1. इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
2. इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
3. सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं। इन्द्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
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हानिकारक प्रभाव: इन्द्रायण का सेवन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इसके ज्यादा और अकेले सेवन करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है और शरीर में जहर के जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
नोट: गर्भवती स्त्रियों, बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को इसका सेवन यथासम्भव नहीं करना चाहिए अथवा सतर्कता से करना चाहिए।
इन्द्रायण के आयुर्वेदिक प्रयोग (Aayurvedic Uses Of Indrayan)
इन्द्रायण एक प्रकार की औषधि हैं. जो लता के रूप में सम्पूर्ण भारत के बलुई क्षेत्रों में पाई जाती हैं. इन क्षेत्रों में इन्द्रायण खेतों की भूमि में उगाई जाती हैं. पूरे भारत में इन्द्रायण के तीन प्रकार पायें जाते हैं.
1.पहली छोटी इन्द्रायण कहलाती हैं.
2.दूसरी को बड़ी इन्द्रायण कहा जाता हैं.
3.तीसरी और अंतिम इन्दारायण को लाल इन्द्रायण के नाम से जाना जाना जाता हैं.
इन तीनों प्रकार की इन्द्रायण की लताओं में कम से कम 50 से 100 की संख्या में फल लगते हैं. इन्द्रायण का प्रयोग औषधि के रूप में किया जा सकता हैं. क्योंकि यह बहुत ही गुणी होती हैं. इसमें कफ, पीत, पीलिया, पेट के रोग, श्वास रोग तथा खांसी आदि रोगों से लड़ने की तथा उन्हें जड़ से ख़त्म करने की क्षमता निहित होती हैं. इसका प्रयोग करने से गैस, गांठ, घाव, प्रमेह, कंठमालाआदि रोग भी ख़त्म हो जाते हैं. यह विष के प्रभाव को भी नष्ट करने वाली एक बेहद ही उपयोगी और फायदेमंद औषधि हैं.
विभिन्न रोगों में इन्द्रायण का औषधि के रूप में इस्तेमाल (Medicine Uses of Indrayan In Various Disease)
1. काले बाल (Black Hair) – इन्द्रायण की लता की ही भांति इस पर लगने वाले फलों के बीज का तेल भी बहुत ही प्रभावशाली और लाभकारी होता हैं. यदि इसके फल के बीजों के तेल को नारियल के तेल के साथ मिलाकर बालों की मालिश की जाएँ तो व्यक्ति के सफेद बाल गायब हो जाते हैं.
2. बहरापन (Deafness) – यदि किसी व्यक्ति को कान से कम सुनाई देता हैं तो वह व्यक्ति भी इन्द्रायण का इस्तेमाल कर सकता हैं. बहरेपन की परेशानी से निजात पाने के लिए इन्द्रायण के कुछ पके हुए फल लें या पके हुए फल के छिलके लें. अब इन दोनों में किसी भी एक को तेल में उबाल लें और अच्छी तरह से उबालने के बाद इस तेल को छान कर पी जाएँ. बहरापन जल्द ही खत्म हो जाएगा.
3. दांत के कीड़े (Tooth Worms) – दांत के कीड़ों को नष्ट करने के लिए आप इन्द्रायण के पके हुए फल का इस्तेमाल कर सकते हैं. दांत के कीड़ों को नष्ट क रने के लिए रोजाना इन्द्रायण के पके हुए फल की दांतों में धुनी दें. इससे जल्द ही दांत से सम्बंधित सभी परेशानियाँ ख़त्म हो जाएगी.
4. मिर्गी (Epilepsy) – यदि किसी व्यक्ति को मिर्गी की बीमारी हो तो इससे राहत पाने के लिए इन्द्रायण की जड़ लें और उसे सुखाकर पीस लें. इसके बाद इस चूर्ण को पीड़ित व्यक्ति की नासिका में डालें. उसे इस रोग में काफी लाभ होगा.
5. पुरानी खांसी (Cough) – यदि आपको पुरानी खांसी हैं तो इस समस्या के निदान हेतु एक इन्द्रायण का फल लें और उसके बीच में एक छेद कर लें. इसके बाद इस छेद में कालीमिर्च भर दें और इस छेद को दुबारा बंद कर दें. अब इस फल को कुछ समय तक गर्म राख में रख दें. अब इस फल में से कालीमिर्च के दानों को निकाल लें और इनका सेवन रोजाना सुबह उठने के बाद शहद के साथ करें. पुरानी से पुरानी खांसी ठीक हो जायेगी.
