Online Dr. P.L. Meena (डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा)

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(स्वास्थ्य रक्षक सक्षा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार)

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स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं करें, तुरंत स्थानीय डॉक्टर (Local Doctor) से सम्पर्क करें। हां यदि आप स्थानीय डॉक्टर्स से इलाज करवाकर थक चुके हैं, तो आप मेरे निम्न हेल्थ वाट्सएप पर अपनी बीमारी की डिटेल और अपना नाम-पता लिखकर भेजें और घर बैठे आॅन लाइन स्वास्थ्य परामर्श प्राप्त करें।

सदाबहार, नयनतारा (Evergreen), Catharanthus Roseus, (Periwinkle)

: शॉर्ट नोट्स :


1. सदाफूली/सदाबहार/सदा सुहागन बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है।
2. इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस/Catharanthus Roseus है। भारत में पाई जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है।
3. सदाबहार पौधा बारूद-जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है।
4. सदाबहार पौधों के आस-पास कीट, पतंगे, बिच्छू तथा सर्प आदि नहीं फटकते।
5. ध्यान रहे: कड़वा स्वाद होने के कारण इसे खाली पेट लेने से उल्टी हो सकती है।
6. प्रयोग का तरीका: इसके पत्तों को सुखाकर चूर्ण बना लें व रोजाना नाश्ते के बाद आधा ग्राम चूर्ण को सादा पानी से लें।
7. इनका सेवन स्वस्थ लोग भी कर सकते हैं। इससे उनका प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता है। 
8. अन्य रोगों में भी प्रभावी: डायबिटीज के मरीजों में ये एंटीडायबिटिक का काम करती हैं। 
9. पत्तियां कैंसररोधी हैं। ये रोग बढ़ाने वाली कोशिकाओं के विकास को रोकती हैं साथ ही इस दौरान क्षतिग्रस्त हो गई कोशिकाओं को फिर से सेहतमंद बनाने का काम करती हैं। आयुर्वेद शोधकर्ताओं ने सफेद फूल वाले सदाबहार पौधे को इस बीमारी में प्रभावी माना है।
10. सदाबहार की पत्तियाँ मृदा/मिट्टी में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती हैं।
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नई दिल्ली. सदाफूली, सदाफली या सदाबहार या सदा सुहागन बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। भारत में पाई जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस (Catharanthus Roseus) है। सदाफूली में सबसे चमत्कृत करने वाली बात है कि यह बारूद जैसे पदार्थ को भी निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है। मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया है- उड़िया में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ, तेलुगु में बिल्लागैत्रेर्स, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली और मलयालम में उषामालारि।
कई बिमारियों में करता है चिकित्सा का काम : विकसित देशों में रक्तचाप शमन की खोज से पता चला कि सदाबहार झाड़ी में यह क्षार अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप, भारत, चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। अनेक देशों में इसे खांसी, गले की खराश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है। जब शोध हुआ तो सदाबहार के अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, बल्कि व्यवहार में विस्फोटक-भंडारों वाली लाखों एकड़ जमीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहा है।

पौधा करेगा संजीवनी बूटी का काम : भारत में ही केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि सदाबहार की पत्तियों में विनिकरस्टीन नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। बगीचों की बात करें तो 1980 तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी-गुलाबी। 1998 में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर (बैंगनी आभा वाला गुलाबी जिसके बीच की आंख गहरी गुलाबी थी) और पिपरमिंट कूलर (सफेद पंखुरियां, लाल आंख) विकसित किए गए। वर्ष 1991 में रॉन पार्कर की कुछ नई प्रजातियां बाज़ार में आईं। इनमें से प्रिटी इन व्हाइट और पैरासॉल को आल अमेरिका सेलेक्शन पुरस्कार मिला। इन्हें पैन अमेरिका सीड कंपनी द्वारा उगाया और बेचा गया। इसी वर्ष कैलिफोर्निया में वॉलर जेनेटिक्स ने पार्कर ब्रीडिंग प्रोग्राम की ट्रॉपिकाना श्रृंखला को बाज़ार में उतारा।


