कनेर का पौधा एक झाड़ीनुमा होता है | इसकी ऊंचाई 10 से 12 फुट की होती है | कनेर के पौधे की शाखाओं पर तीन – तीन के जोड़ें में पत्ते लगे हुए होते है | ये पत्ते 6 से 9 इंच लम्बे एक इंच चौड़े और नोकदार होते है | पीले कनेर के पौधे के पत्ते हरे चिकने चमकीले और छोटे होते है | लेकिन लाल कनेर और सफेद कनेर के पौधे के पत्ते रूखे होते है।

7. सिर्फ 10 दिन के अन्दर अन्दर बाल झड़ने बंद : *कनेर के 60-70 ग्राम पत्ते (लाल या पीली दोनों में से कोई भी या दोनों ही एक साथ ) ले के उन्हें पहले अच्छे से सूखे कपडे से साफ़ कर लें ताकि उनपे जो मिटटी है वो निकल जाये। अब एक लीटर सरसों का तेल या नारियल का तेल या जेतून का तेल ले के उसमे पत्ते काट-काट के डाल दें। अब तेल को गरम करने के लिए रख दें। जब सारे पत्ते जल कर काले पड़ जाएँ तो उन्हें निकाल कर फेंक दें और तेल को ठण्डा कर के छान लें और किसी बोटल में भर के रख लें।

9. सफेद कनेर : सफेद कनेर की जड़ की छाल बारीक पीसकर भटकटैया के रस में खरल करके 21 दिन इन्द्री की सुपारी छोड़कर लेप करने से तेजी आ जाती है।
कनेर के पौधे के पत्तों का क्वाथ से नियमित रूप से नहाने से कुष्ठ रोग काफी कम हो जाता है। कनेर के पौधे के पत्तों को बारीक़ पीस लें। अब इसमें तेल मिलाकर लेप तैयार कर लें। शरीर में जंहा पर भी जोड़ों का दर्द है, उस स्थान पर लेप लगा लें। इससे दर्द कम हो जाता है।
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कनेर के बारे में कुछ विशेष जानकारी :-
भूमिका :- कनेर का पौधा भारत में हर स्थान पर पाया जाता है| इसका पौधा भारत के मंदिरों में, उद्यान में और घर में उपस्थित वाटिकाओं में लगायें जाते है| कनेर के पौधे की मुख्य रूप से तीन प्रजाति पाई जाती है| जैसे :- लाल कनेर, सफेद कनेर और पीले कनेर| इन प्रजाति पर सारा साल फूल आते रहते है| जंहा पर सफेद और पीली कनेर के पौधे होते है, वह स्थान हरा – भरा बसंत के मौसम की तरह लगता है |
कनेर का पौधा
कनेर के पौधे की संरचना :- कनेर का पौधा एक झाड़ीनुमा होता है | इसकी ऊंचाई 10 से 12 फुट की होती है | कनेर के पौधे की शखाओं पर तीन – तीन के जोड़ें में पत्ते लगे हुए होते है | ये पत्ते 6 से ९ इंच लम्बे एक इंच चौड़े और नोकदार होते है | पीले कनेर के पौधे के पत्ते हरे चिकने चमकीले और छोटे होते है | लेकिन लाल कनेर और सफेद कनेर के पौधे के पत्ते रूखे होते है |
कनेर के पौधे को अलग – अलग स्थान पर अलग अलग नाम से जाना जाता है | जैसे :-
१. संस्कृत में :- अश्वमारक , शतकुम्भ , हयमार ,करवीर

३. मराठी में :- कणहेर
४. बंगाली में :- करवी
५. अरबी में :- दिफ्ली
६. पंजाबी में :- कनिर
७. तेलगु में :- कस्तूरीपिटे
आदि नमो से जाना जाता है |
कनेर के पौधे में पाए जाने वाले रासायनिक घटक :- कनेर का पौधा पूरा विषेला होता है | इस पौधे में नेरीओडोरिन और कैरोबिन स्कोपोलिन पाया जाता है | इसकी पत्तियों में हृदय पदार्थ ओलिएन्डरन पाया जाता है | पीले कनेर में पेरुबोसाइड नामक तत्व पाया जाता है | इसकी भस्म में पोटाशियम लवण की मात्रा पाई जाती है |

कनेर का फूल
कनेर के पौधे के गुण : इसके उपयोग से कुष्टघन, व्रण, व्रण रोपण आदि बीमारियाँ ठीक की जाती है। इसके आलावा यह कफवात का शामक होता है। इसके उपयोग से विदाही, दीपन और पेट की जुडी हुई समस्या ठीक हो जाती है। यदि कनेर को उचित मात्रा मे प्रयोग किया जाता है तो यह अमृत के समान होती है, लेकिन यदि इसका प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है तो यह जहर बन जाता है। कनेर का उपयोग रक्त की शुद्धी के लिए भी किया जाता है। यह एक तीव्र विष है, जिसका उपयोग मुत्रक्रिछ और अश्मरी आदि रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है।

