ज्वर (Fiver) :
किसी ऋतु के परिवर्तन के समय आहार-विहार में थोड़ी -सी लापरवाही होने पर ज्वर की उत्पत्ति होती है। शीत ऋतु में शीतल वायु के प्रकोप के छोटे-बड़े ज्वर से पीड़ित होते है। ज्वर के कारण शरीर का ताप बढ़ जाता है। सामान्य रूप से शरीर का ताप 94.4 डिग्री फॉरेनहाइट रहाता है, लेकिन ज्वर के कारण शरीर का ताप 105 व 106 डिगी फॉरेनहाइट तक पहुंच जाता है। शरीर के इस ताप को रोगी को स्पर्श करके भी अनुभव कर सकते है। थर्मामीटर द्वारा शरीर के ताप को नापा जाता है।
उत्पत्ति :
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार ज्वर की उत्पत्ति किसी रोग के कारण हो सकती है। आंत्रिक ज्वर, विषम ज्वर (मलेरिया), वात श्लैष्मिक ज्वर, डेंगू ज्वर, क्षय रोग, आमवात, अंशुघात (लू लगना) प्लेग आदि रोग के कारण ज्वर की उत्पत्ति होती है। अधिक शारीरिक कार्य करने, संतुलित भोजन और पौष्टिक खाद्य पदार्थो के अभाव में शारीरिक रूप से अधिक क्षीण होने पर ज्वर हो सकता है। अधिक चोट लग जाने पर भी कुछ व्यक्ति ज्वर से पीड़ित होते है। अधिक शारीरिक श्रम भी ज्वर का शिकार बना सकता है।
लक्षण :
ज्वर होने पर शरीर का ताप सामान्य ताप से बढ़ जाता है। क्षय रोग में लम्बे समय तक ज्वर बना रहता है। आंत्रिक ज्वर में धीरे-धीरे ज्वर विकसित होता है। कुछ ऐसे भी संक्रामक रोग होते हैं, जिनमें ज्वर की अधिकता से रोगी का मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं रहता। रोगी तीव्र ज्वर के कारण प्रलाप करने लगता है। ज्वर को नियंत्रण में करने के लिए रोगी के मस्तिष्क पर बर्फ की थैली या जल की गीली पट्टी रखी जिाती है। गीली चादर की लपेट से भी ज्वर कम हो जाता है। ज्वर की अधिकता होने पर रोगी को नींद नहीं आती है। विषम ज्वर (मलेरिया) और वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू) में बहुत सर्दी लगी है।
क्या खाएं?
- * वसा (अडूसे) के कोमल पत्तों और आंवलों को 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रखें। कुछ घंटों बाद मसलकर, छानकर, मिसरी मिलाकर सेवन करें। ज्वर का प्रकोप शांत होता है। पैत्तिक ज्वर में अधिक लाभप्रद है।
- * नीबू को काटकर उस पर सेंधा नमक और काली मिर्च का चूर्ण डालकर चूसकर सेवन करें।
- * आंवले का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में जल के साथ दिन में दो-तीन बार सेवन करें। ज्वर का प्रकोप कम होता है।
- * आक की जड को जल में उबालकर क्वाथ बनाएं। क्वाथ को छानकर उसमें सोंठ का 3 ग्राम चूर्ण मिलाकर पीने से ज्वर नष्ट होता है।
- * अडूसे, अदरक और तुलसी के पत्तों का 5-5 ग्राम रस मिलाकर, इसमें मुलहठी का चूर्ण 3 ग्राम डालकर पीने से श्लैष्मिक ज्वर नष्ट होता है।
- * अदरक के 5 ग्राम रस में 5 ग्राम मधु मिलाकर चाटकर खाएं।
- * अदरक और पान के पत्तों का रस 5-5 ग्राम मात्रा में लेकर, मधु मिलाकर सेवन करें। सर्दी से उत्पन्न ज्वर नष्ट होता है।
- *बेल के पत्तों का 5 ग्राम रस लेकर मधु मिलाकर सेवन करें।
- * लौंग को तवे पर भूनकर, पीसकर जल में मिला लें। उस जल को छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से ज्वर की तीव्र प्यास कम होती है।
- * आंवले और अंगूर की चटनी बनाकर सेवन करें।
- * सर्दी से ज्वर की उत्पत्ति होने पर चाय, कॉफी का सेवन करें।
- * मेथी की सब्जी खाने से ज्वर में लाभ होता है।
- * रोगी को जल को उबालकर ही सेवन कराएं।
- * रोगी को सेब, चीकू खाने को दंे।
- * 3 ग्राम तुलसी के रस में काली मिर्च का चूर्ण और मिसरी मिलाकर चाटकर खाएं।
- * ज्वर में भूख लगने पर रोगी को मूंग की दाल खिला सकते है।
- * चाय के जल के साथ तुलसी के पत्ते, अदरक उबालकर पीने से सर्दी के ज्वर का प्रकोप कम होता हैं।
क्या न खाएं?
- * ज्वर होने पर रोगी शीतल खाद्य व शीतल पेय सेवन न करें।
- * घी, तेल, मक्खन से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- * उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने व्यंजन सेवन न करें।
- * रोगी को शीतल जल पीने को न दें।
- * अरबी, कचालू, बैंगन, मूली, गाजर, फूलगोभी की सब्जी न खिलाएं।
- * चवल का किसी भी रूप् में सेवन न करें।
- * आम, अनार, नीबू, जामुन, फासला, संतरा, नारंगी, लीची का सेवन न करें।
- * रोगी को दही व तक्र मट्ठा का सेवन न कराएं।
- * टमाटर का सेवन न करें।
- * रोगी को गन्ने का रस न पिलाएं।
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