अंग्रेजी में भी है कई नाम : इन सदाबहार प्रजातियों के फूलों में नए रंग तो थे ही, आकार भी बड़ा था और पंखुरियं एक दूसरे पर चढ़ी हुई थीं। 1993 में पार्कर र्जमप्लाज्म ने पैसिफका नाम से कुछ नए रंग प्रस्तुत किए। जिसमें पहली बार सदाबहार को लाल रंग दिया गया। इसके बाद तो सदाबहार के रंगों की झड़ी लग गई और आज बाजार में लगभग हर रंग के सदाबहार पौधों की भरमार है। यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन ब्यूरो ने सन 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना। विंका या विंकारोजा, सदाबहार का अंग्रेजी नाम है।

स्रोत: http://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/haribhoomi-epaper-hari/kainsar-samet-kai-bimariyo-ki-ek-dava-hai-sada-suhagan-janie-isaki-khasiyat-newsid-54802002
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औषधीय गुणों का भण्डार सजावटी पौधा सदाबहार
DrZakir Ali Rajnish 6 अप्रैल 2015
Catharanthus Roseus (Sadabahar) Medicinal Uses in Hindi

सदाबहार नाम के अनुसार ही सदाबहार (Evergreen) पौधा है, जिसको उगाने से आस-पास में सदैव हरियाली बनी रहती है। कसैले स्वाद के कारण तृष्णभोजी जानवर (herbivores) इस पौधे का तिरस्कार करते हैं। सदाबहार पौधों के आस-पास कीट, पतंगे, बिच्छू तथा सर्प आदि नहीं फटकते (शायद सर्पगंधा समूह के क्षारों की उपस्थिति के कारण) जिससे पास-पड़ोस में सफाई बनी रहती है। सदाबहार की पत्तियाँ विघटन के दौरान मृदा में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती हैं।

औषधीय गुणों का भण्डार सजावटी पौधा सदाबहार

-डॉ. अरविन्द सिंह
क्या है सदाबहार?  सदाबहार एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाकीय वनस्पति है जिसे भारत में आमतौर से बाग-बगीचों में सजावटी पौधे के रूप में गमलों अथवा भूमि पर उगाया जाता है। यह पौधा अफ्रिका महाद्वीप के मेडागास्कर देश का मूल निवासी है, जहाँ यह उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन में जंगली अवस्था में उगता है। विराट जैवविविधता (megadiversity) वाले देश मेडागास्कर में इस वनस्पति की लगातार गिरती जनसंख्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (आ.यू.सी.एन.) ने इसे संकटग्रस्त (Endangered) घोषित कर लाल ऑकड़ा किताब (Red Data Book) में सूचीबद्ध किया है। स्थानान्तरी कृषि इसकी गिरती जनसंख्या का प्रमुख कारण है।

सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथरेन्थस रोसीय्स (Catharanthus roseus) है। यह पुष्पीय पौधों के एपोसाइनेसी (Apocynaceae) कुल का सदस्य है। सदाबहार इसका हिन्दी नाम है जबकि अंग्रेजी में यह पेरिविन्कल (Periwinkle) नाम से जाना जाता है। हिन्दी में इसे सदाफली नाम से भी जाना जाता है। सदाबहार की अधिकतम ऊँचाई 1 मीटर तक होती है। पौधे की पत्तियाँ हरी एवं चमकदार होती हैं। इसके पुष्प गुलाबी, बैंगनी अथवा सफेद रंग के होते हैं। फल फालिकल (follicle) प्रकार का होता है, तथा एक फल में कई बीज होते हैं। आमतौर से सदाबहार को बागवानी हेतु बीज तथा कटिंग द्वारा तैयार किया जाता है।

पर्यावरणीय महत्व: सदाबहार नाम के अनुसार ही सदाबहार (Evergreen) पौधा है जिसको उगाने से आस-पास में सदैव हरियाली बनी रहती है। कसैले स्वाद के कारण तृष्णभोजी जानवर (herbivores) इस पौधे का तिरस्कार करते हैं। सदाबहार पौधों के आस-पास कीट, पतंगे, बिच्छू तथा सर्प आदि नहीं फटकते (शायद सर्पगंधा समूह के क्षारों की उपस्थिति के कारण) जिससे पास-पड़ोस में सफाई बनी रहती है। सदाबहार की पत्तियाँ विघटन के दौरान मृदा में उपस्थित हानिकारक रोगाणुओं को नष्ट कर देती हैं।

