बीमारियों से लड़ने की ढाल है इम्यूनिटी
सर्दियों में होने वाली छोटी-मोटी बीमारियां जैसे जुकाम, खांसी उन लोगों को ज्यादा तंग करती हैं, जिनकी जीवनी शक्ति (इम्यूनिटी) कमजोर हो गई है। ऐसे लोगों को चाहिए कि बीमारियों के पीछे लट्ठ लेकर भागने के बजाय वे अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाएं। रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी, तो सर्दी, जुकाम, खांसी तो भूल ही जाइए, कई बड़ी बीमारियों और इंफेक्शंस से भी शरीर खुद-ब-खुद अपना बचाव कर लेगा। तमाम क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स की मदद से जीवनी शक्ति बढ़ाने के तरीके बता रहे हैं-प्रभात गौड़:-
किसी विषय को शुरू करने का यह तरीका खराब हो सकता है, फिर भी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को समझने के लिए हम एक मरे हुए इंसान का उदाहरण लेंगे। जब कोई शख्स मरता है, तो कुछ ही समय में तमाम बैक्टीरिया, माइक्रोब्स, वायरस और पैरासाइट्स शरीर पर हमला कर देते हैं और उसे सड़ाना, गलाना शुरू कर देते हैं। अगर कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया जाए, तो मृत शरीर में केवल कंकाल का ढांचा भर बचा रहेगा, लेकिन जिंदा आदमी के साथ कभी ऐसा नहीं होता। वजह यह है कि जिंदा लोगों में रोग प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) नाम का एक ऐसा मेकनिजम होता है, जो इन बैक्टीरिया, वायरस और माइक्रोब्स को शरीर से दूर रखता है। इंसान के मरते ही उसका इम्यून सिस्टम भी खत्म हो जाता है और शरीर पर हमला करने की ताक में बैठे माइक्रोब्स बॉडी को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। यानी हमारे शरीर के भीतर एक प्रोटेक्शन मेकनिजम है, जो शरीर की तमाम रोगों से सुरक्षा करता है। इसे ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।
कैसे काम करता है?
वातावरण में मौजूद तमाम बैक्टीरिया और वायरस को हम सांस के जरिये रोजाना अंदर लेते रहते हैं, लेकिन ये बैक्टीरिया हमें नुकसान नहीं पहुंचाते। क्यों? क्योंकि हमारा प्रतिरोधक तंत्र इनसे हरदम लड़ता रहता है और इन्हें पस्त करता रहता है। लेकिन कई बार जब इन बाहरी कीटाणुओं की ताकत बढ़ जाती है तो ये शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को बेध जाते हैं। नतीजा होता है, गला खराब होना, जुकाम और ज्यादा तेज हमला हो गया तो कभी-कभी फ्लू या बुखार भी। सर्दी, जुकाम इस बात का संकेत हैं कि आपका प्रतिरोधक तंत्र कीटाणुओं को रोक पाने में नाकामयाब हो गया। कुछ दिन में आप ठीक हो जाते हैं। इसका मतलब है कि तंत्र ने फिर से जोर लगाया और कीटाणुओं को हरा दिया। अगर प्रतिरोधक तंत्र ने दोबारा जोर न लगाया होता तो इंसान को जुकाम, सर्दी से कभी राहत ही नहीं मिलती। इसी तरह कुछ लोगों को किसी खास चीज से एलर्जी होती है और कुछ को उस चीज से नहीं होती। इसकी वजह यह है कि जिस शख्स को एलर्जी हो रही है, उसका प्रतिरोधक तंत्र उस चीज पर रिऐक्शन कर रहा है, जबकि दूसरों का तंत्र उसी चीज पर सामान्य व्यवहार करता है। इसी तरह डायबीटीज में भी प्रतिरोधक तंत्र पैनक्रियाज में मौजूद सेल्स को गलत तरीके से मारने लगता है। ज्यादातर लोगों में बीमारियों की मुख्य वजह वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है। इनकी वजह से खांसी-जुकाम से लेकर खसरा, मलेरिया और एड्स जैसे रोग हो सकते हैं। इन इंफेक्शन से शरीर की रक्षा करने का काम ही करता है-इम्यून सिस्टम।