6. हैजा (Cholera) – हैजा के रोग से पीड़ित होने पर इन्द्रायण के फल लें उर उनके अंदर का गूदा निकाल दें. अब थोड़ी सी अजवायन लें और उसके साथ इसे खा लें. हैजा के रोग से जल्द ही मुक्ति मिल जायेगी.
7. पेशाब में जलन (Urine Irritation) – पेशाब में जलन होने की बीमारी से राहत पाने के लिए इन्द्रायण की जड़ लें और उसे सुखाकर पानी के साथ पीस लें. इसके बाद इस पानी को छान लें और इसका सेवन करें.
8. मासिक धर्म (Periods) – यदि किसी महिला को मासिक धर्म न हो तो 3 ग्राम इन्द्रायण के बीज, 7 दाने कालीमिर्च लें. अब इन दोनों को एक साथ पीस लें. पिसने के बाद एक बर्तन में 200 – 250 मि ली. पानी लें और इसमें इस चूर्ण को डाल दें. अब इस पानी को कुछ समय तक अच्छी तरह से उबालकर काढा बना लें. काढा जब पूरी तरह से पककर तैयार हो जाए तो इसे उतार कर छान लें और इसका सेवन करें. मासिक धर्म होना दुबारा शुरू हो जायेंगे.
9. आंत के कीड़े (Intestine Worms) – आंत के कीड़ों को मारने के लिए भी इन्द्रायण काफी लाभकारी होता हैं. आंत के कीड़ों को नष्ट करने के लिए इन्द्रायण के फल लें और उसके अंदर का गूदा निकाल लें. इसके बाद इस गुदे को गर्म करने के बाद एक कपडे में लपेट लें और इसे अपने पेट पर बांध लें. कुछ ही दिनों में पेट के सभी कीड़े समाप्त हो जायेंगे.
10. दस्त (Diarrhea) – अगर किसी व्यक्ति को दस्त की समस्या हैं तो वह इससे छुटकारा पाने के लिए भी इन्द्रायण के फल का उपयोग कर सकता हैं. दस्त की परेशानी को दूर करने के लिए इन्द्रायण के फल की मज्जा लें और उसे पानी में डालकर कुछ देर उबाल लें. इन्द्रायण के फल के मज्जा को तब तक उबालें जब तक कि यह पूरी तरह से पककर गाढा न हो जाएँ. गाढा हो जान पर इसे उतार लें और इस मिश्रण की छोटी – छोटी गोलियां बना लें. अब इन गोलियों में से 2 गोलियों का सेवन रात को सोने से पहले एक गिलास दूध के साथ करें. इस उपाय को करने से अगले दिन आपको दस्त की समस्या से बिल्कुल राहत मिल जायेगी.
11. पेट का बढना (Fat) – यदि किसी व्यक्ति का पेट उसके शरीर में स्थित यकृत के आकार के बढ़ने की वजह से बढ़ रहा हैं तो इस बीमारी से शीघ्र मुक्त होने के लिए उसे इन्द्रायण का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. यह उसके लिए काफी लाभकारी सिद्ध होगा.
12. जलोदर (Ascites) – जलोदर की परेशानी से छुटकारा पाने के लिए इन्द्रायण की जड की छाल लें और उसमें सांभर नमक मिलकर खाएं. जलोदर का रोग जल्द ही ठीक हो जाएगा.
13. उपदंश (Syphilis) – उपदंश से पीड़ित होने पर 200 ग्राम इन्द्रायण की जड लें और 700 मि. ली अरंड का तेल लें. अब इन्द्रायण की जड़ को इस तेल में डालकर उबलने के लिए रख दें. अच्छी तरह से उबालने के बाद जब बर्तन में थोडा सा तेल बच जाएँ तो इसे उतार लें और इस तेल में से लगभग 20 मि. ली तेल लें और इसका सेवन गाय के दूध के साथ दिन में दो बार करें. उपदंश की समस्या जल्द ही ख़त्म हो जायेगी.
14. वात (Vat) – अगर वात का रोग हो जाए तो इसे बचने के लिए भी इद्रायण की जड़ का इस्तेमाल आप कर सकते हैं. इसके लिए 110 ग्राम इन्द्रायण की जड़ लें और 600 मि.ली पानी लें. अब पानी को उबलने के लिए रख दें और उसमें इन्द्रायण की जड़ को डाल दें. अब इस पानी को तब तक उबालें जब तक की इसमें एक तिहाई हिस्सा पानी का न बच जाएँ. इसके बाद पानी को उतार लें और उसमें बूरा मिला लें. अब आप इस पानी का सेवन कर सकते हैं. इस पानी का सेवन करने के बाद आपको वात के साथ – साथ उपदंश की समस्या से भी निजात मिल जायेगी.
