सेमल-Bombax Ceiba
सेमल (वैज्ञानिक नाम : बॉम्बैक्स सेइबा), इस जीनस के अन्य पादपों की तरह सामान्यतया ‘कॉटन ट्री’ कहा जाता है। इस
उष्णकटिबंधीय वृक्ष का सीधा उर्ध्वाधर तना होता है। इसकी पत्तियां डेशिडुअस होतीं हैं। इसके लाल पुष्प की पाँच पंखुड़ियाँ होतीं हैं। ये
वसंत ऋतु के पहले ही आ जातीं हैं।
इसका फल एक कैपसूल जैसा होता है। ये फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ-कुछ कपास की तरह के निकलते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। इसकी
लकड़ी इमारती काम के उपयुक्त नहीं होती है।
रोजगार का साधन : फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद होती है। इस रूई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे, लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है।
इसके फूल बाज़ार में 15 से 20 रुपये कि. ग्रा. तक बिकते हैं। इसके अतिरिक्त फल भी 10 से 15 रुपये और बीज तो 50 से 70 रुपये कि.ग्रा. तक आसानी से बेचे जा सकते हैं। सेमल वृक्ष से व्यवसाय करने वाले लोग एक सीजन में तीस से चालीस हज़ार
रुपया तक कमा लेते हैं। सेमल केवल सब्जी तक सीमित नहीं है, उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाज़ारों में भारी माँग है।
सेमल के डोडे या फलों की निस्सारता भारतीय कवि-परंपरा में बहुत काल से प्रसिद्ध है और यह अनेक अन्योक्तियों का विषय रहा है।
‘सेमर सेइ सुवा पछ्ताने’ यह एक कहावत सी हो गई है। सेमल की रूई रेशम सी मुलायम और चमकीली होती है और गद्दों तथा तकियों में भरने के काम में आती है, क्योंकि काती नहीं जा सकती। इसकी लकड़ी पानी में खूब ठहरती है और नाव बनाने के काम में आती है।
आयुर्वेद में सेमल बहुत उपकारी औषधि मानी गई है। यह मधुर, कसैला, शीतल, हलका, स्निग्ध, पिच्छिल तथा शुक्र और कफ को बढ़ानेवाला कहा गया है। सेमल की छाल कसैली और कफनाशक; फूल शीतल, कड़वा, भारी, कसैला, वातकारक, मलरोधक, रूखा तथा कफ, पित्त और रक्तविकार को शांत करनेवाला कहा गया है। फल के गुण फूल ही के समान हैं।
सेमल के नए पौधे की जड़ को सेमल का मूसला कहते हैं, जो बहुत पुष्टिकारक, कामोद्दीपक और नपुंसकता को दूर करनेवाला माना जाता है। सेमल का
गोंद मोचरस कहलाता है। यह अतिसार को दूर करनेवाला और बलकारक कहा गया है। इसके बीज स्निग्धताकारक और मदकारी होते है; और काँटों में फोड़े, फुंसी, घाव, छीप आदि दूर करने का गुण होता है।
वन विभाग ने विभिन्न नर्सरियों में सेमल के एक हजार से अधिक पौधे तैयार किए हैं। विशालकाय होने से जहां यह गर्मियों में छाया की सुखद अनुभूति देते हैं। वहीं इन पर लगने वाले लाल व सफेद फूल भी आकर्षित बनाते हैं। इनकी छाल, पत्ते,फूल व बीज का उपयोग किडनी गनोरिया सहित कई रोगों के निदान के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इन्हें आंगन में लगाने पर सांप आदि विषैले जीव जंतु घर में नहीं आते।
विभिन्न रोगों में सहायक
सेमल वृक्ष के
फल,
फूल, पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान करने में प्रयोग किया जाता है। जैसे-
प्रदर रोग–सेमल के फलों को
घी और सेंधा नमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
जख्म–इस वृक्ष की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है।
रक्तपित्त–सेमल के एक से दो ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
अतिसार–सेमल वृक्ष के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में तीन बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को देने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाते हैं।
आग से जलने पर–इस वृक्ष की रूई को जलाकर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
नपुंसकता–दस ग्राम सेमल के
फल का चूर्ण, दस ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोटकर सुबह-शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है।
पेचिश–यदि पेचिश आदि की शिकायत हो तो सेमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह उस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है।
प्रदर रोग–सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
गिल्टी या ट्यूमर–सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बाँधने से गाँठों की सूजन कम हो जाती है।
रक्त प्रदर–इस वृक्ष की गोंद एक से तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
नपुंसकता–सेमल वृक्ष की छाल के 20 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर में वीर्य बढ़ता है और मैथुन शक्ति बढ़ती है।
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