कनेर का औषधि के रूप में प्रयोग :
नेत्र रोग : आँखों के रोग को दूर करने के लिए पीले कनेर के पौधे की जड़ को सौंफ और करंज के साथ मिलाकर बारीक़ पीसकर एक लेप बनाएं| इस लेप को आँखों पर लगाने से पलकों की मुटाई जाला फूली और नजला आदि बीमारी ठीक हो जाती है|
सिर दर्द :
1. कनेर के फूल और आंवले को कांजी में पीसकर लेप बनाएं| इस लेप को अपने सिर पर लगायें| इस प्रयोग से सिर का दर्द ठीक हो जाता है|
2. सफेद कनेर के पौधे के पीले पत्तों को अच्छी तरह सुखाकर बारीक़ पीस लें| इस पिसे हुए पत्ते को नाक से सूंघे| इससे आपको छीक आने लगेगी जिससे आपका सिर का दर्द ठीक हो जायेगा|
कनेर के बीज:
अर्श: कनेर की जड़ को ठन्डे पानी में पीसकर लेप बनाएं | दस्त होने के बाद जो अर्श बाहर निकलता है उस पर यह लेप लगा लें | अर्श रोग का प्रभाव समाप्त हो जाता है |
हृदय शूल: कनेर के पौधे की जड़ की छाल की 100 से 200 मिलीग्राम की मात्रा को भोजन के बाद खाने से हृदय की वेदना कम हो जाती है |
दातुन: सफेद कनेर की पौधे की डाली से दातुन करने से हिलते हुए दांत मजबूत हो जाते है | इस पौधे का दातुन करने से अधिक लाभ मिलता है |
उबटन: सफेद कनेर के फूलों को पीसकर चहरे पे मलने से चहरे की सुन्दरता बढती है |
इन सभी लाभ के आलावा और भी कई फायदे होते है | जैसे :-
1. कनेर के ताज़े–ताज़े फूल की 50 ग्राम की मात्रा को 100 ग्राम मीठे तेल में पीसकर कम से कम एक सप्ताह तक रख दें| एक सप्ताह के बाद इसमें 200 ग्राम जैतून का तेल मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण तैयार करें| इस तेल की नियमित रूप से तीन बार मालिश करने से कामेन्द्रिय पर उभरी हुई नस की कमजोरी दूर हो जाती है इसके साथ पीठ दर्द और बदन दर्द को भी राहत मिलती है|
सफेद कनेर का पौधा :
2. सफेद कनेर के पौधे की 10 ग्राम जड़ की मात्रा में 20 ग्राम वनस्पति घी पकाएं| जब यह पक जाये तो इसे ठंडा होने के लिए रख दें| इससे मालिश करने से कामेन्द्रिय की बीमारी ठीक हो जाती है|
उपदंश: यदि किसी व्यक्ति को घाव हो जाते है तो सफेद कनेर के पौधे की जड़ को पानी में पीसकर लगाने से उपदंश के घाव ठीक हो जाते है |
पक्षघात के रोग में: सफेद कनेर के पौधे की जड़ की छाल , सफेद गूंजा की दाल तथा काले धतूरे के पौधे के पत्ते आदि को एक समान मात्रा में लेकर इनका कल्क तैयार कर लें | इसके बाद चार गुना पानी में कल्क के बराबर तेल मिलाकर किसी बर्तन में धीमी आंच पर पकाएं | जब केवल तेल रह जाये तो किसी सूती कपड़े से छानकर मालिश करें | इससे पक्षाघात का रोग ठीक हो जाता है |
जोड़ो का दर्द: जो व्यक्ति जोड़ों के दर्दे परेशान है, उनके लिए कनेर के पौधे के निम्नलिखित उपचार है:-
1. जोड़ों का दर्द: कनेर के पौधे के पत्तों को बारीक़ पीस लें| अब इसमें तेल मिलाकर लेप तैयार कर लें| शरीर में जंहा पर भी जोड़ों का दर्द है, उस स्थान पर लेप लगा लें| इससे दर्द कम हो जाता है|
2. दाद के रोग के लिए: सफेद कनेर के पौधे की जड़ की छाल का तेल बनाकर लगाने से कुष्ट रोग और दाद का रोग ठीक होता है |

लाल कनेर का पौधा
चर्म रोग :- सफेद कनेर के पौधे की जड़ का क्वाथ बनाकर राई के तेल में उबालकर त्वचा पर लगाने से त्वचा सम्बन्धी रोग दूर हो जाते है |
कुष्ठ रोग:
1. कनेर के पौधे की छाल का लेप बनाकर लगाने से चर्म कुष्ठ रोग दूर होता है|
2. कनेर के पौधे के पत्तों का क्वाथ से नियमित रूप से नहाने से कुष्ठ रोग काफी कम हो जाता है |
खुजली के लिए:
1. कनेर के पौधे के पत्तों को तेल में पका लें| इस तेल को खुजली वाले स्थान पर लगाने से एक घंटे के अंदर खुजली का प्रभाव कम हो जाता है|
2. पीले कनेर के पौधे की पत्तियां या जैतून का तेल में बनाया हुआ महलम को खुजली वाले स्थान पर लगायें| इससे हर तरह की खुजली ठीक हो जाती है|
सर्पदंश के लिए: कनेर की जड़ की छाल को 125 से 250 मिलीग्राम की मात्रा में रोगी को देते रहे इसके आलावा आप कनेर के पौधे की पत्ती को थोड़ी–थोड़ी देर के अंतर पे दे सकते है| इस उपयोग से उल्टी के सहारे विष उतर जाता है|

कृमि की बीमारी: कनेर के पत्तों को तेल में पकाकर घाव पर बांधने से घाव के कीड़े मर जाते है|
कनेर के पत्ते: जिस अंग पर कीड़े का प्रभाव अधिक है, वंहा कनेर की जड़ को गौमूत्र में पीसकर लेप लगा लें| इससे कीड़े का प्रभाव दूर हो जायेगा|
स्रोत : http://ayurvedhome.blogspot.in/2016/06/blog-post_60.html
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