मेरा सपना है-पीलिया मुक्त भारत। मगर मुझे पता है कि यह बहुत मुश्किल है। मुझे यह भी पता है कि मैं हर पीलिया पीड़ित को नहीं बचा सकता, क्योंकि बहुत से लोगों को दवाई के बजाय झाड़-फूंक, गंडा-ताबीज, तंत्र-मंत्र में अत्यधिक अंधश्रृद्धा है। अनेकों को मुफ्त के इलाज पर नहीं, बल्कि अत्यधिक महंगी आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर ही विश्वास है। इसके बावजूद भी न जाने क्यों मैं चाहता हूं कि कोई भी व्यक्ति कम से कम पीलिया से बेमौत नहीं मरे। इस दुनियां में मेरे जैसे अनेक और भी हैं। इसीलिये यह मैसेज आप भी पढ रहे हैं। चाहें तो आप भी इसे आगे भेज सकते हैं और गर्व के साथ बोल सकते हैं-अकेले डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का ही नहीं, बल्कि 'हम सबका सपना है-पीलिया मुक्त भारत!' पीलिया की दवाई बिलकुल मुफ्त प्राप्त करें। धन्यवाद।-Online डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, स्वाथ्य रक्षक सखा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार, (Health Care Friend and Marital Dispute Consultant HCF& MDC), Health WhatsApp: 8561955619, 30.08.2018
Online Dr. P.L. Meena (डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा)
Health Care Friend and Marital Dispute Consultant
(स्वास्थ्य रक्षक सक्षा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार)
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स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं करें, तुरंत स्थानीय डॉक्टर (Local Doctor) से सम्पर्क करें। हां यदि आप स्थानीय डॉक्टर्स से इलाज करवाकर थक चुके हैं, तो आप मेरे निम्न हेल्थ वाट्सएप पर अपनी बीमारी की डिटेल और अपना नाम-पता लिखकर भेजें और घर बैठे आॅन लाइन स्वास्थ्य परामर्श प्राप्त करें।
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मेरा सपना है-पीलिया मुक्त भारत। मगर मुझे पता है कि यह बहुत मुश्किल है। मुझे यह भी पता है कि मैं हर पीलिया पीड़ित को नहीं बचा सकता, क्योंकि बहुत से लोगों को दवाई के बजाय झाड़-फूंक, गंडा-ताबीज, तंत्र-मंत्र में अत्यधिक अंधश्रृद्धा है। अनेकों को मुफ्त के इलाज पर नहीं, बल्कि अत्यधिक महंगी आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर ही विश्वास है। इसके बावजूद भी न जाने क्यों मैं चाहता हूं कि कोई भी व्यक्ति कम से कम पीलिया से बेमौत नहीं मरे। इस दुनियां में मेरे जैसे अनेक और भी हैं। इसीलिये यह मैसेज आप भी पढ रहे हैं। चाहें तो आप भी इसे आगे भेज सकते हैं और गर्व के साथ बोल सकते हैं-अकेले डॉ. पुरुषोत्तम मीणा का ही नहीं, बल्कि 'हम सबका सपना है-पीलिया मुक्त भारत!' पीलिया की दवाई बिलकुल मुफ्त प्राप्त करें। धन्यवाद।-Online डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, स्वाथ्य रक्षक सखा एवं दाम्पत्य विवाद सलाहकार, (Health Care Friend and Marital Dispute Consultant HCF& MDC), Health WhatsApp: 8561955619, 30.08.2018
निरोगधाम: पर 100 फीसदी शुद्ध आॅर्गेनिक मकोय
आयुर्वेद शास्त्रियों का कहना है कि मकोय का पौधा इस पृथ्वी पर यकृत के रोगों व हृदय रोगों की सबसे अच्छी औषधि कही जाती है। मकोय पीलिया (जॉन्डिस) की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है। मकोय भूख को बढ़ाने वाला फल है। इसकी कार्य क्षमता इतनी है कि इसका 10 प्रतिशत भाग भी सही रहे अर्थात् शुद्ध रहे तो भी यह काम करती रहेगी। वर्तमान समय की कड़वी हकीकत यह है कि बहुत कम आयुर्वेदिक औषधियां सही और शुद्ध मिलती हैं। इस कारण अनेक चिकित्सक विद्वानों का ऐसा अनुभव रहा है कि यदि मकोय 10 फीसदी शुद्ध हो तो भी कुछ न कुछ काम अवश्य करती है।
कल्पना करें कि यदि खतपतवार नाशक कीटनाशकों की मार झेलने के बाद भी खेत में शेष बची मकोय को किसानों द्वारा खेत से काटकर मेड़ के आसपास जो मकोय फेंकी जाती है। वही मकोय जब सूख सड़—गल जाती है और धूप में सूख जाती। ऐसी मकोय को पंसारियों के द्वारा बेचा जायेगा, तो मकोय के सेवन से स्वस्थ होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? दूसरी ओर इस देश का दुर्भाग्य है कि बाजरा, ज्वार जैसी बहुत सस्ती फसल प्राप्त करने के लिये किसानों द्वारा मकोय जैसी महौषधि को नष्ट किया जा रहा है। मकोय के पौधे में अनेक रोगों को नष्ट करने के गुण होते हैं। जैसे—
चर्म रोग, पीलिया, गठिया, बवासीर, सूजन, कोढ़, दिल के रोग, आंखों की बीमारी, खांसी, कफ, स्वर शोधक, रसायन, वीर्य उत्पादक और वीर्यवर्द्धक, प्रमेह नाशक, ज्वर नाशक, वमन को दूर करती, नेत्रों रोगों में हितकर है। मकोय यकृत/लीवर एवं हृदय के रोगों को हरने वाली औषधि है। मकोय त्रिदोषनाशक अर्थात वात,पित्त व कफ तीनों दोषों का शमन करने वाली महौषधि है। इसके अलावा भी मकोय अनेको रोगों को ठीक करती है।
यकृत की क्रिया विधि जब बिगड़ जाती है तो शरीर में अनेक उपद्रव यथा सूजन, पतले दस्त व पीलिया जैसे रोगों के अलाबा कई बार बवासीर जैसे रोग होने लगते हैं। इन रोगों में मकोय का सेवन बहुत ही लाभ करता है। यह औषधि यकृत की क्रियाविधि को धीरे-धीरे सुदृढ करके लीवर सम्बन्धी सभी रोगों को जड़ से नष्अ कर देती है। कुछ अन्य औषधियों के साथ इस औषधि के प्रयोग से यकृत सम्बन्धी रोग समाप्त हो जाते हैं। भूख बढ जाती है। शरीर पुष्ट हो जाता है। इस औषधि के पत्तों का रस/पाउडर आँतों में पहुँचकर वहाँ इकठ्ठे विषों को नष्ट कर देता है और विषैले द्रव्य पेशाब के मार्ग से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। खूनी बबासीर में या मुँह के किसी भी हिस्से से रक्त स्त्राव में मकोय के पत्तों का रस लाभप्रद है। यदि शरीर में खुजली की शिकायत हो तथा वह किसी भी दवाई से मिट नहीं रही हो। तो मकोय के रस की 25 से 50 ग्राम की मात्रा लेते रहने से यह मिट जाऐंगी। इससे शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है और रक्त से जुड़े सभी रोग मिट जाते हैं।
उपरोक्त विवरण एक आम व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है कि मकोय कितनी उपयोगी और अमूल्य औषधि है। अत: हमने जयुपर स्थित हमारे निरोगधाम पर पिछले वर्ष से मकोय की 100 फीसदी शुद्ध आॅर्गेनिक खेती की शुरूआत की है। जिससे मकोय का शुद्ध पाउडर रोगियों को उपलब्ध करवाया जाता है। एक दुर्घटना का शिकार हो जाने के कारण पिछले साल तो हम मकोय का मात्र 5 किलो शुद्ध पाउडर ही उपलब्ध करवा पाये थे। इस वजह से अनेक रोगियों को पर्याप्त मात्रा में मकोय पाउडर उपलब्ध नहीं करवा सके। जिसका हमें खेद है। इस महने वर्ष मकोय की खेती बढा दी है। हमारा लक्ष्य है कि इस बार हम मकोय, श्योनाक, शरफुंका, पुनर्नवा, भूई आंवला आदि दर्जनों 100 फीसदी शुद्ध औषधियों के सहयोग से हम कम से कम 2000 ऐसे रोगियों को स्वस्थ कर सकेंगे, जिनको जीवन लीवर या लीवर सम्बन्धी बवासीर, अपच, कब्ज, भगंदर आदि बीमारियों ने परेशान किया हुआ है।
नोट: यहां पर मकोय के जितने भी चित्र दिये गये हैं। सभी हमारे निरोगधाम पर लहलहाती मकोय के हैं।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
85-619-55-619, 25.06.2017
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परामर्श समय : 10 AM से 10 PM के बीच।
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
आॅन लाईन स्वास्थ्य रक्षक सखा
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Hepatitis b कोई लाइलाज नहीं-Hepatitis b is an incurable
Hepatitis b-हैपेटाईटिसबी लीवर के संक्रमण से पैदा हुई एक बीमारी है जिसे आप पीलिया कहते है। ये अलग प्रकार के वाइरस से पैदा होने वाली बीमारी है। अलग-अलग डॉक्टरों ने अलग-अलग प्रकार के वाइरस की पहचान करके इसके अलग-अलग नाम देने का काम बखूबी किया है। आप अच्छी तरह जान लें कि पीलिया और हेपेटाईटिस दोनों का इलाज एलोपैथी में नहीं है। अब तक पीलिया का एंटी-डोज नहीं बना है, लेकिन भारतीय आयुर्वेद में बहुत ही असम्भव रोगों का इलाज आज भी है। यदि पीलिया या हेपेटाईटिस ए बी या सी किसी भी प्रकार का हो उसे ठीक किया जा सकता है। Hepatitis b कोई लाइलाज नहीं–अगर आपको पीलिया या हेपेटाईटिस के लक्षण दीखते है तो बताया गया उपाय करें-
श्योनाक का पेड़ ज्यादा ऊंचा नहीं होता है। यह पहाडी क्षेत्रों में पाया जाता है। अधिकतर लोग इसे सोना पाठा और टोटला भी कहते हैं तथा कोई अरलू के नाम से भी जानते है बौद्ध धर्म में इस वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है। इसकी फली के सुंदर कोमल बीजों की माला तिब्बत के सभी घरों में मिल जायेंगी और उनका ये विश्वास है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
श्योनाक की छाल 150 को 150 से 200 मिलीलीटर जल में रात को भिगो दे और सुबह 200 मिलीग्राम यानी दो काले चने के बराबर शुद्ध कपूर को से निगल ले और आधे घंटे बाद रात को भिगोया गया श्योनाक की छाल का पानी पी लें बस तीन से चार दिन में ही असाध्य पीलिया और हेपेटाईटिस बी तक ठीक हो जाता है। आप श्योनाक अधिक मात्रा में न लें नहीं आपको तो खुजली हो सकती है और कपूर भी अधिक मात्रा में अगर लिया तो चक्कर आ सकते हैं। इसलिए उपर बताई मात्रा का विशेष ध्यान रक्खें।
Hepatitis-B या C होने पर श्योनाक +भूमि आंवला +पुनर्नवा (साठी) का रस लेते रहें ये बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। मात्रा लक्षण के आधार पर देख कर दिया जाना उचित है। आप अपने निकटतम वैद्य से भी सलाह ले सकतें है।
श्योनाक दशमूल का घटक है। डिलेवरी के बाद गर्भाशय में इन्फेक्शन न हों और यह अपनी पहली अवस्था में आ जाए आप इसके लिए 2 ग्राम श्योनाक तथा 1 ग्राम सौंठ और 2-3 ग्राम गुड का काढ़ा पीयें इसकी छाल का काढ़ा लेने से गर्भाशय ठीक रहता है।
आज भी पहाड़ों में रहने वाले लोग श्योनाक की लकड़ी का बना हुआ गिलास रखते है और इसमें दो सौ-तीन सौ ग्राम पानी रात को रख देते है और इसका सेवन करते है। उनका लीवर दुरुस्त रहता है और मलेरिया से भी बचाव रहता है।
Arthritis होने पर 2 ग्राम श्योनाक की छाल और 2 ग्राम सौंठ का काढ़ा पीयें तथा कान में दर्द हो तो इसकी 100 ग्राम छाल कूटकर 100 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं जब केवल तेल रह जाए तो शीशी में भर कर रख लें और इसे दो -दो बूँद कान में डालें
द्रोणपुष्पी-इसका एक चम्मच चूर्ण मिट्टी के बर्तन में 100 ग्राम पानी में भिगों दें और सुबह मसल कर तथा छान ले और इसमें थोडा सा शहद और चने के बराबर कपूर मिला दें और फिर रोगी को पिला दें आप सिर्फ पांच छ: दिन दे दें तो रोगी ठीक हो जाएगा यदि दो-दो चम्मच चूने का पानी पूरे दिन में तीन बार पंद्रह दिन दे दें तो ये Hepatitis या पीलिया आपको कभी भी पुन:नहीं होगा।
पीली हरड का चूर्ण एक चम्मच एक चम्मच पुराना शहद या शहद न मिलने पर आप पुराना गुड (बिना केमिकल वाला) दिन में दो-तीन बार दे ये असाध्य पीलिया पर भी बखूबी काम करता है हर छ:माह में सात दिन के लिए इसका उपयोग निरोगी व्यक्ति भी करता है उसे जीवन में कभी पीलिया या हेपेटाईटिस जैसी बीमारी नहीं हो सकती है।
स्वास्थ्य की अनदेखी नहीं करें, तुरंत स्थानीय डॉक्टर (Local Doctor) से सम्पर्क करें। हां यदि आप स्थानीय डॉक्टर्स से इलाज करवाकर थक चुके हैं, तो आप मेरे निम्न हेल्थ वाट्सएप पर अपनी बीमारी की डिटेल और अपना नाम-पता लिखकर भेजें और घर बैठे आॅन लाइन स्वास्थ्य परामर्श प्राप्त करें।
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by Dr Kamal Sharma 05 May 2015
पीलिया शरीर मेँ छिपे किसी अन्य रोग का लक्षण है | नवजात शिशुओं मेँ यह रोग सामान्य रुप से पाया जाता है | रोग के लक्षण धीरे-धीरे ही स्पष्ट होते है | एकदम से पीलिया होने की संभावना कम ही होती है |
