आंतों की नियमित सफाई के लिए हरड़ का सेवन करें
By वर्षा शर्मा | Publish Date: Aug 17 2016 12:11PM | Updated Date: Aug 17 2016 12:11PM
हरड़ या हरीतकी का वृक्ष 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। प्रधानतः यह निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से बंगाल आसाम तक लगभग पांच हजार फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है तथा पत्तों का आकार वासा के पत्तों जैसा होता है। सर्दियों में इसमें फल आते हैं जिनका भंडारण जनवरी से अप्रैल के बीच किया जाता है।

मौटे तौर पर हरड़ के दो प्रकार हैं− बड़ी हरड़ और छोटी हरड़। बड़ी हरड़ में सख्त गुठली होती है जबकि छोटी हरड़ में कोई गुठली नहीं होती। वास्तव में वे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही तोड़कर सुखा लिए जाते हैं उन्हें ही छोटी हरड़ की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार छोटी हरड़ का प्रयोग निरापद होता है क्योंकि आंतों पर इसका प्रभाव सौम्य होता है। वनस्पति शास्त्र के अनुसार हरड़ के तीन अन्य भेद हो सकते हैं। पक्वफल, अर्धपक्व फल तथा पीली हरड़। छोटी हरड़ को ही अधिपक्व फल कहते हैं जबकि बड़ी हरड़ को पक्वफल कहते हैं। पीली हरड़ का गूदा काफी मोटा तथा स्वाद कसैला होता है
फलों के स्वरूप, उत्तत्ति स्थान तथा प्रयोग के आधार पर हरड़ के कई अन्य भेद भी किए जा सकते हैं। नाम कोई भी हो चिकित्सकीय प्रयोगों के लिए डेढ़ तोले से अधिक भार वाली, बिना छेद वाली छोटी गुठली तथा बड़े खोल वाली हरड़ ही प्रयोग की जाती है।
टेनिक अम्ल, गलिक अम्ल, चेबूलीनिक अम्ल जैसे ऐस्टि्रन्जेन्ट पदार्थ तथा एन्थ्राक्वीनिन जैसे रोचक पदार्थ हरड़ के रासायनिक संगठन का बड़ा हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त इसमें जल तथा अन्य अघुलनशील पदार्थ भी होते हैं। इसमें 18 प्रकार के अमीनो अम्ल मुक्तावस्था में पाए जाते हैं।
बवासीर, सभी उदर रोगों, संग्रहणी आदि रोगों में हरड़ बहुत लाभकारी होती है। आंतों की नियमित सफाई के लिए नियमित रूप से हरड़ का प्रयोग लाभकारी है। लंबे समय से चली आ रही पेचिश तथा दस्त आदि से छुटकारा पाने के लिए हरड़ का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रकार के उदरस्थ कृमियों को नष्ट करने में भी हरड़ बहुत प्रभावकारी होती है।
अतिसार में हरड़ विशेष रूप से लाभकारी है। यह आंतों को संकुचित कर रक्तस्राव को कम करती हैं वास्तव में यही रक्तस्राव अतिसार के रोगी को कमजोर बना देता है। हरड़ एक अच्छी जीवाणुरोधी भी होती है। अपने जीवाणुनाशी गुण के कारण ही हरड़ के एनिमा से अल्सरेरिक कोलाइटिस जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
इन सभी रोगों के उपचार के लिए हरड़ के चूर्ण की तीन से चार ग्राम मात्रा का दिन में दो−तीन बार सेवन करना चाहिए। कब्ज के इलाज के लिए हरड़ को पीसकर पाउडर बनाकर या घी में सेकी हुई हरड़ की डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में शहद या सैंधे नमक में मिलाकर देना चाहिए। अतिसार होने पर हरड़ गर्म पानी में उबालकर प्रयोग की जाती है जबकि संग्रहणी में हरड़ चूर्ण को गर्म जल के साथ दिया जा सकता है।