आमतौर से विदेशी मूल के पौधे अपने आप को तेजी से विस्तारित कर खर-पतवार का रूप धारण कर लेते हैं, जिसके कारण बहुधा इन्हें ‘जैव प्रदूषक’ (biological pollutants) कहा जाता है, लेकिन सदाबहार में इस प्रकार की प्रवृत्ति नहीं पायी गयी है। अतः सदाबहार अन्य विदेशी मूल के पौधों की तरह पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है। सदाबहार अपने पास पड़ोस में देसी अथवा स्थानीय पौधों की प्रजातिओं को पनपने देता है। जिससे जैवविविधता (bio-diversity) पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

औषधीय गुण एवं उपयोग:
  1. आमतौर से औषधीय गुण सम्पूर्ण पौधे में पाया जाता है, लेकिन इसके जड़ों की छाल औषधीय दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण भाग होती है।
  2. इस पौधे में विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण क्षार (alkaloids) पाये जाते हैं, जिनमें एजमेलीसीन (Ajmalicine), सरपेन्टीन (Serpentine), रेर्स्पीन (Reserpene), विण्डोलीन (Vindoline), विनक्रिस्टीन (Vincristine) तथा विनब्लास्टिन (Vinblastin) प्रमुख हैं।
  3. एजमेलीसीन, सरपेन्टीन तथा रेसर्पीन क्षार सर्पगन्धा समूह से सम्बन्धित हैं।
  4. सदाबहार की जड़ों में रक्त शर्करा को कम करने की विशेषता होती है। अतः पौधे का उपयोग मधुमेह के उपचार में किया जा सकता है।
  5. दक्षिण अफ्रीका में पौधे का उपयोग घरेलू नुस्खा (Folk Remedy) के रूप में मधुमेह के उपचार में होता रहा है। 
  6. पत्तियों के रस का उपयोग हड्डा डंक/ततयै का डंक (Wasp Sting) के उपचार में होता है।
  7. जड़ का उपयोग उदर टानिक के रूप में भी होता है।
  8. पत्तियों का सत्व मेनोरेजिया (Menorrhagia) नामक बिमारी के उपचार में दिया जाता है। इस बिमारी में असाधारण रूप से अधिक मासिक धर्म होता है।
  9. एजमेलीसीन, सरपेन्टीन तथा रेसर्पीन नामक क्षारों में शामक तथा स्वापक गुण पाये जाते हैं। इनमें केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को शान्त करने की क्षमता होती है।
  10. अतः पौधे की जड़ों की छाल का उपयोग उच्चरक्तचाप तथा मानसिक विकारों जैसे अनिद्रा, अवसाद, पागलपन तथा चिन्तारोग (Anxiety) के उपचार में किया जा सकता है।
  11. इसके अतिरिक्त इनमें मांशपेशियों को खिंचाव को कम करने की क्षमता होती है। अतः जड़ की छाल को दर्दनाशक के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।
  12. इन क्षारों में हैजा रोग के जीवाणु वाइब्रो कालेरी (Vibrio cholorae) के विकास को अवरूद्ध करने की क्षमता होती है।
  13. क्षारों में जीवाणुनाशक गुण पाये जाते हैं। इसलिए पत्तियों का सत्व का उपयोग ‘स्टेफाइलोकाकल’ (Staphylococcal) तथा ‘स्टेप्टोकाकल’ (Streptococcal) संक्रमण के उपचार में होता है। आमतौर से ये दोनों प्रकार के संक्रमण मनुष्य में गले (Throat) एवं फेफड़ों (Lungs) को प्रभावित करते हैं।
  14. पत्तियों में मौजूद विण्डोलीन नामक क्षार डीप्थिरिया के जीवाणु कारिनेबैक्टिीरियम डिप्थेरी Corynebacterium Diptherae) के खिलाफ सक्रिय होता है। अतः पत्तियों के सत्व का उपयोग डिप्थिीरिया रोग के उपचार में किया जा सकता है।
  15. पौधे के जड़ का उपयोग सर्प, बिच्छू तथा कीट विषनाशक (antidote) के रूप में किया जा सकता है।
  16. उपर्युक्त के अतिरिक्त आज सदाबहार ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है क्योंकि इसमें कैंसररोधी (Anticancer) गुण पाये जाते हैं। सदाबहार से प्राप्त विनक्रिस्टीन तथा विनब्लास्टीन नामक क्षारों का उपयोग रक्त कैंसर (Leukaemia) के उपचार में किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
सदाबहार विदेशी मूल का पौधा होने के कारण भारत में जंगली अवस्था में नहीं पाया जाता और इसका उपयोग केवल सजावटी पौधे के रूप में विशेषकर देश के शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में न तो यह पौधा उगाया जाता है न ही इस पौधे के औषधीय महत्व के विषय में कोई विशेष जानकारी है। यहाँ तक कि शहरी क्षेत्रों में भी इस पौधे को उगाने वाले लोगों को इसके औषधीय गुणों के ज्ञान का सर्वथा अभाव है।