इम्यूनिटी बढ़ाने के तरीके
1. खानपान:
- -रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में सबसे खास बात यह है कि इसका निर्माण शरीर खुद कर लेता है। ऐसा नहीं है कि आपने बाहर से कोई चीज खाया और उसने जाकर सीधे आपकी प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा कर दिया। इसलिए ऐसी सभी चीजें जो सेहतमंद खाने में आती हैं, उन्हें लेना चाहिए। इनकी मदद से शरीर इस काबिल बन जाता है कि वह खुद अपनी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सके।
- -अगर खानपान सही है तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किसी दवा या अतिरिक्त कोशिश करने की जरूरत नहीं है। आयुर्वेद के मुताबिक, कोई भी खाना जो आपके ओज में वृद्धि करता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार है। जो खाना अम बढ़ाता है, वह नुकसानदायक है। ओज खाने के पूरी तरह से पच जाने के बाद बनने वाली कोई चीज है और इसी से अच्छी सेहत और रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। पचने में मुश्किल खाना खाने के बाद शरीर में अम का निर्माण होता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।
- -खानपान में सबसे ज्यादा ध्यान इस बात का रखें कि भूलकर भी वातावरण की प्रकृति के खिलाफ न जाएं। मसलन अभी सर्दियां हैं, तो आइसक्रीम खाने से परहेज करना चाहिए।
- -बाजार में मिलने वाले फूड सप्लिमेंट्स का फायदा उन लोगों के लिए है , जिनकी खानपान की आदतें अजीब-सी हैं। मसलन जो लोग खाने में सलाद नहीं लेते , वक्त पर खाना नहीं खाते, गरिष्ठ और जंक फूड ज्यादा खाते हैं, वे अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए इन सप्लिमेंट्स की मदद ले सकते हैं। अगर कोई शख्स सलाद, दालें, हरी सब्जी आदि से भरपूर हेल्थी डाइट ले रहा है तो उसे इन सप्लिमेंट्स की कोई जरूरत नहीं है। बाजार में कोई भी सप्लिमेंट ऐसा नहीं है, जिसके बारे में दावे से कहा जा सके कि उसमें वे सभी विटामिंस और तत्व हैं, जो हमारी बॉडी के लिए जरूरी हैं। मल्टीविटामिंस के नाम से बिकने वाले प्रॉडक्ट में भी सभी जरूरी चीजें नहीं होतीं। इसलिए नैचरल खानपान ही सबसे बेहतर तरीका है।
- -प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड से जितना हो सके, बचना चाहिए। ऐसी चीजें जिनमें प्रिजरवेटिव्स मिले हों, उनसे भी बचना चाहिए।
- -विटामिन सी और बीटा कैरोटींस: विटामिन सी और बीटा कैरोटींस जहां भी है, वह इम्युनिटी बढ़ाता है। इसके लिए मौसमी, संतरा, नींबू लें।
- -जिंक: जिंक का भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बड़ा हाथ है। जिंक का सबसे बड़ा स्त्रोत सीफूड है, लेकिन ड्राई फ्रूट्स में भी जिंक भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
- -फल और हरी सब्जियां भरपूर मात्रा में खाएं।
- -खानपान में गलत कॉम्बिनेशन न लें। मसलन दही खा रहे हैं तो हेवी नॉनवेज न लें। दही के साथ कोई खट्टी चीज न खाएं।
- -अचार कम: अचार का इस्तेमाल कम करें। जिन चीजों की तासीर खट्टी है, वे शरीर में पानी रोकती हैं, जिससे शरीर में असंतुलन पैदा होता है। सिरका से भी बचना चाहिए।