15. सूजन (Swelling) – अगर मनुष्य के शरीर के किसी भी स्थान पर सूजन आ गई हैं तो इस सूजन को दूर करने के लिए भी वह इन्द्रायण की जड़ का इस्तेमाल कर सकता हैं. सूजन को दूर करने के लिए इन्द्रायण की जड़ लें और उसे सिरके में मिलाकर पीस लें. इसके बाद इस लेप को सूजन वाले स्थान पर लगा लें. सूजन कुछ ही समय में ठीक हो जाएगी.
16. बिच्छु का जहर (Scorpion Poison) – यदि किसी व्यक्ति को बिच्छु ने काट लिया हैं. तो इसके जहरीले विष से बचने के लिए इन्द्रायण के फल का लगभग 6 से 8 ग्राम गूदा खायें. उस पर जहर का प्रभाव बिल्कुल नहीं होगा.
17. सांप का जहर (Snake Poison) – सांप के काटने पर भी आप इन्द्रायण की जड़ का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए इन्द्रायण की जड़ का चुर्ण लें और एक पान का पत्ता लें. अब इस चुर्ण को पान के पत्ते पर रख लें. इसके बाद पान के पत्ते का सेवन करें. सांप के जहर के प्रभाव से व्यक्ति बच जायेगा.
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Indrayan ki Jad se Payen Bimariyon se Mukti |
18. डिब्बा रोग, पसली चलना (Dabba Rog) – बच्चों को यदि डिब्बा रोग हो जाए तो इस रोग से जल्द बच्चे को मुक्ति दिलाने के लिए इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण लें और थोडा सा सेंधा नमक लें. अब इन दोनों को मिलाकर बच्चे को एक गिलास गर्म पानी के साथ दें. इससे बच्चे को जल्द ही इस रोग से छुटकारा मिल जाएगा.
19. कान का घाव (Ear Wound) – ये कान में फोड़ा या फुंसी हो जाए. तो इसके लिए भी इन्द्रायण का फल बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता हैं. फोड़े और फुंसी को ठीक करने के लिए इन्द्रायण का फल लें और नारियल का तेल लें. इसके बाद नारियल के तेल में इन्द्रायण के फल को गरम कर लें और इस मिश्रण को कान के अंदर लगायें. फोड़ा फुंसी जल्द ही ठीक हो जायेगी और यदि कान में पीड़ा हैं तो वह भी ख़त्म हो जायेगी.
20. सिर दर्द (Headache) – सिर दर्द होना एक आम बीमारी हैं जो किसी भी व्यक्ति को सकती हैं. यदि आपके सिर में अधिकतर समय दर्द रहता हैं तो इस दर्द से निजात पाने के लिए इन्द्रायण की जड़ या फल के रस को तिल के तेल में मिलाकर गर्म कर लें और इस तेल से सिर की मालिश करें. सिर दर्द तुरंत ही गायब हो जाएगा.
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इन्द्रायण |
21. दर्द (Pain):आधासीसी, कान का दर्द या पुराना जुखाम होने पर इन्द्रायण के फल के रस को या जड़ की छाल के चुर्ण को काढ़े के तेल में डालकर पका लें. इसके बाद इस तेल को छान लें और इसका प्रयोग करें. इस तेल का इस्तेमाल करने से आपको इन सभी रोगों से एक साथ छुटकारा मिल जाएगा. इन्द्रायण का अन्य रोगों में किस प्रकार इस्तेमाल आप कर सकते हैं इस बारे में अधिक जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हैं.
