मात्रा में बंगभस्म मिलाकर, शीरा और खीरा के साथ सेवन करने से शुक्रमेह नष्ट होता है।
24. जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) : जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाए तो अडूसे के पत्तों का 10-20 मिलीलीटर स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से मूत्रवृद्धि हो करके यह रोग मिटता है।
25. सुख प्रसव (शिशु की नारमल डिलीवरी) :
अडू़से की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलो व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर से बांधने से बालक आसानी से पैदा हो जाता है।
पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग, इनमें किसी एक बूटी की जड़ को नाभि, बस्तिप्रदेश (नाभि के पास) तथा भग प्रदेश (योनि के आस-पास) लेप देने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
26. प्रदर : पित्त प्रदर में अडूसे के 10-15 मिलीलीटर स्वरस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
अडूसा के 10 मिलीलीटर पत्तों के स्वरस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पित्त प्रदर मिटता है।
27. बाइटें (अंगों का सुन्न पड़ जाना) : 10 ग्राम वासा के फूलों को 2 ग्राम सोंठ के साथ 100 ग्राम जल में पकाकर पिलाने से बाइटों में आराम मिलता है।
28. ऐंठन : अडूसे के पत्ते के रस में तिल के तेल मिलाकर गर्म कर लें। इसकी मालिश से आक्षेप (लकवा), उदरस्थ वात वेदना तथा हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
29. वातरोग : वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिंकाई करने से जोड़ों का दर्द, लकवा और दर्दयुक्त चुभन में आराम पहुंचाता है।
30. रक्तार्श (खूनी बवासीर) : अडूसे के पत्ते और सफेद चंदन इनको बार-बार मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है और खून का बहना बंद हो जाता है। बवासीर के अंकुरों में यदि सूजन हो तो इसके पत्तों के काढ़ा का बफारा देना चाहिए।
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31. रक्तपित्त : ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस निकालकर 10-20 मिलीलीटर रस में शहद तथा खांड को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है। उर्ध्व रक्तपित्त में इसका प्रयोग होता है।
अडूसा का 10-20 मिलीलीटर स्वरस, तालीस पत्र का 2 ग्राम चूर्ण तथा शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ विकार, पित्त विकार, तमक श्वास, स्वरभेद (गले की आवाज का बैठ जाना) तथा रक्तपित्त का नाश होता है।
अडूसे की जड़, मुनक्का, हरड़ इन तीनो को बराबर मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। चौथाई भाग शेष रह जाने पर उस काढ़े में चीनी और शहद डालकर पीने से खांसी, श्वांस तथा रक्तपित्त रोग शांत होते हैं।
32. कफ-ज्वर : हरड़, बहेड़ा, आंवला, पटोल पत्र, वासा, गिलोय, कटुकी, पिपली की जड़ को मिलाकर इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।
33. कामला : त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा अडूसा 20 ग्राम लेकर 320 मिलीलीटर में पानी पकायें, जब चौथाई भाग शेष रह जाये तो इस काढे़ में शहद मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से कामला रोग नष्ट होता है।
इसके पंचाग के 10 मिलीलीटर रस में शहद और मिश्री बराबर मिलाकर पिलाने से कामला रोग नष्ट हो जाता है।
34. दाद, खाज-खुजली : अडूसे के 10-12 कोमल पत्ते तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एकत्रकर गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करने से खुजली और सूजन शीघ्र नष्ट हो जाती है। इससे दाद, खाज-खुजली में भी लाभ होता है।
35. आन्त्र-ज्वर (टायफाइड) : 3 से 6 ग्राम अडूसे की जड़ के चूर्ण की फंकी देने से आन्त्र ज्वर ठीक हो जाता है।
36. शरीर की दुर्गन्ध : अडूसे के पत्ते के रस में थोड़ा-सा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