हरड़ का चूर्ण, गोमूत्र तथा गुड़ मिलाकर रात भर रखने और सुबह यह मिश्रण रोगी को पीने के लिए दें इससे बवासीर तथा खूनी पेचिश आदि बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा इन रोगों के उपचार के लिए हरड़ का चूर्ण दही या मट्ठे के साथ भी दिया जा सकता है।
लीवर, स्पलीन बढ़ने तथा उदरस्थ कृमि आदि रोगों की इलाज के लिए लगभग दो सप्ताह तक लगभग तीन ग्राम हरड़ के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। हरड़ त्रिदोष नाशक है परन्तु फिर भी इसे विशेष रूप से वात शामक माना जाता है। अपने इसी वातशामक गुण के कारण हमारा संपूर्ण पाचन संस्थान इससे प्रभावित होता है। यह दुर्बल नाड़ियों को मजबूत बनाती है तथा कोषीय तथा अंर्तकोषीय किसी भी प्रकार के शोध निवारण में प्रमुख भूमिका निभाती है।
हालांकि हरड़ हमारे लिए बहुत उपयोगी है परन्तु फिर भी कमजोर शरीर वाले व्यक्ति, अवसादग्रस्त व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्रियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- वर्षा शर्मा
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आंवलो के मौसम मे नित्य प्रातः काल व्यायाम या वॉक करने के बाद दो पके हुए हरे आंवलो को चबा कर खाने से या आंवलो का रस दो चम्मच ओर दो चम्मच शहद मिला कर पीए. जब आंवलो का मौसम ना रहे तब सूखे आंवलो को कूट पीस कर कपड़े से छान कर बनाया गया आंवलो का चूर्ण तीन ग्राम (एक चम्मच) सोते समय रात को अन्तिम वस्तु के रूप मे शहद मे मिलाकर या पानी के साथ ले. इस तरह तीन चार महीनो तक प्रतिदिन आंवलो का प्रयोग करने से इंसान अपनी काया पलट कर सकता है. निरन्तर प्रतिदिन सेवन करने से भूख ओर पाचन शक्ति बढ़ जाती है, गहरी नींद आने लगती है, सिर दर्द दूर हो जाता है, मानसिक ओर मर्दाना शाक्ति बढ़ जाती है, दाँत मजबूत हो जाते है, बाल काले ओर चमकदार हो जाते है, कांति, ओज ओर ओजस्विता की बढ़ोतरी होती है ओर इंसान बुढ़ापे मे भी जवान बना रहता है. आंवलो मे रोग निरोधक गुण होने के कारण स्वतः ही रोगो से बचाव होता है ओर मनुष्य हमेशा निरोगी रहके लंबी आयु प्राप्त करता है.
याद रखने योग्य बाते:
1. आंवलो के प्रयोग के साथ सात्विक भोजन करे.
2. आँवला एक ऊच्च कोटि का रसायन है| यह रक्त में से हानिकारक ओर विषैले पदार्थो को निकालने ओर बूढ़े मनुष्यो को पुनः जवान बनाने मे सक्षम है. इसके नियमित सेवन से रक्त वहिनिया लचीली बनी रहती है ओर उनकी दीवारो की कठोरता दूर होकर रक्त का परिभ्रमण भली भाँति होने लग जाता है. रक्त वहिनियो में लचक बनी रहने के कारण मनुष्य का ना तो ह्रदय फेल होता है, ना ही उच्च रक्तचाप का रोग होता है ओर ना ही रक्त का थक्का जमने से दिमाग़ की नसे फाटती है.
3. आंवलो के निरंतर सेवन से रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा ओर शुक्र इन सब धातुओ से मरे हुए परमाणु बाहर निकल जाते है ओर उनके स्थान पेर नये परमाणु बन जाते है. रक्त वहिनिया बुढ़ापे में भी लचीली बनी रहती है; चहरे की झुर्रिया कम हो जाती है ओर मनुष्य बुढ़ापे में भी नवयुवको की भाँति चुस्त ओर ताकतवर बना रहता है.
आरोग्यता, दीर्घ जीवन तक यौवन बनाए रखने के लिए
१. दिन मे बाँयी ओर रात्रि मे दाँयी नाक से साँस लेने की आदत डालने पर मनुष्य चिर काल तक युवा बना रह सकता है.| इसके लिए रात्रि मे बाँयी करवट सोना चाहिए ताकि दाँये नथुने से साँस लिया जा सके ओर दिन मे दाहिनी करवट सोए जिससे बायें नथुने से साँस लिया जा सके.