स्रोत : http://www.jagrantoday.com/2016/02/vilakshan-evam-gunkari-aushdhi-indrayan.html
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इन्द्रायण का सिर्फ 1 ग्राम चूर्ण पेट की चर्बी, बवासीर, बहरापन, पेट के कीड़ों आदि 65 बड़े रोगों में करता है अद्भुत फायदे
इन्द्रायण (Colocynth) :
इन्द्रायण मुख्य रूप से 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे मरू भूमी या बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है, भारत में यह खेतों में उगाई जाती है।
इसे हिन्दी में इन्द्रायण तथा अंग्रेजी कोलोसिनथ (Colocynth) कहते है। इसके अन्य भाषाओं में निम्न नाम है:
संस्कृत में इन्द्रवारुणी,
गुजराती में इन्द्रावण,
मराठी में इन्द्रायण वइन्द्रफ,
बंगाली में राखालशा,
अरबी में इंजल व अलकम,
फारसी में खरबुज-ए-तल्ख,
तेलगू में एतिपुच्छा आदि नामो से जानी जाती है।
औषधि के रूप में इसके फल तथा जड़ें काम में आती है। इसकी जड़ जमीन में बहुत गहराई तक जाती है तथा गर्भपातक हो सकती है। आयुर्वेद के मत में इंद्रायण पाचक, शीतल, उष्णवीर्य, पीलिया, फीलपांव, बायगोला, उदर रोग, कृमि, चर्म रोग तथा ज्वरों में उपयोगी कफ और पित्त नाशक होती है। यह दस्त लाने वाली), कफ-पित्तनाशक है तथा यह कामला (पीलिया), प्लीहा (तिल्ली), पेट के रोग, श्वांस (दमा), खांसी, सफेद दाग, गैस, गांठ, व्रण (जख्म), प्रमेह (वीर्य विकार), गण्डमाला (गले में गिल्टी का हो जाना) तथा विष को नष्ट करता है। ये गुण छोटी और बड़ी दोनों इन्द्रायण में होते हैं।
इन्द्रायण (Colocynth) के 3 प्रकार : छोटी, बड़ी और लाल इन्द्रायण :
छोटी इन्द्रायण : छोटी इन्द्रायण को संस्कृत में एन्द्री, चित्रा, गावाक्षी, इन्द्रवारुणी आदि नाम से जाना जाता है। छोटी इन्द्रायण की बेलों के पत्ते खण्डित तथा इसकी डंठलों में रोम (छेद) होते हैं। पत्र वृन्त के पास में इसका फूल तथा एक लम्बा सूत्र निकलता है। इसी सूत्र की सहायता से इसकी बेले पेड़ों में लिपटकर आसानी से पूरे पेड़ों में फैल जाती हैं। छोटी इन्द्रायण के फूल घंटे के आकार के गोल, पीले रंग के होते हैं। एकलिंगी नर और मादा फूल अलग-अलग होते हैं।
बड़ी इन्द्रायण : बड़ी इन्द्रायण को संस्कृत में महाफला और विशाला कहते हैं। बड़ी इन्द्रायण की लताएं कुछ ज्यादा बड़ी होती हैं, इसके पत्ते तरबूज के पत्तों के जैसे कई भागों में बटे हुए होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फूल पीले रंग के होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फल 4 से 12 सेमी गोल और लंबे होते हैं। बड़ी इन्द्रायण का छोटा फल रोमों से ढका रहता है। बड़ी इन्द्रायण के कच्चे फलों में सफेद रंग की धारिया प्रतीत होती हैं तथा फल के पकने पर ये धारिया स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगती हैं और फल का रंग नीला हरा हो जाता है। बड़ी इन्द्रायण के फल की मज्जा (बीच का भाग) लालरंग का तथा बीज पीले और काले रंग के होते हैं।
लाल इन्द्रायण : लाल इन्द्रायण बेल बड़ी इन्द्रायण के ही समान होती है लेकिन इसके फूल सफेद रंग के तथा फल पकने पर नींबू के समान लाल रंग के हो जाते हैं।
इन्द्रायण (Colocynth) का औषधि के रूप में सेवन करने की मात्रा :
इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग आधा ग्राम तक तथा जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक लेना चाहिए।
इन्द्रायण (Colocynth) के 65 अद्भुत फायदे :
- सिर दर्द: इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिल के तेल में उबालकर तेल को मस्तक (माथे) पर लेप करने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाली मस्तक पीड़ा मिटती है।
- इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), सिर दर्द, पीनस (पुराना जुकाम), कान दर्द और अर्धांगशूल दूर हो जाते हैं।
- श्वास: इन्द्रायण के फलों को चिलम में रखकर पीने से श्वास (सांस) का रोग मिटता है।
- सुजाक (गिनोरिया): त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर 30 मिलीलीटर दिन में दो बार पीने से सुजाक में लाभ होता है।
- बिद्रधि (फुन्सियां): लाल इन्द्रायण की जड़ और बड़ी इन्द्रायण की जड़ दोनों को बराबर लेकर लेप बनाकर लगाने से दुष्ट विद्रधि नष्ट होती है।
