परिचय : शरीफा (सीताफल) एक मीठा फल हैं, जिसमें काफी ज्यादा मात्रा में कैलोरी होती है। मधुमेह के रोगियों और मोटे व्यक्तियों को यह फल नहीं खाना चाहिए। शरीफा आसानी से हजम होने वाला और अल्सर व अम्ल पित्त के रोग में ज्यादा लाभकारी होता है। इसमें ऑयरन और विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत है।
शरीर की जलन : शरीफा सेवन करने या इसके गूदे से बने शर्बत शरीर की जलन को ठीक करता है।
स्त्रोत : जे के हैल्थ
शरीर की दुर्बलता, थकान, अशक्ति, मांस-पेशियां क्षीण होने की दशा में सीताफल का सेवन करने से मांसवृद्धि होती है। यह शरीर के लिए अत्यन्त श्रेष्ठ फल है। घबराहट, हृदय की क्रिया को स्वाभाविक बना देता है। इसकी एक बड़ी किस्म और होती है, जिसे रामफल कहते हैं। व्रत के दिनों में फलाहार के रूप में इसे खाते हैं। पूरक आहार के रूप में इसका सेवन किया जाता है। कुछ लोग सीताफल को अन्नुस भी कहते हैं। निम्न रोगों पर चिकित्सा संबंधी उपयोग दिए जा रहे हैं, इनका प्रयोग करें और रोगों को दूर भगाएं-अतिसार : सीताफल का कच्चा फल खाना अतिसार और पेचिश में उपयोगी है।
घाव पर : सीताफल के पत्तों को पीसकर, सेंधा नमक मिलाकर पुल्टिस को घाव पर बांधने से उसमें पड़े हुए कीड़े मर जाते हैं।
दूसरी विधि : कच्चे अपक्व फोड़ों पर सीताफल के पत्ते, कच्ची तंबाकू और सूखे चूने में शहद मिलाकर घाव पर बांधने से शीघ्र पकता है और भीतरी पीप बाहर निकलकर घाव शीघ्र ठीक होता है।
जुएं या लीख में : कच्चे सीताफल का चूर्ण या इसके बीज का चूर्ण बनाकर रात में सोने से पूर्व सिर में खूब लगाकर सिर को कपड़े से बांध लें। इससे सिर के बालों में पड़ी जुएं और लीखें मर जाती हैं।
पित्त में : पके सीताफल को खुली जगह ओस में रख दें। सवेरे खाने से पित्त का दाह शांत होता है।
बंद मासिक धर्म फिर से शुरू : यदि मासिक बंद हो गया हो, तो सीताफल के बीज की गर्म बत्ती बनाकर स्त्री योनि में रखने से बंद मासिक धर्म आना शुरू हो जाता है।
- * गांठ का इलाज : पके हुए सीताफल का गूदा कूटकर पोटली बांधने पर सांघातिक गांठ फूट जाते हैं।
- * घाव में कृमि : सीताफल के पत्तों को कूटकर उसमें सेंधा नमक मिला, घाव वाले स्थान पर रख पट्टी में बांध दें। इससे फोड़े या घाव में पीव तथा कीड़े, कृमि पड़ गये हो तो वे नष्ट हो जाएंगे।
- * घाव में कीटाणु : सीताफल के पत्ते पर तम्बाकू का चूर्ण, बुझा हुआ चूना को शहद में मिलाकर इसे घाव पर बांध दें। तीन दिन भीतर घाव के कीटाणु मर जायेंगे।
- * केश रोग : इसके बीज को बकरी के दूध के साथ पीसकर लेप करने से सिर के उड़े हुए बाल शीघ्र ही उग आते हैं और मस्तिष्क में ठंढक पहुंचती है।
- * जूं का उपचार : सीताफल के बीजों को महीन चूर्ण बनाकर पानी से लेप तैयार कर रात को सिर में लगाएं एवं सबेरे धो लें। दो तीन रात ऐसा करने से जुएं समाप्त हो जाती हैं। चूंकि बीज से निकलने वाला तेल विषला होता है, इसलिए बालों में इसका लेप लगाते समय आंख को बचाकर रखना चाहिये।
- * मिर्गी हिस्टीरिया : इसके पत्तों को पीसकर उसका पानी रोगी/रोगिणी की दोनों नासाओं (नाक के दोनों ओर) में दो-दो बूंद डालने से होश आ जाएगा।
स्त्रोत : रांची एक्सप्रेस. १८.१०.2011


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