२. बुढ़ापे पर विजय प्राप्त कर यौवन को बनाए रखने के लिए डाल से पके पपीते का रोज सेवन करना चहिए. पपीता यौवन का टॉनिक है. इसे खाली पेट रोज नास्ते मे खाना चहिए. पपीता खाने वाले को तपेदिक, दमा, आँखो के रोग, अपच, रक्तहीनता आदि रोग आयी होते है. यह आँतो की सफाई करने मे बेजोड़ ओर पाचन संस्थान के रोगो को दूर करने वाला उत्तम फल है.
३. रात को सोते समय २ काली हरड़ के चूर्ण की फंकी लेकर उपर से २५० ग्राम दूध पीने सेकॉई बीमारी नही होती है. कम से कम सप्ताह मे एक बार ज़रूर ले. काली हरड़ हानिकारक हल्का विरेचक है. यह वात, पित्त ओर कफ से ऊत्पन्न रोगो को ओर बलगम को पाखाना द्वारा बाहर निकाल देती है. हरड़ शरीर से रोगो के अंश को निकालती है ओर रोगो से मुकाबला करने की शक्ति देती है. हरड़ का मुख्य काम शरीर के सभी अंगो से अनावश्यक पदार्थो को बाहर निकालकर प्रत्येक अंग जैसे ह्रदय, मस्तिष्क, पेट, रक्त आदि को प्राकर्तिक दशा मे लाना है. इसी कारण हरड़ का सेवन करने वाला बीमारियो से बचा रहता है. रोजाना रात को सोते समय सेवन करने से फुंसिया, दाने ओर मुहासे आदि नहीं निकलते है. फुंसियो पर हरड़ पीस कर लगाने से भी फुंसिया ठीक हो जाती है. बल बुद्धि बढ़ाने तथा मल-मूत्र साफ करने के लिए इसे भोजन के साथ खाएँ. भोजन पाचाने के लिए, फ़्लू, वात ओर कफ विकार मे भोजन के बाद खाएँ. हरड़ चबा कर खाने से भूख बढ़ती है. पीसकर खाने से पेट साफ होता है| ऊबाल कर खाने से दस्त बंद होते है ओर माल बांधता है. भून कर खाने से वात, पित्त ओर कफ को समाप्त करती है|
वर्षा के मौसम में सेंधा नमक के साथ, शरद के मौसम मेन शर्करा के साथ हेमन्त में सौंठ के साथ, शिशिर मे पीपलि के साथ वसंत में श्हद के साथ ओर गर्मी मे गुड के साथ हरड़ का चूर्ण खाना चाहिए. अर्श, अजीर्ण, गुल्म, वात रक्त ओर शोथ में हरड़ चूर्ण गुड के साथ देने से लाभ होता है. तेज ज्वर मे शहद के साथ; अम्लपित्त, रक्तपित्त, जीर्ण ज्वर मे मुनक्का के साथ हर्निया मे एरन्ड के तेल के साथ लेना चाहिए. बल बढ़ाने के लिए रात को हरड़ को लोहे के बर्तन मे रख दें ओर सुबह घी तथा शहद के साथ खाने से बाल बढ़ता है तथा समस्त धातुओ की पुष्टि होती है. मात्रा १ ग्राम से ३ ग्राम लें.
सावधानी : दुर्बल, थके, पतले, व्रत करने वाले, गरम प्रकर्ती वाले ओर गर्भवती स्त्री को हरड़ का उपयोग सावधानी से करना चाहिए.