- प्लेग (चूहों से होने वाला रोग): इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती हैं) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें, इसे ठण्डे पानी में घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में 2 बार लगायें और लगभग 2 से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पिलाने से गांठ एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मुर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
- बवासीर के मस्से: इन्द्रायण के बीजों को पानी में पीसकर लेप बनाकर बवासीर के मस्सों पर दिन में 2 बार कुछ हप्ते तक लगाने से लाभ होता है।
- ग्रन्थि शोथ: इन्द्रायण के पत्तों का लेप गांठ पर बांधने से वह बैठ जाती है।
- मलेरिया का बुखार: इन्द्रयण की भूनी हुई चूर्ण को 1 से 4 ग्राम को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने मलेरिया और शीत बुखार ठीक हो जाता है। इसका काढ़ा गुर्च (गिलोय) के साथ बनाकर देने से लाभ होता हैं।
- कब्ज: इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम सोंठ और गुड़ के साथ देने से कब्ज दूर होती है। ध्यान रहे कि मात्रा अधिक न हो जाये क्योंकि ऐसा होने पर वह जह़र बन जाता है।
- कब्ज: इन्द्रायण के फलों को घिसकर नाभि पर लगाएं और इसकी जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सोते समय लें, कब्ज में लाभ होगा।
- गर्भपात: इन्द्रायण वटी 2 से 4 गोली सुबह-शाम तिल के काढ़े के साथ सेवन कराने से गर्भ नष्ट हो जाता है।
- गर्भपात: इन्द्रायण की जड़ को बत्ती बनाकर योनि में रखने से गर्भ गिर जाता है।
- गर्भवती स्त्री के रोग: इन्द्रायण की जड़ का लेप करने से गर्भवती स्त्री के स्तनों का दर्द और दुग्ध-बुखार उतर जाता है।
- बहरापन (कान से कम सुनाई देना): इन्द्रायण के फल से बने तेल को रोजाना 2-3 बार कान में डाला जाये तो बहरापन दूर हो जाता है।
- कान के रोग: इन्द्रायण के कच्चे फल को तिल के तेल में डालकर पका लें। फिर इसे छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल की 1-2 बूंदें सुबह और शाम कान में डालने से कान के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
- नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म): इन्द्रायण की जड़ ग*र्भाशय के मुंह पर रखने से रुकी हुई माहवारी जारी हो जाती है।
- अल्सर: इन्द्रायण, शंखाहुली, दन्ती और नेली को गौमूत्र (गाय का पेशाब) के साथ पीसकर सुबह के समय लगभग 25 दिन तक सेवन करना चाहिए।
- पेट का बढ़ा होना: इन्द्रायण की जड़ का पिसा हुआ चूर्ण 120 मिलीग्राम से लेकर 480 मिलीग्राम की मात्रा में सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना), लीवर (यकृत) या प्लीहा (तिल्ली) की बढ़ोत्तरी के कारण पेट के प्रसारण यानी फैलाव को रुकता है।
- पेट के कीड़े: इन्द्रायण की जड़ को पानी में अच्छी तरह घिसकर गुदा (मल निकले के द्वार) पर बाहर और अन्दर लगाने से लाभ होता है।
- अंगुलबेल (डिठौन): इन्द्रायण की जड़ और विशाला की जड़ एक साथ घिसकर उंगुलियों पर लगाने से अंगुली की सूजन और दर्द ठीक होता है।
- उपदंश (सिफलिस): इन्द्रायण की ताजी जड़, रूसी की ताजी जड़ 5-5 ग्राम लेकर कालीमिर्च के 10 दानों के साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में घोलकर छान लें। इस मिश्रण को 7 दिनों तक खाने से उपदंश खत्म हो जाता है।
- उपदंश: 50 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और मिश्री मिलाकर पी लें। इससे उपदंश दूर हो जाता है।
- फोड़ा: फोड़े पर इन्द्रायण की जड़ और विशाला (महाकाल, इन्द्रायण की एक भेद) को मिलाकर पत्थर पर पानी में घिसकर लेप की तरह फोड़े पर लगाने से सूजन और दर्द ठीक हो जाता है।
- पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना): इन्द्रायण और विशाला की जड़ को ठण्डे पानी के साथ पीसकर पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना) पर गाढ़ा-गाढ़ा लगाने से पृष्टाबुर्द की सूजन और दर्द दूर हो जाता है।
- बालों को काला करना: इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
- बाल काले: इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
