पाचनतंत्र (Digestive System) एवं मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) का ठीक होना जरूरी है, लेकिन अधिकतर लोगों को अपने खुद के स्वास्थ्य के प्रति खुद अपनी ही जिम्मेदारियों का अहसास नहीं है।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
रोगी अनुभव: मेरी उम्र 36 साल है। मुझे बचपन से ही लैट्रिंन करने में परेशानी होती थी। जैसे ही समझ आयी मुझे बहुत शर्मिंदगी होने लगी, क्योंकि मुझे बहुत समय लगता था। सुबह जागते ही सब लोग फ्रेश हो जाते थे, जबकि मुझे 8-9 बजे तक लैट्रिंन जाने की इच्छा ही नहीं होती थी। जब जाती तो बहुत समय लगता। ल्यूकोरिया (Leucorrhea) यानी सफेद पानी की समस्या भी रहती थी। जिसकी वजह से हमेशा चिपचिपापन बना रहता। मुझे महावारी भी नियमित नहीं आती थी। कभी 15 या 20 दिन में ही आ जाती तो कभी 45 से 50 दिन बाद जाती। कभी अधिक मात्रा में आती तो कभी बहुत कम। चेहरे पर मुंहासे हो गये। जिनकी वजह से चेहरा बहुत गंदा दिखता था। पिंडलियों और कमर में दर्द रहता था। मेरी उम्र की लड़कियां खेलती, उछलकूद करती रहती और हमेशा रोमांटिंक मूड में रहती, जबकि मुझे यह सब बेकार सा लगता। जीवन में निराशा ने घर कर लिया था। किसी काम में मन ही नहीं लगता था। जीवन में उत्साह नाम की चीज ही नहीं रही। जब कभी कोई लड़का मुझे छेड़ने की कोशिश करता मुझे बहुत बुरा लगता था। लड़कों में मुझे कोई रुचि नहीं रहती थी।
शर्म के मारे शुरू में किसी से कुछ कह भी नहीं बता पाती थी। मां को बताया तो उन्होंने कुछ डॉक्टर्स को दिखाया। अनेक प्रकार के कैप्सूल, टैबलेट, चूर्ण खाये। अनेक कम्पनियों के Laxative Syrup (रेचक/दस्तावर सिरप) भी पिये। देशी दवाइयां भी दिलायी। जब तक दवा लेती, उनका कुछ असर रहता बाद में वही समस्या।
मैं बहुत परेशान रहने लगी। इसी दौरान 25 साल की आयु में मेरा विवाह हो गया। मुझे सेक्स में कोई रुचि नहीं थी। मुझे सेक्स में अनेक बार असहनीय दर्द होता था। पति को इनकार करना भी संभव नहीं था। 30 साल की आयु तक 2 बच्चों की मां बन गयी। मगर मेरा जीवन निरर्थक सा ही लगता रहा। कुछ मतलब ही नहीं। बुढापा सा आ गया। मेरे पति ने भी कुछ डॉक्टर्स को दिखाया। महिना-दो महिना कुछ ठीक रहती। उसके बाद वही समस्या।
इसी बीच मैं किसी काम से अपने पति के साथ अहमदाबाद गयी। इनके मित्र की पत्नी ने मुझ से पूछा कि लैट्रिन में इतना समय क्यों लगता है, तो उनको मैंने अपनी प्रॉब्लम बतायी। वे बोली-
''हम औरतों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है, हम घर में या डॉक्टर को सही से अपनी प्रॉब्लम बताती ही नहीं। मैं भी ऐसी ही थी। मुझे भी अनेक तरह की प्रॉब्लम रहती थी। किसी से प्रॉब्लम बताने में संकोच होता था। जब आॅन लाइन डॉक्टर पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' जी इलाज लिया और मैं उनको अपनी प्रॉब्लम बताने में हिचकिचा रही थी तो उनके एक वाक्य 'बोलोगी नहीं तो आपकी प्रॉब्लम को कोई समझेगा कैसे?' ने मेरी आंखें खोल दी और मैंने उनके हर सवाल का जवाब दिया और उनका इलाज लिया। अब मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं।''
उन्होंने मुझे आॅन लाइन डॉक्टर पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' जी का हेल्थ वाट्सएप नम्बर 8561955619 दिया। मैंने डॉ. साहब को अपनी प्रॉब्लम्स बतायी। सारी बात जानने के बाद आधा घंटे तक मुझ से कोई 70-80 सवाल पूछे और बोले कि तुम्हारी समझ में तुम्हें जितनी भी बीमारियां हैं, वे सब तो मूल बीमारी के लक्षण मात्र हैं। मूल समस्या है-कब्ज और अपच (Constipation and Indigestion), साथ ही मानसिक तनाव। जब तक तुम्हारा पाचनतंत्र एवं मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होगी, अन्य तकलीफों से छुटकारा मिलना असंभव है। लक्षणों को बीमारी मानकर इलाज करने पर यदाकदा लक्षण ठीक होते दिखते हैं, लेकिन बीमारी बनी रहती है। डॉ. साहब बोले कम से कम 6 से 8 महिने नियमित इलाज लेना होगा। एक साल या अधिक समय भी लग सकता है।