४. एक गिलास पानी मे तीन चम्मच त्रिफला चूर्ण डालकर रात मे भिगो दें. प्रातः कल चूर्ण सहित पानी को २ मिनिट उबालें. इस त्रिफला की चाय को फिल्टर करके पीने योग्य गरम रहने पेर पी लें. मीठे के लिए उसमे थोडा श्हद या मिश्री मिला सकते है| इसके साथ यदि आप सात्विक भोजन करे तो जीवन भर आप अपनी हेल्थ कायम रख सकते है|
See : http://www.homeremediess.com/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A2%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AF/
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भारत में विशेषतः हिमालय में कश्मीर से आसाम तक हरीतकी के वृक्ष पाये जाते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों में गौरावान्वित किया है। हरीतकी एक श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है।
इसमें लवण छोड़कर मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय ये पाँचों रस पाये जाते हैं। यह लघु, रुक्ष, विपाक में मधुर तथा वीर्य में उष्ण होती है। इन गुणों से यह वात-पित्त-कफ इन तीनों दोषों का नाश करती है।
हरड़(हरीतकी) शोथहर, व्रणशोधक, अग्निदीपक, पाचक, यकृत-उत्तेजक, मल-अनुलोमक, मेध्य, चक्षुष्य और वयःस्थापक है। विशिष्ठ द्रव्यों के साथ मिलाकर विशिष्ठ संस्कार करने से यह विविध रोगों में लाभदायी होती है। पाचन-संस्थान पर इसका कार्य विशेष-रूप से दिखाई देता है।

सेवन-विधिः हरड़ चबाकर खाने से भूख बढ़ती है। पीसकर फाँकने से मल साफ होता है। सेंककर खाने से त्रिदोषों को नष्ट करती है। खाना खाते समय खाने से यह शक्तिवर्धक और पुष्टिकारक है। सर्दी, जुकाम तथा पाचनशक्ति ठीक करने के लिए भोजन करने के बाद इसका सेवन करें।
मात्राः 3 से 4 ग्राम।
यदि आप लम्बी जिंदगी जीना चाहते हैं तो छोटी हरड़ (हर्र) रात को पानी में भिगो दें। पानी इतना ही डालें कि ये सोख लें। प्रातः उनको देशी घी में तलकर काँच के बर्तन में रख लें। 2 माह तक रोज 1-1 हरड़ सुबह शाम 2 माह तक खाते रहें। इससे शरीर हृष्ट-पुष्ट होगा।
मेध्य, इन्द्रियबलकर, चक्षुष्यः हरड़ मेध्य है अर्थात् बुद्धिवर्धक है। नेत्र तथा अन्य इन्द्रियों का बल बढ़ाती है। घी, सुवर्ण, शतावरी, ब्राह्मी आदि अन्य द्रव्य अपने शीत-मधुर गुणों से धातु तथा इन्द्रियों का बल बढ़ाते हैं, जबकि हरड़ विकृत कफ तथा मल का नाश करके, बुद्धि तथा इन्द्रियों का जड़त्व नष्ट करके उन्हें कुशाग्र बनाती है। शरीर में मल-संचय होने पर बुद्धि तथा इन्द्रियाँ बलहीन हो जाती हैं। हरड़ इस संचित मल का शोधन करके धातुशुद्धि करती है। इससे बुद्धि व इन्द्रियाँ निर्मल व समर्थ बन जाती है। इसलिए हरड़ को मेध्या कहा गया है।
हरड़ नेत्रों का बल बढ़ाती है। नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए त्रिफला श्रेष्ठ द्रव्य है। 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण घी तथा शहद के विमिश्रण (अर्थात् घी अधिक और शहद कम या शहद अधिक और घी कम) के साथ अथवा त्रिफला घी के साथ लेने से नेत्रों का बल तथा नेत्रज्योति बढ़ती है।
रसायन कार्यः हरड़ साक्षात् धातुओं का पोषण नहीं करती। वह धात्वग्नि बढ़ाती है। धात्वाग्नि बढ़ने से नये उत्पन्न होने वाले रस रक्तादि धातु शुद्ध-प्राकृत बनने लगते हैं। धातुओं में स्थित विकृत कफ तथा मल का पाचन व शोधन करके धातुओं को निर्मल बनाती है। सभी धातुओं व इन्द्रियों का प्रसादन करके यह यौवन की रक्षा करती है, इसलिए इसे कायस्था कहा गया है।