- बाल काले: सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं।
- बाल काले: इद्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
- बहरापन (कान से न सुनाई देना): इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर और छानकर पीने से बहरापन दूर होता है।
- दांत के कीड़े: इसके पके हुए फल की धूनी दान्तों में देने से दांत के कीड़े मर जाते हैं।
- अपस्मार (मिर्गी): इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य (नाक में डालने से) दिन में 3 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर हो जाता है।
- कास (खांसी): इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें कालीमिर्च भरकर छेद को बंद करके धूप में सूखने के लिए रख दें या गर्म राख में कुछ देर तक पड़ा रहने दें, फिर काली मिर्च के दानों को रोजाना शहद तथा पीपल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में लाभ होता है।
- स्त*न के कष्ट: स्त्रियों के स्त*न में सूजन आ जाने पर इन्द्रायण की जड़ को घिसकर लेप करने से लाभ होता है।
- पेट दर्द: इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के रोग दूर होते हैं।
- दस्त के समय होने वाला दर्द: इन्द्रायण के फल में काला नमक और अजवायन भरकर धूप में सुखा लें, इस अजवायन की गर्म पानी के साथ फंकी लेने से दस्त के समय होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
- विसूचिका: विसूचिका (हैजा) के रोगी को इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म पानी के साथ या इसके 2 से 5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ देना चाहिए।
- मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन): इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय का दर्द और जलन दूर हो जाती है।
- मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन): 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
- मासिक-धर्म की रुकावट: मासिक-धर्म के रुक जाने पर 3 ग्राम इन्द्रवारूणी के बीज और 5 दाने कालीमिर्च को एक साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर रोगी को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
- मासिक-धर्म का रुकना: इन्दायण की जड़ को योनि में रखने से योनि का दर्द और पुष्पावरोध (मासिक-धर्म का रुकना) दूर होता है।
- आंतों के कीडे: इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट में बांधने से आंतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
- विरेचन (दस्त लाने वाला): इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर और छानकर गाढ़ा करके छोटी-2 चने के आकार की गोलियां गोलियां बना लेते हैं। इसकी 1-2 गोली ठण्डे दूध से लेने से सुबह साफ दस्त शुरू हो जाते हैं।
- जलोदर (पेट में पानी की अधिकता): इन्द्रायण के फल का गूदा तथा बीजों से खाली करके इसके छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख दें। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर मिट जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है।
- इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम ग्राम को सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहें की अधिक मात्रा में सेवन करने से विशाक्त (जहर) बन जाता है और हानि पहुंचाता है।
- लीवर (यकृत): इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
- जलोदर: इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
- उपदंश (सिफलिस): 100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने पर जब तेल थोड़ा बाकी रह जाये तो इस 15 मिलीलीटर तेल को गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पीने से उपदंश समाप्त हो जाता है।
- उपदंश और वात पीड़ा: इन्द्रायण की जड़ों के टुकड़े को 5 गुना पानी में उबाल लें। जब उबलने पर तीन हिस्से पानी बाकी रह जाए तो इसे छानकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से उपदंश और वात पीड़ा मिटती है।
- सुख प्रसव: इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर भग (योनि) पर मलने से प्रसव आसानी से हो जाता है।
