आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) Intestinal Fever (Tayafaead)
आंत्रिक ज्वर को जन साधारण में मोतीझरा, मियादी बुखार, मौक्तिक ज्वर आदि अनेक नामों से संबोधित करते है। आंत्रिक ज्वर 1 सप्ताह से 4 सप्ताह तक चलता है, इसलिए इसको मियादी बुखार भी कहा जाता है। आंतित्रक ज्वर में आंत्रों में नन्हे-नन्हे व्रण बन जाते हैं, जिनके कारण तीव्र ज्वर की उत्पत्ति होती है। आंत्रों से संबंधित होने के कारण चिकित्सक इसे आंत्रिक ज्वर के नाम से संबोधित करते है।
उत्पत्ति :
अधिक समय तक दूषित और अधिक मिर्च-मसालों व अम्ल रस से बने वसायुक्त गरिष्ठ खाद्य पदार्थो का सेवन करने से आंत्रों को हानि पहुंचने से आंत्रिक ज्वर की उत्पत्ति होती है। जब कोई व्यक्ति शारीरिक क्षमता से अधिक परिश्रम करता है तो कुपोषण के कारण आंत्रिक ज्वर से पीड़ित होता है। दूषित जल के सेवन और अधिक समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने से भी आंत्रिक ज्वर की उत्पत्ति होती है। एलोपैथी चिकित्सकों के अनुसार आंत्रिक आंत्रों पर संक्रमण करके व्रण बना देते है। व्रण की अधिकता से ज्वर की उत्पत्ति होती है।
लक्षण :
जीवाणुओं के संक्रमण से आंत्रों में व्रण बनने पर ज्वर होता है। रोगी के उरद में शूल होता है। मल के साथ रक्त भी निकलने लगता है। रोगी शिरःशूल से पीड़ित होता है। ज्वर के प्रारंभ में रोगी को ठंड भी लगती है। ज्वर के साथ खूब पसीना आता है। रोगी को अधिक प्यास लगती है, लेकिन जल पीने पर वमन की शिकायत होती है। ज्वर चार सप्ताह तक चलता है। पहले सप्ताह में हल्का ज्वर होता है। दूसरे, तीसरे सप्ताह में तीव्र ज्वर होता है। शरीर के विभिन्न अंगों में बहुत दर्द होता है। लेंस से देखने पर दाने धूप की रोश्नी में मोती की तरह चमकते है। तीसरे सप्ताह में ज्वर धीरे-धीरे कम होता है। बिस्तर पर लेटे रहने से कमर में बहुत पीड़ा होने लगती है। आंत्रिक ज्वर में किसी कारण से रोगी को अतिसार (दस्त) हो जांए तो बहुत हानि पहुंच सकती है। रोगी का ज्वर किसी औषधि से एकाएक कम हो जाए तो दाने भी बैठ जाते हैं। ऐसे में रोगी को बहुत घबराहट और बेचैनी होती है। रोगी मृत्यु के कगार पर भी पहुंच जाता है। रोगी आध्मान (अफारे) से भी पीड़ित हो सकता है। ज्वर उतर जाने पर रोगी द्वारा भोजन में लापरवाही करने से आंत्रिक ज्वर का पुनराक्रमण भी हो सकता है। शारीरिक रूप से अधिक निर्बल रोगी की पुनराक्रमण से मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।
क्या खाएं?
* गिलोय का रस 5 ग्राम थोड़े से मधु के साथ मिलकर चाटकर खाएं।
* मुनक्के को बीच से चीरकर, उसमें काला नमक लगाकर, हल्का-सा सेंक कर रोगी को खिलाएं। (अधिक मात्रा में नहीं खिलाएं)
* मुनक्का, वासा और हरड़, 3-3 ग्राम लेकर 300 ग्राम जल में उबालकर क्वाथ बनाएं। क्वाथ को छानकर मधु और मिसरी मिलाकर रोगी को थोड़ी-थोड़ी पिलांए।
* अजमोद का 3 ग्राम चूर्ण मधु के साथ सुबह-शाम सेवन कराएं।
* रोगी के बिना घी, मिर्च की लौकी की सब्जी बनाकर खिलाएं।
* तीव्र ज्वर होने पर लोकी के टुकड़े से पांव के तलवे में मिालिश करें। आंत्रिक ज्वर में खांसी होने पर ग्राम सितोपलादि चूर्ण मधु मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाएं।
* रोगी को सेप, चीकू खाने के लिए दें।
* आंत्रिक ज्वर में रोगी को अधिक प्यास लगने पर जल में लौंग के दो-तीन दाने डालकर, उबालकर, छानकर रोगी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाएं।
* रोगी के सिर में भृगंराज का तेल मलने या भृंगराज के तेल में भिगोकर मस्तक पर पट्टी रखने से ज्वर का प्रकोप कम होता है।
* शिरःशूल और अधिक निर्बलता से घबराहट होने पर रोगी को प्रवाल पिष्टी मधु के साथ चटाकर खिलाएं।
* आंत्रिक ज्वर में रोगी को केला भी खिला सकते है।
क्या न खाएं?
* रोगी को अनाज से बने खाद्य पदार्थ सेवन नहीं करने चाहिए।
* प्यास लगने पर शीतल जल कभी न पिएं।
* रोगी को शीतल खाद्य पदार्थो खाने के लिए न दें।
* कोष्ठबद्धता होने पर अतिसार दस्त की औषधि सेवन न करें।
* घी, दूध, मक्खन व तेल से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
* आंत्रिक ज्वर नष्ट होने पर भी रोगी को अधिक घी, मक्खन और अंडे, मांस मछली का सेवन न कराएं।
namste ji sir
ReplyDelete