पीलिया रोग का कारण
जब जिगर से आंतों की ओर पित्त का प्रवाह रुक जाता है तो पीलिया रोग प्रकट होता होता है | पित्त के जिगर मेँ इकट्ठा होकर रक्त मेँ संचार करने से शरीर पर पीलापन स्पष्ट दिखने लगता है | पीलिया रोग प्रमुख रुप से दो प्रकार का होता है | पहला अग्न्याशय के कैंसर या पथरी के कारण | यह पित्त नलिकाओं अवरोध होने से आंतों मेँ पित्त नहीँ पहुंचने के कारण होता है | दूसरे प्रकार का पीलिया लाल रक्त कोशिकाओं के प्रभावित होने तथा शरीर मेँ पित्त की अत्यधिक उत्पत्ति से होता है | मलेरिया तथा हैपेटाइटिस रोग भी पीलिया के कारण होता है | कभी-कभी शराब तथा विष के प्रभाव से भी पीलिया रोग हो जाता है |
पीलिया रोग के लक्षण
रोगी की त्वचा पीली पड़ जाती है | आंखोँ के सफेद भाग मेँ पीलापन झलकना भी पीलिया के प्रमुख लक्षण है | इसके अतिरिक्त मूत्र मेँ पीलापन आ जाता है तथा सौंच सफेद रंग का होता है | त्वचा पर पीलापन छाने से पहले त्वचा मेँ खुजली होती है |
पीलिया रोग का उपचार
1. बड़ा पहाड़ी नीबू का रस पित्त प्रवाह मेँ सुचारु रुप से करने में सहायक होता है |
2. कच्चे आम को शहद तथा कालीमिर्च के साथ खाने से पित्त जन्य रोगो मे लाभ होता है और जिगर को बल मिलता है |
3. चुकंदर का रस भी पित्त प्रकोप को शांत करता है | इसमेँ एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर प्रयोग करते रहने से शीघ्र लाभ होता है |
4. चुकंदर के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से भी पीलिया रोग शांत होता है |
5. सहजन के पत्तों के रास मेँ शहद मिलाकर दिन मेँ दो-तीन बार देने से रोगी को लाभ होता है |
6. अदरक, नींबू और पुदीने के रस मेँ एक चम्मच शहद मिलाकर प्रयोग करना भी काफी फायदेमंद होता है |
7. पीलिया के रोगी को मूली के पत्तो से बहुत अधिक लाभ होता है | पत्तों को अच्छी तरह से रगड़कर उसका रस छानें और उसमेँ छोटी मात्रा में चीनी या गुड़ मिला लेँ | पीलिया के रोगी को प्रतिदिन कम से कम आधा किलो यह रस देना चाहिए | इसके सेवन से रोगी को भूख लगती है और नियमित रुप से उसका मल साफ होने लगता है | रोग धीरे-धीरे शांत हो जाता है |
8. एक गिलास टमाटर के रस में थोड़ा सा काला नमक और काली मिर्च मिला लेँ | इसे प्रातःकाल पीने से पीलिया रोग मेँ काफी लाभ होता है और जिगर ठीक से काम करने लगता है |
9. पीपल के पेड़ की ३-4 नई कोपलेँ अच्छी प्रकार से धोकर मिश्री या चीनी के साथ मिलाकर बारीक बारीक पीस ले | 200 ग्राम जल मेँ घोलकर रोगी को दिन मेँ दो बार पिलाने से ४-5 दिनों मेँ पीलिया रोग से छुटकारा मिल जाता है | पीलिया के रोगी के लिए यह एक बहुत ही सरल और प्रभावकारी उपाय है |
10. फिटकिरी को भूनकर उसका चूर्ण बना लेँ | 2 से 4 रती तक दिन मेँ दो या तीन बार छाछ के साथ पिलाने से कुछ ही दिनोँ मेँ पीलिया रोग मेँ आराम होना शुरु हो जाता है |
11. कासनी के फूलोँ का काढ़ा बनाकर 50 मिलीलीटर तक की मात्रा मेँ दिन मेँ तीन-चार बार देने से पीलिया रोग मेँ लाभ होता है | इसका सेवन करने से बढ़ी हुई तिल्ली भी ठीक हो जाती है | पित्त प्रवाह मेँ सुचरूता तथा जिगर और पित्ताशय को ठीक करने मेँ सहायता मिलती है |
12. गोखरु की जड़ का काढ़ा बनाकर पीलिया के रोगी को प्रतिदिन 50 मिलीलीटर मात्रा दो – तीन बार देने से पीलिया रोग मेँ काफी लाभ होता है |
13. एलोवीरा का गूदा निकाल कर काला नमक और अदरक का रस मिलाकर सुबह के समय देने से लगभग 10 दिनोँ मेँ पीलिया का रोगी ठीक हो जाता है |
14. कुटकी और निशोध दो देसी जड़ी – बूटियाँ है | इन दोनोँ को बराबर मात्रा मेँ लेकर चूर्ण बना लेँ एक चम्मच चूर्ण गर्म जल मेँ रोगी को दे | इस प्रकार दिन मेँ दो बार देने से जल्दी लाभ होने लगता है |
परहेज और सावधानियां
पीलिया के रोगी को मसालेदार और गरिष्ठ भोजन का त्याग करना चाहिए | स्वच्छ पानी उबाल कर ठंडा करके पीना चाहिए | शराब, मांस, धूम्रपान, का सेवन एक दम नहीँ करना चाहिए | अशुद्ध और बासी खाद्द- पदार्थों का सेवन भी नहीं करना चाहिए |
Source : http://www.gharkavaidya.com/home-remedies-for-jaundice-in-hindi/
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घबरायें नहीं करे पीलिया का उपचार….!
- * पीलिया का आयुर्वेद में अचूक इलाज है। आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार यदि मकोय की पत्तियों को गरम पानी में उबालकर उसका सेवन करें तो रोग से जल्द राहत मिलती है। मकोय पीलिया की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है।
- * जब भी रोगी का यह लगे कि उसका शरीर पीला हो रहा है तथा उसे पीलिया हो सकता है, तो वह पानी की मात्रा बढ़ा दे क्योंकि पानी की मात्रा कम होने पर शरीर से उत्सर्जित होने वाले तत्व रक्त में मिल जाते हैं। इससे व्यक्ति की हालत बिगडऩे लगती है। चिकित्सक बताते हैं कि यदि कच्चा पपीता सलाद के रूप में लिया जाए तो भी पीलिया का असर कम होता है। कई लोग यह मानते हैं कि पीलिया के रोगी को मीठा नहीं खाना चाहिए जबकि आयुर्वेद चिकित्सक ऐसा नहीं मानते उनका कहना है कि पीलिया का रोगी गाय के दूध से बना पनीर व छेने का रसगुल्ला आराम से खा सकता है यह रोगी को कोई नुकसान नहीं बल्कि लाभ पहुंचाता है।
- * नाश्ते में अंगूर ,सेवफल पपीता ,नाशपती तथा गेहूं का दलिया लें । दलिया की जगह एक रोटी खा सकते हैं।
- * मुख्य भोजन में उबली हुई पालक, मैथी ,गाजर , दो गेहूं की चपाती और ऐक गिलास छाछ लें।
- * करीब दो बजे नारियल का पानी और सेवफल का जूस लेना चाहिये।
- * रात के भोजन में एक कप उबली सब्जी का सूप , गेहूं की दो चपाती ,उबले आलू और उबली पत्तेदार सब्जी जैसे मेथी ,पालक ।
- * रात को सोते वक्त एक गिलास मलाई निकला दूध दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
- * सभी वसायुक्त पदार्थ जैसे घी ,तेल , मक्खन ,मलाई कम से कम १५ दिन के लिये उपयोग न करें। इसके बाद थौडी मात्रा में मक्खन या जेतून का तैल उपयोग कर सकते हैं। प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियों और फलों का जूस पीना चाहिेये। कच्चे सेवफल और नाशपती अति उपकारी फल हैं।
- * दालों का उपयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दालों से आंतों में फुलाव और सडांध पैदा हो सकती है। लिवर के सेल्स की सुरक्षा की दॄष्टि से दिन में ३-४ बार निंबू का रस पानी में मिलाकर पीना चाहिये।
- * मूली के हरे पत्ते पीलिया में अति उपादेय है। पत्ते पीसकर रस निकालकर छानकर पीना उत्तम है। इससे भूख बढेगी और आंतें साफ होंगी।
- * धनिया के बीज को रातभर पानी में भिगो दीजिये और फिर उसे सुबह पी लीजिये। धनिया के बीज वाले पानी को पीने से लीवर से गंदगी साफ होती है।
- * एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच पिसा हुआ त्रिफला रात भर के लिए भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को छान कर पी जाएँ। ऐसा 12 दिनों तक करें।
- * जौ आपके शरीर से लीवर से सारी गंदगी को साफ करने की शक्ति रखता है।
- * टमाटर में विटामिन सी पाया जाता है, इसलिये यह लाइकोपीन में रिच होता है, जो कि एक प्रभावशाली एंटीऑक्सीडेंट हेाता है। इसलिये टमाटर का रस लीवर को स्वस्थ्य बनाने में लाभदायक होता है।
- * इस रोग से पीड़ित रोगियों को नींबू बहुत फायदा पहुंचाता है। रोगी को 20 ml नींबू का रस पानी के साथ दिन में 2 से तीन बार लेना चाहिए।
- * आमला मे भी बहुत सारा विटामिन सी पाया जाता है। आप आमले को कच्चा या फिर सुखा कर खा सकते हैं। इसके अलावा इसे लीवर को साफ करने के लिये जूस के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।
- * यह एक प्राकृतिक उपाय है जिसेस लीवर साफ हो सकता है। सुबह सुबह खाली पेट 4-5 तुलसी की पत्तियां खानी चाहिये।
- * जब आप पीलिया से तड़प रहे हों तो, आपको गन्ने का रस जरुर पीना चाहिये। इससे पीलिया को ठीक होने में तुरंत सहायता मिलती है।
- * गोभी और गाजर का रस बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास रस तैयार करें। इस रस को कुछ दिनों तक रोगी को पिलाएँ।
- * रोगी को दिन में तीन बार एक एक प्लेट पपीता खिलाना चाहिए।
- * टमाटर पीलिया के रोगी के बहुत लाभदायक होता है। एक गिलास टमाटर के जूस में चुटकी भर काली मिर्च और नमक मिलाएं। यह जूस सुबह के समय लें। पीलिया को ठीक करने का यह एक अच्छा घरेलू उपचार है।
- * नीम के पत्तों को धोकर इनका रस निकाले। रोगी को दिन में दो बार एक बड़ा चम्मच पिलाएँ। इससे पीलिया में बहुत सुधार आएगा।
- * पीलिया के रोगी को लहसुन की पांच कलियाँ एक गिलास दूध में उबालकर दूध पीना चाहिए , लहसुन की कलियाँ भी खा लें। इससे बहुत लाभ मिलेगा।
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- * पीलिया के रोगियों को मैदा, मिठाइयां, तले हुए पदार्थ, अधिक मिर्च मसाले, उड़द की दाल, खोया, मिठाइयां नहीं खाना चाहिए।
- * पीलिया के रोगियों को ऐसा भोजन करना चाहिए जो कि आसानी से पच जाए जैसे खिचड़ी, दलिया, फल, सब्जियां आदि।
एक और प्रयोग….!
*सरसों के तेल की खली १०० ग्राम का चूर्ण बना लें इस चूर्ण की १ चम्मच मात्रा१०० ग्राम दही में मिलाकर सुबह ८ – ९ बजे लें स्वाद अनुसार नमक या चीनी भी डाल सकते है एक सप्ताह लगातार लेने से पीलिया मल मार्ग से बाहर निकलजायेगा..लेकिन घीतेल में तली चीजो से १० दिनो तक परहेज करें एक सप्ताह में पीलिया जड से समाप्त हो जायेगा…!
सिद्ध आयुर्वेदिक : https://sidhayuvadic7.wordpress.com/category/%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%9C/
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पीलिया का प्राकृतिक इलाज ( Natural Remedies for Jaundice )
पीलिया एक ऐसा रोग है जो हेपेटाइटिस ए या हेपेटाइटिस सी की वायरस के कारण फैलता है. पीलिया शरीर के अनेक भागों को अपना शिकार बनाता है और शरीर को बहुत हानि पहुंचाता है. इस रोग में पाचन तंत्र सही ढंग से कार्य तक करना बांध कर देता है और शरीर का रंग पीला पड़ जाता है. इस रोग से बचने के लिए रोगी अनेक तरह के उपचार और एंटी बायोटिक का सहारा लेता है. जिससे उनके शरीर पर कुछ अन्य प्रभाव भी हो सकते है किन्तु आज हम आपको कुछ ऐसे घरेलू आयुर्वेदिक उपाय बता रह है जिनको अपनाकर आप पीलिया जैसी भयंकर रोग से तुरंत मुक्ति पा सकते हो. इन उपायों का आपको कोई साइड इफ़ेक्ट भी नही होता है. CLICK HERE TO KNOW पीलिया के कारण और लक्षण ...
Piliya Ka Ghrelu Aayurvedic Ilaaj
· प्याज ( Onion ) : प्याज को पीलिया के इलाज के लिए रामबाण उपाय माना जाता रहा है. इसका उपाय करने के लिए आप प्याज को छीलकर इससे कुछ पतले पतले हिस्सों में बाँट लें और इसके ऊपर निम्बू का रस निचोड़ें. अब आप कुछ काली मिर्च और काले / सिंधा नमक का मिश्रण लें और प्याज के ऊपर छिड़क लें. इस तरह से आप प्याज का रोजाना सुबह शाम सेवन करें. इस उपाय के 15 से 20 दिन के अंदर ही आपको पीलिया से मुक्ति मिल जाती है.
· चना ( Gram ) : चना पीलिया को ठीक करने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है. इसका प्रयोग करने के लिए आप रात को सोने से पहले चने की दाल को एक भगोने में भिगो कर रख दें और सुबह दाल में गुड मिलाकर खायें. इस उपाय को 2 से 3 हफ्ते तक अपनाएं. आपका पीलिया तुरंत भाग जायेंगा.
· पपीता ( Papaya ) : आपने अनेक ऐसे लोग देखें होंगे जो पीलिया में पपीते का इस्तेमाल करते है. पपीता में कुछ ऐसे तत्व पायें जाते है जो पीलिया के असर को कम करते है. आयुर्वेद में माना जाता है कि पीलिया का रोगी गाय के दूध में बना हुआ पनीर और चने का रसगुल्ला खाता है तो उससे तुरंत अधिक लाभ मिलता है.