स्थूल व्यक्तियों में केवल मेद धातु का ही अतिरिक्त संचय होने के कारण अन्य धातु क्षीण होने लगते हैं, जिससे बुढ़ापा जल्दी आने लगता है। हरड़ इस विकृत मेद का लेखन व क्षरण (नाश) करके अन्य धातुओं की पुष्टि का मार्ग प्रशस्त कर देती है, जिससे पुनः तारुण्य और ओज की प्राप्ति होती है। लवण रस मांस व शुक्र धातु का नाश करता है जिससे वार्धक्य जल्दी आने लगता है, अतः नमक का उपयोग सावधानीपूर्वक करें। हरड़ में लवण रस न होने से तथा विपाक में मधुर होने से वह तारुण्य की रक्षा करती है। रसायन कर्म के लिए दोष तथा ऋतु के अनुसार विभिन्न अनुपानों के साथ हरड़ का प्रयोग करना चाहिए।
See : http://www.streetayurveda.com/health-benefits-of-harad/
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हरड़ के नाम से तो हम सब बचपन से ही परिचित हैं | इसके पेड़ पूरे भारत में पाये जाते हैं | इसका रंग काला व पीला होता है तथा इसका स्वाद खट्टा,मीठा और कसैला होता है | आयुर्वेदिक मतानुसार हरड़ में पाँचों रस -मधुर ,तीखा ,कड़ुवा,कसैला और अम्ल पाये जाते हैं | वैज्ञानिक मतानुसार हरड़ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फल में चेब्यूलिनिक एसिड ३०%,टैनिन एसिड ३०-४५%,गैलिक एसिड,ग्लाइकोसाइड्स,राल और रंजक पदार्थ पाये जाते हैं | ग्लाइकोसाइड्स कब्ज़ दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| ये तत्व शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकालकर प्राकृतिक दशा में नियमित करते हैं | यह अति उपयोगी है | आज हम हरड़ के कुछ लाभ जानेंगे -
१- हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |
२- छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन ०३ बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |
३- छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |
४- कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |
५- हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |
६- हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |
७- हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|
See : http://www.khojinews.com/news-details.php?id=1315
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‘हरड़ को आयुर्वेद में गुणकारी एवं दिव्य घरेलू औषधि के रूप में माना जाता है। हरड़ को संस्कृत में ‘हरीतकी’ के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी के सात प्रकार होते हैं, जिन्हें चेतकी हरड़ , अभ्या हरड़, रोहिणी हरड़, बड़ी हरड़, काली हरड़ तथा पीली हरड़ के रूप में जाना जाता है। हरड़, बहेड़ा और आंवला के मिश्रित चूर्ण को त्रिफला कहा जाता है। इस छोटी—सी हरड़ में किन—किन बीमारियों को दूर करने की शक्ति निश्चित है, उस पर एक नजर डालते हैं।

बड़ी हरड़ के छिलके, अजवाइन एवं सफेद जीरा बराबर बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम दही में मिलाकर लेते रहने से सूखी आंव तथा मरोड़ में लाभ पहुंचता है।
काली हरड़ को महीन पीसकर मुंह तथा जीभ के छालों पर लगाते रहने से छालों से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन दो—चार बार लगाते रहने से हरेक प्रकार के छालों से मुक्ति मिलती है। पीली हरड़ के छिलके का चूर्ण तथा पुराना गुड़ बराबर मात्रा में लेकर गोली बनाकर रख लें। मटर के दानों के बराबर वाली इन गोलियों को दिन में दो बार सुबह—शाम पानी के साथ एक महीनें तक लेते रहने से यकृत लीवर एवं प्लीहा के रोग दूर हो जाते हैं। छोटी हरड़ के चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर सुबह —शाम खाते रहने से पांडुरोग में लाभ मिलता है। पुराने कब्ज के रोगी को नित्यप्रति भोजन के आधा घंटा बाद डेढ़—दो ग्राम की मात्रा में हरड़ का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेते रहने से फायदा होता है।
