प्रवाहिका (पेचिश) Diarrhea (Dysentery)
अतिसार और प्रवाहिका के अंतर को बहुत कम स्त्री-पुरुष जान पाते है। अतिसार (दस्त) और प्रवाहिका (पेचिश) दोनों में रोगी को बार-बार शौच के लिए जाना पड़ता है। मल बहुत जलीय रूप में वेग के साथ निष्कासित होता है। अतिसार में शौच के लिए जाने पर रोगी जल्दी लौट आता है, लेकिन प्रवाहिका के कारण शौच के लिए देर तक बैठे रहने की उसकी इच्छा बनी रहती है। प्रवाहिका रोग ऐंठन (मरोड़) के साथ दस्त होता है।
उत्पत्तिः
दूषित जल पीने से प्रवाहिका की उत्पत्ति होती है। दूषित जल में प्रवाहिका रोग के अमीबा मिले होते हैं, जो उदर में विकसित होकर, पाचन क्रिया को विकृति करके प्रवाहिका की उत्पत्ति करते हैं।
आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार बेसीलरी और एबीकिक दो तरह की प्रवाहिका होती है।
पाचन क्रिया की विकृति होने पर जब कोई प्रकृति-विरुद्ध, अधिक वसा युक्त (घी, तेल, मक्खन आदि से बने), अधिक उष्ण मिर्च-मसालों के चटपटे, स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों का सेवन करता है तो प्रवाहिका की विकृति होती है। अजीर्ण, कोष्ठबद्धता के चलते भी भोजन में दूषित, बासी खाद्य पदार्थों का सेवन करने से भी प्रवाहिका होती है।
लक्षणः
प्रवाहिका में रोगी कई-कई बार शौच के लिए जाता है, लेकिन हर बार तीव्र ऐंठन (मरोड़) के साथ जलीय रूप में मल निकलता है। जीवाणुओं के कारण आंत्रों में व्रण बन जाते है। प्रवाहिका में मल के साथ आंव (पूय) भी निकलती है। रक्त भी निकलने लगता है। रक्त के निष्कासन से रोगी शारीरिक रूप से निर्बल हो जाता है।
प्रवाहिका अधिक लम्बे समय तक चल सकता है। चिकित्सा में विलम्ब होन से वमन विकृति व घुटनों में पीड़ा भी होने लगती है। रोगी को बहुत प्यास लगती है और जल पीते ही शौच की तीव्र इच्छा होती है। रोगी देर तक शौचयालय में बैठना पसंद करता है, क्योंकि उसकी शौच की इच्छा बनी रहती है। कुछ खाने पर भी शौच की इच्छा होने लगती है। पाचन क्रिया की विकृति से रोगी को कुछ भी हजम नहीं होती है। रोगी ज्वर और सिरदर्द से भी पीड़ित हो सकता है।
क्या खाएं?
- * चवलों को उबालकर उसमें दही और भुना हुआ जीरा मिलाकर खाएं।
- * आम की गुठली का भीतरी भाग ओर जामुन की गुठली को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। 5-5 * ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल से दो-तीन बार सेवन करें।
- * अनार का रस सुबह-शाम पीने से रक्तस्त्राव बंद हो जाता है।
- * मेथी के दानों का चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण 100 ग्राम दही के साथ सेवन करें।
- * कच्चे बेल की गिरी 25 ग्राम मात्रा से 6 ग्राम गुड़ के साथ सेवन करें।
- * ईसबगोल 6 ग्राम मात्रा से दही या तक्र (मट्ठे) के साथ सेवन करें।
- * बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण हल्के गर्म जल से सेवन करें।
- * हरड़ और सौंफ को घी में भूनकर कूट-पीसकर रखें। इसमें मिसरी मिलाकर 5-5 ग्राम चूर्ण दिन में दो-तीन बार हल्के गर्म जल में सेवन करें।
- * सुबह-शाम भुना हुआ जीरा और सेंधा नमक मिलाकर तक्र (मट्ठा) सेवन करें।
- * चावल व मूंग की दाल की पतली खिचड़ी बनाकर दही के साथ खाएं।
- * बेलगिरी का मुरब्बा खाएं।
क्या न खाएं?
- * घी, तेल, मक्खन, दूध का सेवन न करें।
- * भोनज में आलू, अरबी, कचालू, गोभी व उड़द की दाल का सेवन न करें।
- * चॉय, कॉफी का बिल्कुल सेवन न करें।
- * खोए से निर्मित किसी मिठाई का सेवन न करें।
- * अधिक मात्रा में गुड़ का सेवन न करें।
- * चइनीज व्यंजन और फास्ट फूड का इस्तेमाल न करें।
- * उड़द की दाल से बने व्यंजन, कचौड़ी आदि का इस्तेमाल न करें।
- * दूषित जल का सेवन न करें।
- * उष्ण मिर्च-मसाले व अम्ल रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
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