- सुख प्रसव: इन्द्रायण के फल के रस में रूई का फाया भिगोकर योनि में रखने से बच्चा आसानी से हो जाता है।
- सुख प्रसव: इन्द्रायण की जड़ को बारीक पीसकर देशी घी में मिलाकर स्त्री की योनि में रखने से बच्चे का जन्म आसानी से होता है।
- सूजन: इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके शोथयुक्त (सूजन वाली जगह) स्थान पर लगाने से सूजन मिट जाती है।
- शरीर में सूजन होने पर इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर लेप की तरह से शरीर पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
- इन्द्रायण को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। 200 मिलीलीटर पानी में 50 ग्राम धनिये को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इन्द्रायण के चूर्ण को इस काढ़े में मिलाकर शरीर पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
- संधिगत वायु (घुटनों वायु का प्रकोप): इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से संधिगत वायु दूर होती है।
- सूजन तथा दर्द: 500 मिलीलीटर इन्द्रायण के गूदे के रस में 10 ग्राम हल्दी, काला नमक, बड़े हुत्लीना की छाल डालकर बारीक पीस लें, जब पानी सूख जाए तो चौथाई-चौथाई ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ देने से सूजन तथा दर्द थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है।
- गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए): इन्द्रायण की जड़ों को बेल पत्रों के साथ पीसकर 10-20 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण करती है।
- बिच्छू विष: इन्द्रायण के फल का 6 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का (विष) जहर उतरता है।
- सर्पदंश (सांप के काटने) पर: 3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंश में लाभ मिलता है।
- बच्चों के डिब्बा (पसली के चलने पर): बच्चों के डिब्बा रोग (पसली चलना) में इसकी जड़ के 1 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
- कान के घाव: लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके कान के अन्दर के जख्म पर लगाने से जख्म साफ होकर भर जाता है।
- कामला: कामला में इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1-2 माशा गुड़ के साथ दें।
- उन्माद: उन्माद में इन्द्रायण के फल का गूदा 1-3 माशा गोमूत्र के साथ दें।
- वातरोग: वातरोग, संधिवात, अर्दित और जलोदर में इन्द्रायण की जड़ 1 माशा, पिप्पली-चूर्ण 1 माशा, गुड़ 3 माशा मिलाकर दें।
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इन्द्रायण (गड्तुम्बा) के फायदे Health Benefits And Side Effects Of Indrayan
इन्द्रायण (गड्तुम्बा) के फायदे और नुकसान Amazing Health Benefits And Side Effects Of Indrayan
इन्द्रायण की बेल समस्त भारत में पाई जाती है। इसकी लंबाई 20 से 30 फुट होती है। पत्ते असमान भागों में विभक्त तरबूज के पत्तों के समान 2-3 इंच लंबे और 2 इंच चौड़े होते हैं। पुष्प घंटाकार, पीले रंग के, पांच हिस्सों में बंटे होते हैं। फल गोल, मांसल, चिकने, 2-3 इंच व्यास के, कच्ची हालत में हरे और पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। खरबूजे के समान इसके फल में 6 फांकें होती हैं। फलमज्जा कोमल स्पंज के समान, स्वाद में अत्यंत तिक्त होती है। बीज मज्जा में गढ़े रहते हैं। सामान्यतया छोटी और बड़ी, दो प्रकार की इन्द्रायण देखने को मिलती है, जिसमें 45-120 फल लगते हैं। उल्लेखनीय है कि बड़ी इन्द्रायण का फल पकने के बाद लाल रंग का हो जाता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम
संस्कृत – इन्द्रवारुणी
हिंदी – इन्द्रायण
मराठी – इन्द्रफल
गुजराती – इन्द्रावणा
बंगाली – राखाल शसा
अंग्रेजी – कोलोसिन्थ (Colocynth) बिटर एपल (Bitter Apple)
लेटिन सिट्रयुलस कोलोसिन्थस (Citrullus Colocynthis) |
इन्द्रायण के औषधीय गुण
आयुर्वेदिक मतानुसार इन्द्रायण रस में तिक्त, लघु, तीक्ष्ण, उष्ण प्रकृति, विपाक में कटु, कफ पित्तहर, सभी प्रकार के उदर रोग नाशक, पाचक, वात शामक, कब्ज़ दूर करने वाला, शोथहर, तीव्र गर्भाशय संकोचक, कामला, ज्वर, श्वास, खांसी, कृमि रोग, घाव, तिल्ली और ग्रंथि रोगों में लाभदायक है।