· मकोय की पत्ती ( Sap / Solanum Nigrum Leaf ) : आप एक भगोने में पानी लें और उसमे कुछ मकोय की पत्तियों को डालकर उबाल लें. आप इन पत्तियों का सेवन करें आपको शीघ्र ही पीलिया के रोग में राहत मिलती है. आयुर्वेद में मकोय की पत्तियों को पीलिया का अचूक उपाय माना जाता है. आप मकोय की पत्तियों का किसी भी रूप में इस्तेमाल कर सकते हो क्योकि ये पूर्ण रूप से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है. CLICK HERE TO KNOW माइग्रेन के कारण, लक्षण और उपचार ...
पीलिया का घरेलू आयुर्वेदिक इलाज
· नीम के पत्ते ( Neem Leaf ) : आप कुछ नीम के पत्ते लें और उन्हें अच्छी तरह धोकर साफ़ कर लें और इनका रस निकाल लें. आप इस रस को दिन में 2 से 3 बार एक चम्मच ग्रहण करें. इससे जल्द ही आपको पीलिया में आराम मिलता है.
· लहसुन ( Garlic ) : पीलिया के रोगियों के लिए लहसुन भी काफी कारगर सिद्ध होता है. इसके लिए एक ग्लास दूध में 4 से 5 लहसुन की कलियों को डालकर अच्छी तरह उबाल लें. अब आप इस दूध को पी जाएँ और ऊपर से इन कलियों को खायें. आपको जल्द ही लाभ मिलेगा.
· बादाम ( Almond ) : एक कटोरी पानी लें और उसमे 10 ग्राम बादाम, 5 ग्राम इलायची और 2 से 3 छुआरों डालकर रातभर भीगने दें. अगले दिन सुबह आप सारी सामग्री में स्वादानुसार पीसी हुई मिश्री डालें और थोडा ताजा मक्खन डालकर अच्छी तरह से मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर लें. इस उपाय को आप कम से कम 2 सप्ताह तक जरुर अपनाएं. आपको जल्द ही पीलिया की बिमारी में राहत मिलेगी. बादाम का एक लाभ ये भी है कि इससे आपके पेट में बनी गर्मी भी नष्ट हो जाती है.
· टमाटर ( Tomato ) : टमाटर त्रिफला के लिए अत्यंत लाभदायी माना जाता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए आप टमाटर का जूस निकाल लें और उसमे स्वाद अनुसार काली मिर्च और नमक डाल लें. आप इस जूस को सुबह खाली पेट पियें. पीलिया के घरेलू आयुर्वेदिक उपायों में ये उपाय सबसे आसान और असरदार उपाय माना जाता है. टमाटर में विटामिन ए की प्रचुरता होती है साथ ही इसमें लाइकोपीन नाम का एक तत्व भी पाया जाता है. जो पीलिया को दूर भागने में लाभकारी सिद्ध होता है.
Home Aayurmedic Remedies for Jaundice in Hindi
· इमली ( Tamarind ) : इमली का प्रयोग भी आप पीलिया के इलाज के रूप में कर सकते हो. इसके लिए आप इसे भी रात भर भीगने दें और सुबह इसे मसलकर इसके छिलके को उतार दें. इसके बाद आप इसमें इमली का बचा हुआ पानी लें और उसमे थोड़ी काली मिर्च और काला नमक मिलाकर ग्रहण करें. इस तरह आपका पीलिया रोग जल्द ही ठीक हो जाता है.
· आंवला ( Amla ) : आंवला का आयुर्वेद में विशेष स्थान है इसका प्रयोग अनेक रोगों की मुक्ति के लिए किया जाता है. पीलिया के उपचार में इसका इस्तेमाल करने के लिए आप 50 ग्राम की मात्रा में आंवलें का रस लें और उसमे 1 चम्मच शहद मिला लें और इस मिश्रण को 3 सप्ताह तक इस्तेमाल करें. जल्द ही आपको पीलिया में आराम मिलेगा. जिसका असर आप स्पष्ट रूप से देख पाते हो.
· सौंठ ( Fennel ) : 10 ग्राम सौंठ और 10 ग्राम गुड को मिलकर उसका ठन्डे पानी के साथ सेवन करने से भी 10 से 15 दिनों में पीलिया के रोग में आराम मिलता है. आप इस उपाय को प्रतिदिन सुबह के समय अपनायें.
· मुली ( Muli ) : आप 100 ग्राम मुली के पत्ते लें और उसका रस निकालें. इसके बाद आप इसमें स्वादानुसार चीनी या शक्कर मिलाकर इसका प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करें. इससे आपका पेट साफ़ होता है और आपके लीवर और पाचन तंत्र को मजबूती मिलती है साथ ही आपको पीलिया में आराम मिलता है. आप अपने आहार में मुली, संतरा, तरबूज, टमाटर और अंगूर को भी जगह दें.
पीलिया रोग निवारण
· फिटकरी ( Alum ) : पीलिया के अचूक उपाय के रूप में आप फिटकरी का इस्तेमाल कर सकते हो इसके लिए आपको 50 ग्राम फिटकरी को गर्म कर उसका पानी उड़ना है और उसके बाद आप उस फिटकरी को पीसकर उसका चूर्ण बना लें. इस चूर्ण का मरीज दवा के रूप में सेवन करें.
आप फिटकरी को एक अन्य तरीके से भी इस्तेमाल कर सकते हो जिसके अनुसार आप 50 ग्राम फिटकरी का चूर्ण लेकर उसको 20 से 21 पुडिया में बाँट दें. इनमे से हर पुडिया को आप प्रतिदिन मलाई और 100 ग्राम दही के साथ सेवन करें. आप चाहे तो दही में चीनी भी मिला सकते हो. किन्तु ध्यान रहें कि ये उपाय आपको खाली पेट ही करना है. जैसे ही आपकी पुडिया खत्म होती है पीलिया का रोग भी दूर हो चूका होता है.
· त्रिफला ( Triphala ) : आप एक कटोरी पानी लें और उसमे कुछ मात्रा में त्रिफला डालकर रातभर भीगने दें. सुबह उठने के बाद आप त्रिफला को अलग कर उसके पानी को पी जाएँ. इस उपाय को आप लगातार 2 सप्ताह तक अपनाएं. निश्चित रूप से आपको पीलिया से आराम मिल जायेगा.
पीलिया रोग से मुक्ति पाने के अन्य घरेलू आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपायों को जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट कर जानकारी हासिल कर सकते हो.
http://www.jagrantoday.com/2016/01/piliya-ka-ghrelu-aayurvedic-ilaaj-home.html
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पीलिया ( Jaundice )
गर्मी या बरसात के मौसम अचानक रोगों का आक्रमण बढ़ जाता है. इन रोगों में से पीलिया भी एक प्रमुख रोग है. पीलिया को एक विशेष वायरस भी माना जाता जिसमे रोगी का शरीर पीला पड़ने लगता है और उसके पित्त में वृद्धि होने लगती है. रोगी का शरीर ही नही बल्कि रोगी के नाख़ून, त्वचा, आँखों के बीच का सफ़ेद भाग और उसका मूत्र भी पीले रंग का हो जाता है. इस रोग को इंग्लिश में Jaundice कहा जाता है. ऐसे रोगियों की खाने में बिलकुल रूचि नही रहती और यदि इस रोग का समय पर उपचार नही कराया जाता तो इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है. इसलिए इसे समय पर पहचानना और इसकी रोकथाम अनिवार्य है. तो आओ जानते है पीलिया होने के कुछ कारण और लक्षण. CLICK HERE TO KNOW पीलिया के घरेलू आयुर्वेदिक इलाज ...
Piliya ke Kaaran or Lakshan
पीलिया के प्रकार ( Type of Jaundice ) :
- हेपेटाइटिस ए ( Hepatitis A )
- हेपेटाइटिस बी ( Hepatitis B )
- हेपेटाइटिस नॉन ए और नॉन बी ( Hepatitis Non A and Non B )
पीलिया के कारण ( Causes of Jaundice ) :
· हेपेटाइटिस ए ( Hepatitis A ) : पीलिया का मुख्य कारण और वायरस हेपेटाइटिस ए होता है. हेपेटाइटिस ए दूषित खानपान और दूषित पानी से होता है. जिससे लीवर पर काफी असर पड़ता है जिससे ये अन्य बीमारियों को भी जन्म देता है.
· मलेरिया ( Malaria ) : अगर कोई व्यक्ति मलेरिया से ग्रसित है तो उसे भी पीलिया होने की पूरी संभावना बनी रहती है क्योकि मलेरिया में रोगी की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण अन्य बीमारियाँ आसानी से रोगी को अपना शिकार बना पाती है. CLICK HERE TO KNOW माइग्रेन के कारण, लक्षण और उपचार ...
पीलिया के कारण और लक्षण
· पित्त में पथरी ( Gall Stones ) : इसका अगला कारण है पित्त की थैली या पित्त की नाली में पथरी का अटकना या होना. इससे पित्त में सुजन आ जाती है और उसका आकार बढ़ना शुरू हो जाता है जो पीलिया को बुलावा देता है.
· पौषक तत्वों की कमी ( Deficiency of Nutrients ) : भोजन ही जीवन है, अगर आप अच्छा आहार ग्रहण करते हो तो आपका शरीर स्वस्थ रहता है और कोई भी रोग आपको छू भी नही पाता किन्तु अगर आप विशुद्ध भोजन करते हो तो हर बिमारी आपको नुकसान पहुँचाने के लिए तैयार रहती है. इसलिए साफ़ स्वच्छ और संतुलित आहार लें. जिसमे सभी पौषक तत्व मौजूद हो.
· आसपास गंदगी ( Garbage or Mess All Around ) : जिस स्थान पर आप रहते है अगर वहाँ किसी प्रकार की गंदगी है या कूड़ा कचरा बिखर रहता है तो उस स्थान पर अनेक तरह के रोग स्वतः ही उत्पन्न हो जाते है जो पीलिया का कारण बनते है. ऐसे ही माहौल में हेपेटाइटिस ए और हेपेटाइटिस बी का भी जन्म होता है जो पीलिया का वायरस माना जाता है. तो अपने आसपास सफाई बनाएं रखें.
· अधिक मात्रा में शराब ( Heavy Alcohol ) : अकसर वे लोग जो अधिक शराब का सेवन करते है उन्हें पीलिया होता रहता है. इसका कारण शराब में मिलाया जाने वाला एसिड होता है. शराब शरीर के अंदर के हिस्से को गला देती है और शरीर में घाव पैदा कर देती है. इससे पित्त को भी बहुत नुकसान पहुँचता है जो पीलिया का कारण बनता है.
· रक्तकणों की कमी ( Lack of Blood Cells ) : खून में हीमोग्लोबिन की कमी या रक्त कणों की कमी से भी पीलिया हो जाता है क्योकि अगर खून में हीमोग्लोबिन ही नही होगा तो रक्त का रंग लाल नही रह पाता और ना ही शरीर के हर हिस्स्ते तक पौषक तत्व पहुँचते है. इस तरह पीलिया शरीर पर आसानी से आक्रमण कर देता है.
Causes and Symptoms of Jaundice
· दिन में सोना ( Day Sleeping ) : कुछ लोगो को दिन में सोने की आदत होती है. इससे उनमे आलस तो बढता ही है साथ ही उन्हें पीलिया जैसी बिमारी भी अपना शिकार बना लेती है.
पीलिया के लक्षण ( Symptoms of Jaundice ) :
पीलापन (Pallor): पीलिया का सबसे पहला और मुख्य लक्षण शरीर के अनेक हिस्सों का पीला पड़ना है. जिसमे आँखें, नाख़ून त्वचा और मूत्र भी शामिल है. इसका मुख्य कारण ये होता है कि इस रोग में लाल रक्त कोशिकायें / RBC ( Red Blood Cell ) बाईल या बिलीरुबिन पिगमेंट में बदल जाती है. जिससे मूत्र का रंग गहरा शुरू होना आरंभ हो जाता है. अगर इसपर समय पर ध्यान नही दिया जाता तो इससे मूत्र में इन्फेक्शन भी हो सकता है जिससे किडनी भी खराब हो सकती है. किडनी के साथ साथ पीलिया का रोग लीवर को भी अपना शिकार बनता है.
· पेट दर्द ( Stomach Pain ) : क्योकि पीलिया में किडनी, लीवर और पाचन तंत्र प्रभावित होते है तो इससे पेट में दर्द और अन्य विकार उत्पन्न होने आरंभ हो जाते है. इस स्थिति में लोगो को ज्यादातर पेट के दाहिने हिस्से में दर्द होना आरंभ होता है और ये धीरे धीरे बढ़ने लगता है.
· तेज बुखार ( High Fever ) : पीलिया एक वायरस का रोग है जिससे शरीर में विष का संचार होता है. ये विष शरीर का तापमान 100 से 103 डिग्री तक पहुंचा देता है. जिससे रोगी को लगातार बुखार रहता है. इससे उनकी आँखों पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योकि उनकी आँखे बुरी तरह से जलने लगती है.
Piliya ke Prakar |
· उल्टियाँ ( Vomiting ) : पीलिया के रोगी का खाने से मन उठ जाता है किन्तु फिर भी उसको उल्टी और मतली आती रहती है. जिससे उसके शरीर में कमजोरी आ जाती है और उसे चक्कर आने लगते है. अगर इन लक्षणों पर शीघ्र ही ध्यान नही दिया जाता तो ये बड़े रोग को बुलावा दे देती है.
· अधिक थकान ( Fatigue ) : कमजोरी, उल्टी के कारण रोगी को अपना शरीर टुटा हुआ महूसस होता है. वे हमेशा बिस्तर पर पड़े रहते है और सोते रहते है. इनका स्वभाव चिडचिडा हो जाता है, इनका ना किसी से बोलने का मन करता है और ना ही कुछ करने का.
· खुजली ( Itch ) : जिन रोगियों को पीलिया का कारण कोलेस्टासिस है उन रोगियों के शरीर में खुजली की समस्या उत्पन्न हो जाती है. खुजली की शुरुआत उनके हाथ से होती है किन्तु धीरे धीरे ये खुजली पैरों से पुरे शरीर में होने लगती है जिसकी वजह से रोगी रात भर अपने शरीर को खुजाता रहता है.
· नींद पूरी ना होना ( Lack of Sleep ) : क्योकि रोगी को बैचनी, खुजली और आँखों में जलन होती रहती है तो उन्हें नींद नही आ पाती. जिस कारण उन्हें नींद की बीमारियाँ भी अपना शिकार बनाना आरंभ कर देती है. ये एक ऐसी स्थित उत्पन्न हो जाती है जो रोगी के परिवार जन को भावनात्मक रूप से कष्ट देना आरंभ कर देती है.
पीलिया के अन्य लक्षण, कारण और इसके उपचार को जानने के लिए आप तुरंत नीचे कमेंट करके जानकारी हासिल कर सकते हो.