- -ठंड में शरीर को ज्यादा एक्सपोज न करें। ऐसा करने पर गर्म करने के लिए शरीर को अतिरिक्त मेहनत करनी होगी, जिससे प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
- -स्ट्रेस न लें। कुछ लोगों में अंदरूनी ताकत नहीं होती। ऐसे में अगर ऐसे लोग स्ट्रेस भी लेना शुरू कर देंगे तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता एकदम कम हो जाएगी। ऐसे लोगों को जल्दी-जल्दी वायरल इंफेक्शन होने लगेगा।
- -ज्यादा देर तक बंद कमरे और बंद जगहों पर न रहें। जहां इतने लोग सांसें ले रहे होंगे, वहां इंफेक्शन जल्दी ट्रांसफर होगा। खुली हवा में निकलें और लंबी गहरी सांसें लें।
ये चीजें हैं फायदेमंद
- ग्रीन टी: इसमें एंटिऑक्सिडेंट होते हैं , जो कई तरह के कैंसर से बचाव करते हैं। ग्रीन टी छोटी आंत में पैदा होने वाले गंदे बैक्टीरिया को पनपने से रोकती है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि दिन में तीन कप ग्रीन टी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाती है।
- चिलीज: इनकी मदद से मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है। ये नैचरल ब्लड थिनर की तरह काम करती है और एंडॉर्फिंस की रिलीज में मदद करती है। चिलीज में बीटा कैरोटीन भी होता है , जो विटामिन ए में बदलकर इंफेक्शन से लड़ने में मदद करता है।
- दालचीनी: दालचीनी एंटिऑक्सिडेंट से भरपूर होती है। दालचीनी लेने से ब्लड क्लॉटिंग और बैक्टीरिया की बढ़ोतरी रोकने में मदद मिलती है। ब्लड शुगर को स्थिर करती है और बुरे कॉलेस्ट्रॉल से लड़ने में मददगार है।
- शकरकंद: शकरकंद प्रतिरोधक तंत्र को बेहतर बनाने में मददगार है। अल्जाइमर , पार्किंसन और दिल के रोगों को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अंजीर: अंजीर में पोटेशियम, मैग्नीज और एंटिऑक्सिडेंट्स होते हैं। अंजीर की मदद से शरीर के भीतर पीएच का सही स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है। अंजीर में फाइबर होता है, जो ब्लड शुगर लेवल को कम कर देता है।
- मशरूम: मशरूम कैंसर के रिस्क को कम करता है। वाइट ब्लड सेल्स का प्रॉडक्शन बढ़ाकर शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को बूस्ट करता है।
2. आयुर्वेद:
च्यवनप्राश: आयुर्वेद में रसायन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बेहद मददगार होते हैं। रसायन का मतलब केमिकल नहीं है। कोई ऐसा प्रॉडक्ट जो एंटिऑक्सिडेंट हो , प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला हो और स्ट्रेस को कम करता हो , रसायन कहलाता है। मसलन त्रिफला, ब्रह्मा रसायन आदि , लेकिन च्यवनप्राश को आयुर्वेद में सबसे बढि़या रसायन माना गया है। इसे बनाने में मुख्य रूप से ताजा आंवले का इस्तेमाल होता है। इसमें अश्वगंधा, शतावरी, गिलोय समेत कुल 40 जड़ी बूटियां डाली जाती हैं। अलग-अलग देखें तो आंवला, अश्वगंधा, शतावरी और गिलोय का रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में जबर्दस्त योगदान है। मेडिकल साइंस कहता है कि शरीर में अगर आईजीई का लेवल कम हो तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। देखा गया है कि च्यवनप्राश खाने से शरीर में आईजीई का लेवल कम होता है। इसी तरह शरीर में कुछ नैचरल किलर सेल्स होती हैं, जिनका काम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी करना होता है। च्यवनप्राश इन कोशिकाओं के काम करने की क्षमता को बढ़ा देता है।
