जलोदर रोग (Ascites Disease)
उदर में जल भर जाने पर उदर के फूलकर घड़े के आकार का हो जाने को जलोदर रोग कहते हैं जलोदर रोग में उदर में जल भरने से उदर बहुत स्थूल दिखाई देता है। जलोदर की चिकित्सा में अधिक विलम्ब किया जाए और भोजन में लापरवाही बरती जाए तो प्राणघातक स्थिति बन जाती है।
उत्पत्तिः
चिकित्सकों के अनुसार अनियमित भोजन करने से पाचन क्रिया विकृत होती है तो भोजन के पूरी तरह नहीं पचने की स्थिति में अनेक दोष (विकार) उदर में एकत्र होने लगते है। दोषों के एकत्र होने पर अधिक जल पीने से जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है।
आधुनिक चिकित्सकों के अनुसार हदय रोग और वृक्क (गुर्दों) में विकृति होने से जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है। हदय रोग से पीड़ित होने पर जब हदय रक्त को पर्याप्त रूप में अपनी ओर खींच नहीं पाता है तो शिराओं में रक्त का भार बढ़ने लगता है। ऐसे में जलीय अंश उदर कलाओं और पांवों में एकत्र होने के साथ जलोदर की उत्पत्ति करता है। क्षय रोग के कारण जलोदर की विकृति हो सकती है।
भोजन में प्रकृति विरुद्ध, अधिक शीतल, वातकारक, अम्लीय रसों व उष्ण मिर्च-मसालों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करने से पाचन क्रिया विकृति होने के कारण जलोदर रोग की उत्पत्ति होती है। अधिक रक्ताल्पता, वृक्क शोध, हदय रोग, ग्रहणी रोग होने पर भी जलोदर रोग की संभावना बढ़ जाती है। स्त्रियों में गर्भाशय की विकृति के कारण भी जलोदर रोग हो सकता है। अर्श रोग व कामला (पीलिया) रोग की चिकित्सा में विलम्ब होने से भी जलोदर की उत्पत्ति हो सकती है।
लक्षणः
जलोदर रोग में उदर में जल एकत्र होने से उदर फूलने लगता है। उदर फूलकर मटके के समान हो जाता है। ऐसे रोगी को खड़े होने, चलने-फिरने और सीढ़ियां चढ़ने में बहुत कठनाई होती है। बिस्तर पर लेटने पर भी रोगी को बहुत परेशानी होती है। उदर में अधिक जल भर जाने से रोगी हर समय बोझ-सा अनुभव करता है। रोगी में अधिक बेचैनी की स्थिति से गुजरना पड़ता है। पांवों में शोध होने से चलने में कठनाई होती है।
हदय की धड़कन बढ़ जाती है। रोगी को बहुत कम मात्रा में मूत्र आता है। जलोदर रोग में यकृत व प्लीहा की वृद्धि भी हो सकती है। जलोदर रोग में कोष्ठबद्धता होने से अर्श रोग भी हो जाता है। मूत्र का अवरोध होने से रोगी की पीड़ा बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में ‘कैपीटर’ (मूत्रनली) की सहायता से मूत्र को निष्कासित किया जाता है। उदर में जल की अधिकता होने से रोगी को श्वास लेने में परेशानी होती है।
क्या खाएं?
- * मूली के पत्तों के 50 ग्राम रस में थोड़ा-सा जल मिलाकर सेवन करें।
- * अनार का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
- * प्रतिदिन दो-तीन बार खाने से, अधिक मूत्र आने पर जलोदर रोग की विकृति नष्ट होती है।
- * आम खाने व आम का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
- * लहसुन का 5 ग्राम रस 100 ग्राम जल में मिलाकर सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट होता हैं।
- * 25-30 ग्राम करेले का रस जल में मिलाकर पीने से जलोदर रोग में बहुत लाभ होता है।
- * बेल के पत्तों के 25-30 ग्राम रस में थोड़ा-सा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
- * करौंदे के पत्तों का रस 10 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से जलोदर राग में बहुत लाभ होता है।
- * गोमूत्र में अजवायन को डालकर रखें। शुष्क हो जाने पर प्रतिदिन इस अजवायन का सेवन करने पर जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
क्या न खाएं?
- * जलोदर रोग में पीड़ित व्यक्ति को उष्ण मिर्च-मसालें व अम्लीस रसों से बने चटपटे खाद्य पदार्थो का सेवन नही करना चाहिए।
- * घी, तेल, मक्खन आदि वसा युक्त खाद्य पदार्थाो का सेवन न करेें
- * गरिष्ठ खाद्य पदार्थों, उड़द की दाल, अरबी, कचालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
- * चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें। स्त्रोत : जियो जिन्दगी, 16 फरवरी, 2011
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