आज देश के ग्रामीण क्षेत्रों में इस औषधीय पादप के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। जिससे इस पौधे को कृषि के जरिए विस्तार मिल सके, क्योंकि यह पौधा देश में सर्पगन्धा (Rauvolfia serpentina) का आदर्श विकल्प बनने की क्षमता रखता है जो संकटग्रस्त प्रजाति होने के कारण दुर्लभ है।


सर्पगंधा की खेती की तुलना में सदाबहार की खेती सुगमता से की जा सकती है। अतः सदाबहार का औषधीय उपयोग सर्पगन्धा के विकल्प के तौर पर उच्च रक्तचाप, मानसिक विकार (चिन्तारोग, अनिद्रा, अवसाद, पागलपन) आदि के उपचार के साथ-साथ विषनाशक के रूप में भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, सदाबहार मधुमेह, डिप्थिरीया, हैजा जैसी बिमारियों के उपचार में भी कारगर साबित हो सकता है।
स्रोत : http://www.scientificworld.in/2015/04/sadabahar-medicinal-plant-hindi.html

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लेखक परिचय:
डॉ. अरविंद सिंह वनस्पति विज्ञान विषय से एम.एस-सी. और पी-एच.डी. हैं। आपकी विशेषज्ञता का क्षेत्र पारिस्थितिक विज्ञान है। आप एक समर्पित शोधकर्ता हैं और राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की शोध पत्रिकाओं में अब तक आपके 4 दर्जन से अध‍िक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। खनन गतिविधियों से प्रभावित भूमि का पुनरूत्थान आपके शोध का प्रमुख विषय है। इसके अतिरिक्त आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मुख्य परिसर की वनस्पतियों पर भी अनुसंधान किया है। आपके अंग्रेज़ी में लिखे विज्ञान विषयक आलेख 'Science Log'पर पढ़े जा सकते हैं। आपसे निम्न ईमेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है-
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Patrika news network Posted: 2015-10-12 11:16:28 IST Updated: 2015-11-05 11:46:01 IST

संक्षिप्त विवरण:
कैंसर ऐसी बीमारी है, जिसका पता सामान्यत: रोग बढऩे के बाद ही चल पाता है। इस स्थिति में सर्जरी ही बीमारी के विकल्प के रूप में सामने आती है। आयुर्वेद शोधकर्ताओं ने सफेद फूल वाले सदाबहार पौधे को इस बीमारी में प्रभावी माना है।

जयपुर: कैंसर ऐसी बीमारी है जिसका पता सामान्यत: रोग बढऩे के बाद ही चल पाता है। इस स्थिति में सर्जरी ही बीमारी के विकल्प के रूप में सामने आती है। आयुर्वेद शोधकर्ताओं ने सफेद फूल वाले सदाबहार पौधे को इस बीमारी में प्रभावी माना है।

इस तरह हैं कैंसर में लाभकारी: ये पत्तियां कैंसररोधी हैं। ये रोग बढ़ाने वाली कोशिकाओं के विकास को रोकती हैं साथ ही इस दौरान क्षतिग्रस्त हो गई कोशिकाओं को फिर से सेहतमंद बनाने का काम करती हैं। यदि इसकी पत्तियों से बने रस को कैंसर की पहली स्टेज वाले मरीज को दिया जाए तो उसके रोग के बढऩे की आशंका कम हो जाती है। वहीं दूसरी व आखिरी स्टेज के दौरान इसके प्रयोग से मरीज की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होकर उसके जीवित रहने की अवधि बढ़ सकती है।

