कामला (पीलिया) जौंडिस
कामला रोग में पित्त के रक्त में मिलने से सारा शरीर पीला हो जाता है। चिकित्सा में विलम्ब करने और भोजन में लापरवाही बरतने से कामला रोग अधिक उग्र होता है। रोगी के मल-मूत्र के साथ उसका पसीना भी पीला हो जाता है। रोगी के नेत्र भी पीले दिखाई देते है। कामला रोग को जनसाधारण में पीलिया कहा जाता है। एलोपैथी चिकित्सा में इस रोग को ‘जांडिस’ के नाम से संबोधित करते है।
उत्पत्तिः
चिकित्सकों के अनुसार कामला रोग की उत्पत्ति पित्त के रक्त में मिलने से होती है। यकृत (जिगर) में पित्त का निर्माण होता है। यकृत से निकलकर पित्त पित्ताशय में पहंुच कर एकत्र होता है। पित्ताशय से भोजन की पाचन क्रिया में भाग लेने के लिए पित्त निकलता रहता है, लेकिन जब यकृत विकृति से या अन्य किसी कारण से पित्त रक्त में मिलने लगता है तो कामला रोग की उत्पत्ति होती है।
दूषित भोजन व दूषित जल पीने से कामला रोग की उत्पत्ति होती है। गंदे होटल व रेस्तरां में अधिक समय तक खाने-पीने से पाचन क्रिया विकृति होने पर कामला रोग होता है। वर्षा ऋतु में नदी, तलाब व कुओं का जल अधिक दूषित होता है। ऐसे जल के पीने व भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल करने से कामला रोग अधिक होता है।
भोजन में अधिक उष्ण मिर्च-मसाले, अम्ल रसों से बने खाद्य पदार्थो का अधिक समय तक सेवन करने से पित्त की अधिक उत्पत्ति होने पर भी कामला रोग होता है। मलेरिया रोग से जल्दी-जल्दी रोगग्रस्त होने वाले रोगी भी कामला रोग से अधिक पीड़ित होते है। आधुनिक परिवेश में मादक द्रवों का अधिक सेवन करने वाले कामला रोग के प्रकोप से बच नहीं पाते।
कामला संक्रामक रोग भी होता है। घर में किसी एक सदस्य को कामला रोग हो जाए तो दूसरे व्यक्ति भी उसके संपर्क में आने, उसके बरतनों में खाने-पीने से कामला रोग के शिकार हो जाते है। अस्पताल में कामला रोगी को इंजेक्शन लगाने के बाद उस ‘नीडिल’ को परिवर्तित नहीं किया जाए और दूसरे किसी को इंजेक्शन लगा दिया जाए तो उसे भी कामला रोग हो जाता है।
लक्षणः
कामला रोग के प्रारंभ होने पर चेहरे का रंग पीला होने लगता है। ऐसे में रोगी चिकित्सा प्रारंभ कर देता है और भोजन में बदपरहेजी नहीं करता तो कामला रोग विकसित नहीं हो पाता। कामला रोग के प्रबल होने पर मल-मूत्र व नेत्रों का रंग पीला हो जाता है। रोगी को पीले रंग का पसीना आता है।
चिकित्सा में विलम्ब होने से कामला रोग उग्र रूप धारण कर लेता है। रोगी ज्वर से पीड़ित होता है। रोगी की भूख नष्ट हो जाती है। भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। रात को प्रर्याप्त नींद नहीं आने के कारण रोगी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। उदर में शूल की विकृति भी होती है। रोगी बहुत अधिक निर्बलता और थकावट अनुभव करता है।
क्या खाएं?
- मूली के पत्तों के 50 ग्राम रस में थोड़ी-सी मिसरी मिलाकर सेवन करें।
- कासनी के पांच पत्तों का रस निकालकर, उसमें काली मिर्च के दो दाने पीसकर, मिलाकर * सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया नष्ट होता है।
- अनार के पत्तों को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। प्रतिदिन 5 ग्राम चूर्ण तक्र (मट्ठा) के साथ सुबह-शाम सेवन करें।
- करेले के पत्तों के रस में बड़ी हरड़ को घिसकर 5-6 ग्राम मात्रा में सेवन करने पर पीलिया रोग नष्ट होता है।
- अपामार्ग मूल का चूर्ण 5 ग्राम मात्रा में तक्र के साथ सेवन करें।
- मकोय का रस 5 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम पीने से पीलिया रोग में बहुत लाभ होता है।
- गिलोय का 5 ग्राम रस सुबह और 5 ग्राम रस शाम को पिएं।
- गन्ने का रस दिन में दो बार अवश्य सेवन करें।
- अनार के 100 ग्राम रस में 10 ग्राम मिसरी मिलाकर सेवन करें।
- जल को उबालकर, छानकर पिएं।
- संतरे का 200 ग्राम रस पिएं।
क्या न खाएं?
- पीलिया रोगी घी, तेल, मक्खन, अंडे, मांस-मछली का सेवन न करें।
- उष्ण मिर्च-मसालों और अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- दूध का सेवन करें।
- उड़द की दाल से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- मिठाई नहीं खाएं।
- फॉस्ट फूड, चाइनीज व्यंजन का बिल्कुल सेवन न करें।
- दूषित जल, कोल्ड ड्रिंक का सेवन न करें।
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