37. जंतुध्न (छोटे-मोटे जीव-जतुंओं के द्धारा होने वाले जल के दोषों) को दूर करने के लिए : अडूसा जलीय कीड़ों तथा जंतुओं के लिए विषैला है। इससे मेंढक इत्यादि छोटे जीव-जंतु मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।
38. पशुओं के रोग : गाय तथा बैलों को यदि कोई पेट का विकार हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। इससे पशुओं के पेट के कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं।
39. कीड़ों के लिए : अडूसे के सूखे पत्ते पुस्तकों में रखने से उनमें कीडें नहीं लगते हैं।
40. वायुप्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) : नये वायु प्रणाली के शोथ (ब्रोंकाइटिस) में अड़ूसा, कंटकारी, जवासा, नागरमोथा और सोंठ का काढ़ा उपयोगी होता है।
वासावलेह 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में बहुत लाभ मिलता है।
41. सन्निपात ज्वर : अडूसा, पित्तपापड़ा, नीम, मुलहठी, धनिया, सोंठ, देवदारू, बच, इन्द्रजौ, गोखरू और पीपल की जड़ का काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से सन्निपात बुखार, श्वास (दमा), खांसी, अतिसार, शूल और अरुचि (भूख का न लगना) आदि रोग समाप्त होते हैं।
सन्निपातिक ज्वर में पुटपाक विधि से निकाला अडूसा का रस 10 मिलीलीटर तथा थोड़ा अदरक का रस और तुलसी के पत्ते मिलाकर उसमें मुलहठी को घिसें। फिर इसे शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए।
सिन्नपात ज्वर में इसकी जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम, कालीमिर्च एक ग्राम का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।
42. वात-पित्त का बुखार : अडूसा, छोटी कटेरी और गिलोय को मिलाकर पीस लें, इस मिश्रण को 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार और खांसी के रोग में लाभ मिलता है।
43. बुखार : वासा (अडूसे) के पत्ते और आंवला 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूटकर पीस लें और किसी बर्तन में पानी में डालकर रख दें। सुबह थोड़ा-सा मसलकर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पैत्तिक बुखार समाप्त हो जाता है।
10 मिलीलीटर अडूसे का रस, अदरक का रस 5 मिलीलीटर, थोड़ा-सा शहद मिलाकर दिन में कई बार चाटने से बहुत लाभ होता है।
अडूसे का रस, अदरक का रस और तुलसी के पत्तों का रस 5-5 मिलीलीटर मिलाकर उसमें 5 ग्राम मुलहठी का चूर्ण डालकर सेवन करने से श्लैष्मिक बुखार समाप्त होता है।
44. गीली खांसी : 7 से 14 मिलीमीटर वासा के ताजा पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी नष्ट हो जाती है।
45. टी.बी. युक्त खांसी :
वासा के ताजे पत्तों के स्वरस को शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग (टी.बी.) में बहुत फायदा होता है।
वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच, 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम हो जाता है।
क्षय रोग (टी.बी.) में अडूसे के पत्तों के 20-30 मिलीलीटर काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण बुरककर पिलाने से पुरानी खांसी, श्वांस और क्षय रोग में फायदा होता है।
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46. काली खांसी (कुकर खांसी) : अड़ूसा के सूखे पत्तों को मिट्टी के बर्तन में रखकर, आग पर गर्म करके उसकी राख को तैयार कर लेते हैं। उस राख को 24 से 36 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद के साथ रोगी को चटाने से काली खांसी दूर हो जाती है।
47. खांसी : अड़ू़सा के रस को शहद के साथ मिलाकर चाटने से नयी और पुरानी खांसी में लाभ होता है। इससे कफ के साथ आने वाला खून भी बंद हो जाता है।