Shrir ke Pila Padne ka Kaaran
http://www.jagrantoday.com/2016/01/piliya-ke-kaaran-or-lakshan-causes-and.html
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मौसम बदलने के साथ ही पीलिया (जॉन्डिस) का प्रकोप बढ़ रहा है। पीलिया का आयुर्वेद में अचूक इलाज है। आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार यदि मकोय की पत्तियों को गरम पानी में उबालकर उसका सेवन करें तो रोग से जल्द राहत मिलती है। मकोय पीलिया की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है।
चिकित्सक कहते हैं कि जब भी रोगी का यह लगे कि उसका शरीर पीला हो रहा है तथा उसे पीलिया हो सकता है, तो वह पानी की मात्रा बढ़ा दे क्योंकि पानी की मात्रा कम होने पर शरीर से उत्सर्जित होने वाले तत्व रक्त में मिल जाते हैं। इससे व्यक्ति की हालत बिगडऩे लगती है। चिकित्सक बताते हैं कि यदि कच्चा पपीता सलाद के रूप में लिया जाए तो भी पीलिया का असर कम होता है।
कई लोग यह मानते हैं कि पीलिया के रोगी को मीठा नहीं खाना चाहिए जबकि आयुर्वेद चिकित्सक ऐसा नहीं मानते उनका कहना है कि पीलिया का रोगी गाय के दूध से बना पनीर व छेने का रसगुल्ला आराम से खा सकता है यह रोगी को कोई नुकसान नहीं बल्कि लाभ पहुंचाता है। इसके अलावा जिस व्यक्ति को पीलिया हो गया हो उसे और क्या क्या खाना चाहिये इसके लिये पढ़े नीचे।
मूली कर रस: मूली के रस मे इतनी ताकत होती है कि वह खून और लीवर से अत्यधिक बिलिरूबीन को निकाल सके। रोगी को दिन में 2 से 3 गिलास मूली का रस जरुर पीना चाहिये।
धनिया बीज: धनिया के बीज को रातभर पानी में भिगो दीजिये और फिर उसे सुबह पी लीजिये। धनिया के बीज वाले पानी को पीने से लीवर से गंदगी साफ होती है।
जौ: जौ आपके शरीर से लीवर से सारी गंदगी को साफ करने की शक्ति रखता है।
टमाटर का रस: टमाटर में विटामिन सी पाया जाता है, इसलिये यह लाइकोपीन में रिच होता है, जो कि एक प्रभावशाली एंटीऑक्सीडेंट हेाता है। इसलिये टमाटर का रस लीवर को स्वस्थ्य बनाने में लाभदायक होता है।
आमला: आमला मे भी बहुत सारा विटामिन सी पाया जाता है। आप आमले को कच्चा या फिर सुखा कर खा सकते हैं। इसके अलावा इसे लीवर को साफ करने के लिये जूस के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।
तुलसी पत्ती: यह एक प्राकृतिक उपाय है जिसेस लीवर साफ हो सकता है। सुबह सुबह खाली पेट 4-5 तुलसी की पत्तियां खानी चाहिये।
नींबू का रस: नींबू के रस को पानी में निचोड़ कर पीने से पेट साफ होता है। इसे रोज खाली पेट सुबह पीना सही होता है।
पाइनएप्पल: पाइनएप्पल एक दूसरे किसम का फल है जो अंदर से सिस्टम को साफ रखता है।
गन्ने का रस: जब आप पीलिया से तड़प रहे हों तो, आपको गन्ने का रस जरुर पीना चाहिये। इससे पीलिया को ठीक होने में तुरंत सहायता मिलती है।
दही: दही आसानी से पच जाती है और यह पेट को प्रोबायोटिक प्रदान करती है। यह एक अच्छा बैक्टीरिया होता है जो जॉन्डिस से लड़ने में सहायक होता है।
पीलिया होने पर खाएं ये आहार
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Source : http://hindi.boldsky.com/health/diet-fitness/2013/best-foods-cure-jaundice-quickly-003572.html
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उपशीर्षक:
Jaundice,
एंटीऑक्सीडेंट,
जौ,
टमाटर का रस,
धनिया बीज,
पीलिया,
मूली कर रस
Sunday, September 11, 2016
सोनापाठासंज्ञा पुं० [सं० शोण+हिं०पाठा] Oroxylum indicum
1. एक प्रकार का ऊँचा बृक्ष जिसकी छाल, बीज और फल औषधि के काम आते है।
विशेष-यह वृक्ष भारत और लंका में सर्वत्र होता है। इसकी छाल चौथाई इंच तक मोटी, हरापन लिए पीले रंग की, चिकनी, हलकी और मुलायम होती है। काटने से इसमें से हरा रस निकलता है। लकड़ी पीलापन लिए सफेद रंग की हलकी और खोखली होती है तथा जलाने के सिवा और किसी काम में नहीं आती। पेड़ की टहनियों पर तीन से पाँच फुट तक लंबी झुकी हुई सींकें होती हैं जो भीतर से पीली होती हैं। प्रत्येक प्रधान सींक पर पांच-पांच गांठें होती हैं और उन गाँठों के दोनों और एक-एक और सींक होती है। पहली सींक की चार गाँठे सींकों सहित क्रम क्रम से छोटी रहती हैं। इनमें पहली गाँठ पर तीन जोड़े पत्ते, दूसरी और तीसरी गाँठ पर एक एक जोड़ा और चौथी गांठ पर तीन पत्ते लगे रहते है। दूसरी और तीसरी सींकों पर भी इसी क्रम से पत्ते रहते हैं। चौथी गाँठवाली सींक पर पाँच पाँच पत्ते (दो जोड़े और एक छोर पर) होते हैं। पाँचवीं पर तीन पत्ते (एक जोड़ा और एक छोर पर) होते हैं। इसी प्रकार अंत में तीन पत्ते होते हैं। पत्ते करंज के पत्ते के समान २।।/2.5 से ४।।/4.5 इंच तक चौड़े, लंबोतरे और कुछ नुकीले होते हैं।
फूल 1-2 फुट लंबी डंडी पर २।।-३ इंच लंबोतरे और सिल-सिलेवार आते हैं। फूलों के भीतर का रंग पीलापन लिए लाल और बाहर का रंग नीलापन लिए लाल होता है। फूलों में पाँच पंखड़ियाँ और भीतर पीले रंग के पाँच केसर होते हैं। फूल बहुधा गिर जाया करते हैं, इसलिये जितने फूल आते हैं, उतनी फलियाँ नहीं लगतीं। फलियाँ २-२।। फुट लंबी और ३-४ इंच चौड़ी, चिपटी तथा तलबार की तरह कुछ मुड़ी हुई टेढ़ी नोक- वाली होती है। इनके अंदर भोजपत्र के समान तहदार पत्ते सचे रहते हैं और इन पत्तों के बीच में छोटे, गोल और हलके बीज होते हैं। कलियाँ और कोमल फलियाँ प्रायः कच्ची ही गिर जाया करती है। कार्तिक और अगहन के आरंभ तक इसके वृक्ष पर फूल फल आते रहते हैं और शीतकाल के अंत और वसंत ऋतु में फलियाँ पककर गिर जाती हैं और बीज हवा में उड़ जाते हैं। इन बीजों के गिरने से वर्षा ऋतु में पौधे उत्पन्न होते हैं।
वैद्यक के अनुसार यह कसैला, कडुवा, चरपरा, शीतल, रुक्ष, मल-रोधक, बलकारी, वीर्यवर्धक, जठराग्नि को दीपन करनेवाला तथा वात, पित्त, कफ, त्रिदोष, ज्वर, सनिपात, अरुचि, आम-वात, कृमि रोग, वमन, खाँसी, अतिसार, तृषा, कोढ़, श्वास और वस्ति रोग का नाश करनेवाला है।
इसकी छाल, फल और बीज औषध के काम में आते हैं, पर छाल का ही अधिक उपयोग होता है।
इसका कच्चा फल कसैला, मधुर, हलका, हृदय और कंठ की हितकारी, रुचिकर, पाचक, अग्निदीपक, गरम, कटु, क्षार तथा वात, गुल्म, कफ और बवासीर तथा कृमिरोग का नाश करनेवाला है।
पर्या०-श्योनाक । शुक्रनास । कट्वंग । कंटभर । मयूरजंध । अरलुक । प्रियजीवी। कुटन्नट।
2. इसी वृक्ष का एक और भेद जो संयुक्त प्रेदेश (उत्तर प्रदेश), पश्चिमोत्तर प्रदेश, बंबई, कर्नाटक, कारमंडल के किनारे तथा बिहार में अधिकता से होता है और राजपूताने में भी कहीं कहीं पाया जाता है ।
विशेष-यह पेड़ 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है और पत्तेवाली सींक प्रायः 8 इंच से 1 फुट तक लंबी होती है, और कहीं कहीं सींकों की लंबाई 2-3 फुट तक होती है । सींकों पर आउ से चौदह जोड़े समर्वती पत्ते होते हैं। इसके फूल बड़े और कुछ पीले होते हैं। फलियां तांबे के रंग की, दी इंच लंबी तथा चौथाई इंच चौड़ी, गोल, दोनों ओर नुकीली और जड़ की ओर ऐंठी सी रहती हैं। पेड़ की छाल सफेद रंग की होती है और गुण भी सोनापाठा— '1' के समान ही है।
पर्या०— टुंटुंक । दीर्घवृंत । टिटुक । कीरनाशन । पूतिवृक्ष । पूतिनारा । भूतिपुष्पा । मुनिद्रुम आदि ।
Source : http://ayurvedamkuk.weebly.com/2358238123512379234423662325230923522354236923352369233923812335236923252360237923442366-234623662336236623092352233723702358236823502352235023.html
THURSDAY, MAY 22, 2014
पीलिया की बेहतरीन दवाई
श्योनक की छाल को 25 ग्राम लेकर मिट्टी के बर्तन में रात को भिगो दें, सुबह उसको खूब मसल कर छानकर रख लें, पहले रोगी को एक मटर के दाने बराबर देशी कपूर की गोली बना कर निगलवा दें! उसके बाद श्योनक की छाल के छाने रस को पीला दें! सिर्फ़ 5 दिन में पीलिया भाग जाएगा! ऐसा आयुर्वेद में उल्लेख मिलता है! श्योनक की छाल आयुर्वेद के समान बेंचने वालों की दुकान पर आसानी से मिल जाएगी!
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श्योनाक
श्योनाक का पेड़ ज्यादा ऊंचा नहीं होता . यह पहाडी क्षेत्रों में पाया जाता है . इसे सोना पाठा और टोटला भी कहते हैं . कोई कोई इसे अरलू भी कहते हैं . यह दशमूल का मुख्य घटक है। Periods में या delivery के बाद इसकी छाल का काढ़ा लेने से गर्भाशय ठीक रहता है . इसकी लकड़ी का खोखला गिलास जैसा बर्तन लें . रात को इसमें 200-300 ml पानी भर दें . इसे सवेरे सवेरे पीयें। इससे लीवर ठीक होता है। S.G.O.T. और S.G. P. T. आदि normal हो जाते हैं . पहाड़ों में तो इस पानी से मलेरिया तक ठीक किया जाता है।
पीलिया हो तो इसकी ताज़ी छाल लेकर (बच्चा है तो 4-5 ग्राम बड़ा है तो 10-12 ग्राम ) कूटकर मिटटी के बर्तन में रात को 200 ml पानी में भिगो दें . सवेरे मूंग जितना खाने वाला कपूर खिलाकर ये पानी पिला दें . यह प्रयोग तीन दिन करें। ध्यान रहे श्योनाक अधिक मात्रा में ली तो खुजली हो सकती है और कपूर अधिक मात्रा में लिया तो चक्कर आ सकते हैं।
Hepatitis-B या C होने पर श्योनाक +भूमि आंवला +पुनर्नवा (साठी) का रस लेते रहें . ये बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं.