अन्य रोगों में भी प्रभावी: डायबिटीज के मरीजों में ये एंटीडायबिटिक का काम करती हैं। ये रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित रखती हैं। इनका सेवन स्वस्थ लोग भी कर सकते हैं। इससे उनका प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता है। सामान्य तासीर का होने की वजह से इसकी पत्तियों का प्रयोग हृदय व हाई बीपी के मरीज भी कर सकते हैं।

प्रयोग का तरीका: इसके पत्तों को सुखाकर चूर्ण बना लें व रोजाना नाश्ते के बाद आधा ग्राम चूर्ण को सादा पानी से लें। इसके अलावा रस को भी प्रयोग में लाया जा सकता है। रोजाना पांच ताजा पत्तियों को पानी के साथ पीसकर बारीक कपड़े से छानकर रस निकालें व इसे भोजन करने के बाद पिएं।

ध्यान रहे: कड़वा स्वाद होने के कारण इसे खाली पेट लेने से उल्टी हो सकती है। इसलिए इसका प्रयोग कुछ खाकर ही करें। छोटे बच्चों को इसके रस में शक्कर या चूर्ण में गुड़ मिलाकर गोलियों के रूप में दिया जा सकता है।

- डॉ. गौरी शंकर शर्मा, प्रधानाचार्य, राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, उदयपुर
स्रोत : http://rajasthanpatrika.patrika.com/story/health/health-benifits-and-medicinal-values-of-sadabahar-1373835.html
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घरों में उगाये जाने एक साधारण से पोधे जिसे हम सदाबहार भी बोलते है अपने आप में औषधि होता है. सभी आयुर्वेद के जानकार या हर्बल जानकार इसके बहत सारे गुण बताते है आइये जानते है सदाबहार (periwinkle plant) के कुछ अनसुने health tips 

benefits of periwinkle plant in hindi 

sadabahar ka podha - वासीर होने की स्थिति में इसके पत्तियों और फूलों को कुचलकर लगाने से बेहद फायदा मिलता है, ऐसा रोज़ाना करें। 

skin पर खुजली, लाल निशान, रशेस या किसी तरह की allergy होने पर vinca rosea की पत्तियों के रस को लगाने पर आराम मिलता है। 

त्वचा पर घाव या फोड़े-फुंसी हो जाने पर इसकी पत्तियों का रस दूध में मिला कर लगाते हैं।

सदाबहार के फूलों और पत्तियों के रस को पिम्पल्स पर लगाने से कुछ ही दिनों में इनसे छुटकारा मिल जाता है।

दो फूल को एक कप उबले पानी या बिना शक्कर की उबली चाय में पीने से मधुमेह में फायदा पहुंचाता है। 

इसकी पत्तियों को तोड़े जाने पर जो दूध निकलता है, उसे घाव पर लगाने से किसी तरह का संक्रमण नहीं होता, खुजली होने पर भी लगाया जा सकता है. 

स्रोत : http://ayurveda.vastu-shastra.org/2016/03/sadabahar-plant-ke-fayde.html
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Tuesday, 26 August 2014


मधुमेह रोग से राहत पाने के लिए सदाबहार

सदाबहार ( सदाफूली ) की तीन - चार कोमल पत्तियाँ चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है ...!

1-आधे कप गरम पानी में सदाबहार (सदाफूली) के तीन ताज़े गुलाबी फूल 05 मिनिट तक भिगोकर रखें| उसके बाद फूल निकाल दें और यह पानी सुबह ख़ाली पेट पियें| यह प्रयोग 08 से 10 दिन तक करें| अपनी शुगर की जाँच कराएँ यदि कम आती है तो एक सप्ताह बाद यह प्रयोग पुनः दोहराएँ|
2 -सदाबहार (सदाफूली) के पौधे के चार पत्तों को साफ़ धोकर सुबह खाली पेट चबाएं और ऊपर से दो घूंट पानी पी लें| इससे मधुमेह, मिटता है| यह प्रयोग कम से कम तीन महीने तक करना चाहिए| 
3-सदाबहार (सदाफूली) की तीन-चार कोमल पत्तियाँ चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है| 

