आंत्रकृमि (Antrakrimi)
कुछ बच्चे पौष्टिक भोजन करने के बाद भी दिन-ब-दिन शारीरिक रूप से निर्बल होते चले जाते है। शारीरिक निर्बलता को देखकर माता-पिता परेशान हो जाते हैं और फिर किसी डॉक्टर या वैध को दिखाते हैं। चिकित्सक भी आसानी से उनकी निर्बलता का कारण नहीं जान पाते। ऐसे में बच्चे के मल-मूत्र का परीक्षण कराने के लिए कहते हैं। मल के परीक्षण से पता चलता है कि बच्चे के पेट में कीड़े हैं और फिर कृमित्रों (कीड़ों) को नष्ट करने के लिए औषधियां देते है।
उत्पत्तिः
आंत्रकृमि खाद्य पदार्थ, फल-सब्जियों व जल के साथ मिलकर शरीर में पहुंचते हैं। खेतों की मिट्टी में अनेक तरह के कृमि होते है। जब घरों में सब्जियों को स्वच्छ जल से साफ किए बिना काटकर इस्तेमाल किया जाता है तो कृमि या उनके सूक्ष्म लारवे उनके साथ पेट में पहंुच जाते है। पेट में रहकर कुछ ही दिनों में लारवे के कृमि के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
पेट में अनेक तरह के कृमि (कीड़े) हो सकते हैं। अधिक छोटे बच्चों के पेट में सूत्र कृमि होते हैं। जनसाधारण में इन कृमियों को ‘चूरन’ कहा जाता है। आंत्रकृमि आंत्रों में चिपके हुए रोगी का रक्तपान करते हैं। केंचुए कृमि एक फुट से भी ज्यादा लम्बे होते है। इन कृमियों के कारण रोगी बहुत निर्बल हो जाता है। आंत्रों में कृमियों के काटने से जख्म बन जाते है।
लक्षणः
पेट में कृमि होने पर कभी-कभी रोगी पेट में दर्द अनुभव करता है। रोगी को भूख अधिक लगती है। कृमियों के आमाशय में पहुंच जाने पर जी मिचलाने व वमन की विकृति होती है। जब बच्चों के पेट में कृमि अधिक विकसित हो जाते हैं तो रक्त की आधिक कमी से त्वचा का रंग सफेद होने लगता है। बच्चे सोते समय दंत किटकिटाने लगते हैं आंत्रों से मल के साथ निकलकर कृमि मलद्वार तक पहुंच जाते हैं तो उनके काटने से बच्चों को मलद्वार पर बहुत पीड़ा व खुजली होती है। बच्चे जोर-जोर से खुजलाते हैं तो कृमि नाखूनों में भी लग जाते है।
आंत्रकृमियों द्वारा रक्तपान करने शरीर में रक्त की अत्यधिक कमी से रक्ताल्पता की विकृति होती है। रोगी को बहुत घबराहट होती है। बच्चे बिस्तर में भी मूत्र कर दते है। रात के समय कृमियों के काटने से बच्चों को नींद नहीं आती है। नींद पूरी नहीं हो पाने के कारण बच्चों का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
क्या खाएं?
- * टमाटरों को काटकर, उन पर काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक डालकर खाने से आंत्रकृमि नष्ट होते है।
- * टमाटरों के सूप में वायविडंग का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
- * अनार की छाल का क्वाथ बनाकर, छानकर, उसमें 1 ग्राम तिल का तेल मिलाकर सेवन करें।
- * नीम के कोमल पत्तों का रस मधु मिलाकर सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होते है।
- * अजवायन का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में गुड़ मिलाकर खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते है।
- * लहसुन और गुड़ मिलाकर खाने से आंत्रकृमि नष्ट हो जाते है।
- * नीम की गुलाबी कोमल पत्तियों का रस निकालकर उसमे मधु मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े नष्ट होते है।
- * आडू के पत्तों का रस 30 ग्राम में थोड़ी-सी हींग मिलकार सेवन करें।
- * चम्पा के फूलों का रस 10 ग्राम मात्रा में मधु मिलाकर सेवन करें।
- * कच्चे आम की गुठली का भीतरी भाग (गिरी) का चूर्ण बनाकर दही के साथ सेवन करने से कृमि नष्ट होते है।
क्या न खाएं?
- * चॉकलेट, पेस्ट्री, जैम, जैली, मिठाई, गुड़, चीनी, शर्करा का सेवन करें।
- * उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन करे।
- * कोल्ड डिंªक व शर्बतों का सेवन न करें।
- * दूषित व बासी भोजन न करें।
- * सड़े-गले फल न खाएं।
- * धूल-मिट्टी पड़े, खुले रखे खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
- * वर्षा के दिनों में हैंडपम्पों, कुओं व नदियों का जल न पिएं।
- * फल-सब्जियों को जल से स्वच्छ किए बिना न खाएं।
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