Wednesday, June 22, 2016
बकायन सड़कों के किनारे लगाया जाता है. ये देखने में नीम की तरह लगता है. इसके पत्ते नीम के पत्तों से बड़े और खिलता हुआ हरापन लिए हुए होते हैं. पेड़ की छाल साफ़ सुथरी होती है. जबकि नीम की छाल ऊबड़ खाबड़ होती है.
बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. फरवरी मार्च में बकायन मे गुच्छेदार फूल आते हैं. ये फूल सफ़ेद रंग को होते हैं और इनकी पंखुड़ियां बैंगनी रंग की धारीदार होती हैं. फूल देखने में दो रंग का लगता है.
बकायन में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पाक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है.
इसकी छोटी कोपलों का रास निकाल कर फ़िल्टर करके खरल में डाल कर लगातार खरल करके सुख लिया जाता है जिससे एक तरह का पाउडर बन जाता है. ये पाउडर सुरमे की तरह आँख में लगाने से कहते हैं कि उतरता हुआ मोतियाबिंद भी ठीक हो जाता है.
इसके हरे पत्ते पीसकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर मलने से खुजली में फायदा करता है.
बकायन की दातून दांतों को स्वस्थ रखती है. इसकी छाल नीम की छाल की तरह ही खुजली और स्किन के इंफेक्शन में फ़ायदा करती है.
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बकायन संज्ञा पुं॰ [हिं॰ बड़का + नीम ?] नीम की जाति के एक पेड़ का नाम जिसकी पत्तियाँ नीम की पत्तिय़ों के सदृश पर उनसे कुछ बड़ी होती है।
पर्या-महानिब । द्रेका । कार्मुक । कैटय्यै । केशमुष्टिक । पवनेष्ट । रस्यकक्षीर । काकेड़ । पार्वत । महातिक्त।
विशेष-इसका पेड़ भी नीम के पेड़ से बड़ा होता है। फल नीम की तरह पर नीलापन लिए होता है। इसकी लकड़ी हलकी और सफेद रंग की होती है। इससे घर के संगहे और मेज कुरसी आदि बनाई जाती है। इस पर बारनिश और रंग अच्छा खिलाता है। लकड़ी नीम की तरह कड़ुई होती है। इससे उसमें दीमक घुन आदि नहीं लगते। वैद्यक में इसे कफ, पित्त और कृमि का नाशक लिखा है और वमन आदि के दूर करनेवाला तथा रक्तशोधक माना है। इसके फूल, फल, छाल और पत्तियाँ औषध के काम आती हैं। बीजों का तेल मलहम में पड़ता है। इसके पेड़ समस्त भारत में और पहाड़ो के ऊपर तक होते हैं। बीज से उगता है।
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बकायन (वानस्पतिक नाम : Melia azedarach) नीम की जाति का एक पेड़ है जिसकी पत्तियाँ नीम की पत्तियों के समान तथा कुछ बड़ी और दुर्गन्धयुक्त होती है। यह एक औषधीय पेड़ है। इसको महानिम्ब भी कहते हैं। आयुर्वेद में बकायन का बहुत महत्त्व है। विभिन्न भाषाओं में इसके नाम हैं-
हिन्दी - महानीम, बकायन, बकैन, धरेक, डकानो
संस्कृत - महानिम्ब, रम्यक, गिरिनिम्ब, कार्मुक, द्रेका
मराठी - बकाण निंब, कवड़या निंब, बिलायती नीम
गुजराती - बकायनलिंबड़ो
बंगला - घोड़ानिम्ब, महानिम्बानव
अंग्रेजी - पर्शियन लिल्याक
बाहरी कड़ियाँ
दक्षिण हरियाणा के किसान खेतों में लगाएं महानीम
http://www.do-apps.com/169_hi/e_167790.html
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बकायन, Bakayan, Melia azedarach
व्यवहारिक नाम:
अरबी: हर्बीत, बान।
कन्नड़: महाबेवु, अरबेधु।
गुजराती: बकामलीमड़ी।
तमिल: मलाइवेंबु।
तेलुगु: तुरकवेपा, पेदावेपा।
पंजाबी: धरेक।
फारसी: अजाद दरख्त।
बंगाली: घोड़ा नीम, महानिम।
मराठी: बकाणलींब।
लैटिन: मेलिया एजेडेरेक (Melia azedarach)।
संस्कृत: महानिम्ब।
हिन्दी: बकायन, बकाइन।
स्वाद: इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। इसके फल भी कड़वे नीम की तरह होते हैं।
पौधे का स्वरूप: बकायन नीम की तरह एक छायादार, बड़ा पेड़ होता है। इसकी छाया शरीर के लिए बहुत लाभकारी होती है। इसीलिए इसे रास्तों के दोनों ओर लगाया जाता है। बकायन का फल काले रंग का होता है। बकायन की लकड़ी इमारती कामों के लिए बहुत उपयोगी है। इसे कड़वा नीम भी कहा जाता है।
स्वभाव: इसके फल की तासीर गर्म होती है।
औषधीय गुण: बकायन के फल गांठों को तोड़कर बाहर निकाल देता है। यह सूजनों को पचा देता है। खून को साफ करता है। बरवट (प्लीहा का बढ़ना) के दर्द को रोकता है। यह बवासीर के लिए लाभकारी होता है तथा यह सूखी या गीली खुजली को मिटाता है। इसका तेल पुट्ठों की ऐंठन और दर्द के लिए लाभकारी रहता है। इसका फल शीतल, कषैला, तीखा और कड़वा होता है तथा यह जलन, कफ, बुखार, गर्मी, पेट के कीडे़, हृदय की पीड़ा, उल्टी, प्रमेह, हैजा, गैस, शीतपित्त, गले के रोग, सांस सम्बन्धी बीमारी, चूहे के विष और सभी प्रकार के सफेद दागों को दूर करता है।