मधुमेह के लिए घरेलू उपचार 
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1- खीरा, करेला, और टमाटर एक-एक की संख्या में लेकर जूस निकालकर, सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह नियन्त्रित होता है। 
2- जामुन की गुठली का पॉवडर करके, एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी के साथ लेने से मधुमेह नियन्त्रित होता है। 
3-नीम के 7 पत्ते सुबह खाली पेट चबाकर अथवा पीसकर पानी के साथ लेने से मधुमेह में आराम मिलता है| 
4- सदाबहार के 7 फूल खाली पेट जल के साथ चबाकर सेवन से भी मधुमेह में लाभ मिलता है|

साथ में कपालभांति प्राणायाम व मण्डूकासन भी अवश्य करें , शीघ्र लाभ होगा|
स्रोत : http://drinkeatright.blogspot.in/2014/08/blog-post_54.html

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क्या आप ल्यूकेमिया (leukemia) और लिम्फोमा (lymphoma) जैसे कैंसर का शिकार हैं?
Editorial Team Dec 15, 2015 at 01:30 pm

Read this in English.

सदाबहार के अलावा नयनतारा नाम से लोकप्रिय फूल विंका (Vinca) न केवल देखने में सुन्दर और आकर्षक होता है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। एंटी-ट्यूमर प्रभाव के चलते इस फूल का चाइना की परंपरागत चिकित्सा और आयुर्वेद में इस्‍तेमाल किया जाता है। इसे कई देशों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। यह एक छोटा झाड़ीनुमा पौधा है, जिसके गोल पत्ते अंडाकार, अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। पांच पंखुड़ियों वाला यह पुष्प श्वेत, गुलाबी, फालसाई, जामुनी आदि रंगों का होता है। आइए जानते हैं, इस फूल के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और साइड इफेक्‍ट के बारे में। पढ़ें- सहजन के मुट्ठी भर फूल आपकी सेक्स लाइफ में लाएंगे बहार

स्‍वास्‍थ्‍य लाभ:
विंका फूल का कैंसर के कुछ प्रकार जैसे ल्यूकेमिया (leukemia) और लिम्फोमा (lymphoma) के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। इस फूल से साइटोटोक्सिक (Cytotoxic) प्रभाव पड़ता है, जो इसे कैंसर के खिलाफ प्रभावी बनाता है। इसे अन्‍य दवाओं में मिलाकर कीमोथेरेपी (Chemotherapy) में भी प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग एंटी-माइक्रोबियल (Anti-Microbial), एंटी हाइपरटेंसिव (Anti-Hypertensive) और एंटी डायबिटीक (Anti-Diabetic) के खिलाफ किया जाता है।

इसका उपयोग कैसे करें? विंका अल्‍कालोइड (Vinca Alkaloid) दवा टिंचर के रूप में उपलब्‍ध होती है। इस दवा का उपयोग केवल डॉक्‍टर की देखरेख में किया जाना चाहिए, क्‍योंकि ये दवा अत्‍यधिक प्रभावशाली होती है और इसे ज्‍यादा मात्रा में लेना खतरनाक साबित हो सकता है।

सक्रिय तत्‍व: विंका में एल्‍कालोइड्स (alkaloids) जैसे कई तत्‍व शामिल होते हैं। ये तत्‍व हैं- विनब्‍लाटिन (vinblastine), विन्क्रिस्टाईन (vincristine), विनराइडिन (vineridine), विनकैमजिन (vincamajine), विनबरनाइन (vinburnine) और विनकैमिनल (vincaminol)।