हमने आपस में विचार करके हां बोल दी। मैंने अप्रेल, 2017 में इलाज शुरू किया। अगस्त, 2017 में मुझे लगने लगा कि मैं स्वस्थ हो रही हूं और 35 साल की आयु में मेरे अंदर की स्त्री ने पहली बार जन्म लिया। मुझे सेक्स के प्रति रुचि पैदा हुई। दिसम्बर, 2017 तक मेरी सभी समस्याएं ठीक हो गयी और अब मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूं। डॉक्टर साहब ने मेरा केस सार्वजनिक करने की मुझ से सहमति चाही तो मेरा नाम-पता बताये बिना इस केस को सार्वजनिक करने की मेरी सहमति है।-एक महिला।
डॉ. टिप्पणी: यह एक जटिल केस था। जिसमें पेशेंट एक महिला थी, जो इतनी संकोची थी कि शुरू में एक ही सवाल को अनेक बार पूछने पर भी सही जवाब नहीं देती थी। इसी कारण उसने पहले भी किसी को अपनी तकलीफें सही से नहीं बतायी होंगी। अधिकतर चिकित्सा व्यवसाइयों के पास पेशेंट की तकलीफों को जानने के लिये समय की कमी होती है। मेरा स्पष्ट मत है कि पेशेंट्स को अपनी सभी तकलीफें डॉक्टर को खुलकर बतानी चाहिये और जो डॉक्टर पेशेंट्स की तकलीफों को नहीं सुने, ऐसे डॉक्टर के इलाज से स्वस्थ होने की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिये। मेरी आदत है उलझे हुए मामलों को चुनौती मानकर इलाज शुरू करना। जिसमें समय बहुत लगता। लोग मेरे समय की कीमत अदा करना तो बहुत दूर, दवाइयों की कीमत अदा करके भी पेशेंट अहसान सा करते हैं। जबकि बाद में हालात बिगड़ जाने पर लाखों रुपया बर्बाद करके भी अपने स्वास्थ्य की रिकवरी नहीं कर सकते हैं। सबसे दु:खद स्थिति अधिकतर लोगों को अपने खुद के स्वास्थ्य के प्रति खुद अपनी ही जिम्मेदारियों का अहसास नहीं है। इस प्रकरण में मुझे आम लोगों को यह बात फिर से समझानी है कि अधिकतर लोगों का इतनी सी बात भी समझ में नहीं आती है कि-''जिस रोगी का पाचनतंत्र सामान्य भोजन को नहीं पचा सकता, उसका पाचनतंत्र दवाइयों को कैसे पचायेगा? और दवाइयों को पचायेगा नहीं तो उपचार कैसे होगा?'' इस विषय पर 'पाचनतंत्र को सुधारे बिना सेक्स समस्याओं का इलाज सम्भव नहीं!' शीर्षक से 7 दिसम्बर, 2017 को प्रकाशित लेख में भी जरूरी जानकारी दी जा चुकी है।
*Note:* किसी भी पुरानी या लाइलाज मानी जाने वाली तकलीफ/बीमारी से पीड़ित लोगों को, इसे अपनी नियति मानकर (Assuming your Destiny), निराश या हताश (Frustrated or Depressed) होने की जरूरत नहीं है। देशी जड़ी बूटियों और होम्योपैथिक दवाइयों में अनेक जटिल तकलीफों का भी इलाज संभव है। अकसर लोग मेरी ओर से लिखी गयी जानकारियों और हेल्थ बुलेटिंस को पढकर इलाज या परामर्श हेतु मुझे ही काल करते हैं, समयाभाव के कारण मैं उन्हें तत्काल रिस्पांस (Response-प्रतिक्रिया) नहीं दे पाता हूं। जबकि होना यह चाहिये कि अपने आपसपास के किसी अनुभवी डॉक्टर से भी सम्पर्क किया जाये, क्योंकि मुझ से अधिक अनुभवी तथा अधिक योग्य होम्योपैथ तथा आयुर्वेद के अनेक डॉक्टर उपलब्ध हैं। *हां अनेकानेक स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों की जानकारी और रोगियों के अनुभवों की जानकारी हेतु मेरी निम्न वेबसाइट और, या मेर Facebook Page पर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनने हेतु विजिट/क्लिक कर सकते हैं:—*—डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'-26.10.2018
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