वैज्ञानिक मतानुसार इन्द्रायण की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फलमज्जा में कोलोसिन्थिन नामक तिक्त पदार्थ और एक प्रकार का राल होने के कारण ही आतों में रेचन की क्रिया होती है और मलावरोध दूर होता है। इनके अलावा हेण्ट्रिएकोटेन, ए-इलेटरिन, फाइटोस्टेराल और वसा अम्ल होते हैं। बीजों में तिक्त स्थिर तेल इपुरैनाल (Ipuranol) 21 प्रतिशत, फाइटोस्टेराल,ग्लाइकोसाइनाइड, हाइड्रोकार्बन, टैनिन और सैपोनिन होते हैं। प्रत्येक फल में छिलका 23 प्रतिशत, बीज 62 प्रतिशत और मज्जा 15 प्रतिशत होते हैं।
इन्द्रायण के हानिकारक प्रभाव Side Effects of Indrayan
मरोड़ अधिक उत्पन्न करने के कारण इन्द्रायण का अकेले व्यवहार नहीं किया जाता। अधिक मात्रा में इसे सेवन करने से विष के लक्षण उत्पन्न होते हैं। अत: प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए।
मात्रा:
फलों का चूर्ण 125 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम तक।
जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम।
इन्द्रायण की उपलब्ध आयुर्वेदिक योग:
इन्द्रायण वटी, इन्द्रायण तेल, इन्द्रायण अक।
इन्द्रायण का रोगों के इलाज में प्रयोग:
1. स्तन के रोग और इलाज : इन्द्रायण की जड़ को पानी में घिसकर बने लेप को स्तन पर लेप करने से उसकी सूजन, पीड़ा व घाव शीघ्र ठीक हो जाते हैं।
2. कान के रोगों का इलाज : इन्द्रायण के कच्चे या पके फल को कूटकर मसल लें और फिर 4 चम्मच तिल के तेल में मंद आंच पर पका लें। आधा तेल बचा रहने पर उसे छानकर शीशी में सुरक्षित रख लें। रोजाना सोने से पूर्व 2-3 बूंद डालने से बहरापन, कान में झनझनाहट, विभिन्न प्रकार की ध्वनियां सुनाई देना इत्यादि विकार ठीक हो जाते हैं।
3. शीघ्र प्रसव हेतु : इन्द्रायण की जड़ को प्रसूता के बालों में बांधने से शीघ्र प्रसव होता है। दूसरा प्रयोग इसकी जड़ के रस को रूई में भिगोकर योनि में रखने से भी यही लाभ मिलता है।
4. गर्भ धारण के लिए : बेल का फल इन्द्रायण की जड़ को बराबर की मात्रा में पीसकर पीने से स्त्री गर्भ धारण करने के योग्य बनती है | यह विशेषरूप से तब उपयोगी है जिस स्त्री को बच्चा न ठहर रहा हो |
5. ग्रन्थि शोथ : इन्द्रायण के पत्तो का लेप गाँठ पर बाँधने से वह बैठ जाती है|
6. प्रसूता का पेट बढ़ना : अनेक बार प्रसव होने से स्त्री का उदर क्षेत्र बेडौल होकर काफी बढ़ जाती है, ऐसे में इन्द्रायण के फल को पीसकर लेप तैयार करें और नियमित रूप से कुछ हफ्ते सोते समय पेट पर लगायें, पेट मूल अवस्था में आ जाएगा |
7. बवासीर के मस्सों पर : इन्द्रायण के बीजों को पानी में पीसकर लेप बनाए और उसे बवासीर के मस्सों पर दिन में 2 बार कुछ हफ्ते तक लगाने से बवासीर में फायदा मिलता है |
8. गंजापन : इन्द्रायण की जड़ को गोमूत्र में पीसकर नियमित रूप से गंजा वाले स्थानों पर लगाए | कुछ ही दिनों के प्रयोग से लाभ नजर आएगा |
9. कब्ज के इलाज में : इन्द्रायण के फल को घिसकर नाभि पर लगाए और इसकी जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सोते समय लें| इससे पुराने से पुराना कब्ज भी ठीक हो जाता है |
10. उदर कृमि के इलाज में : 10 ग्राम गुड में 2 ग्राम इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण मिलाकर सोते समय सेवन करने से 3-4 दिनों में ही सारे कृमि निकल जाते है |
11. सर्प विष : पान में इन्द्रायण की जड़ रखकर चबाते रहने से सर्प विष का प्रभाव दूर होने लगता है | लेकिन इसमें रिस्क लेने की बजाय जितना जल्द हो सके डॉक्टर से संपर्क करें |
12. त्वचा की रंगत : इन्द्रायण के ताजे हरे फलो से रस निकालकर शरीर में जहाँ-जहाँ त्वचा की रंगत बिगड़ गई हो, वहां-वहां कुछ दिन नियमित रूप से लगाते रहने से वह स्वाभाविक रंग में आ जाएगी |
13. मुत्रावरोध होने पर : जड़ को पानी के साथ पीसकर छान लें फिर उसे दिन में तीन बार पिए, मूत्र साफ़ आने लगेगा |
14. बाल काले करने के लिए : इन्द्रायण का तेल, नारियल के तेल में बराबर की मात्रा में मिलाकर नियमित लगाए लाभ होगा | इससे कुछ ही दिनों में बाल काले होना शुरू हो जायेंगे |
https://www.gharkavaidya.com/amazing-health-benefits-of-indrayan-hindi/
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