Delivery के बाद uterus में infections न हों और यह अपनी पहली अवस्था में आ जाए ; इसके लिए 2 ग्राम श्योनाक +1 ग्राम सौंठ +2-3 ग्राम गुड का काढ़ा पीयें . इससे भूख भी ठीक हो जाती है।
खांसी होने पर इसकी सूखी छाल का पावडर आधा ग्राम और सौंठ एक ग्राम लें और सवेरे शाम शहद से चटाएं. Arthritis अर्थराइटिस होने पर 2 ग्राम श्योनाक की छाल और 2 ग्राम सौंठ का काढ़ा पीयें।
कान में दर्द हो तो इसकी 100 ग्राम छाल कूटकर 100 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं। जब केवल तेल रह जाए तो शीशी में भर कर रख लें . इसे दो - दो बूँद कान में डालें।
बौद्ध धर्म में इस वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है। इसकी फली के सुंदर कोमल बीजों की माला तिब्बत के सभी घरों में मिल जायेंगी . उनका विश्वास है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
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सोनापाठा
Sword fruit tree, Indian trumpet tree
परिचय: सोनापाठा के पेड़ भारत के पश्चिमी सूखे प्रदेशों को छोड़कर अक्सर सभी जगह पाये जाते हैं। सोनापाठा की जड़ की छाल का इस्तेमाल बृहत पंचमूल में किया जाता हैं। यह पंसारियों के यहां मिलती है। सोनापाठा के पेड़ 15-25 फुट तक ऊंचे होते हैं, यदि परिस्थितियां अनुकूल और उपयुक्त हो तो बकायन की तरह 50 फुट तक के पेड़ भी देखे जाते हैं। कुछ प्रदेशों में एलेनटस एक्सलसा घोड़ानिम्ब का इस्तेमाल अरलू या श्योना की जगह करते हैं, परन्तु वास्तव में घोड़ानिम्ब दूसरी जाति का पौधा है। यहां पर जो विवरण दिया जा रहा है जिसे लैटिन में ओरोजाइलम इनडीकम कहते हैं।
विभिन्न भाषाओं मे नाम:
हिंदी में सोनापाठा
संस्कृत में टुण्टुक, श्योनाक, शुकनास
गुजराती में अरडूसो
मराठी में टेंटू
बंगाली में सोनालू, शोणा
देहरादून में तारलू
तैलगु में पैद्दामानु
पंजाबी में मुलिन
वैज्ञानिक नाम ओरोक्सीलम इनडीकम (एल) वेन्ट
स्वरूप: इसके पेड़ पर्णपाती तथा मीडियम ऊंचाई के होते हैं। सोनापाठा की पत्तियां 3-5 इंच लम्बी, 2 से साढे 3 इंच चौड़ी, लट्वाकार, लम्ब्राग और चिकनी तथा पत्रनाल और पत्रदंड पर दाने पड़े होते हैं। इसकी पत्तियां अक्सर त्रिपक्षाकार या 1 पक्षाकार होती है। सोनापाठा का फूल वाहक दंड बहुत लम्बा, फूल बहुत बड़े मांसल बैंगनी रंग के तथा बदबू युक्त होते हैं। सोनापाठा फली तलवार जैसी टेढ़ी चिकनी कठोर ढाई इंच से 1 फीट लम्बी तथा 2 इंच से साढे़ 3 इंच तक चौड़ी होती हैं। बसंत में पेड़ निश्पत्र (बिना पत्तों) का हो जाता है। जिसमें तलवार जैसी फलियां लटकी रहती है। सोनापाठा के पेड़ में गर्मी और बारिश के मौसम में फूल तथा सर्दियों में फल लगते हैं।
रासायनिक संघटन: सोनापाठा की जड़ व तने की छाल में 3 फ्रलेवोन रंजक द्रव्य ओरोक्सीलिन `ए´ बैकेलिन और क्राइसिन होते हैं। इसके अलावा इसमें एक क्षाराभ, टैनिक एसिड, सिटास्टेरोल और ग्लेक्टोज पाये जाते हैं। औषधीय गुणयुक्त पत्ते और बीज, छाल। इसके बीजों में 20 प्रतिशत तक पीले रंग का तेल मिलता है।
गुण-धर्म: सोनापाठा गर्म होने से कफ (बलगम) तथा वात शामक है। इसकी छाल बाहर से लगाने पर सूजन, फोड़े-फुंसिया एवं वेदनाहर है। यह रस में तीखा व गर्म होने के कारण जलन, पाचन, रोचन, भूख को बढ़ाता है तथा कीड़ों को खत्म करता है। इसके अलावा सूजन को दूर करने वाला, मूत्रल, कफ (बलगम) को बाहर निकालने वाला, बुखार दूर करने वाला व कटुपौष्टिक है। यह खासकर कफ व वात से अथवा आंव से होने वाले रोगों में प्रयोग होता है। सामान्य कमजोरी में पेट की गड़बड़ी से होने वाली कमजोरी में इसका उपयोग बहुत गुणकारी है।
विभिन्न रोगो में सहायक:
1. बवासीर: इन्द्रजौं, करंज की छाल, सोनापाठा की छाल, चित्र कमूल, सौंठ, सेंधा नमक इन सब औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर और छानकर बारीक चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को डेढ़ से तीन ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3 बार छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
2. प्रसूति-जन्य दुर्बलता: मासिक स्राव में जिन स्त्रियों को 4-6 दिन तक भयंकर दर्द हो, उनको सोनापाठा की छाल का लगभग आधा ग्राम चूर्ण इतनी ही शुंठी चूर्ण व इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर तीनों को मिलाकर 3 गोलियां बना लें। इन गोलियों को सुबह दोपहर और शाम दशमूल काढ़े के साथ लेने से चमत्कारिक तरीके से सब कष्ट दूर हो जायेंगे। 10-15 दिन तक लगातार देते रहने से स्त्रियों के सब कष्ट व कमजोरी खत्म हो जाती है।
3. मंदाग्नि: सोनापाठा की 20-30 ग्राम छाल को ठंडे या 200 मिलीलीटर गर्म पानी मे 4 घंटे भिगोकर रख दें, बाद में उसे छानकर पी लें, इसको दिन में 2 बार सेवन करने से मंदाग्नि (भूख कम लगना) खत्म हो जाती है।
4. कर्णशूल: सोनापाठा की छाल को पानी के साथ बारीक पीसकर तिलों के तेल में रख लें और तेल में दुगुना पानी मिलाकर मंद (धीमी) आग पर पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब इसको छानकर बोतल में भरकर रख लें, इस तेल की 2-3 बूंदे कान में टपकाने से वात-कफ पित्त से पैदा होने वाला दर्द खत्म हो जाता है।
5. उपदंश: सोनापाठा की बारीक पिसी हुई सूखी छाल के 40 से 50 ग्राम चूर्ण को पानी में 4 घंटे भिगो दे, इसके बाद इसकी छाल को पीस लें तथा छानकर पानी में मिश्री मिलाकर 7 दिन तक सुबह-शाम सेवन करें। पथ्य में गेहूं की रोटी, घी चीनी का सेवन करें। 7 दिन तक नहायें। आठवें दिन नीम के पत्तों के काढ़ें से स्नान करें व परहेज छोड़ दें।
6. मुंह के छाले: मुंह के छाले ठीक हो जाते है-श्योनाक की जड़ की छाल का क्वाथ बनाकर कुल्ले करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते है।
7. श्वास-खांसी:
9. अतिसार:
10. सन्धिवात (गठिया या जोड़ो का दर्द):
11. मलेरिया बुखार:
12. सोनापाठा से पीलिया का विशेष उपचार: 150-200 ग्राम सोनापाठा का ताजा छिलका उतारकर, पीसकर, रात को 1 गिलास पानी में भिगोकर रख लें। सुबह खाली पेट, कपूर की 2 टिक्की का चूर्ण बना कर सेवन कर लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा की छाल वाला पानी छान कर पी लें। इसके 2 घंटे बाद नाश्ता या भोजन लें। रोगी की स्थिति के अनुसार 3 दिन तक इसका सेवन करें।
13. आयु अवस्था के अनुसार प्रयोग विधि: पहले कपूर का चूर्ण पानी में मिला लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा का पानी लें। नाश्ता या भोजन इसको लेने के 2 घंटे बाद करें।
14. दस्त के लिए: सोनापाठा के पेड़ की छाल का कल्क (मिश्रण) को पद्मकेसर को गंभारी और कमल के पत्तों को लपेटकर पुटपाक करके निकला हुआ रस, ठंडा करके शहद के साथ सुबह और शाम पीने से लूज मोशन (दस्त का लगना) बंद हो जाता है।
15. कान का बहना: सोनपत्ता के पेड़ की छाल को पका कर बने हुये तेल को कान साफ करके बूंद-बूंद करकें कान में डालने से कान से मवाद बहना ठीक हो जाती है।
16. कर्णमूल प्रदाह: इरिमेद और सोनापाठा के बीज को एक साथ पीसकर कान की सूजन पर लगाने से कान में आराम आता है।
17. जलने पर: फूल प्रियंगु, खस, पठानी लोध, सुगंधबाला, सनाय और सोनापाठा का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर दारुहल्दी के रस में मिलाकर शरीर पर मलने से जलन बिल्कुल मिट जाती है।
स्रोत: http://www.jkhealthworld.com/hindi/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A4%BE
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सोनापाठा
Sword fruit tree, Indian trumpet tree
परिचय: सोनापाठा के पेड़ भारत के पश्चिमी सूखे प्रदेशों को छोड़कर अक्सर सभी जगह पाये जाते हैं। सोनापाठा की जड़ की छाल का इस्तेमाल बृहत पंचमूल में किया जाता हैं। यह पंसारियों के यहां मिलती है। सोनापाठा के पेड़ 15-25 फुट तक ऊंचे होते हैं, यदि परिस्थितियां अनुकूल और उपयुक्त हो तो बकायन की तरह 50 फुट तक के पेड़ भी देखे जाते हैं। कुछ प्रदेशों में एलेनटस एक्सलसा घोड़ानिम्ब का इस्तेमाल अरलू या श्योना की जगह करते हैं, परन्तु वास्तव में घोड़ानिम्ब दूसरी जाति का पौधा है। यहां पर जो विवरण दिया जा रहा है जिसे लैटिन में ओरोजाइलम इनडीकम कहते हैं।
विभिन्न भाषाओं मे नाम:
हिंदी में सोनापाठा
संस्कृत में टुण्टुक, श्योनाक, शुकनास
गुजराती में अरडूसो
मराठी में टेंटू
बंगाली में सोनालू, शोणा
देहरादून में तारलू
तैलगु में पैद्दामानु
पंजाबी में मुलिन
वैज्ञानिक नाम ओरोक्सीलम इनडीकम (एल) वेन्ट
स्वरूप: इसके पेड़ पर्णपाती तथा मीडियम ऊंचाई के होते हैं। सोनापाठा की पत्तियां 3-5 इंच लम्बी, 2 से साढे 3 इंच चौड़ी, लट्वाकार, लम्ब्राग और चिकनी तथा पत्रनाल और पत्रदंड पर दाने पड़े होते हैं। इसकी पत्तियां अक्सर त्रिपक्षाकार या 1 पक्षाकार होती है। सोनापाठा का फूल वाहक दंड बहुत लम्बा, फूल बहुत बड़े मांसल बैंगनी रंग के तथा बदबू युक्त होते हैं। सोनापाठा फली तलवार जैसी टेढ़ी चिकनी कठोर ढाई इंच से 1 फीट लम्बी तथा 2 इंच से साढे़ 3 इंच तक चौड़ी होती हैं। बसंत में पेड़ निश्पत्र (बिना पत्तों) का हो जाता है। जिसमें तलवार जैसी फलियां लटकी रहती है। सोनापाठा के पेड़ में गर्मी और बारिश के मौसम में फूल तथा सर्दियों में फल लगते हैं।
रासायनिक संघटन: सोनापाठा की जड़ व तने की छाल में 3 फ्रलेवोन रंजक द्रव्य ओरोक्सीलिन `ए´ बैकेलिन और क्राइसिन होते हैं। इसके अलावा इसमें एक क्षाराभ, टैनिक एसिड, सिटास्टेरोल और ग्लेक्टोज पाये जाते हैं। औषधीय गुणयुक्त पत्ते और बीज, छाल। इसके बीजों में 20 प्रतिशत तक पीले रंग का तेल मिलता है।
गुण-धर्म: सोनापाठा गर्म होने से कफ (बलगम) तथा वात शामक है। इसकी छाल बाहर से लगाने पर सूजन, फोड़े-फुंसिया एवं वेदनाहर है। यह रस में तीखा व गर्म होने के कारण जलन, पाचन, रोचन, भूख को बढ़ाता है तथा कीड़ों को खत्म करता है। इसके अलावा सूजन को दूर करने वाला, मूत्रल, कफ (बलगम) को बाहर निकालने वाला, बुखार दूर करने वाला व कटुपौष्टिक है। यह खासकर कफ व वात से अथवा आंव से होने वाले रोगों में प्रयोग होता है। सामान्य कमजोरी में पेट की गड़बड़ी से होने वाली कमजोरी में इसका उपयोग बहुत गुणकारी है।
विभिन्न रोगो में सहायक:
1. बवासीर: इन्द्रजौं, करंज की छाल, सोनापाठा की छाल, चित्र कमूल, सौंठ, सेंधा नमक इन सब औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर और छानकर बारीक चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को डेढ़ से तीन ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3 बार छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
2. प्रसूति-जन्य दुर्बलता: मासिक स्राव में जिन स्त्रियों को 4-6 दिन तक भयंकर दर्द हो, उनको सोनापाठा की छाल का लगभग आधा ग्राम चूर्ण इतनी ही शुंठी चूर्ण व इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर तीनों को मिलाकर 3 गोलियां बना लें। इन गोलियों को सुबह दोपहर और शाम दशमूल काढ़े के साथ लेने से चमत्कारिक तरीके से सब कष्ट दूर हो जायेंगे। 10-15 दिन तक लगातार देते रहने से स्त्रियों के सब कष्ट व कमजोरी खत्म हो जाती है।
3. मंदाग्नि: सोनापाठा की 20-30 ग्राम छाल को ठंडे या 200 मिलीलीटर गर्म पानी मे 4 घंटे भिगोकर रख दें, बाद में उसे छानकर पी लें, इसको दिन में 2 बार सेवन करने से मंदाग्नि (भूख कम लगना) खत्म हो जाती है।
4. कर्णशूल: सोनापाठा की छाल को पानी के साथ बारीक पीसकर तिलों के तेल में रख लें और तेल में दुगुना पानी मिलाकर मंद (धीमी) आग पर पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब इसको छानकर बोतल में भरकर रख लें, इस तेल की 2-3 बूंदे कान में टपकाने से वात-कफ पित्त से पैदा होने वाला दर्द खत्म हो जाता है।
5. उपदंश: सोनापाठा की बारीक पिसी हुई सूखी छाल के 40 से 50 ग्राम चूर्ण को पानी में 4 घंटे भिगो दे, इसके बाद इसकी छाल को पीस लें तथा छानकर पानी में मिश्री मिलाकर 7 दिन तक सुबह-शाम सेवन करें। पथ्य में गेहूं की रोटी, घी चीनी का सेवन करें। 7 दिन तक नहायें। आठवें दिन नीम के पत्तों के काढ़ें से स्नान करें व परहेज छोड़ दें।
6. मुंह के छाले: मुंह के छाले ठीक हो जाते है-श्योनाक की जड़ की छाल का क्वाथ बनाकर कुल्ले करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते है।
7. श्वास-खांसी:
- •1 ग्राम सोनापाठा की छाल के चूर्ण को अदरक के रस व शहद के साथ चटाने से खांसी में आराम मिलता है।
- •सोनपाठा की गोंद के 2 ग्राम चूर्ण को थोड़ा-थोड़ा दूध के साथ सेवन करने से खांसी और दमा रोग खत्म होता है।
9. अतिसार:
- •सोनापाठा की छाल और कुटज की छाल का 2 चम्मच रस रोगी को पिलाने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाता है।
- •सोनापाठा के जड़ की छाल और इन्द्रजौ के पत्तों को पीसकर प्राप्त रस में मोच का रस मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में रोगी को चटाने से अतिसार (दस्त) और आमातिसार (साधारण दस्त) खत्म हो जाते हैं।
- •सोनापाठा की छाल व पत्तों को बारीक पीसकर गोली बनाकर उसके ऊपर बरगद के पत्ते लपेट कर मिट्टी के बर्तन डाल दें। जब मिट्टी पककर लाल हो जाये तब इसको निकाल कर ठंडा होने पर दबाकर रस निकाल लें। इस रस में से 20 मिलीलीटर रस सुबह-शाम पीने से ज्यादा दिनों का खूनी दस्त आदि में आराम आता है।
- •सोनापाठा की गोंद के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को थोड़ा दूध के साथ रोगी को खिलाने से आमअतिसार (साधारण दस्त) खत्म हो जाते हैं।
10. सन्धिवात (गठिया या जोड़ो का दर्द):
- •आमवात (जोड़ों के दर्द) तथा वात प्रधान रोगों में सोनापाठा की जड़ व सौंठ का फांट बनाकर दिन में 3 बार 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से लाभ होता है।
- •सोनापाठा की छाल के चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक की मात्रा में दिन में 3 बार रोज सेवन करने से तथा सोनापाठा के पत्तों को गर्म करके सन्धियों (जोड़ो) पर बांधने से संधिवात (जोड़ों के दर्द) में बहुत लाभ होता है।
11. मलेरिया बुखार:
- •सोनापाठा की लकड़ी का छोटा सा प्याला बना लें, रात को इसमें पानी रख लें और सुबह के समय उठकर उस पानी को पी लें। इस प्रयोग से नियतकालिक बुखार, एकान्तरा, तिजारी, चौथियां इत्यादि सब तरह के बुखारों का नाश होता है।
- •सोनापाठा, शुंठी, बेल के फल की गिरी, अनारदाना, अतीस इन सब द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर यवकूट कर लें। इसमें से 10 ग्राम औषधि, आधा किलोग्राम पानी में उबालें, 125 मिलीलीटर पानी जब बच जाये तब इसे छानकर सुबह, दोपहर तथा शाम रोगी को पिलाने से सब तरह के बुखार व अतिसार (दस्त) नष्ट हो जाते हैं।
12. सोनापाठा से पीलिया का विशेष उपचार: 150-200 ग्राम सोनापाठा का ताजा छिलका उतारकर, पीसकर, रात को 1 गिलास पानी में भिगोकर रख लें। सुबह खाली पेट, कपूर की 2 टिक्की का चूर्ण बना कर सेवन कर लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा की छाल वाला पानी छान कर पी लें। इसके 2 घंटे बाद नाश्ता या भोजन लें। रोगी की स्थिति के अनुसार 3 दिन तक इसका सेवन करें।
13. आयु अवस्था के अनुसार प्रयोग विधि: पहले कपूर का चूर्ण पानी में मिला लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा का पानी लें। नाश्ता या भोजन इसको लेने के 2 घंटे बाद करें।
14. दस्त के लिए: सोनापाठा के पेड़ की छाल का कल्क (मिश्रण) को पद्मकेसर को गंभारी और कमल के पत्तों को लपेटकर पुटपाक करके निकला हुआ रस, ठंडा करके शहद के साथ सुबह और शाम पीने से लूज मोशन (दस्त का लगना) बंद हो जाता है।
15. कान का बहना: सोनपत्ता के पेड़ की छाल को पका कर बने हुये तेल को कान साफ करके बूंद-बूंद करकें कान में डालने से कान से मवाद बहना ठीक हो जाती है।
16. कर्णमूल प्रदाह: इरिमेद और सोनापाठा के बीज को एक साथ पीसकर कान की सूजन पर लगाने से कान में आराम आता है।
17. जलने पर: फूल प्रियंगु, खस, पठानी लोध, सुगंधबाला, सनाय और सोनापाठा का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर दारुहल्दी के रस में मिलाकर शरीर पर मलने से जलन बिल्कुल मिट जाती है।
स्रोत: http://www.jkhealthworld.com/hindi/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0%E0%A4%BE
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परामर्श समय : 10 AM से 10 PM के बीच। Mob & Whats App No. : 9875066111
Please Do not take any (kind of) suggested medicine, without consulting your doctor.