लगभग एक किलो अड़ूसा के रस में 320 ग्राम सफेद शर्करा, 80-80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और गाय का घी मिलाकर धीमी आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद इसे गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा होने के लिए रख देते हैं। अब इसमें 320 ग्राम शहद मिलाकर रख देते हैं। यह राज्ययक्ष्मा (टी.बी.) खांसी, श्वास, पीठ का दर्द, हृदय के शूल, रक्तपित्त तथा ज्वर को भी दूर करता है। इसकी मात्रा एक चम्मच अथवा रोग की स्थिति के अनुसार रोगी को देनी चाहिए।
अड़ूसा के सूखे पत्तों को जलाकर राख तैयार कर लेते हैं। यह राख और मुलहठी का चूर्ण 50-50 ग्राम काकड़ासिंगी, कुलिंजन और नागरमोथा 10-10 ग्राम सभी को खरल करके एक साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
40 ग्राम अड़ूसा, 20 ग्राम मुलहठी और 10 ग्राम बड़ी इलायची को लेकर चौगुने पानी के साथ काढ़ा बना लें। इसके आधा बाकी रहने पर उतार लें और उसमें थोड़ा सा छोटी पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से सभी प्रकार की खांसी जैसे कुकर खांसी, श्वास कफ के साथ खून का जाना आदि में बहुत लाभ मिलता है।
कफयुक्त बुखार में अडू़सा (बाकस) के पत्तों को पीसकर निकाला गया रस 5 से 15 ग्राम, अदरक का रस या छोटी पीपल, सेंधानमक और शहद के साथ सुबह-शाम देने से लाभ मिलता है।
बच्चों के कफ विकार में 5-10 मिलीलीटर अड़ूसा (बाकस) का रस सुहागे की खीर के साथ रोजाना 2-3 बार देने से आराम आता है।
अड़ूसा और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से खांसी मिट जाती है।
अड़ूसा और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर ठंडा करके पीने से सूखी खांसी नष्ट हो जाती है।
अड़ूसा के वृक्ष के पंचांग को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को रोजाना 10 ग्राम सेवन करने से खांसी और कफ में लाभ मिलता है।
अड़ूसा के पत्ते और पोहकर की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने श्वांस (सांस) की खांसी में लाभ मिलता है।
अड़ूसा की सूखी छाल को चिलम में भरकर पीने से श्वांस (सांस) की खांसी दूर हो जाती है।
अड़ूसा, तुलसी के पत्ते और मुनक्का तीनों को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
अड़ूसा, मुनक्का, सोंठ, लाल इलायची तथा कालीमिर्च सभी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को सुबह और शाम सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
48. चतुर्थकज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) : वासा मूल, आमलकी और हरीतकी फल मिश्रण, शालपर्णी पंचांग (शालपर्णी की तना, पत्ती, जड़, फल और फूल), देवदारू की लकड़ी और शुंठी आदि को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर 5 से 10 ग्राम शर्करा और 5 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लें।
49. निमोनिया : बच्चों के गले और सीने में घड़घड़ाहट होने पर 10 से 20 बूंद अड़ूसा लाल (लाल बाकस) के पत्तों के रस को सुहागा की खील के साथ या छोटी पीपल और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अंतराल पर देने से बच्चे को पूरा लाभ मिलता है।
निमोनिया के रोग में 4 काले अड़ूसा (बाकस) के पत्तों का रस सहजने की छाल का रस और सामुद्रिक नमक शहद के साथ देने से लाभ होता है।
50. पुरानी खांसी : अड़ूसा के अवलेह का सेवन पुरानी खांसी में बहुत उपयोगी होता है।
51. सूखी खांसी : 14 मिलीलीटर वासा के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में घी और शर्करा को मिलाकर दिन में 2 बार लेने से खांसी ठीक हो जाती है।
52. मोतियाबिंद : अडूसे के पत्तों को साफ पानी से धोकर पत्तों का रस निकाल लें। इस रस को अच्छे पत्थर की खल में डालकर (ताकि पत्थर घिसकर दवा में न मिले।) मूसल से खरल करते रहें। शुष्क हो जाने पर आंखों में काजल की तरह लगाएं। यह सब तरह के मोतियाबिंद में आराम आता है।
53. अफारा : अडूसा (बाकस) के पत्तों का रस 5 से लेकर 15 मिलीलीटर को खुराक के रूप में देने से लाभ होता है।