साइड इफेक्‍ट : सदाबहार में कई सारे गुण होते हैं, लेकिन इसके साथ कुछ साइड इफेक्‍ट भी होते हैं। इसके उपयोग के बाद कई बार उल्टी, सिर दर्द, मतली, खून बहना और थकान आदि समस्याएं भी हो सकती हैं।
मूल स्रोत - Vinca: Health benefits and side effects
अनुवादक – Usman Khan
चित्र स्रोत – Shutterstock
स्रोत : http://www.thehealthsite.com/hindi/diseases-and-conditions-article-in-hindi-health-benefits-and-side-effects-of-vinca-in-hindi-u1215/
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सदाबहार व नयनतारा नाम से लोकप्रिय यह फूल न केवल सुंदर और आकर्षक है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर माना गया है। इसे कई देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पूरे भारत और संभवतः पाया जाने वाला यह अत्यंत दृढ़ प्रकृति व क्षमता वाला पौधा है। उत्तरी भारत में इसे सदाबहार व नयनतारा कके नाम से जाना जाता है। सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा उगने के बाद आसपास अन्य पौधे अपने आप उगने लगते है। । पत्तो व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है । इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है। सदाबहार का फूल सुंदर होने मुंह व नाक से रक्तस्नव होने पर इसके प्रयोग की सलाह दी जाती है। अंगों की जकड़न में इसका प्रयोग किया जाता है। वैसे स्कर्वी, अतिसार, गले में दर्द, टांसिल्स में सूजन, रक्तस्नव आदि रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है। भारत में प्राकृतिक चिकित्सक मधुमेह रोगियों को इसके श्वेत फूल का प्रयोग सुबह खाली पेट करने की सलाह देते हैं।


औषधीय गुण- सदाबहार का उपयोग खांसी, गले की खराश और फेफड़ों के संक्रमण में उपयोग किया जाता है । इसे मधुमेह के उपचार में उपयोगी पाया गया है, क्योंकि इसमें दर्जनों क्षार ऐसे पाए गए हैं जो कि उनसे रक्त शकरा की मात्रा को नियत्रिंत किया जा सकता है। सदाबहार की पत्तियों में विनिकरस्टीन नामक क्षारीय पदार्थ होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है तथा फूलों वाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका है। यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है।
December 13th, 2014
स्रोत : http://www.divyahimachal.com/2014/12/%E0%A4%94%E0%A4%B7%E0%A4%A7%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE/
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--->--->श्रीमती जानकी पुरुषोत्तम मीणा जिनका 08 अप्रेल, 2012 को असमय निधन हो गया!