यह रोम कूपों को साफ करता है, पित्त और कफ को दस्तों के द्वारा बाहर निकालता है, बवासीर और बरबट को लाभ पहुंचाता है, हृदय की सख्ती के लिए लाभकारी होती है। यह सूखी और गीली खुजली को मिटाता है। बकाइन चूहों के विषों को दूर करता है। बकाइन का लेप सूजनों को पचाता है। इसकी छाल का मंजन दांतों को सुन्दर व मजबूत बनाता है।
उदरशूल: पेट के दर्द में बकायन के पत्तों की 3 से 5 ग्राम की मात्रा के काढ़े में 2 ग्राम शुंठी चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
गंडमाला: (1) बकायन की शुष्क छाल और पत्ते दोनों को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर और पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकाकर चौथाई शेष काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाएं तथा इसी का लेप भी करें। इससे गंडमाला और कुष्ठ (कोढ़) के रोग में लाभ होता है। (2) गंडमाला पर बकायन के पत्तों को पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
गठिया:
(1) ग्राम बकायन की जड़ की छाल को सुबह-शाम पानी में पीसकर या छानकर पीने से 1 महीने में भयानक गठिया का रोग भी मिट जाता है।
(2) बकायन की जड़ या आंतरिक छाल का 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गठिया के रोग में लाभ मिलता है। (3) बकायन के बीजों को सरसों के साथ पीसकर लेप करने से गठिया से छुटकारा मिल जाता है।
पित्तजनित आंख का दर्द:
(1) बकाइन के फलों को पीसकर उसकी लुगदी बना लेते हैं इस लुगदी को आंखों पर बांधने से आराम मिलता है।
(2) बकायन के फलों को पीसकर छोटी सी टिकिया बनाकर आंखों पर बांधते रहने से पित्त के कारण होने वाला आंखों का दर्द समाप्त हो जाता है। अधिक गर्मी के कारण आंखों का दर्द भी दूर हो जाता है।
(3) आंखों से कम दिखाई देना, मोतियाबिंद पर बकाइन के एक किलोग्राम हरे ताजे पत्तों को पानी से धोकर अच्छी प्रकार से साफ करके पीसकर तथा निचोड़कर रस निकाल लेते हैं। इस रस को पत्थर के खरल में खूब घोंटकर सूखा लेते हैं। दुबारा 1-2 खरल करते हैं तथा खरल करते समय भीमसेनी कपूर 3 ग्राम तक मिला दें। इसको सुबह-शाम आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियांबिंद तथा अन्य प्रकार से उत्पन्न कमजोर दृष्टि आंखों से पानी आना, लालिमा, खुजली, रोहे आदि आंखों के रोग दूर हो जाते हैं।
प्रमेह : बकाइन के फलों को चावल के पानी में पीसकर और उसमें घी डालकर प्रमेह के रोगी को पिलाना चाहिए। इससे प्रमेह के रोगियों को जल्द ही आराम मिलता है।
बवासीर:
(1) बकायन के सूखे बीजों को पीसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से खूनी-वादी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभ मिलता है।
(2) बकायन के बीजों की गिरी और सौंफ दोनों को बराबर मात्रा में पीसकर मिश्री मिलाकर दो ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।
(3) बकायन के बीजों की गिरी में समान भाग एलुआ व हरड़ मिलाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को कुकरौंधे के रस के साथ घोटकर 250-250 मिलीग्राम की गोलियां बनाकर सुबह-शाम 2-2 गोली पानी के साथ लेने से बवासीर में खून आना बंद हो जाता है तथा इससे कब्ज दूर हो जाती है।
मस्तिष्क की गर्मी: बकायन के फूलों का लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी मिट जाती है।
मुंह के छाले: (1) 10-10 ग्राम बकायन की छाल और सफेद कत्था दोनों को बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। (2) 20 ग्राम बकायन की छाल को जलाकर 10 ग्राम सफेद कत्थे के साथ पीसकर मुंह के भीतर लगाने से लाभ होता है।
सिर दर्द:
(1) सिर में वातजन्य पीड़ा हो तो बकायन के पत्ते व फूलों को गर्म-गर्म लेप करने से सिरदर्द में लाभ मिलता है।
(2) गर्मी के कारण होने वाले सिर के दर्द में बकायन के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सूजन: बकाइन अथवा बांस के पत्तों को पीसकर पिलाने से आराम मिलता है।
विशेष: बकाइन का अधिक मात्रा में सेवन दिल और आमाशय के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके पेड़ के किसी भी अंग का उपयोग उचित मात्रा में तथा सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह कुछ विषैला होता है। फलों की अपेक्षा इसके छाल और फूल कम विषैले, इसके बीज सबसे अधिक विषैले और ताजे पत्ते हानि रहित होते हैं। सौंफ, बकायन के फल के दोषों को दूर करता है। बकायन के फलों की तुलना मजीठ से की जा सकती है।
मात्रा: 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन किया जाता है।
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