कृपया अपने चिकित्सक के परामर्श के बिना, सुझाई गयी (किसी भी प्रकार की) दवा का सेवन नहीं करें।
निवेदन : रोगियों की संख्या अधिक होने के कारण, आपको इन्तजार करना पड़ सकता है। कृपया धैर्यपूर्वक सहयोग करें।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-9875066111.
Request: Due to the high number of patients, you may have to wait. Please patiently collaborate.--Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'-9875066111
उपशीर्षक:
Hepatitis,
Oroxylum indicum,
Sword fruit tree,
अर्थराइटिस,
टाटबडंगा,
पीलिया,
श्योनाक,
सौंठ
Sunday, September 11, 2016
Hindi : द्रोणपुष्पी
English Name : Spider Wort
B. Name : Leucas Cephalotes
English Name : Spider Wort
B. Name : Leucas Cephalotes
शॉर्ट नोट्स
- 1. द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है।
- 2. यह विषहर है। हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है। सांप जहर नाशक।
- 3. आयुर्वेदिक मतानुसार द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है।
- 4. एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है। इसे रक्तशोधक माना जाता हैै।
- 5. लीवर ठीक न हो, SGOT, SGPT आदि बाधा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें।
- 6-त्रिदोषनाशक: वात, पित्त और कफ तीनों दोषों का नाशक है।
- 7. साइनस/Sinus या पुराना सिरदर्द है, तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार-चार बूँद नाक में डालें। यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है।
- 8. सूखा रोग खासकर छोटे बच्चों को होता है। गुम्मा (द्रोणपुष्पी) के टहनी या पत्ते को पीस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करें। इससे सूखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है।
द्रोणपुष्पी एलर्जी और सर्पविष की रामबाण औषधी
Posted in Daily Healthy Tips,
Education By Dr. D K Goyal On May 30, 2016
द्रोणपुष्पी (एलर्जी और सर्पविष की अचूक दवा)
द्रोणपुष्पी का पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। यह एक से डेढ़ फुट तक का होता है। द्रोण का अर्थ है दोना। इसके पुष्प दोने के आकार के होते हैं।इसको गुम्मा भी कहते हैं। देखने में ऐसा लगता है, मानो पौधे के ऊपर नन्हा गुम्बद रखा हो और गुम्बद में से नन्हें पुष्प निकल रहे हों। यह विषहर है।हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है। ऐसा माना जाता है कि सांप के काटने से बेहोश हुए व्यक्ति की नाक में अगर इसकी पत्तियों का रस डाला जाए, तो उसकी बेहोशी टूट जाती है।
द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 30 से 90 सेमी होती है और टहनी रोमों से युक्त होती है। इसके पत्ते तुलसी के पत्तों के समान 2.5 से 5 सेमी लंबे और 2.5 सेमी चौडे़ होते हैं। द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है। द्रोण (प्याला) के फूल होने के कारण इसका नाम द्रोणपुष्पी है। इसका फल हरा व चमकीला होता है। सर्दी के मौसम में इसमें फूल और बसन्त के सीजन में फल आते हैं। इसकी कई जातियां होती हैं।
आयुर्वेदिक मतानुसार द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है। यह वात, पित्त, कफ को नष्ट करती है तथा बुखार, रक्तविकार, सर्पविष और पाचन संस्थान के रोगों में उपयोगी है। इसके अतिरिक्त सिर दर्द, पीलिया, खुजली, सर्दी, खांसी, यकृत, प्लीहा आदि रोगों में भी गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार द्रोणपुष्पी गर्म प्रकृति की और खुश्क होती है। यह सांप के जहर, पीलिया, कफज बुखार, पेट के कीड़े तथा कब्ज आदि रोगों को दूर करती है। वायु और कफ को मिटाना इसका खास गुण है।
वैज्ञानिक मतानुसार द्रोणपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर फूलों में एक उड़नशील, सुगंधित तेल और एल्कोलाइड की उपस्थिति का पता चलता है। इनके बीजों से थोड़ी मात्रा में स्थिर तेल मिलता है। इसका असर बलगम हटाने, कीड़ों का दूर करने वाला, उत्तेजक, विरेचक (दस्तावर) होता है।
Eczema/एग्जीमा, एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है. यह रक्तशोधक माना जाता है. अगर त्वचा की कोई परेशानी है, सांप के जहर का असर है, कोई विषैला कीड़ा काट गया है, या Skin/ स्किन पर Allopathy/एलोपैथी की दवाइयों का Reaction/रीएक्शन हो गया है; तो इसके 5 ग्राम पंचांग में 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलाकर, दो गिलास पानी में उबाल लें। जब आधा गिलास बच जाए तो पी लें। ये कुछ दिन सुबह शाम लें।
Sinus/साईनस या पुराना सिरदर्द है तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार चार बूँद नाक में डालें. यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है। पुराना बुखार हो तो इसकी दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पीयें।
लीवर ठीक न हो, SGOT, SGPT आदि बढा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें।
लीवर ठीक न हो, SGOT, SGPT आदि बढा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें।
Infection/इनफेक्शन या कैंसर जैसी समस्याओं के लिए ताज़ी द्रोणपुष्पी+भृंगराज+देसी बबूल की पत्तियों का रस या काढ़ा पीयें। डाक्टरों के निर्देशन में अन्य दवाइयों के साथ भी इसे ले सकते हैं। इससे चिकित्सा में जटिलता कम होंगी।
शरीर में Chemicals/कैमीकल्स का जहर हो, Toxins/टोक्सिंस हों या एलर्जी हो तो इसके पंचांग का 2-3 ग्राम का काढ़ा ले सकते हैं। विभिन्न एलर्जी और बीमारियों को दूर करने के लिए द्रोणपुष्पी का सत भी लिया जा सकता है।
शरीर में Chemicals/कैमीकल्स का जहर हो, Toxins/टोक्सिंस हों या एलर्जी हो तो इसके पंचांग का 2-3 ग्राम का काढ़ा ले सकते हैं। विभिन्न एलर्जी और बीमारियों को दूर करने के लिए द्रोणपुष्पी का सत भी लिया जा सकता है।
सत बनाने की विधि :
इसका सत बनाने के लिए, इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटों के लिए रख दें। इसके बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए Residue/अवशेष को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें। तीन चार दिन बाद यह सूखकर पावडर बन जाएगा। इसे द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं। इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं। और अगर कोई व्याधि नहीं है, तब भी यह लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं, प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है।
1. खुजली: द्रोणपुष्पी के ताजा रस को खुजली वाली जगह पर मलने से राहत मिलती है। खाज-खुजली होने पर द्रोणपुष्पी का रस जहां पर खुजली हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
2. सर्पविष: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में 2 कालीमिर्च पीसकर मिलाएं। इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार रोगी को पिलायें या रोगी की आंखों में इसके पत्तों का रस 2-3 बूंद रोजाना 4-5 बार डालें। इससे जहर का असर खत्म हो जाता है।
3. शोथ (सूजन): द्रोणपुष्पी और नीम के पत्ते के छोटे से भाग को पीसकर सूजन पर गर्म-गर्म लेप लगाने से आराम मिलता है।
4. खांसी: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
5. संधिवात: द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में इतना ही पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।
6. सिरदर्द: द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और इसमें 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से दर्द में आराम मिलता है।
7. पीलिया: द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
8. सर्दी: द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।
9. बुखार: 2 चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।
10. श्वास, दमा: द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।
11. यकृत (जिगर) वृद्धि: द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।
12. दांतों का दर्द: द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद तथा तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दांतों का दर्द ठीक होता है।
13. खांसी: 3 ग्राम द्रोणपुष्पी के रस में 3 ग्राम बहेड़े के छिलके का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी का रोग ठीक हो जाता है।
14. विषम-ज्वर: गुम्मा या द्रोणपुष्पी की टहनी या पट्टी को पीस कर पुटली बनाले और उसे बाए हाथ के नाड़ी पर कपड़ा के सहयोग से बाँध दे। इसे रोगी का ज्वर बहुत ही जल्द ठीक हो जाता है ।
15. सूखा रोग में: सुखा रोग ख़ास कर छोटे बच्चों को होता है। गुम्मा के टहनी या पत्ते को पीस कर शुद्ध घी में आग पर पक्का ले और ठंडा होने के बाद इस घी से बच्चे के शरीर पर मालिश करे। इस से सूखा रोग बहुत ही जल्द दूर हो जाता है ।
साँप के काटने पर :- किसी भी व्यक्ति को कितना भी जहरीला साँप क्यों न काटा हो उसे द्रोणपुष्पी के पत्ते या टहनी को खिलाना चाहिए या इसके 10 से 15 बून्द रस पिला देना चाहिए । अगर वयक्ति बेहोश हो गया हो तो गुम्मा (द्रोणपुष्पी ) के रस निकाल कर उसके कान , मुँह और नाक के रास्ते टपका दे ।इसे व्यक्ति अगर मरा नही हो तो निश्चित ही ठीक हो जाएगा ।ठीक होने के बाद उसे कुछ घण्टे तक सोन न दे ।
हानिकारक प्रभाव : ठण्डी प्रकृति वालों के लिए द्रोणपुष्पी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
मात्रा : द्रोणपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण 5 से 10 ग्राम। रस 10 से 20 मिलीलीटर।
Source : http://dkgoyal.com/%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A3%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%80-leucas-cephalotes/
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Monday, 9 March 2015
Thumbai Poo | Plant Health Benefits & Medicinal Uses: Home Remedy For Insect Bites & Skin Diseases
Thumbai is a small plant that grows wildly in abundance. It's botanical name is Leucas Aspera and it is found all over India extensively (बड़े पैमाने पर) . It is called dronapushpi (द्रोणपुष्पी) in Sanskrit, darunaphula in Bengali, goma madhupati in Hindi and Kubo in Sindhi. You can spot thumbai easily because of it's beautiful white flowers and it is also the best way to identify this plant. Both the flowers and leaves are used in home remedies. Here in Tamil Nadu, you can easily get thumbai plant, if you visit any village. It is hard to get thumbai plant in nurseries, but you can easily grow it in small pots with the seeds and they look really beautiful. In our village side thumbai is used extensively in home remedies and we use it for cooking too. This plant is the best medicine for insect bites and it is even used for treating snake bites! Thumbai juice is given to the patient who is bitten by a snake and the juice is also rubbed on the bitten area and this is done once every 30 minutes. This treatment is still carried on in many villages, but it is best done under the supervision of an experienced person. I wanted to write this treatment because usually these kinds of treatments might save lives during an emergency, if medical help is not available immediately. Since this plant is found very commonly in our village, if anyone gets bitten by small insects, they just collect the leaves and rub it on a stone to get a paste and then apply on the affected area. Usually the pain will subside very quickly and with regular application the pain will be completely gone. Since this plant is edible, you can safely take the juice of this plant without any side effects. When having oil bath during winter season, people who are suffering from sinus problems might get a headache. But when oil is heated along with thumbai flowers, they will not have any of the problems at all. A reader of this blog was asking me remedies for noise in the ears. If it is caused due to infection, thumbai oil will treat it very effectively. I have to mention this plants effect on skin diseases. If you are suffering from any skin diseases that causes intense itching and hardening of the skin, try applying the crushed thumbai leaves on that area. With regular use, you will get good relief. Consuming the juice along with the external application will speed up the healing process....
1. Thumbai Oil For Oil Bath & Noise In The Ear :
If you are suffering from sinusitis and if this problem is keeping you from having oil bath, try the oil made with thumbai flowers. To make the oil, heat unrefined sesame oil in a small pan along thumbai flowers in a low flame. Fry till the flowers are cooked well and strain, use this oil for having oil massage. This oil also prevents sinus headaches. A drop of this oil in each ear will prevent the noise in the ears that I mentioned earlier.