54. उर:क्षत (हृदय में जख्म) होने पर : वासा के ताजे पत्तों का रस 7 से 14 मिलीमीटर की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत में लाभ मिलता है।
55. मुंह से खून आना : अड़ूसा की 6 ग्राम सूखी पत्तियां अथवा 10 ग्राम हरी पत्ती को महीन पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से मुंह से खून आना बंद हो जाता है।
56. जुएं का पड़ना : अडूसा के पत्तों से बने काढे़ से बालों को धोने से जूएं मर जाते हैं। अडूसा के पत्तों में फल बांधकर रखा जाए तो सड़ नहीं पाता, इसके (एलकोहलिक टिंचर) को छिड़कने से मक्खी, मच्छर एवं पिप्सू आदि भाग जाते हैं। अडूसा के पत्तों से बनी खाद को खेतों में डाला जाए तो फसलों में कीड़े नहीं लगते हैं। ऊनी कपड़ों के तह में पत्तों को रखने से कपड़ों में कीड़े नहीं आते हैं। इसी तरह इसके काढे़ से बालों को धोने से बालों के जूँ मर जाते हैं।
57. खून की उल्टी : अडूसे के पत्तों के रस में शहद को मिलाकर सेवन करने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है।
58. जुकाम : 20 ग्राम अडूसे के पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालने के लिए रख दें। उबलने पर जब पानी 1 चौथाई बाकी रह जाये तो उसे उतारकर और पानी में ही मलकर अच्छी तरह से छान लें। इस काढ़े को पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
अडूसे के पत्तों का रस निकालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
59. दस्त आने पर : अडूसे (बाकस) के पत्तों का रस 5 से लेकर 15 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार (सुबह-शाम) लेने से लाभ मिलता है।
Namaskar
ReplyDeletemera name Devendra hai meri umar 28 sal hai sir mujhe 3 sal se mera gala kharab rehta hai gale me under ki taraf uper ki or lal lal or dane jese rehte hai Jese jab hame kafi sardi jukham ho jata hai or gala kharab ho jata hai or nak kan gale me or dhodi per hontho ke niche khujli machati rehti hai or din bhar ek dam gada chip chipa resa yukt taar jesa gond ke saman or spanj jesa caugh bhi niklta rehta hor or din bhar mugh me apne aap aata rehata hai or muhe khansi bhi rehti hai or seene me hamesha hi jalan machti rehti hai or sine me hamesha ghar ghar ki awaz aati rehti hai or caugh bhi bahut hi jiyada banta hor or nikalta hai or bese to mujhe bachapan se saan ki bimari hai, jo theek hone ka name hi nahi le rahi hai,or mushe eosinophilia bhi hai , jo mughe 3 sal se hai mene kafi ilaz karaya per mujhe khansi me to aaram mil jata hai per muh me jo dane hai unme aaram nahi milta or khansi bhi 8-10 din bad fir ho jati hai mene kafi doctor ko dikhaya allopathic, homeopathic or aayurvedic medicine li per mujhe koi aaram nahi mil raha hai seena ka extra bhi karaya per kuchh doctor kehte hai ki tumha allergy ho gai hai or kuchh kehte hai ki bronchitis hai mene TV specialist ko bhi dikhaya per unka bhi kuchh kehna nahi hai beh allergy batate hai doctor sahah mene seene ka extra to karaya usme kuchh nahi tha per balgum ki janch nahi karai kya in sab upper likhe huye lanchhano se mujhe TV hai kya or me kya karu jisse me theek hao jau please help me ,sir or mujhe ek beemari or hai sex problem meri age 30 sal hai or meri abhi shadi nahi hue hai sir meri beemari yeh hai ki bese to mere ling me kafi kadapan rehta hai per jese hi me kisi ladki ke pass jata hu to ling me lar jesi niklne lagti hai or mere ling me dheela pan aa jata hai ya mene man me thoda sa bhai saxy bichar aa jaye to lar si nakane lagti hai aisa kyu koi upay bataye please
Very Nice गिलोय की लकड़ी के फायदे बताए Thank You.
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