--->--->श्रीमती जानकी पुरुषोत्तम मीणा जिनका 08 अप्रेल, 2012 को असमय निधन हो गया!
सभी के स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना के साथ-मेरे प्यारे और दुलारे तीन बच्चों की ममतामयी अद्वितीय माँ (मम्मी) जो दुखियों, जरूतमंदों और मूक जानवरों तक पर निश्छल प्यार लुटाने वाली एवं अति सामान्य जीवन जीने की आदी महिला थी! वह पाक कला में निपुण, उदार हृदया मितव्ययी गृहणी थी! मेरी ऐसी स्वर्गीय पत्नी "जानकी मीणा" की कभी न भुलाई जा सकने वाली असंख्य हृदयस्पर्शी यादों को चिरस्थायी बनाये रखते हुए इस ब्लॉग को आज दि. 08.08.12 को फिर से पाठकों के समक्ष समर्पित कर रहा हूँ!-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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(Tribulus Terrestris) 14 फरवरी Abutilon Indicum Aerva Lanat Allergy Aloevera Juice Alternanthera Sessilis Alum Aluminum Amaranthus spinosus Ammonium chloride Appetite Argemone Mexicana Ash-coloured Fleabane Bael Ban Tulasi Bauhinia purpurea Bernini’s Cinema Bitter Gourd Black night shade Blumea Lacera Bone Infection Borax BPH Calories Calories Chart Cancer Care Carrots Castor beans Chanca Piedra Cheese Chemotherapy Chenopodium Album Chikungunya Cholesterol Cleome viscosa Clerodendrum Phlomidis Clitoria Ternatea Colocynth Colpoptosis Constipation Convolvulus Pluricaulis Corn Creak Crotalaria Bburhia Croton Bonplandianum Croton Sparsiflorus Cumin Date Palm Dengue Depression Diabetes digestion Disorders Divorce Dog Mustard Dronapushpi Dysentery Early Ejaculation Emblic Myrobalan Extramarital Relation Extremely Intolerance Fatty liver Femininity FENUGREEK Fenugreek Seeds Ferrum Phosphoricum Fever Fissure Fistula Folic Acid Gallbladder Gardenia Gummifera Garlic Ginger Gooseberry Gourd Groundnut-peanut Guava Hainampfer Hair Falling Headaches Health Health Care Friend Health Consultation Health Links Health Tips Heliotropium Eeuropaeum Hemorrhoids Hepatitis Hibiscus Homeopathic Homeopathy Homoeopath Honey How to get pregnant? 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दाम्पत्य-Conjugal दाल दालचीनी दालें दिमांग दिल दीर्घायु दु:खी दुर्गंध दुर्बलता दुष्प्रभाव दुष्प्रभावरहित दूध दूध वृद्धि दूधी दूधी-Milk Hedge दृष्टिदोष दो मन द्रोणपुष्पी द्रोणपुष्पी-Leucas Cephalotes धड़कन धनिया बीज धनिया-Coriander धमासा धात धातु धातु पतन धार्मिक धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं? धैर्यहीन नज़ला नपुंसक नपुंसकता नाइट्रिक एसिड नाक नाखून नागबला नागरमोथा नाडी हिंगु नाड़ी हिंगु (डिकामाली) नामर्दी नारकीय पीड़ा नारियल नाश्ता निमोनिया निम्न रक्तचाप निम्बू नियासिन निराश निरोगधाम निर्गुण्डी निर्गुन्डी निष्कपट स्नेह निष्ठा निसोरा नींद नींबू नींबू-Lemon नीम-azadirachta indica नुस्खे नुस्खे-Tips नेगड़ नेत्र रोग नेुचरल नैतिक नॉर्मल डिलेवरी नोनिया नौसादर न्युमोनिया-Pneumonia न्यूरॉन्स पक्षघात पंचकर्म पढ़ने में मन लगेगा पंतजलि पत्तागोभी-CABBAGE पत्थर फोड़ी पत्थरचट्टा पत्नी पथरी पदार्थ पनीर पपीता पपीता-CARICA PAPPYA पमाड परदेशी लांगड़ी परम्परागत चिकित्सा परहेज पराठा परामर्श परिस्थिति पवाड़ पवाँर पाइल्स पाक-कला पाचक पाचन पाचनतंत्र पाचनशक्ति पाठक संख्या 16 लाख पार पाठक संख्या पंद्रह लाख पायरिया पारदर्शिता पारिजात पालक पालक-Spinach पित्त पित्ताशय पित्ती पिंपल-मुंहासे-Pimples-Acne पिरामिड पीलिया पीलिया-Jaundice पीलिया-कामला-Jaundice पुआड़ पुदीना पुनर्नवा-साटी-सौंटी-Punarnava पुरुष पुंसत्व पेचिश पेट के कीड़े पेट दर्द पेट में गैस पेट रोग पेड़ पेद दर्द पेरिकिटो सेसिल पेशाब पेशाब में रुकावट पेंसिल थेरेपी-Pencil Therapy पोष्टिक लड्डू पौधे पौरुष पौरुष ग्रंथि पौष्टिक रागी रोटी प्याज-Onion प्यास प्रजनन प्रतिरक्षा प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिरोधक प्रतिरोधक-Resistance प्रदर प्रमेह प्रवाहिका (पेचिश)-Dysentery प्रसव प्रसव सुरक्षा चक्र प्रसव-पीड़ा प्रसूति प्राणायाम प्रेग्नेंसी-Pregnancy प्रेम प्रेमरस प्रेमिका प्रेमी प्रोटीन प्रोटीन का कार्य प्रोटीन के स्रोत प्रोस्टेट प्रोस्‍टेट कैंसर प्रोस्टेट ग्रंथि प्रोस्टेट ग्रन्थि प्लीहा प्लूरिसी-Pleurisy प्लेटलेट्स फंगल फटन फफूंद-Fungi फरास फल फाइबर फिटकरी फुंसी-Pimples फूलगोभी-CAULIFLOWER फेंफड़े फेरम फॉस फैट फैटी लीवर फोटोफोबिया फोड़ा फोड़े-Boils फोरप्ले फोलिक एसिड फ्लू फ्लू-Flu फ्लेक्स सीड्स बकायन बकुल बड़ी हरड़ बथुआ बथुआ पाउडर बथुआ-White Goose Foot 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