एक मध्यम आकार की पीली हरड़ के दो टुकड़े छिलके सहित कांच के गिलास में इस तरह भिगो दें कि वह भीगने पर पूरी तरह फूल जाये। चौदह घण्टे भीगने के बाद हरड़ की गुल्ली को निकालकर उसके अन्दर के बीजों को निकालकर गुल्ली को खूब चबा—चबाकर खायें तथा ऊपर से हरड़ वाला पानी पी लें। एक माह तक इस विधि का सेवन लगातार करते रहने से ‘प्रोस्टेट ग्लैण्ड’ की सूजन ठीक हो जाती है।
गर्मी के कारण नेत्र में जलन होती हो, नेत्र लाल हो जाते हों, नेत्र से पानी गिरता हो तो त्रिफला के जल से आंखों को धोते रहने से आराम मिलता है। सुबह खाली पेट एक चम्मच त्रिफला का क्वाथ काढ़ा पीते रहने से खून की कमी दूर हो जाती है हरड़ के काढ़े में चाशनी मिलाकर पीने से गले के रोगों में लाभ मिलता है।
जिन नवजात शिशुओं के भौहें नहीं हों, हरड़ को लोहे पर घिसकर, सरसों तेल के साथ मिलाकर शिशु के भौंह वाले स्थान पर धीरे—धीरे मालिश करते रहने से धीरे—/ धीरे भौंह उगने लगते हैं । अगर सप्ताह में एक बार बच्चे को हरड़ पीसकर खिलाया जाता रहे, तो उसे जीवन में कब्ज का सामना कभी नहीं करना पड़ता है।
जिन स्त्रियों को गर्भपात की बार—बार शिकायत हो, उन्हें त्रिफला चूर्ण के साथ लौह भस्म मिलाकर लेते रहना चाहिए।
रात को सोते समय थोड़ा—सा त्रिफला चूर्ण दूध के साथ पीते रहने से मानसिक शक्ति बढ़ती है और शीघ्र स्खलन का भय दूर हो जाता है। छोटी पीपल और बड़ी हरड़ का छिलका समान मात्रा में लेकर पीस लें। तीन ग्राम की मात्रा में सुबह ताजे जल के साथ लेते रहने पर बैठा गला खुल जाता है। पेटदर्द होने पर हरड़ को घिसकर गुनगुने पानी के साथ लेने पर तत्काल लाभ होता है।
हरड़, सेंधा नमक तथा रसौंत को पानी में पीसकर आंख के ऊपरी भाग के चारों तरफ लेप करने से आंख आना, आंखों की सूजन, व दर्द नष्ट हो जाते हैं।
नित्यप्रति प्रात: काल शीतल जल के साथ तीन ग्राम की मात्रा में छोटी हरड़ का चूर्ण सेवन करते रहने से सफेद दाग मिटाने शुरू हो जाते हैं। शरीर के जिन अंगों पर दाद हो, वहां बड़ी हरड़ को सिरके के साथ घिसकर लगाने से लाभ होता है।
जिनेन्दु अहमदाबाद
२२ फरवरी, २०१५
See : http://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php?title=%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%A1%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87%E2%80%94%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87_%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A3
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आयुर्वेद में हरड़ को कई बीमारियों की अचूक औषदी कहा गया है। यह शरीर में गैस से होने वाली बीमारियों को दूर करती है साथ ही साथ यह जीवन को लंबा और निरोग भी बनाती है । हरड़ को Terminaliya Chebula/Myrobalans कहा जाता है । आयुर्वेद में हरड़ संजीवनी का काम करती है। और दीर्घायु करती है । सबसे पहले जानते हैं हरड़ कैसी होती है। हरड़ का पेड़ सीधा और तना हुआ होता है, इसके पत्ते हल्के पीले या सफ़ेद रंग के होते है । हरड़ 2 तरह की होती है छोटी हरड़ और बड़ी हरड़। आयुर्वेद के अनुसार हरड़ दिमाग को तेज और आखों को लाभ देती है। और शरीर को ताकत और निरोगी बनाती है।
हरड़ के फायदे
दमा में दे राहत : जिन लोगों को दमे की परेशानी है वे लोग रात के समय में हरड़ को चूसे। यह थोड़ी कड़वी लगती है इसलिए सेंधा नमक के साथ हरड़ को चूसे।
एसिडिटि और छाती के दर्द में राहत : यदि एसिडिटि और छाती में दर्द की समस्या से परेशान हो तो हरड़ को चूसे। या आंवले के रस में हरड़ का रस मिलाकर सेवन करें।