2. For Insect Bites & Skin Diseases:
Take the leaves of the plant and pound it as finely as you can in a mortar and pestle and apply it as a poultice over the affected area. Take a thin cotton cloth and tie it over the poultice to prevent it from falling down and also make sure not to add any water or very little water while pounding the plant.
3. Thumbai Juice:
To make the juice, take the leaves and grind it to a smooth paste along with little-boiled water. Take around 1 tbsp of the juice for 3 days in an empty stomach daily to speed up the healing process. This juice also can be applied to skin problems. This juice also removes intestinal worms (आंत के कीड़े).
NOTES: Always try to make the preparations with fresh herb.
Thumbai poultice is very very effective and if you are suffering from skin diseases, please give it a try. You can also grind the paste using a mixer.
You can also add few drops of honey to the juice, if you find it difficult to drink it as it is.
Source : http://www.wildturmeric.net/2015/03/thumbai-poo-plant-health-benefits-medicinal-uses.html
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Dronpushpi: बेहद गुणकारी है द्रोणपुष्पी- Acharya Balkrishan Ji (Patanjali)
- आचार्य श्री बालकृष्ण
- जुलाई 24,2018
- 0 comment
वानस्पतिक नाम : Leucas cephalotus (Roth) Spreng. (ल्युकस सिफॅलोटुस)
Syn-Phlomis cephalotes Roth
कुल : Lamiaceae (लेमिएसी)
अंग्रेज़ी नाम : Thumbe (थम्बे)
संस्कृत-द्रोणपुष्पी, फलेपुष्पा, पालिंदी, कुंभयोनिका, द्रोणा; हिन्दी-गूमाडलेडोना, गोया, मोरापाती, धुरपीसग; कन्नड़-तुम्बे (Tumbe); गुजराती-दोशिनाकुबो (Doshinokubo), कुबो (Kubo), कुबी (Kubi); मराठी-तुम्बा (Tumba), देवखुम्बा (Devkhumba), शेतवाद (Shetvad);पंजाबी-छत्रा (Chatra), गुल्डोडा (Guldoda), मलडोडा (Maldoda); तमिल-कोकरातासिल्टा (Kocaratacilta), नेयप्पीरक्कू (Neyppirkku); तेलुगु-पेड्डातुम्नी (Peddatumni), तुम्मी (Tummi); बंगाली-घलघसे (Ghalghase), बराहलकसा (Barahalkasa); नेपाली-सयपत्री (Syapatri); मलयालम-तुम्बा (Tumba); राजस्थानी-उडापता (Udapata), निडालू कुबी (Nidalu kubi)।
परिचय
यह विश्व में भूटान एवं अफगानिस्तान में पाया जाता है। भारत के हिमालय क्षेत्रों में यह 1800 मी की ऊचाँई तथा पंजाब, बंगाल, आसाम, गुजरात एवं चेन्नई में 900 मी की ऊँचाई पर खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसके पुष्प द्रोण (दोना या प्याला) के सदृश होते हैं, इसलिए इसे द्रोणपुष्पी कहा जाता है। इसकी कई प्रजातियां होती हैं।
यह 60-90 सेमी ऊँचा, सीधा अथवा विसरित, बहुशाखित, खुरदरा, प्रबल, रोमश, वर्षायु शाकीय पौधा होता है। इसका काण्ड तथा इसकी शाखाएँ कुंठाग्र, चतुष्कोणीय, दृढ़रोमी अथवा रोमश होती हैं। इसके पत्र सरल, लगभग वृंतहीन, 3.8-7.5 सेमी लम्बे, 1.3-2.5 सेमी व्यास के, अण्डाकार अथवा अण्डाकार-भालाकार, अल्प रोमश, स्वाद में कड़वे तथा गंधयुक्त होते हैं। इसके पुष्प छोटे, श्वेत वर्ण के, वृंतहीन, बृहत्, गोलाकार, सघन, अंतस्थ अथवा कक्षीय चक्करों में, 2.5-5 सेमी व्यास के होते हैं। फल 3 मिमी लम्बे, अण्डाकार, भूरे वर्ण के एवं चिकने होते हैं। बीज छोटे, चिकने, भूरे वर्ण के होते हैं। इसकी मूल श्वेत रंग की तथा स्वाद में चरपरी होती है। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से दिसम्बर तक होता है।
उपरोक्त वर्णित द्रोणपुष्पी के अतिरिक्त इसकी निम्नलिखित प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है।
- 1. Leucas aspera (Willd.) Link (द्रोणकपुष्पी)-
- 2. Leucas zeylanica Br (क्षुद्र द्रोणपुष्पी)- यह 50-60 सेमी ऊँचा, एकवर्षायु, छोटा शाकीय पौधा है। इसकी काण्ड एवं शाखाएं चतुष्कोणीय होती है। पत्तियां रेखाकार, भालाकार, 1-4 मिमी लम्बे वृन्त वाली एवं रोमश होती है। शाखाओं के अग्र भाग पर गुच्छों में श्वेत वर्ण के पुष्प आते हैं। फल आयताकार, त्रिकोणीय एवं चक्करदार होते हैं। यह उत्तेजक, आमवातरोधी एवं प्रशामक होता है। इसका प्रयोग अरूचि, आध्मान, शूल, विषम ज्वर, ज्वरजन्य अजीर्ण तथा उदरकृमियों की चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव
द्रोणपुष्पी मधुर, कटु, लवण, उष्ण, गुरु, लघु, तीक्ष्ण, वातपित्तकारक, कफशामक, पथ्य, भेदन, मेध्य तथा रुचिकारक होती है।
यह आमदोष, कामला, शोफ, तमक-श्वास, कृमि, ज्वर, कास, तथा अग्निमांद्य नाशक है।
इसका पञ्चाङ्ग कृमिघ्न, स्वेदजनन, विरेचक, उत्तेजक, श्वसनिका शोथ, कामला, शोथ, श्वासकष्ट, अजीर्ण, पक्षाघात, जीर्ण ज्वर तथा त्वग्रोग नाशक होता है।
इसके पुष्प तथा पत्र कटु, तापजनन, पित्तशामक, वातानुलोमक, पाचक, कृमिघ्न, शोथघ्न, आतर्वजनक, ज्वरघ्न, कफनिसारक,
जीवाणुनाशक, शोधक तथा स्वेदजनक होते हैं।
पुष्प तथा काण्ड से प्राप्त सत् श्लीपद नाशक क्रिया प्रदर्शित करते हैं।
इसके पञ्चाङ्ग का मेथेनॉल-सार परखनलीय परीक्षण में अनॉक्सीकारक क्रियाशीलता एवं जैविकीय परीक्षण में वेदनाशामक एवं शोथहर क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि
- शिरशूल-द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस का मस्तक पर लेप लगाने व नस्य देने से शिरशूल का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग को पीसकर उसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मस्तक पर लगाने से शिरशूल का शमन होता है।
- प्रतिश्याय-द्रोणपुष्पी का क्वाथ बनाकर बफारा देने से या क्वाथ से स्नान करने पर प्रतिश्याय में लाभ होता है।
- 10 मिली गूमा पत्र-स्वरस में समभाग आर्द्रक-स्वरस तथा शहद मिलाकर पिलाने से प्रतिश्याय का शमन होता है।
- 5-10 ग्राम द्रोणपुष्पी पत्र में समभाग वनफ्शा तथा मुलेठी चूर्ण मिलाकर, क्वाथ बनाकर 10-30 मिली क्वाथ में मिश्री मिलाकर पीने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।
- नेत्ररोग-द्रोणपुष्पी को तण्डुलोदक से पीसकर (1-2 बूंद मात्रा में) नस्य लेने से नेत्र पटलगत रोग तथा नेत्रों में अञ्जन करने से पीलिया का शमन होता है।
- कास-5 मिली द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में समभाग शहद मिलाकर पीने से कास (खांसी) तथा प्रतिश्याय (जुकाम) में लाभ होता है।
- अजीर्ण-द्रोणपुष्पी के पत्रों का शाक बनाकर सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है।
- कामला-द्रोणपुष्पी स्वरस का अंजन तथा नस्य करने व 5 मिली स्वरस में समभाग शहद मिलाकर पीने से कामला में लाभ होता है।
- 5-10 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में 500 मिग्रा काली मरिच का चूर्ण तथा सेंधानमक मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पांडु कामला में लाभ होता है।
- यकृत्प्लीहा-विकार-द्रोणपुष्पी मूल चूर्ण में चतुर्थांश पिप्पली चूर्ण मिलाकर 1-2 ग्राम मात्रा में सेवन करने से यकृत्प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
- संधिशूल-द्रोणपुष्पी का फाण्ट बनाकर परिषेचन करने से संधिशूल का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग क्वाथ (10-30 मिली) में पिप्पली चूर्ण (1-2 ग्राम) मिलाकर पिलाने से संधिवात का शमन होता है।
- रोमकूपशोथ-द्रोणपुष्पी पत्र भस्म को अश्व मूत्र में मिलाकर, लेप करने से रोमकूप शोथ का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी पत्र स्वरस या कल्क का लेप करने से व्रण, दाह, पामा तथा कण्डु का शमन होता है।
- अनिद्रा-10-20 मिली द्रोणपुष्पी बीज क्वाथ का सेवन करने से नींद अच्छी आती है।
- योषापस्मार-द्रोणपुष्पी का फाण्ट बनाकर स्नान करने से योषापस्मार में लाभ होता है।
- विषमज्वर-5 मिली द्रोणपुष्पी पत्र-स्वरस में 1 ग्राम काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से मलेरिया व पत्र-स्वरस का अञ्जन करने से ज्वर में लाभ होता है।
- 10-30 मिली पञ्चाङ्ग क्वाथ का सेवन करने से विषमज्वर में लाभ होता है।
- पत्रों का पुटपाक-विधि से रस निकालकर 5-10 मिली रस में लवण मिलाकर पिलाने से ज्वर में लाभ होता है।
- स्नायविक-विकार-द्रोणपुष्पी पत्र-क्वाथ का सेवन करने से स्नायविक विकारों का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी क्वाथ को स्नान व स्वेदन करने से ज्वर में लाभ होता है।
- 10-30 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में पित्तपापडा चूर्ण 5 ग्राम, नागरमोथा चूर्ण 5 ग्राम तथा चिरायता चूर्ण 5 ग्राम मिलाकर, पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
- द्रोणपुष्पी के पत्रों को पीसकर शरीर पर मलने से ज्वरजन्य दाह का शमन होता है।
- वातविकार-10 मिली द्रोणपुष्पी स्वरस में मधु मिलाकर पिलाने से वातविकारों का शमन होता है।
- विषम-ज्वर-द्रोणपुष्पी पञ्चाङ्ग में पित्तपापड़ा, सोंठ, गिलोय तथा चिरायता को समभाग मिलाकर क्वाथ बना लें। 10-30 मिली क्वाथ को पीने से विषम ज्वर में लाभ होता है।
- वृश्चिक-दंश-द्रोणपुष्पी के पत्रों को पीसकर दंश स्थान पर लगाने से वृश्चिक दंशजन्य-विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
प्रयोज्याङ्ग :पञ्चाङ्ग, पत्र, मूल एवं बीज।
मात्रा :स्वरस 5-10 मिली। क्वाथ 10-30 मिली या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
https://www.1mg.com/hi/patanjali/dronpushpi-benefits-in-hindi/
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द्रोणपुष्पी-JK HealthWorld
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द्रोण पुष्पी
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Saturday, September 10, 2016
--->--->श्रीमती जानकी पुरुषोत्तम मीणा जिनका 08 अप्रेल, 2012 को असमय निधन हो गया!
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Yellow Spider Flower
अंकुरित अनाज
अंकुरित गेहूं-Wheat germ
अंकुरित भोजन-Sprouts
अखरोट
अंगूर-Grapes
अचूक चमत्कारिक चूर्ण
अजवाइन
अजवायन
अजीर्ण-Indigestion
अंडकोष
अडूसा (वासा)-Adhatoda Vasika-Malabar nut
अण्डी
अतिबला
अतिसार
अतिसार-Diarrhea
अतृप्त
अतृप्त दाम्पत्य
अत्यंत असहिष्णुता
अदरक
अदरख
अंधश्रृद्धा
अध्ययन
अनिद्रा
अपच
अपराजिता
अपराधबोध
अफरा
अफीम
अमरूद
अमृता
अम्लपित्त-Pyrosis
अरंडी
अरणी
अरण्ड
अरण्डी
अरलू
अरुचि
अरुचि-Anorexia-Distaste
अर्जुन
अर्थराइटिस
अर्द्धसिरशूल
अर्श
अर्श रोग-बवासीर-Hemorrhoids-Piles
अलसी
अल्टरनेथेरा सेसिलिस
अल्सर
अल्सर-Ulcers
अवसाद
अवसाद-Depression
अश्मःभेदः
अश्वगंधा
अश्वगंधा-Winter Cherry
असंतुष्ट
असफल
असर नहीं
असली
अस्थमा
अस्थमा-दमा-Asthma
आइरन
आक
आकड़ा
आघात
आत्महत्या
आंत्र कृमि
आंत्रकृमि-Helminth
आंत्रिक ज्वर-टायफाइड-Typhoid fever
आदिवासी
आधाशीशी
आधासीसी
आंधीझाड़ा-ओंगा-अपामार्ग-Prickly Chalf flower
आमला
आमवात
आमाशय
आयुर्वेद
आयुर्वेदिक
आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेदिक औषधियां
आयुर्वेदिक सीरप-Ayurvedic Syrup
आयुर्वेदिक-Ayurvedic
आरोग्य
आँव
आंव
आंवला
आंवला जूस
आंवला रस
आशावादी-Optimistic
आसन
आसान प्रसव-Easy Delivery
आहार चार्ट
आहार-Food
आॅपरेशन
आॅर्गेनिक
आॅर्गेनिक कौंच
इच्छा-शक्ति
इन्द्रायण
इन्फ्लुएंजा
इमर्जेंसी में होम्योपैथी
इमली-Tamarind Tree
इम्युनिटी
इलाज
इलाज का कुल कितना खर्चा
इलायची
उच्च रक्तचाप
उच्च रक्तचाप-High Blood Pressure-Hypertension
उत्तेजक
उत्तेजना
उदर शूल-Abdominal Haul
उदासी
उन्माद-Mania
उपवास
उम्र
उल्टी
ऊर्जा
एक्जिमा
एक्यूप्रेशर
एग्जिमा
एजिंग-Aging
एंटी ऑक्सीडेंट्स
एंटी-ओक्सिडेंट
एंटीऑक्सीडेंट
एण्टी-आॅक्सीडेंट
एनजाइना
एनीमिया
एमिनो एसिड
एरंड
एलर्जी
एलर्जी-Allergy
एलोवेरा
एलोवेरा जूस
एल्यूमीनियम
ऐंठन
ऐलोपैथ
ऐसीडिटी
ऑर्गेनिक
ओमेगा 3 के स्रोत
ओमेगा-3
ओर्गेनिक
औषध-Drug
औषधि सूची-Drug List
औषधियों के नुकसान-Loss of drugs
कचनार
कचनार-Bauhinia Purpurea
कटुपर्णी
कड़वाहट
कंडोम
कद्दू
कनेर
कपास-COTTON
कपिकच्छू
कपूरीजड़ी
कफ
कब्ज
कब्ज़
कब्ज-कोष्ठबद्धता-Constipation
कब्ज. Cucumber
कब्जी
कमजोरी
कमर
कमर दर्द
कमेड़ा
करेला
कर्ण वेदना
कर्णरोग
कष्टार्तव-Dysmenorrhea
कांच निकलना
काजू
कान
कानून सम्मत
काम
काम शक्ति
कामवाण पाउडर
कामशक्ति
कामशक्ति-Sexual power
कामेच्छा
कामोत्तेजना
कायाकल्प
कार्बोहाइड्रेट
कार्बोहाइड्रेट-Carbohydrates
काला जीरा
काला नमक
काली जीरी
काली तुलसी
काली मिर्च
काले निशान
कास-खांसी-Cough
किडनी
किडनी संक्रमण
किडनी स्टोन
कीड़े
कीमोथेरेपी
कुकरौंधा
कुकुंदर
कुटकी-Black Hellebore
कुबडापन
कुमेड़ा
कुल्थी
कुल्ला
कुष्ट
कुष्ठ
कृमि
केला
केसर
कैफीन-Caffeine
कैलोरी
कैलोरी चार्ट
कैलोरी-Calories
कैवांच
कैविटी
कैंसर
कॉफी
कॉफ़ी
कॉलेस्ट्रॉल
कोंडी घास
कोढ़
कोबरा
कोलेस्ट्रॉल
कोलेस्ट्रॉल-Cholesterol
कोलेस्ट्रोल
कौंच
कौमार्य
क्रियाशीलता
क्रोध
क्षय रोग-Tuberculosis
क्षारीय तत्व
क्षुधानाश
खजूर
खजूर की चटनी
खनिज
खरबूजा-Musk melon
खरेंटी
खरैंटी शिलाजीत
खाज
खांसी
खिरेंटी
खिरैटी
खीप
खीरा
खुजली
खुशी-Joy
खुश्की
खुश्बू
खोया
गंजापन-Baldness
गठिया
गठिया-Arthritis
गठिया-Gout
गड़तुम्बा
गंडा-ताबीज
गंध
गन्ने का रस
गरमा गरम
गर्भ निरोधक
गर्भधारण
गर्भपात
गर्भवती
गर्भवती कैसे हों?