कैसे लें: च्यवनप्राश रोजाना सुबह खाली पेट एक चम्मच लेना चाहिए। उसके बाद थोड़ा दूध ले लें। इसी तरह रात को सोते वक्त एक चम्मच च्यवनप्राश लें और उसके बाद दूध लें। पांच साल से कम उम्र के बच्चों को च्यवनप्राश नहीं देना चाहिए। पांच साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को दे सकते हैं, लेकिन आधा चम्मच सुबह और आधा चम्मच रात को। च्यवनप्राश सिर्फ सर्दी, जुकाम, खांसी , बुखार से ही दूर नहीं रखता, बल्कि लीवर की शक्ति को भी बढ़ाता है। अगर कोई शख्स बीमारी से उठा है या ज्यादा बुजुर्ग है तो उसे च्यवनप्राश नहीं लेना चाहिए। इसे पूरे साल हर मौसम में लिया जा सकता है।
कुछ नुस्खे:
हल्दी:
- - सुबह खाली पेट आधा चम्मच ताजे पानी से ले सकते हैं।
- - सिर्फ खांसी हो तो हल्दी को भूनकर शहद या घी के साथ मिलाकर चाट लें।
- - गुड़ और गोमूत्र के साथ हल्दी का सेवन करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
- - आंवले का रस एक चम्मच , हल्दी की गांठ का रस आधा चम्मच और शहद आधा चम्मच मिला लें। सुबह , शाम लेने से सभी तरह के प्रमेह , मधुमेह और मूत्र रोगों में फायदा होता है।
अश्वगंधा:
-आधा चम्मच अश्वगंधा सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध के साथ लें। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। शरीर को कमजोर कर देने वाले रोगों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं।
आंवला :
- ताजे आंवले का रस या चूर्ण त्रिदोषनाशक है। आयुर्वेद में इसे बुढ़ापे और रोगों से दूर रखने वाला रसायन माना गया है। कहते हैं कि आंवले के स्वाद और बड़ों की बात की गहराई का पता देर से चलता है। एक साल तक रोजाना एक चम्मच आंवले का रस या आधा चम्मच चूर्ण ताजे पानी या शहद के साथ सेवन करने वालों को आंख, त्वचा और मूत्र संबंधी बीमारियों से जिंदगी भर के लिए निजात मिल जाती है। शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने का अचूक नुस्खा है आंवला।
शिलाजीत:
- सर्दियों में दूध के साथ शुद्ध शिलाजीत का सेवन करने से हड्डियों, लिवर और प्रजनन संबंधी रोग नहीं होते। शिलाजीत का सेवन करने वाले को कबूतर का सेवन नहीं करना चाहिए।
मुलहठी:
- मुलहठी का चूर्ण आयुर्वेदिक एंटिबायॉटिक है। सर्दियों में दूध या शहद के साथ रोज मुलहठी चूर्ण लेने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। सर्दी, खांसी, न्यूमोनिया जैसे रोग नहीं होते। कफ संबंधी बीमारियों को खात्मा होता है और श्वसन संबंधी रोग भी नहीं होते। बच्चों को दो चुटकी मुलहठी चूर्ण शहद के साथ दिन में एक बार दी जा सकती है। बड़ों को आधा चम्मच मुलहठी चूर्ण गर्म दूध के साथ दिन में एक बार लेना चाहिए।
तुलसी:
- तुलसी के पत्तों में खांसी, जुकाम, बुखार और सांस संबंधी रोगों से लड़ने की शक्ति है। बदलते मौसम में तुलसी की पत्तियों को उबालकर या चाय में डालकर पीने से नाक और गले के इंफेक्शन से बचाव होता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में गजब का इजाफा होता है।
लहसुन:
