कोष्ठबद्धता (कब्ज) (Constipation)
कोष्ठबद्धता को सभी उदर रोगी की उत्पत्ति का कारण कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। कोष्ठबद्धता के कारण उदर शूल, अम्लपित्त, अजीर्ण, अरुचि, आध्मान (अफारा), रक्ताल्पता, यकृत विकृति, प्लीहा वृद्धि, कामला (पीलिया) आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। कोष्ठबद्धता की अधिकता से कष्टदायक अर्श की उत्पत्ति होती है।
उत्पत्ति :
आधुनिक परिवेश में रात को देर तक टेलीविजन देखने से जब सुबह देर तक सोते रहते हैं तो शौच समय पर नहीं आता। अनियमित रूप से शौच जाने पर शौच में अवरोध होता है। कई-कई दिन शौच नहीं जाने पर मल शुष्क और कठोर होने लगता है। शुष्क और कठोर मल सरलता से निष्कासित नहीं हो पाता। मल निष्कासित नहीं हो पाने की विकृति को कोष्ठबद्धता कहा जाता है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार भोजन में अधिक रुक्ष गरिष्ठ, उष्ण मिर्च-मसालों, अम्ल रस से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करने से पाचन क्रिया विकृति होने से कोष्ठबद्धता की विकृति होती है। जो स्त्री-पुरुष चाय, कॉफी, चटपटे स्वादिष्ट, छोले-भठूरे, गोल-गप्पे, समोसे और फॉस्ट फूड का अधिक सेवन करते हैं, वे कोष्ठबद्धता की विकृति करने के बाद अधिक आराम करने से भी कोष्ठबद्धता की विकृति होती है। मादक द्रवों के सेवन से भी कोष्ठबद्धता की विकृति होती है।
आधुनिक परिवेश में कामकाज की अधिकता, देर रात तक पार्टियों में व्यस्त रहने, होटल-रेस्तरां में खाने-पीने से भी कोष्ठबद्धता की उत्पत्ति होती है। अधिक पौष्टिक आहार लेने व बिल्कुल परिश्रम नहीं करने से भी कोष्ठबद्धता होती है मानसिक तनाव के कारण भी कोष्ठबद्धता की उत्पत्ति होती है। चिंता, शोक, क्रोध और ईर्ष्या-द्वेष की भावना भी कोष्ठबद्धता को उत्पन्न करती है।
लक्षण :
कोष्ठबद्धता की विकृति होने पर कई-कई दिन तक शौच नहीं आता है। आंत्रों में मल के एकत्र होने से उदर में भारीपन अनुभव होता है। कोष्ठबद्धता की अधिकता से उदर में तीव्र शूल होता है। कभी-कभी अफारे की विकृति भी होती है। उदर में दूषित वायु उत्पन्न होने से जी मिचलाता है और वमन की अनुभूति होती है। कोष्ठबद्धता के रोगी आंत्रों में मल के एकत्र होने से अधिक बेचैनी अनुभव करते हैं।
कोष्ठबद्धता की चिकित्सा मे विलम्ब करने से भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। रोगी को भूख नहीं लगती। ऐसे में कुछ स्त्री-पुरुष अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं। मुंह में छालों की उत्पत्ति भी कोष्ठबद्धता के कारण होती है। जब तक कोष्ठबद्धता को नष्ट नहीं किया जाए, मुंह के छाले भी नष्ट नहीं होते। कोष्ठबद्धता के कारण अत्यंत कष्टदायक अर्श रोग की उत्पत्ति होती है। कोष्ठबद्धता की अधिकता से अर्श रोग में अधिक रक्तस्त्राव होता है। रक्तस्त्राव से रोगी शारीरिक रूप से बहुत निर्बल हो जाता है। कोष्ठबद्धता के कारण ही गैस की विकृति होती है। इस रोग के चलते रोगी की छाती, गले में जलन रहती है। उदर शूल भी रोगी को बहुत पीड़ित करता है।
क्या खाएं ?
- * कोष्ठबद्धता के रोगी को पर्याप्त मात्रा में जल पीना चाहिए। शौच नहीं आने पर प्रातः उठते ही जल पीना चाहिए।
- * गाजर, टमाटर, संतरे, मौसमी, तरबूज का रस पिएं।
- * आंवले, हरड या गाजर का मुरब्बा खाकर दूध पीना चाहिए।
- * खजूर खाकर दूध पीने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * त्रिफला चूर्ण 5 ग्राम मात्रा में रान को सोते समय हल्के गर्म दूध या जल के साथ सेवन करें।
- * मुनक्के के 7-8 दाने दूध में उबालकर खाने व दूध पीने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * नीबू के रस को हल्के गर्म जल में डालकर पीने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * प्रतिदिन मेथी, पालक या चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * कोष्ठबद्धता के रोगी को प्रतिदिन पपीता खाने से बहुत लाभ होता है।
- * भोजन के साथ प्रतिदिन सलाद का सेवन करें।
- * दलिया व खिचड़ी खाने से भी कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * अंजीर को दूध में उबालकर खाएं और ऊपर से दूध पिएं।
- * कोष्ठबद्धता से बचने के लिए दूध, घी, मक्खन आदि का सेवन करना चाहिए।
- * सब्जियों का सूप बनाकर सेवन करने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
- * प्रतिदिन तक्र (छाछ) का सेवन करें।
- * बथुए की सब्जी बनाकर खाने या बथुए को उबालकर दही के रायते में मिलाकर खाने से कोष्ठबद्धता से मुक्ति मिलती है।
क्या न खाएं ?
- * चाय, कॉफी और शराब न पिएं।
- * प्रातः देर तक बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए।
- * चइनीज व फॉस्ट फूड का सेवन न करे।
- * ग्रष्ठि खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- * उड़द की दाल व दाल से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- * बैंगन, अरबी, कचालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
- * केले का सेवन न करें, क्योंकि केला अधिक कब्ज करता है।
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