गर्भावस्था
गर्भावस्था की विकृतियां-Disorders of Pregnancy
गर्भावस्था के दौरान संभोग-Sex During Pregnancy
गर्भाशय
गर्भाशय भ्रंश
गर्भाशय-उच्छेदन के साइड इफेक्ट्स-Side Effects of Hysterectomy
गर्म पानी
गर्मी
गर्मी-Heat
गलगण्ड
गाजर
गाजवां
गांठ
गाँठ-Knot
गारंटी
गारण्टेड इलाज
गाल ब्लैडर
गिलोय
गिल्टी
गुड़हल
गुंदा
गुदाद्वार
गुदाभ्रंश
गुम्मा
गुर्दे
गुलज़ाफ़री
गुस्सा
गृध्रसी
गृह-स्वामिनी
गेदुआ की छाछ
गैस
गैस्ट्रिक
गैहूं का जवारा
गोक्षुरादि चूर्ण
गोखरू
गोखरू (LAND CALTROPS)
गोंद कतीरा-Hog-Gum
गोंदी
गोभी-Cabbage
गोरख मुंडी
गोरखगांजा
गोरखबूटी
गोरखमुंडी
ग्रीन-टी
घमोरी
घरेलु नुस्खे
घाघरा
घाव
चकवड़
चक्कर
चपाती
चमत्कारिक सब्जियां
चरित्र
चर्बी
चर्म
चर्म रोग
चर्मरोग
चाय
चाय-Tea
चालीस के पार-Forty Across
चिकनगुनिया
चिकित्सकीय
चिटकन
चिंतित
चिरायता-Absinth
चिरोटा
चुंबन
चोक
चौलाई
छपाकी
छरहरी काया
छाछ
छाजन बूटी
छाले
छींक
छीकें
छुअ
छुआरा
छुहारा
छोटा गोखरू
छोटा धतूरा
छोटी हरड़
जंक फूड
जकवड़
जख्म
जंगली तिल्ली
जंगली तुलसी
जंगली पेड़
जंगली मिर्ची
जंगली-कटीली चौलाई
जटामांसी-Spikenard
जलजमनी
जलन
जलोदर रोग-Ascites Disease
जवारा
जवारे
जवासा-Alhag
जहर
जामुन का जूस
जायफल
जिगर
जीरा
जीवन रक्षक
जीवनी शक्ति
जुएं
जुकाम
जुदाई
जुलाब
जूएं
जूस
जोड़ों के दर्द
जोड़ों में दर्द
जौ
ज्यूस
ज्योति
ज्वर
ज्वर-Fiver
झाइयाँ
झांईं
झाड़-फूंक
झुर्रियाँ
झुर्रियां
झुर्री
झूठे दर्द
टमाटर का रस
टमाटर-Tomatoes
टाइफाइड
टाटबडंगा
टायफायड
टूटी हड्डी
टॉन्सिल
टोटला
ट्यूमर
ठंड
ठंडापन
ठेकेदार डॉक्टर
डकार
डकारें
डायबिटीज
डायरिया
डिग्री फ़ारेनहाइट
डिग्री सेल्सियस
डिजिसेक्सुअल
डिटॉक्सीफाई
डिटॉक्सीफिकेशन
डिनर
डिप्रेशन
डिब्बाबंद भोजन
डिलेवरी
डीकामाली
डीगामाली
डेंगू
डेंगू-Dengue
डॉ. निरंकुश
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
डॉ. मीणा
ढकार
ढीलापन
ढीली योनि
तकलीफ का सही इलाज
तंत्र-मंत्र
तम्बाकू
तरबूज-Watermelon
तलाक
ताकत
तिल
तिल्ली
तुंबा
तुंबी
तुम्बा
तुलसी
तेल
त्रिदोषनाशक
त्रिफला
त्वचा
त्वचा रोग
थकान
थाईरायड
थायरायड-Thyroid
थायरॉइड
दण्डनीय अपराध
दंत वेदना
दन्तकृमि
दन्तरोग
दमा
दर वेदना
दरार
दर्द
दर्द निवारक
दर्द निवारक दवा
दर्दनाक
दस्त
दही
दाग-धब्बे-Stains-Spots
दाढ़
दांत
दांतो में कैविटी-Teeth Cavity
दाद
दाम्पत्य
दाम्पत्य विवाद सलाहकार
दाम्पत्य-Conjugal
दाल
दालचीनी
दालें
दिमांग
दिल
दीर्घायु
दु:खी
दुर्गंध
दुर्बलता
दुष्प्रभाव
दुष्प्रभावरहित
दूध
दूध वृद्धि
दूधी
दूधी-Milk Hedge
दृष्टिदोष
दो मन
द्रोणपुष्पी
द्रोणपुष्पी-Leucas Cephalotes
धड़कन
धनिया बीज
धनिया-Coriander
धमासा
धात
धातु
धातु पतन
धार्मिक
धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं?
धैर्यहीन
नज़ला
नपुंसक
नपुंसकता
नाइट्रिक एसिड
नाक
नाखून
नागबला
नागरमोथा
नाडी हिंगु
नाड़ी हिंगु (डिकामाली)
नामर्दी
नारकीय पीड़ा
नारियल
नाश्ता
निमोनिया
निम्न रक्तचाप
निम्बू
नियासिन
निराश
निरोगधाम
निर्गुण्डी
निर्गुन्डी
निष्कपट स्नेह
निष्ठा
निसोरा
नींद
नींबू
नींबू-Lemon
नीम-azadirachta indica
नुस्खे
नुस्खे-Tips
नेगड़
नेत्र रोग
नेुचरल
नैतिक
नॉर्मल डिलेवरी
नोनिया
नौसादर
न्युमोनिया-Pneumonia
न्यूरॉन्स
पक्षघात
पंचकर्म
पढ़ने में मन लगेगा
पंतजलि
पत्तागोभी-CABBAGE
पत्थर फोड़ी
पत्थरचट्टा
पत्नी
पथरी
पदार्थ
पनीर
पपीता
पपीता-CARICA PAPPYA
पमाड
परदेशी लांगड़ी
परम्परागत चिकित्सा
परहेज
पराठा
परामर्श
परिस्थिति
पवाड़
पवाँर
पाइल्स
पाक-कला
पाचक
पाचन
पाचनतंत्र
पाचनशक्ति
पाठक संख्या 16 लाख पार
पाठक संख्या पंद्रह लाख
पायरिया
पारदर्शिता
पारिजात
पालक
पालक-Spinach
पित्त
पित्ताशय
पित्ती
पिंपल-मुंहासे-Pimples-Acne
पिरामिड
पीलिया
पीलिया-Jaundice
पीलिया-कामला-Jaundice
पुआड़
पुदीना
पुनर्नवा-साटी-सौंटी-Punarnava
पुरुष
पुंसत्व
पेचिश
पेट के कीड़े
पेट दर्द
पेट में गैस
पेट रोग
पेड़
पेद दर्द
पेरिकिटो सेसिल
पेशाब
पेशाब में रुकावट
पेंसिल थेरेपी-Pencil Therapy
पोष्टिक लड्डू
पौधे
पौरुष
पौरुष ग्रंथि
पौष्टिक रागी रोटी
प्याज-Onion
प्यास
प्रजनन
प्रतिरक्षा
प्रतिरक्षा प्रणाली
प्रतिरोधक
प्रतिरोधक-Resistance
प्रदर
प्रमेह
प्रवाहिका (पेचिश)-Dysentery
प्रसव
प्रसव सुरक्षा चक्र
प्रसव-पीड़ा
प्रसूति
प्राणायाम
प्रेग्नेंसी-Pregnancy
प्रेम
प्रेमरस
प्रेमिका
प्रेमी
प्रोटीन
प्रोटीन का कार्य
प्रोटीन के स्रोत
प्रोस्टेट
प्रोस्टेट कैंसर
प्रोस्टेट ग्रंथि
प्रोस्टेट ग्रन्थि
प्लीहा
प्लूरिसी-Pleurisy
प्लेटलेट्स
फंगल
फटन
फफूंद-Fungi
फरास
फल
फाइबर
फिटकरी
फुंसी-Pimples
फूलगोभी-CAULIFLOWER
फेंफड़े
फेरम फॉस
फैट
फैटी लीवर
फोटोफोबिया
फोड़ा
फोड़े-Boils
फोरप्ले
फोलिक एसिड
फ्लू
फ्लू-Flu
फ्लेक्स सीड्स
बकायन
बकुल
बड़ी हरड़
बथुआ
बथुआ पाउडर
बथुआ-White Goose Foot
बदबू
बंध्यापन
बबूल-ACACIA
बरसाती बीमारियाँ
बरसाती बीमारियां
बलगम
बलवृद्धि
बला
बलात्कार
बवासीर
बहरापन
बहुनिया
बहुमूत्रता-
बांझपन
बादाम-Almonds
बादाम.
बाल
बाल झड़ना
बाल झडऩा-Hair Falling
बिना सिजेरियन मां बनें
बिवाई
बीजबंद
बीड़ी
बीमारियों के अनुसार औषधियां
बीमारी
बील
बुखार
बूंद-बूंद पेशाब
बेल
बेली
बैक्टीरिया
बॉयोकैमी
ब्रह्मदण्डी
ब्रेस्ट ग्रोथ
ब्लड प्रेशर
ब्लैक मेलिंग
ब्लॉकेज
भगंदर
भगंदर-Fistula-in-ano
भगनासा
भगन्दर
भगोष्ठ
भड़भांड़
भय
भविष्य
भस्मक रोग
भावनात्मक
भुई आंवला-Phyllanthus Niruri
भूई आमला
भूई आंवला
भूख
भूख बढ़ाने
भूत-प्रेत
भूमि
भूमि आंवला
भोजनलीवर
मकोय
मकोय-Soleanum nigrum
मक्का
मक्का के भुट्टे
मंजीठ
मटर-PEA
मंद दृष्टि
मंदाग्नि
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मधुमेह-Diabetes
मन्दाग्नि-Dyspepsia
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मर्दाना
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मलेरिया
मलेरिया (Malaria)
मवाद
मसाले
मस्तिष्क
मस्से
मस्से-WARTS
महंगा इलाज
महत्वपूर्ण लेख
महाबला
माइग्रेन
माईग्रेन
माईंड सैट
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मानसिक
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योनी
योनी संकोचन
यौन
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यौन उत्तेजक पिल्स (sexual stimulant pills)
यौन क्षमता
यौन दौर्बल्य
यौन शक्तिवर्धक
यौन शिक्षा
यौन समस्याएं
यौनतृप्ति
यौनशक्ति
यौनशिक्षा
यौनसुख
यौनानंद
यौनि
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रक्त रोहिड़ा-TECOMELLA UNDULATA
रक्तचाप
रक्तपित्त
रक्तशोधक
रक्ताल्पता
रक्ताल्पता (एनीमिया)-Anemia
रस-juices
रातरानी Night Blooming Jasmine/Cestrum nocturnum
रामबाण
रामबाण औषधियाँ-Panacea Medicines
रुक्षांश
रूढिवादी
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रूसी मोटापा
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वज़न
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वनौषधियाँ
वमन
वमन विकृति-Vomiting Distortion
वसा
वात
वात श्लैष्मिक ज्वर
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वायरल
वायरल फीवर
वायरल बुखार-Viral Fever
वासना
विचारतंत्र
विटामिन
विधारा
वियाग्रा-Viagra
वियोग
विरह वेदना
विलायती नीम
विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध
विवाहेत्तर सम्बंध
विश्वास
विष
विष हरनी
विषखपरा
वीर्य
वीर्य वृद्धि
वीर्यपात
वृक्कों (गुर्दों) में पथरी-Renal (Kidney) Stone
वृक्ष
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वैवाहिक जीवन-Marital
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शारीरिक रिश्ते
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शीघ्र पतन
शीघ्रपतन
शीस
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शोथ
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श्रेष्ठतर
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