लहसुन हमारे इम्यून सिस्टम के लिए बेहद महत्वपूर्ण दो सेल्स को मजबूत करता है। कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और दूसरे दुर्लभ खनिज तत्वों का भंडार लहसुन शरीर और दिमाग दोनों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। यह सर्दी, जुकाम, दर्द, सूजन और त्वचा से संबधित बीमारियां को नहीं होने देता। लहसुन का इस्तेमाल घी में तलकर या सब्जियों और चटनी के रूप में किया जा सकता है।
गिलोय:
नीम के पेड़ में पान जैसे पत्तों वाली लिपटी लता को गिलोय के नाम से जाना जाता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली इससे अच्छी कोई चीज नहीं है। इससे सभी तरह के बुखार, प्रमेह और लिवर से संबंधित तकलीफों से बचाव होता है। इसका इस्तेमाल वैद्य की सलाह से ही करना चाहिए। यह शरीर के तापमान को भी कंट्रोल करती है।
जवानी का नायाब नुस्खा: जो युवा हमेशा अपनी फिटनेस और जवानी बरकरार रखना चाहते हैं, उन्हें हर साल तीन महीने तक यह नुस्खा लेना चाहिए : आंवला, अश्वगंधा और गिलोय का चूर्ण बराबर मात्रा में मिला लें और इसे शहद के साथ लें।
3. होम्योपैथी:
होम्योपैथी में वाइटल फोर्स का सिद्धांत काम करता है। इम्युनिटी को बढ़ाना ही होम्योपैथी का आधार है। पूरी जिंदगी को वाइटल फोर्स ही कंट्रोल करता है। यही है जो जिंदगी को आगे बढ़ाता है। अगर शरीर की वाइटल फोर्स डिस्टर्ब है तो शरीर में बीमारियां बढ़ने लगेंगी। होम्योपैथी में मरीज को ऐसी दवा दी जाती है, जो उसकी वाइटल फोर्स को सही स्थिति में ला दे। वाइटल फोर्स ही बीमारी को खत्म करता है और इसी में शरीर की इम्यूनिटी होती है। दवा देकर वाइटल फोर्स की पावर बढ़ा दी जाती है, जिससे वह बीमारी से लड़ती है और उसे खत्म कर देती है। होम्योपैथी में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आमतौर पर इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
- - अल्फाअल्फा क्यू ( मदर टिंक्चर ) की 5 से 7 बूंदें तीन चम्मच पानी में डालकर दिन में तीन बार रोजाना लें।
- - अल्फाअल्फा 30 की 3 से 4 बूंद पानी में डालकर दिन में तीन बार लें। इन दोनों दवाओं में अल्फाअल्फा 30 का असर ज्यादा गहरा होता है। बच्चों के लिए भी ज्यादा बढ़िया यही दवा है।
- - दूसरी दवा है अवाइना सटाइवा 30 और अवाइना सटाइवा क्यू। इन दोनों दवाओं को भी ऊपर दिए गए तरीकों से ही लेना है।
- - अगर किसी को बार- बार सर्दी, जुकाम, खांसी आदि होते हैं तो इन दवाओं में से कोई एक दो से तीन महीने तक ले सकते हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और छोटी-मोटी बीमारियों से राहत मिलती है।
4. नैचरोपैथी:
नैचरोपैथी के मुताबिक बुखार, खांसी और जुकाम जैसे रोगों को शरीर से टॉक्सिंस बाहर निकालने का मेकनिजम माना जाता है। नैचरोपैथी में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए अच्छी डाइट और लाइफस्टाइल को सुधारने के अलावा शरीर को डीटॉक्स भी किया जाता है। शरीर को डीटॉक्स करने के लिए:-
- -खूब पानी पिएं। हाइड्रेशन के अलावा यह शरीर पर हमला करने वाले माइक्रो ऑर्गैनिजम को बाहर निकालने का काम भी करता है।
- -लिवर के काम करने की क्षमता को बेहतर बनाएं। इसके लिए नैचरोपैथी में गैस्ट्रोहिपेटिक पैक (लिवर पैक) की मदद से इलाज किया जाता है। इसमें पानी का इस्तेमाल होता है। Source : News Zone India
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