आखों को दे राहत : आखों में सूजन, लालीमाँ या आखों में दर्द जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए हरड़ का काढ़ा बनाके उसमे पानी मिला लें और इससे आखों को धोना चाहिए। यह आखों की परेशानी दूर करती है।
बवासीर में उपयोगी हरड़ : बवासीर को जड़ से खत्म करने के लिए एरंड के तेल में हरड़ को भूने जब वह भूरे रंग की हो जाए उसका चूर्ण बना ले और आधा चम्मच इस चूर्ण को चूसे यह कब्ज दूर करके बवासीर को खत्म करता है।
हरड़ के अन्य लाभ :
1- दातों से हरड़ को चबाने से भूख बढ़ती है।
2- वात, पित्त, और कफ तीनों दोष हरड़ को भूनकर खाने से दूर होते है।
3- खाना खाने के साथ हरड़ लेने से इंसान की ताकत बढ़ती है।
4- हरड़ के इस्तेमाल से जुकाम, नजला, चोट के घाव, अधिक पसीना, आदि की समस्या दूर होती है।
हरड़ आपकी सेहत और लंबी उम्र को बढ़ाने में सहायक होती है। हरड़ आपको कई बीमारियो से बचाती है जितना हो सके हरड़ का इस्तेमाल करना न भूले।
See : http://www.vedicvatica.com/benefits-of-terminaliya-chebula-in-hindi/189
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आयुर्वेद में हरड़ की उपयोगिता सब जानते हैं। हरड़ एक बेहतरीन मुखवास का काम भी करता है। आइए जानें इसके 10 ऐसे नुस्खे जो आपको चौंका देगें।
1. हरड़ का काढ़ा त्वचा संबंधी एलर्जी में लाभकारी है।
2. हरड़ के फल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और इसका सेवन दिन में दो बार नियमित रूप से करने पर जल्द आराम मिलता है।
3. एलर्जी से प्रभावित भाग की धुलाई भी इस काढ़े से की जा सकती है।
4. फंगल एलर्जी या संक्रमण होने पर हरड़ के फल और हल्दी से तैयार लेप प्रभावित भाग पर दिन में दो बार लगाएं, त्वचा के पूरी तरह सामान्य होने तक इस लेप का इस्तेमाल जारी रखें।
5. मुंह में सूजन होने पर हरड़ के गरारे करने से फायदा मिलता है।
6. हरड़ का लेप पतले छाछ के साथ मिलाकर गरारे करने से मसूढ़ों की सूजन में भी आराम मिलता है।
7. हरड़ का चूर्ण दुखते दांत पर लगाने से भी तकलीफ कम होती है।
8. हरड़ स्वास्थ्यवर्धक टॉनिक होता है जिसके प्रयोग से बाल काले, चमकीले और आकर्षक दिखते हैं।
9. हरड़ के फल को नारियल तेल में उबालकर (हरड़ पूरी तरह घुलने तक) लेप बनाएं और इसे बालों में लगाएं या फिर प्रतिदिन 3-5 ग्राम हरड़ पावडर एक गिलास पानी के साथ सेवन करें।
10. हरड़ का पल्प कब्ज से राहत दिलाने में भी गुणकारी होता है। इस पल्प को चुटकीभर नमक के साथ खाएं या फिर 1/2 ग्राम लौंग अथवा दालचीनी के साथ इसका सेवन करें।
See : http://hindi.webdunia.com/home-remedies/home-remedies-115082000051_3.html
Read more at: http://hindi.webdunia.com/home-remedies/home-remedies-115082000051_1.html
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MARCH 1, 2016
हरड़ एक दिव्य औषधि है, जो सदियों से इस्तेमाल में लायी जा रही है। जिसे संस्कृत में ‘हरीतकी’ भी कहा जाता है। हरड़ दो प्रकार की होती है, छोटी और बड़ी हरड़ जिसका पेड़ सीधा और तना हुआ होता है। अगर इसके रंग और स्वाद की बात की जाये, तो यह काले और पीले रंग का होता है, जिसका स्वाद खट्टा और मीठा रहता है।
इसके सेवन से कई छोटी से बड़ी बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है, यह दिमाग को तेज रखने में और आँखों के लिए सबसे गुणकारी औषधि है, जो शरीर को ताकत प्रदान कर निरोगी बनाती है। सिर्फ यही नहीं यह हमारे शरीर को कब्ज से छुटकारा दिलवाने में भी मददगार साबित हुई है। तो आज से ही इसका सेवन शुरू करे, इसका चूर्ण और गोलियां आसानी से मार्केट में मिल जाती है।
