अम्लपित्त (Pyrosis)
वर्षा ऋतु में निरंतर वर्षा होने के कारण वातावरण अधिक शीतल हो जाता है। आकाश पर बादलों के छा जाने से वायु भी अधिक आर्द्र हो जाती है। धूप के नहीं निकलने से वातावरण में आर्द्रता का अधिक समावेश होता है। ऐसे में उदर में पित्त की अधिक उत्पत्ति होती है। पित्त की अधिकता से अम्लपित्त की उत्पत्ति होती है। अम्लपित्त के चलते रोगी खट्टी डकारों, छाती व गले में तीव्र जलन के कारण बहुत बेचैन होता है।
उत्पत्तिः
जब कोई व्यक्ति घर में और बाहर किसी होटल, रेस्तरां में घी, तेल से बने उष्ण मिर्च-मसालों और अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करता है तो उसके पेट में अम्ल की अधिक उत्पत्ति होती है। प्रकृति विरुद्ध आहार जैसे मछली, दूध, मांस, घी, मधु, दही, तिल, मूली आदि का सेवन एक साथ करने से पित्त विकृत होकर अम्लपित्त की उत्पत्ति करता है।
दूषित ओर बासी से भी अम्लपित्त की विकृति होती है। कुछ व्यक्ति भोजन में बहुत बदपरहेजी करते है। अम्लीय खाद्य पदार्थो के सेवन के तुरंत बाद चाय, कॉफी आदि उष्ण पेय लेने से पित्त कुपित होकर अम्लपित्त की उत्पत्ति करता है। पाचन क्रिया विकृत होने अग्निमांद्य होने पर गरिष्ठ खाद्य पदार्थो के सेवन से अम्लपित्त रोग अधिक होता है। मानसिक तनाव के कारण भी अम्लपित्त होता है।
लक्षणः
अम्लपित्त रोग होने पर खट्टी डकारों के कारण गले व छाती में बहुत जलन होती है। रोगी को प्यास अधिक लगती है। जल पीने से कुछ देर के लिए गले व छाती की जलन कुछ कम हो जाती है। अम्लपित्त में रोगी को बहुत सिरदर्द होता है। वमन और जी मिचलाने की विकृति भी होती हैं मुंह में हर समय खट्टा, कसैला-सा स्वाद घूला रहता है।
अम्लपित्त के रोगी को भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। भोजन उसे स्वादिष्ट नहीं लगता। अम्लपित्त रोग में हरे, पीले व रक्त मिले दस्त होते हैं। शरीर की त्वचा का रंग पीला-पीला दिखाई देने लगता हैं अंगों में निर्बलता और शरीर में कंपन के लाक्षण भी स्पष्ट होते है। कभी-कभी नेत्रों के सामने अंधेरा फेलने के लक्षण भी प्रकट होते है। अम्लपित्त में कोष्ठबद्धता (कब्ज) की विकृति होने पर रोगी को अधिक पीड़ा की परिस्थिति से गुजरना पड़ता है।
क्या खाएं?
- * ताजे आंवले के 10 ग्राम रस में 5 ग्राम मिसरी मिलाकर दिन में दो-तीन बार सेवन करें।
- * सुबह-शाम 200 ग्राम गाजर का रस पिंए।
- * संतरे के रस में भुना हुआ जीरा और सेंधा नमक मिलाकर पिएं।
- * दुध को ठंडा करके दिन में दो-तीन बार अवश्य पिएं।
- * आंवले का मुरब्बा सुबह-शाम सेवन करें।
- * नारियल का जल दिन में एक-दो बार अवश्य पिएं।
- * मुलहठी का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में मधु और घी मिलाकर सेवन करे। (नोट- मधु और घी अलग-अलग मात्रा में इस्तेमाल करें)
- * पेठे की मिठाई खाने से अम्लपित्त की विकृति नष्ट होती है।
- * आंवले का 3 ग्राम चूर्ण नारियल के 100 ग्राम जल से सेवन करें।
- * मूली के 50 ग्राम रस में मिसरी मिलाकर पीने से अम्लपित्त की विकृति नष्ट होती है।
- * अनन्नास के 100 ग्राम रस में काली मिर्च के 5 दाने पीसकर मिलाकर सेवन करें।
- * केले के बारीक टुकड़े काटकर उन पर पिसी हुई मिसरी और इलायची बुरककर खाएं।
- * धनिया और जीरा बराबर मात्रा में पीसकर, उसमें मिसरी मिलाकर 5 ग्राम की मात्रा में जल के साथ सुबह-शाम सेवन करें।
क्या ना खाएं?
- * घी, तेल, उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थ बिल्कुल सेवन न करें।
- * आचार, इमली का सेवन बिल्कुल न करें।
- * चाय, कॉफी का सेवन बिल्कुल न करें।
- * आलू, अरबी, कचालू व गोभी आदि की सब्जी का सेवन न करें।
- * गर्म दूध का सेवन न करें।
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