हरड़ के एनिमा से अल्सेरिक कोलाइटिस जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं। इन सभी रोगों के उपचार के लिए हरड़ के चूर्ण की तीन से चार ग्राम मात्रा का दिन में दो-तीन बार सेवन जरूर करना चाहिए। कब्ज के इलाज के लिए हरड़ को पीसकर पाउडर बनाकर या घी में सेकी हुई हरड़ की डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में शहद या सैंधे नमक में मिलाकर देना चाहिए।
Harad Benefits in Hindi में जाने तो लीवर, स्पलीन बढ़ने तथा उदरस्थ कृमि जैसे रोगों के इलाज के लिए लगभग दो सप्ताह तक लगभग तीन ग्राम हरड़ के चूर्ण का सेवन करना ही चाहिए। हरड़ हमारे लिए बहुत उपयोगी है परन्तु फिर भी कमजोर शरीर वाले व्यक्ति, अवसादग्रस्त व्यक्ति या फिर गर्भवती स्त्रियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।
Harad Benefits in Hindi: जानिए हरड़ के बेमिसाल फायदे
नेत्र रोगो से मुक्ति: हरड़ नेत्र के लिए सबसे फायदेमंद होती है, इसका सेवन करने के लिए पहले हरड़ को भुनले, फिर बारीक़ पीस लेने के बाद इसका अच्छी तरह से लेप बनाकर के आँखों के चारो और लगा ले। ऐसा करने से आँखों की सूजन और जलन जैसी परेशानिया दूर होती है।
कब्ज के लिए: बवासीर और कब्ज के लिए हरड़ का चूर्ण बहुत ही लाभकारी होता है। इसके लिए हरड़ में थोड़ा सा गुड मिलाकर गोली बना ले, छाछ में भुना हुआ जीरा मिलाकर ताजी छाछ के साथ सुबह शाम लेने से बवासीर के मस्सों का दर्द और सूजन कम होने लगती है।
नवजात शिशु के लिए: अगर नवजात शिशु के भौहें नहीं हो, तो उन्हें हरड़ को लोहे पे घिसकर, सरसो के तेल के साथ मिलाकर शिशु के भौहें पर लगाये और धीरे-धीरे मालिश करते रहने से वह उगने लगते है। इसके साथ ही एक सप्ताह तक बच्चो को हरड़ पीसकर खिलाये जाने से उससे कब्ज की शिकायत नहीं होगी।
दमा में राहत: यदि जिन लोगो को दमे की परेशानी है, तो वो रात के समय में
हरड़ को चूसे या आवलें के रस में हरड़ मिलाकर सेवन करने से भी इस बीमारी से राहत मिलती है।
अपच की शिकायत: हरड़ का सेवन पाचन क्रिया को सही रखने में असरदारी होता है, इसके लिए खाना खाने से पहले हरड़ के चूर्ण में सोंठ का चूर्ण मिलाकर साथ लेने से भूक आसानी से खुल जाती है, और भूक लगने लगती है। इसके साथ ही सोंठ, गुड़ या सेंधा नमक मिलाकर खाने से भी पाचन सही रहता है।
चक्कर आना: अगर आपको अचानक चक्कर आने की शिकायत है, तो पीपल (जिसे गरम मसाले मे मिलाते है), सौंठ यानि सुखी अदरक, सौंफ और हरड़ 25-25 ग्राम लेले। अब 150 ग्राम गुड में इन सभी को मिलाकर गोल आकार की गोली बनाए। 1-2 गोली दिन मे 3 बार लेने से चक्कर आना, सिर घूमना बंद हो जाएगा।
हरड़ के अन्य लाभ:
हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकान महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है
हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |
हरड़ के सेवन से खांसी व कब्ज जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं।
हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है|
अगर शरीर में कही भी घाव हो जांए तो हरड़ से उस घाव को भर लेना चाहिए।
एक चम्मच हरड़ के चूर्ण में दो किशमिश के साथ लेने से एसिडिटी ठीक हो जाती है |
हिचकी आने पर हरड़ पाउडर व अंजीर के पाउडर को गुनगुने पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस की समस्या कम हो जाती है |
हरड़ को भून कर खूब बारीक पीस लें और लेप बना कर आंखों के चारो ओर लगाएं। इससे हर प्रकार के नेत्र रोग ठीक हो जाते हैं।
ऊपर आपने जाना Harad Benefits in Hindi. यदि आप भी उपरोक्त लाभ उठाना चाहते है तो हरड़ का इस्तेमाल जरुर करे|
See : https://hindi.hrelate.com/harad-benefits-in-hindi/
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